यूक्रेन में बढ़ती तनातनी बन सकती है बड़े संकट का कारण
यूक्रेन में सैन्य तनाव बड़े ख़तरे के संकेत देने लगा है। रूस ने जिस तरह बेलारूस के साथ काला सागर में युद्धाभ्यास किया है, उससे दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रूस ने नाटो में न जाने की जो धमकी यूक्रेन को दी है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अमेरिका ने इसी ख़तरे को देखते हुए अपने नागरिकों को यूक्रेन छोडऩे को कहा, जिसके बाद यह कहा जाने लगा है कि रूस युद्ध के लिए गम्भीर है। यूक्रेन संकट के राजनयिक समाधान की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन फ़िलहाल रूस जिस तरह अपने इकलौते एजेंडे कि यूक्रेन नाटो सदस्य बनने की दौड़ से पीछे हट जाए। लेकिन यूक्रेन समर्पण करने के मूड में नहीं दिख रहा। रूस के इस परमाणु अभ्यास में क़रीब 30,000 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं। नाटो के महासचिव रूसी अभ्यास को ख़तरनाक क्षण बता चुके हैं।
फरवरी के पहले पखवाड़े तक रूस यूक्रेन को कमोवेश चारों तरफ़ से घेर चुका था। युद्ध होगा या नहीं, यह बाद की बात है, रूस की पहली कोशिश यूक्रेन को इस मनोविज्ञानिक दबाव के ज़रिये इस बात के लिए तैयार करने की कोशिश है कि वह नाटो का सदस्य बनने की कोशिशों से तौबा कर ले। ऐसा होगा या नहीं; कहना कठिन है। क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी यूक्रेन को हिम्मत से खड़ा रहने के लिए उसकी सैन्य मदद कर रहे हैं।
रूस की सेना समुद्र, ज़मीन और हवा के रास्ते परमाणु बम गिराने का अभ्यास कर रही है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस के मुताबिक, रूसी सेना न्यूक्लियर स्ट्रेटजिक अभ्यास करने जा रही है। राजनयिक कोशिशों के बावजूद रूस ग़लत दिशा में बढ़ रहा है। वालेस का कहना था कि जानकारियों के मुतबिक, रूस यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहा है। बातचीत के बावजूद चीज़ें ग़लत दिशा की तरफ़ जा रही हैं। रूस अब भी अपनी सेना को बढ़ा रहा है।
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ने इस बीच यह साफ़ किया कि देश की सेना परमाणु अभ्यास में रणनीतिक परमाणु बल के तीनों ही हिस्सों ज़मीन, समुद्र और हवा से परमाणु बम गिराने का अभ्यास कर रही है। नाटो के महासचिव रूसी अभ्यास को ख़तरनाक क्षण बताते हुए कह चुके हैं कि यह शीत युद्ध के बाद अब तक का सबसे बड़ा अभ्यास है। यूरोप की सुरक्षा के लिए यह ख़तरनाक क्षण है। रूसी सैनिकों की संख्या बढ़ रही है। हमले के ख़तरे की चेतावनी देने वाला समय लगातार कम होता जा रहा है।
इस मसले पर 10 फरवरी को ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रूस रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ बैठक कर चुकी हैं। कोशिश यूक्रेन संकट में कमी लाना और कूटनीतिक तरीक़ों से तनाव कम करने की है। इसके बाद एलिजाबेथ ने रूस को चेताया कि यूक्रेन पर हमले के गम्भीर नतीजे होंगे और इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी होगी। हालाँकि लावरोव ने साफ़ कहा कि पश्चिमी देश मॉस्को को उपदेश नहीं दें। वैचारिक दृष्टिकोण और अन्तिम चेतावनी के रास्ते आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
निश्चित ही इसके बाद यूक्रेन मामला तेज़ी से गर्माता दिख रहा है। रूस की यूक्रेन को नाटो का सदस्य न बनने अन्यथा परमाणु हमले झेलने की धमकी के बाद अमेरिका ने 11 फरवरी को यूक्रेन में अपने नागरिकों को तुरन्त देश छोडऩे की एडवाइजरी जारी की। वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञ यूक्रेन पर बड़े देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को विश्व शान्ति के लिए ख़तरा मान रहे हैं और उनको अंदेशा है कि यह तनाव बड़े टकराव का रास्ता खोल सकता है।
यह अवसर भारत के लिए भी संकट जैसा है। क्योंकि उसके सामने अमेरिका और रूस में से एक का चुनाव (पक्ष) करने की चुनौती है। अमेरिका यूक्रेन मामले में भारत को अपने साथ खड़ा देखना चाहता है। लेकिन रूस, जिसके साथ हाल के सालों में भारत के सम्बन्ध पुराने स्तर जैसे दोस्ताना नहीं कहे जा सकते; के साथ भी भारत सम्बन्ध ख़राब नहीं करना चाहता। भारत की कोशिश संतुलन बनाने की है। अमेरिका के साथ-साथ रूस भी भारत का रणनीतिक साझीदार है।
रूस भारत के लिए इसलिए भी ज़रूरी है कि चीन के साथ उसका तनाव ऊँचे स्तर पर है। यूक्रेन मामले में चीन रूस के साथ खड़ा हो गया है। चीन से टकराव घटाने में रूस अहम भूमिका निभा सकता है, अमेरिका नहीं। भारत रणनीतिक तौर पर रूस का भी क़रीबी है। लम्बे वक़्त से भारत रूसी रक्षा उपकरण और हथियार का ख़रीदार है। लिहाज़ा रूस पर रक्षा क्षेत्र की निर्भरता भी है। ज़ाहिर है भारत इस बड़ी चुनौती के समय समझदारी से काम लेगा और इस युद्ध के पक्ष में नहीं रहेगा।