‘तहलका’ की कवर स्टोरी इस बार रूस और यूक्रेन के युद्ध को लेकर है। व्लादिमीर पुतिन (रूस) ने यूक्रेन पर हमला करके पूर्व औपनिवेशिक रूसी साम्राज्य के अपने पूर्ववर्ती क्षेत्रों को पुन: प्राप्त करने की अपनी योजना का संकेत दिया है। ज़ाहिर है यह सब कुछ रूस को समझने में पश्चिम की विफलता के कारण हुआ है। यह दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका की सीमित सीमा के कारण भी था; जिसकी प्रतिष्ठा अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना की वापसी के बाद पहले ही धूमिल हो चुकी है। साथ ही चेचन्या और जॉर्जिया के ख़िलाफ़ छोटे युद्धों में रूस की सफलता और सीरिया, क़ज़ाकिस्तान तथा पूरे अफ्रीका में सत्ता के खेल ने यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए अपनी सीमाओं से परे अपने शासन को महान् शक्ति के पायदान तक पहुँचाने के उद्देश्य से आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कार्य ने अपनी कार्रवाई से साफ़ कर दिया कि उनका उद्देश्य यूक्रेन को नियंत्रण में लेना और कीव में अपने समर्थन वाला शासन सुनिश्चित करना है; जो मास्को के लिए अनुकूल है। ऐसा करके रूस ने एक ऐसे राज्य की स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखण्डता और सम्प्रभुता के सम्मान के सिद्धांत का उल्लंघन किया, जो संयुक्त राष्ट्र का एक मान्यता प्राप्त सदस्य है और जिसकी सम्प्रभुता को रूस ने भी पिछले तीन दशकों से मान्यता दी थी।
राष्ट्रहित में भारत ने अब तक यूक्रेन के संकट पर किसी का पक्ष नहीं लिया है। बेशक उसके लिए यह तलवार की धार पर चलने जैसा है। भारत ने रूस की आलोचना करने के लिए अमेरिकी लाइन पर चलने जैसा सन्देश नहीं जाने दिया। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन से कहा है कि हिंसा बन्द होनी चाहिए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ठीक ही पाया कि संकट की जड़ें सोवियत के बाद की राजनीति और नाटो के विस्तार में हैं। यह एक तथ्य है कि लम्बे समय से पुतिन क्रीमिया पर रूस की सम्प्रभुता को मान्यता देने के लिए कीव पर दबाव डाल रहे थे। जैसे काला सागर प्रायद्वीप, जिस पर मास्को ने सन् 2014 में यूक्रेन से ज़ब्त करने और नाटो में शामिल होने की अपनी ज़िद छोडऩे के बाद क़ब्ज़ा कर लिया था। यह रूस के इस डर से उपजा है कि यूक्रेन के नाटो क्लब में प्रवेश करने के बाद उस (रूस) पर अमेरिका और उसके सहयोगियों का दबाव बढ़ेगा। यूक्रेन पर आक्रमण का भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक दृष्टि से रणनीतिक परिणाम होना तय है। पहले हज़ारों भारतीय, जिनमें अधिकतर छात्र थे; यूक्रेन के हवाई क्षेत्र के बन्द होने के कारण युद्धग्रस्त यूक्रेन में फँस गये। हालाँकि हमारी सरकार ने उन्हें सडक़ मार्गों से निकालना शुरू कर दिया है।
भारत के लिए रूस पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध उस देश के साथ हमारी रक्षा आपूर्ति लाइन के साथ-साथ भविष्य में एस-400 मिसाइल प्रणाली जैसे अधिग्रहण को प्रभावित कर सकते हैं। भारतीय सेना के 3,000 से अधिक मुख्य युद्धक टैंकों में से 90 फ़ीसदी से अधिक रूसी टी-72 और टी-90एस हैं। भारत कथित तौर पर रूस से एक और 464 रूसी टी-90एमएस टैंक ख़रीदने के लिए बातचीत कर रहा था। तेल के मोर्चे पर भारत और बाक़ी दुनिया को अनिश्चित-काल तक तेल और गैस की ऊँची क़ीमतों का सामना करना पड़ेगा। तेल की क़ीमतें आठ साल के उच्च स्तर 105 डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच गयी हैं, जिससे मुद्रास्फीति में तेज़ी आ सकती है। शेयर बाज़ारों में जहाँ उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, वहीं सोना 15 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है। हम चाहते हैं कि युद्ध और आगे न बढ़े, ताकि पूरी दुनिया शान्ति से रह सके और कोरोना महामारी के दौर से गुज़र रही कमज़ोर अर्थ-व्यवस्था और कमज़ोर न हो।