प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को जब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में विप्लवी भारत गैलरी का उद्घाटन किया, तो यह स्वतंत्रता सेनानियों की याद में आयोजित एक कार्यक्रम भर नहीं था, बल्कि इसका महत्त्व कहीं अधिक था। एक कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में सरकार ने आज़ादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव के रूप में अपने स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के साहस और सर्वोच्च बलिदान को सम्मानित किया। इसके लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, महाराष्ट्र, गुजरात, मणिपुर और पुडुचेरी में एक साथ कार्यक्रम आयोजित किये गये। शहीदी दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान की कहानियाँ हम सभी को देश के लिए अथक परिश्रम करने को प्रेरित करती हैं, जबकि हमारे अतीत की विरासत हमारे वर्तमान का मार्गदर्शन करती है और हमें एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है।
यह थोड़ा अलग हो सकता है कि जबसे आम आदमी पार्टी ने शहीद भगत सिंह के दृष्टिकोण को अपनाया है और पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल के दिनों में विभिन्न कार्यक्रमों में इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाने शुरू किये हैं, राजनीतिक दलों में किंवदंती के नाम पर शपथ लेने की होड़-सी है। ऐसा भी लगता है कि आम आदमी पार्टी महान् शहीद से जुड़े देशभक्ति के बसंती रंग को भाजपा के भगवा रंग मुक़ाबले उभारने की कोशिश कर रही है। पंजाब में सत्ता में नयी आयी आम आदमी पार्टी ने सरकारी कार्यालयों में भगत सिंह के चित्र लगाये हैं और उनके शहीदी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। पंजाब विधानसभा में उनकी प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव भी रखा है। भगत सिंह की तस्वीरों वाली टी-शर्ट पहने युवाओं को शहीद के चित्रों वाले वाहनों के साथ उत्साह में भरा देखा जा सकता है, जो स्पष्ट रूप से युवा आदर्श और पोस्टर बॉय बन गये हैं। भगत सिंह के नाम के स्टीकर ‘लगदा, फेर औना पउ’ (लगता है, फिर आना होगा) के नारे के साथ युवाओं के बीच क्रेज जैसा बन गया है।
‘तहलका’ के इस अंक में विशेष रिपोर्ट ‘भगत सिंह : भारत के शाश्वत् शहीद’ के लेखक 91 वर्षीय वयोवृद्ध पत्रकार राज कँवर हैं, जो बताते हैं कि उनका जन्म उसी दिन हुआ था, जब भगत सिंह शहीद हुए थे और लाहौर में पूरी तरह से हड़ताल हुई थी। गोपाल मिश्रा की लिखी हमारी आवरण कथा ‘तबाही की ज़िद’ पश्चिमी गठबंधन के बारे में है, जो चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर नज़र रखता है; भले ही यह रूस को यूक्रेन युद्ध से बाहर निकलने का भी अवसर देता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले ही चीन को एक स्पष्ट सन्देश भेज चुके हैं कि भारत के साथ सम्बन्ध सामान्य बनाने की ज़िम्मेदारी बीजिंग की है।
यह उल्लेखनीय है कि कैसे भारत ने रूस पर अमेरिकी दबाव का विरोध किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़सोस जताया है कि भारत ‘कुछ हद तक अस्थिर’ रहा है; लेकिन वास्तव में उसने अमेरिका और उसके सहयोगियों के लगातार दबाव के बावजूद एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करते हुए गरिमा के साथ अपनी पकड़ बनायी है। इतिहास गवाह है कि सन् 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान रूस भारत के साथ खड़ा था। एक समय आजमाये हुए भरोसेमंद सहयोगी के साथ खड़े होकर और अपनी पकड़ बनाकर भारत ने बेहतर सन्तुलन दिखाया है।
चरणजीत आहुजा