प्रसिद्ध उद्योगपति और टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का 4 सितंबर को सडक़ हादसे में निधन हो गया। वह मर्सीडीज कार में अपने दोस्तों के साथ अहमदाबाद से मुम्बई जा रहे थे। रास्ते में पालघर में सूर्या नदी पर बने पुल पर दोपहर बाद उनकी कार डिवाइडर से टकरा गयी। इसमें साइरस मिस्त्री और उनके दोस्त जहाँगीर पंडोले की मौक़े पर ही मौत हो गयी। दोनों पिछली सीट पर थे। डॉ. अनाहिता पंडोले कार चला रही थीं और उनके पति डेरियस पंडोले आगे की सीट पर थे। दोनों घायल हुए और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। मुम्बई पुलिस का कहना है कि हादसे के वक़्त साइरस मिस्त्री व जहाँगीर ने सीट बेल्ट नहीं लगायी हुई थी और हादसे के वक़्त पिछली सीट के एयरबैग भी नहीं खुले। अब इस वीआईपी सडक़ हादसे के बाद एक बार फिर से देश में सडक़ दुघटनाओं वाला मुद्दा चर्चा में है। इस हादसे के बाद से केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी इस मुद्दे से सम्बन्धित रोज़ाना बयान देते नज़र आ जाते हैं।
बहरहाल यहाँ यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि अनुमान है कि देश में हर दिन क़रीब 1,200 से 1,800 सडक़ दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें 400 से 600 लोगों की जान चली जाती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि देश में सन् 2017 में 4,45,730 सडक़ दुर्घाटनाएँ हुईं। 1,50,093 लोगों ने अपनी जान गँवायी। सन् 2018 में ऐसे हादसों की संख्या 4,45,514 थी और मरने वालों की संख्या 1,52,780 थी। सन् 2019 में देश में 4,37,396 सडक़ दुर्घटनाएँ दर्ज की गयीं और जान गँवाने वालों की संख्या 1,54,732 दर्ज की गयी। सन् 2020 में 3,54,796 मामले सरकारी रिकॉर्ड बताता है और मरने वालों की तादाद 1,33,201 बतायी गयी। वहीं सन् 2021 में 4,03,116 सडक़ हादसों में जान गँवानों वालों की संख्या 1,55,622 है।
ग़ौर करने वाली बात यह है कि सन् 2020 में सडक़ हादसों व उनमें मरने वालों की कम संख्या के पीछे उक मुख्य वजह कोरोना महामारी के कारण हुई तालाबन्दी व अन्य बंदिशें भी हो सकती हैं। आँकड़े यह भी बताते हैं कि साल 2020 को छोड़ दिया जाए, तो सन् 2017 से लेकर सन् 2021 तक के आँकड़े ख़ुलासा करते हैं कि देश में इस दौरान हर साल औसतन क़रीब 4.4 लाख सडक़ हादसे हुए और मरने वालों की संख्या क़रीब 1.5 लाख थी। एक बात और ग़ौर करने की है कि सन् 2017 में नेशनल हाईवे पर सडक़ हादसों की संख्या 1,30,942 थी और मरने वालों की तादाद 50,859 थी। सन् 2021 में नेशनल हाईवे पर सडक़ हादसों की संख्या घटकर 1,22,204 हो गयी; लेकिन मरने वालों की संख्या 53,615 हो गयी यानी सन् 2017 की तुलना में बढ़ गयी। यह भी चिन्ता का विषय है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, अक्सर सडक़ हादसे शाम के 6:00 बजे से लेकर रात के 9:00 बजे के बीच होते हैं और दिसंबर व जनवरी माह में अधिक होते हैं। कारण इन महीनों में धुन्ध के कारण दृष्यता में बाधा आती है। हाल ही में भारत ब्रिटेन को पछाडक़र विश्व की पाँचवीं अर्थ-व्यवस्था बना है; लेकिन सडक़ हादसों के मामले में भारत विश्व मंक नंबर-एक पर है।
विश्व बैंक के अनुसार, भारत में दुनिया की महज़ एक फ़ीसदी गाडिय़ा ही चलती हैं, जबकि सडक़ हादसों में मौत के मामलों में भारत की हिस्सेदारी 11 फ़ीसदी है। सन् 2021 में प्रति हज़ार वाहन पर होने वाली मौत भी सन् 2020 की तुलना में अधिक हुई है। यह आँकड़ा सन् 2020 में 0.45 था, जो सन् 2021 में बढक़र 0.5 तक पहुँच गया। सन् 2021 में सडक़ हादसों में सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में दर्ज की गयीं यानी देश में होने वाली कुल मौतों की 14 फ़ीसदी इस राज्य में दर्ज की गयीं। उसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र का नंबर आता है। भारत में हर साल औसतन 1.5 लाख लोग सडक़ हादसों में मर जाते हैं और 4.5 लाख घायल होते हैं। सडक़ हादसों के शिकार अधिकांश पीडि़त पैदल यात्री, साइकिल चलाने वाले, मोटरसाइकिल यानी दो पहिया वाहन चलाने चालक होते हैं। सडक़ हादसों के शिकार 84 फ़ीसदी लोग कामकाजी आयुवर्ग 18-60 की श्रेणी के होते हैं। यही नहीं, ऐसे 70 फ़ीसदी लोग ग़रीब घरों से ताल्लुक रखते हैं। ग़रीब घर सडक़ हादसों की सबसे अधिक सामाजिक व आर्थिक क़ीमत चुकाते हैं। मौत होने या घायल होने से उस परिवार की आय प्रभावित होती है, चिकित्सा पर बहुत पैसा ख़र्च होता है और उनकी सामाजिक सुरक्षा कवच तक भी सीमित पहुँच होती है। विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में हर साल होने वाले सडक़ हादसों के चलते भारतीय अर्थ-व्यवस्था को सालाना 5-7 फ़ीसदी जीडीपी का नुक़सान होता है।
भारत सरकार का लक्ष्य आने वाले पाँच वर्षों में सडक़ हादसों में होने वाली मौतों की संख्या को 50 फ़ीसदी कम करना है। मंशा तो ठीक है; लेकिन क्या लक्ष्य हासिल कर पाएँगे। 4 सितंबर को साइरस मिस्त्री की सडक़ हादसे में हुई मौत ने बता दिया है कि भारतवासी अपनी व दूसरों की सुरक्षा को लेकर अधिक गम्भीर नहीं हैं। सेव लाइफ फाउंडेशन का सन् 2019 का एक सर्वे बताता है कि 67 लोगों ने माना कि वे कभी भी सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करते। सात फ़ीसदी लोग ही हमेशा यात्रा करते वक़्त सीट बेल्ट लगाते हैं। 26 फ़ीसदी ने माना कि वे कभी-कभार ही सीट बेल्ट का इस्तेमाल करते हैं। दो फ़ीसदी लोग ही पीछे की सीट पर बेल्ट लगाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, सीट बेल्ट पहनने से चालक और आगे की सीट पर बैठने वाले यात्री की मौत का जोखिम 50 फ़ीसदी तक कम हो जाता है और पीछे की सीट पर बैठने वालों में मौत का ख़तरा 25 फ़ीसदी तक कम हो जाता है। सडक़ हादसों के आँकड़ें बताते हैं कि आगे की सीट से अधिक पिछली सीट पर बैठे लोग मरते हैं। सीट बेल्ट के बिना एयर बैग भी नहीं खुलता। साइरस मिस्त्री व उनके मित्र जहाँगीर हादसे के वक़्त कार में पिछली सीटों पर थे व दोनों ने ही सीट बेल्ट नहीं लगायी थी। अक्सर देश में लोगों के बीच यह धारणा घर कर गयी है कि सीट बेल्ट सिर्फ़ आगे की सीट पर बैठने वाले लोगों के लिए ही क़ानूनन अनिवार्य है; लेकिन यह गलत है।
सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स-138 (3) के अनुसार, कार की आगे वाली सीट पर बैठे व्यक्ति को तो सीट बेल्ट लगाना ही है; लेकिन पीछे की सीट पर बैठने वाले व्यक्ति को भी सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर 1,000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है। भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2019 से कार निर्माता कम्पनियों के लिए अगली कार सीट बेल्ट के लिए बेल्ट रिमाइंडर यानी अलार्म लगाना अनिवार्य कर दिया; लेकिन पिछली सीटों के लिए नहीं किया।
इस हादसे से सरकार ने सबक़ लिया। 6 सितंबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कार हादसे में साइरस मिस्त्री के निधन के सन्दर्भ में हमने निर्णय लिया है कि पीछे की सीट के लिए भी सीट बेल्ट बीप सिस्टम अनिवार्य होगा। सेव लाइफ फाउंडेशन व मारुति सुजुकी के एक सर्वे के अनुसार, देश में 75 फ़ीसदी कार चालक बेल्ट नहीं लगाते। 77 फ़ीसदी स्पोट्र्स यूटिलिटी व्हीकल यानी एसयूवी चालक सीट बेल्ट नहीं लगाते हैं। भारत में सडक़ जाल विश्व में दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर अमेरिका है। 2013-14 में नेशनल हाईवे क़रीब 91,000 किलोमीटर था, जो 2021-22 में बढक़र 1,40,995 किलोमीटर हो गया है। भारत में हर साल वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है। लेकिन लोगों में सडक़ सुरक्षा के नियमों की अनदेखी करना एक आम आदत नज़र आती है। लोगों में इसके प्रति जागरूकता का अभाव है। इसके अलावा सडक़ इंजीनियिरंग भी एक गम्भीर मुद्दा है। सडक़ के डिजाइन का सही नहीं होना, ब्लैक स्पॉट की पहचान, साइन बोर्ड के महत्व को नहीं समझना, तय सीमा से अधिक की गति पर वाहन चलाना, क़ानून का सख़्ती से पालन नहीं होना सरीखी कई समस्याएँ हैं।
मोटर्स व्हीकल एक्ट-1988 का सख़्ती से पालन सुनिश्चित करना किसकी ज़िम्मेदारी है? विश्व बैंक ने क़रीब दो माह पहले ही इंडिया रोड सेफ्टी प्रोजेक्ट के लिए 250 मिलियन डॉलर का क़र्ज़ मंज़ूर किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, ओडिसा व पश्चिम बंगाल में काम होगा। इसके तहत इन राज्यों में सडक़ हादसों को सडक़ सुरक्षा प्रबंधन को बेहतर बनाकर व संस्थागत सुधार के ज़रिये कम किया जाएगा। दुर्घटना के $फौरन बाद जिन आपातकालीन चिकित्सीय सेवाओं और पुर्नवास सेवाओं की ज़रूरत होती है, उन्हें भी मज़बूती प्रदान की जाएगी। देश में सडक़ों का जाल तेज़ी से फैलाया जा रहा है; लेकिन सडक़ हादसों को रोकने के लिए सरकार को एक साथ कई मोर्चों पर काम करने की ज़रूरत है। लेकिन लोगों को भी यातायात नियमों का पालन करने वाले अनुशासन में बँधना चाहिए।