देश में डर का माहौल है। जो हालात चल रहे हैं, उसमें विदेशों के मुस्लिम कलाकार यहाँ आने से डर रहे हैं। दूसरी आर्ट एंड कैलीग्राफी एग्जीबिशन में आने वाले 32 मुल्कों के कलाकारों में से 18 मुल्कों के कलाकारों ने ऐन मौके पर आना कैन्सिल कर दिया, जबकि उनकी टिकट और वीज़ा फाइनल हो चुके थे। इंटरनेशनल मीडिया में जाकर जो कुछ कहा गया है, उससे वे डर रहे हैं और कुछ अलग-अलग मुल्कों की एडवाजरी भी जारी हो गयी है। ऐसी स्थिति इस बात की गवाह है कि राजनीति कला पर कितनी भारी पड़ती है।’ ऐसा कहना है जयपुर की कोशिश फाउंडेशन के मकसूद अली खाँ का, जिन्होंने पिछले दिनों जवाहर कला केंद्र में दूसरी आर्ट एंड कैलीग्राफी प्रदर्शनों का आयोजन किया। प्रदर्शनी में भाग लेने वाले ज़्यादातर मुस्लिम कलाकारों ने देश के हालातों पर मलाल जताया; लेकिन वे हिन्दुस्तानी होने पर फख्र महसूस करते हैं।
दूसरी आर्ट एंड कैलीग्राफी प्रदर्शनी में जिन मुल्कों के कैलीग्राफरों ने हिस्सा लिया, उनमें तुर्की, अल्जीरिया, सीरिया, सूडान, ईरान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, नेपाल आदि देशों के कलाकार शामिल थे। आयोजक मकसूद अली कहते हैं कि ऐसे माहौल में इस प्रदर्शनी का आयोजन करके एक-दूसरे को जोडऩे की कोशिश की गयी है। कैलीग्राफी एक लुप्तप्राय कला है। अब तो लोगों ने स्कूलों में लिखना बन्द कर दिया है; सुलेख की तो बात छोड़ो। उन्होंने कहा कि आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि ये अरेबिक आर्ट है, पर ऐसा नहीं है। अंग्रेजी में भी कैलीग्राफी बहुत खूबसूरत होती है। अगर धार्मिक ग्रन्थों, पांडूलिपियों को देखें, यहाँ तक कि वेदों में भी एक तरह की कैलीग्राफी है। अब तो उर्दू में, देवनागरी में भी कैलीग्राफी शुरू हो गयी है। कला कैसे लोगों को आपस में जोड़ती है, इस सवाल पर खान कहते हैं कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान। पाकिस्तान वाले हिन्दुस्तानी िफल्मों के दीवाने हैं और हिन्दुस्तान वाले पाकिस्तानी टेलीविजन के वहाँ के गायकों के दीवाने हैं। उधर वाले कलाम यहाँ के पढ़ते हैं। जितने बड़े उस्ताद हैं, वो उतने मकबूल हिन्दुस्तान में और उतने ही पाकिस्तान में हैं। मज़े की बात तो यह है कि जहाँ उर्दू बोली नहीं जाती, समझी नहीं जाती, वहाँ भी जब हमारे कलाकार जाते हैं, तो उनकी बहुत तारीफ होती है, चाहे वो शायर हों या कव्वाल। सरहदें तो राजनीतिक होती हैं। कलाकार अपने को 100 फीसदी मानते हैं, क्या आप इस सवाल पर मकसूद अली नाराज़ हो जाते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिमों के आने से पहले यह देश देश कहाँ या यहाँ तो रियासतें थी। इसको देश ही हमने बनाया। हिन्दुस्तान हमारा है, हमारे बाप का है और हम यहीं रहेंगे। ये हवाएँ कुछ दिन की हैं। कोशिश फाउंडेशन की ही तनवीर रज़ा कहती हैं कि हम शुरू से जयपुर में रहे हैं और यहीं रहेंगे। पाकिस्तान से कुछ लोगों को यहाँ लाने का फैसला गलत है। हिन्दुस्तान में पहले ही इतनी बेरोज़गारी है, पहले अपने लोगों के बारे में सोचना चाहिए। कश्मीर के मुद्दे पर तनवीर का कहना है कि हम दिल से चाहते हैं कश्मीर भारत को मिले, उसका विकास हो, लेकिन अमन के साथ। बशारत अहमद ने प्रदर्शनी में ड्राई फ्रूट का स्टॉल लगाया है। कश्मीर के हालात पर उसका कहना था कि (27 जनवरी से) तीन दिन पहले एसएमएस, प्रीपेड सर्विस शुरू हुई है, जबकि पोस्टपेड दो महीने से चल रहा है। इंटरनेट बन्द था। घर पे रोज़ बात होती है, तो हालात पता चलते रहते हैं। बशारत कश्मीर में धारा-370 हटने, उसके विकास का समर्थन करता है और कश्मीर को हिन्दुस्तान का हिस्सा मानता है। वह इस बात से खुश है कि कश्मीर के हालात ठीक हो जाने पर वह अपने घर से व्यापार कर सकेगा, उसको बाहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बशारत ने बताया कि जयपुर में उसके साथ एम.ए., बीएड, पीएचडी युवक ड्राईफ्रूट बेच रहे हैं; कई मज़दूरी भी करते हैं। आज तक पिछली सरकारों ने कश्मीर के लिए क्या किया, इस सवाल पर उसका यही कहना था कि उन्होंने अपने घर भरे हैं, आम नागरिक के लिए कुछ नहीं किया। टोंक से आये कैलीग्राफर ज़फर रज़ा खान अपने को हिन्दुस्तानी कहलाने में फख्र महसूस करते हैं। यहीं पैदा हुए और यही बात है कि यहाँ हिन्दु-मुस्लिम, सिख, ईसाई सब साथ रहते हैं। कश्मीर को भारत का हिस्सा मानते हैं। उन्हें पाकिस्तान में रिश्तेदारी से मिलने जाना, तो भाता है। लेकिन वहाँ बसने को असम्भव मानते हैं। वहीं हरिशंकर वालोठिया हिन्दी, इंग्लिश, बंगला, गुजराती, गुरमुखी, उडिय़ा भाषाओं में कैलीग्राफी के उस्ताद है और अब तक 10 हज़ार विद्यार्थियों को यह कला सिखा चुके हैं। वर्तमान हालातों पर बात करते हुए वे कहते हैं कि नेताओं को तो अपनी रोटियाँ सेंकनी हैं; लेकिन जनता भी अज्ञानता में जा रही है। समझने की शक्ति खो रही है।
पेंसिल का कमाल है कैलीग्राफी
ड्राइंग, स्केचिंग, ग्राफिक्स डिजाइन आदि किसी भी काम के लिए शुरुआत कैलीग्राफी से ही होती है। कला का सारा काम अक्षर लेखन से शुरू होता है। इससे हैंडराइटिंग में सुधार होता है। हैदराबाद से आये मोहम्मद रफी को कला और कैलीग्राफी दोनों में महारत हासिल है। आर्टफॉर्म इन कैलीग्राफी एंड कैलीग्राफी इन आर्ट फॉर्म इन दोनों का बड़ा खूबसूरत मेल है और कैलीग्राफी प्राचीन कला है। अरब दोनों का बड़ा कुशल उस्ताद है और उन्हीें से हमने प्रेरणा ली है। जवाहर कला केंद्र की ही आर्ट गैलरी में जया जेटली द्वारा महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि देने के लिए, हाथों से निर्मित पेपर और कैलीग्राफी को प्रोमोट करने के लिए भी चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जया जेटली के अनुसार भारत में कैलीग्राफी के कई नाम हैं, जैसे- सुलेखन, सुलिपि, खुशनफीसी, िफवाबत, सुलूस आदि-आदि। चित्रों में कलाकारों ने गाँधी जी के विचारों, शब्दों और कार्यों को अद्वितीय कैलीग्राफिक शैली में पेश किया गया।