अडानी समूह के मामले को लेकर देश का माहौल संसद से सडक़ तक गर्म है। सारा विपक्ष अडानी की कम्पनियों की जाँच के लिए मोदी सरकार पर हमलावर है। अडानी ग्रुप के कर्ताधर्ता गौतम अडानी से मोदी की पुरानी मित्रता और इसके परिणामस्वरूप अडानी की तेज़ी से बढ़ती सम्पत्ति के प्रश्न को विपक्ष बोफोर्स जैसा मुद्दा बनाना चाहता है। अडानी प्रकरण में विपक्ष को मोदी-काल का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला नज़र आ रहा है। कथित तौर पर आरोप है कि अडानी के तार सीधे तौर मोदी से जुड़े हैं। एक विदेशी निवेशक कम्पनी हिंडनबर्ग ने जब पहली बार अडानी के घोटालों को लेकर रिपोर्ट जारी की, तो बाज़ार में तहलका मच गया। अडानी ग्रुप के शेयर बुरी तरह लुढक़ने लगे और 75 फ़ीसदी से ज़्यादा लुढक़ गये। हिंडनबर्ग के बाद फोब्र्स और विकीपीडिया ने भी अडानी ग्रुप की कारस्तानियों को लेकर कई ख़ुलासे किये हैं। अमेरिका के डाउ जोंस सस्टेनिबिलिटी इंडेक्स से अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर बाहर कर दिये।
अब गौतम अडानी दुनिया के तीसरे सबसे अमीर के पायदान से गिरकर 29वें स्तर पर पहुँच गये हैं। अगले साल यानी 2024 में देश में आम चुनाव हैं, जिसमें मोदी तीसरी बार जीतकर देश की कमान सँभालने का सपना देख रहे हैं। एक तरफ़ अडानी के तमाम प्रयासों के बावजूद यह गिरावट रुकने का नाम नहीं ले रही। दूसरी तरफ़ विपक्ष की माँग और तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी सरकार अडानी समूह की जाँच तो छोड़ो, इस पर संसद में चर्चा तक करवाने को तैयार नहीं है। आम चुनाव से पहले विपक्ष के हाथ एक ऐसा मुद्दा लग गया है, जिसने मोदी की छवि का नुक़सान करना शुरू कर दिया है। आम आदमी के मन में मोदी के अडानी से रिश्तों को लेकर प्रश्न खड़े हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के प्रश्न कब बड़े मुद्दों और फिर सत्ता विरोधी लहर में बदल जाए और इनका कितना राजनीतिक नुक़सान हो सकता है, यह बोफोर्स और अन्ना आन्दोलन के दौरान देख चुके हैं।
मोदी सरकार अडानी के मुद्दे पर बहस और जाँच से कितना भी भाग ले, यह मुद्दा अब दबने वाला नहीं है; क्योंकि इसके अंतरराष्ट्रीय आयाम भी नहीं। अडानी समूह में विदेशी निवेशकों का मोटा पैसा लगा हुआ है। कई विदेशी बैंक, रेटिंग एजेंसियाँ अडानी पर सख़्त रुख़ अपना रही हैं। बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय अख़बारों और पत्रिकाओं में अडानी के घोटालों पर ख़बरें छप रही हैं। भाजपा और संघ भी चिंतित हैं कि कहीं यह मुद्दा गले की फाँस न बन जाए और पार्टी को 2024 में इसका बड़ा राजनीतिक ख़ामियाजा न भुगतना पड़ जाए। संसद में भाजपा जिस प्रकार अडानी मुद्दे से भागती रही और मोदी ने संसद में अपने भाषण में जिस प्रकार की बौखलाहट दिखायी और ‘एक अकेला सब पर भारी है’ वाली बात कही, उससे संघ और भाजपा नेताओं की बेचैनी और बढ़ी है। संघ व्यक्तिवाद से इतर सामूहिक प्रयास और नेतृत्व पर बल देता रहा है।
मोदी के बयान से यह संदेश गया, जैसे अकेले मोदी ही सब कुछ हैं, संघ और भाजपा मोदी के सामने छोटे और गौण हैं। यह संघ को कदापि स्वीकार्य नहीं है कि कोई एक व्यक्ति उससे ऊपर होकर हावी हो जाए। मोदी को आईना दिखाते हुए तत्काल संघ प्रमुख का बयान आया कि किसी एक व्यक्ति या विचार से देश का भला नहीं हो सकता। जिस प्रकार से अडानी का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है और मोदी की छवि पर भारी पड़ता नज़र आ रहा है। इसके चलते यदि भाजपा को वोटों का ज़्यादा नुक़सान होता हुआ दिखा, तो संघ भाजपा को अपने अगले घोड़े यानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी पर दाँव लगाना होगा। सूत्रों के अनुसार, संघ और भाजपा में अब यह चर्चा होने लगी है यदि उपयोगिता कम होने पर आडवाणी को किनारे लगाया जा सकता है, तो मोदी को क्यों नहीं?
उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने जिस प्रकार अपनी छवि को गढ़ा और काम करके दिखाया है उसे देखकर योगी ही मोदी के बाद सबसे ज़्यादा लोकप्रिय और उपयुक्त चेहरा नज़र आते हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में वह सिर्फ़ योगी आदित्यनाथ का करिश्मा ही था, जिसकी बदौलत 35 साल बाद प्रदेश में किसी भी सियासी दल की सरकार की पुनरावृत्ति हो पायी। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि किसान आन्दोलन और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी प्रकरण की नाराज़गी के बावजूद भाजपा का प्रदेश में इतना शानदार प्रदर्शन सिर्फ़ योगी की लोकप्रियता का ही परिणाम है।
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को अधिकांश वोट प्रधानमंत्री मोदी के नाम से ज़्यादा योगी के नाम और काम पर मिले थे। प्रदेश में लोकसभा की साठ से ज़्यादा सीटें जीतने का बहुत बड़ा श्रेय योगी को जाता है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कोई गठबंधन नहीं था, जबकि सन् 2019 में सपा, बसपा और रालोद आदि का बहुत ही मज़बूत गठबंधन होने के बावजूद पार्टी की बड़ी जीत होना जताता है कि योगी ने प्रदेश में भाजपा की जड़ों को मज़बूत किया है। 2019 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने में योगी का महत्त्वपूर्ण योगदान है और 2024 में भी बिना योगी के सहयोग के मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। सर्वविदित है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता आज भी उत्तर प्रदेश से होकर ही गुज़रता है।
अगर सियासी लिहाज़ से देखें, तो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री देश में प्रधानमंत्री के बाद दूसरे नंबर की राजनीतिक हैसियत रखता है। हालात बताते हैं कि योगी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में काम करके जो कुशल प्रशासक की छवि बनायी है, उससे लगता है कि भविष्य में जनता उन्हें और बड़ी ज़िम्मेदारी दे सकती है। अडानी प्रकरण ने मोदी की छवि और लोकप्रियता में गिरावट का काम किया है, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी का जादू चल पायेगा इस पर संशय व्यक्त किया जा रहा है। अगर यहाँ से परिस्थिति और बिगड़ी, तो संघ और भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में योगी के नाम पर विचार कर सकते हैं।
अगर प्रदेश में विकास की बात करें, तो योगी केवल विपक्ष ही नहीं तमाम नेताओं को भी विकास के नाम पर चुनौती दे रहे हैं। दरअसल योगी उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने से एक क़दम आगे सर्वोत्तम प्रदेश बनाने की पटकथा लिख रहें हैं। जिस प्रदेश को सपा-बसपा की सरकारों ने एक पिछड़ा, दंगों से जूझने वाला और जातियों में बँटा हुआ प्रदेश बना दिया था। उसी प्रदेश की इन दिनों एक अलग छवि योगी के नेतृत्व में बन रही है, जहाँ बीते छ: वर्षों से कोई दंगा नहीं हुआ है, जहाँ अब आर्थिक विकास या औद्योगीकरण सिर्फ़ वादा नहीं इरादा बन चुका है।
बहरहाल कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो आज योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। क़ानून व्यवस्था तो चाकचौबंद है ही अब यहाँ लगातार लाखों करोड़ रुपये का निवेश भी आ रहा है। बीते 6 सालों में योगी की छवि घोषणाओं को तेज़ी से जमीन पर उतारने वाले नेता के रूप में स्थापित हो गयी है। सन् 2017 से पहले प्रदेश में बदहाल क़ानून-व्यवस्था, बदहाल सडक़ें, आये दिन होने वाले करोड़ों रुपये के घोटालों से जहाँ यूपी की छवि तार-तार थी, वहीं आज प्रदेश में दोबारा योगी सरकार बनने के बाद तेज़ी से बन रहे एक्सप्रेस-वे, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के निर्माण, डिफेंस कॉरिडोर, बिजली आपूर्ति दुरुस्त होने, एक के बाद एक नये विश्वविद्यालयों के निर्माण से उत्तर प्रदेश की छवि तेज़ी से बदल रही है।
यही कारण है कि हाल ही में लखनऊ में हुई इन्वेस्टर समिट में योगी लगभग 32 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा के निवेश की योजनाओं को आकर्षित करने में सफल रहे। अडानी प्रकरण के चलते मोदी का रथ थोड़ा भी डगमगाया तो संघ और भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव से पहले या भाजपा को स्पष्ट बहुमत न मिलने की सूरत में दिल्ली की कमान योगी को सौंप सकते हैं। तेज़ी से बदलती परिस्थितियों में योगी और मोदी का सियासी भविष्य क्या होगा यह तो वक़्त ही बताएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)