यह मात्र छलावा है : टिकैत

सर्वोच्च न्यायालय के कृषि कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगाने और किसानों के मसले पर एक समिति गठित करने के बाद 'तहलका’ ने प्रमुख किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत से बातचीत की। विदित हो कि राकेश के पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसान आन्दोलन का बड़ा चेहरा रहे हैं। बातचीत ने राकेश टिकैत ने समिति के गठन को बहुत उत्साहवर्धक नहीं बताया और इस पर असहमति जतायी। टिकैत ने कहा कि देश भर के किसान सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से निराशा महसूस कर रहे हैं। समिति के एक सदस्य अशोक गुलाटी की ही अध्यक्षता में तो समिति ने इन कानूनों की सिफारिश की थी। वह भारत सरकार की 10 समितियों में शामिल हैं। वह इस तरह के फैसले करते रहे हैं। राकेश टिकैत ने 'तहलका’ के विशेष संवाददाता राकेश रॉकी को फोन पर अपनी (किसानों की) मंशा बतायी। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :-

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से क्या असहमति है?

देखिए, हम सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हैं। लेकिन हम तो कृषि कानूनों को रद्द करने की माँग कर रहे हैं। यह नहीं हुआ। ऊपर से जिस समिति का गठन हुआ है, उसके सभी सदस्य कृषि कानूनों के घोर समर्थक हैं। ऐसे में हम न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हम तो न्यायालय में गये ही नहीं हैं। हमारी लड़ाई तो सरकार से है। वही कानूनों को रद्द कर सकती है। कानूनों वापसी ही हमारी घर वापसी का रास्ता खोलेगी।

लेकिन समिति के सदस्यों से तो मिलेंगे ना?

हम चार सदस्यों की इस समिति के सामने नहीं जाएँगे। हम उनसे नहीं मिलेंगे। हमें नहीं लगता कि वहाँ हमारी बात गम्भीरता से सुनी जाएगी। क्योंकि समिति के सभी सदस्य कानून के हक में हैं। यह तो एक तरह से सरकार के पक्ष वाली समिति हो गयी।

आन्दोलन को लेकर क्या कहेंगे? क्या फिलहाल इसे स्थगित करेंगे?

यह सारा तामझाम ही आन्दोलन को खत्म करने के लिए रचा गया है। सरकार यही तो चाहती है। लेकिन हम आन्दोलन खत्म करना तो दूर, अब इसे और तेज़ करने वाले हैं। हमारे (किसानों के) प्रति देश भर में समर्थन बढ़ रहा है। दूसरे प्रदेशों से किसान यहाँ कुछ कर रहे हैं। हम एकजुट हैं, और पूरी ताकत से मोदी सरकार के इन काले कानूनों का विरोध करते रहेंगे। किसानों की माँग कानून को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून बनाने की है। जब तक यह माँग पूरी नहीं होती, तब तक आन्दोलन जारी रहेगा। हमारा संयुक्त मोर्चा आन्दोलन जारी रखने के हक में कह चुका है।

लेकिन समिति तो सर्वोच्च न्यायालय ने बनायी है, फिर भरोसा क्यों नहीं कर रहे? क्या यह न्यायालय की अवहेलना नहीं?

हम किसी सूरत में न्यायालय के आदेश की अवहेलना नहीं कर रहे। न्यायालय के आदेश की अवहेलना तो भाजपा के लोग करते हैं। हम तो सर्वोच्च न्यायालय को भगवान मानते हैं। सच कहूँ, तो हमें समिति के गठन पर ऐतराज़ नहीं होता, अगर उसमें निष्पक्ष लोग होते। हमारा एतराज़ तो यह है कि समिति में कौन लोग हैं? उनकी विचारधारा क्या है? भूपिंदर सिंह मान पिछले 25 साल से अमेरिकी कम्पनियों की वकालत करते रहे हैं। उन जैसे लोग कैसे किसानों के भाग्यविधाता हो सकते हैं?