मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। देश के अमर क्रान्तिकारी और अज़ीम शायर अल्लामा इकबाल की मशहूर गज़ल के एक शे’र का यह मिसरा महज़ अनुभवों पर गढ़ा हुआ नहीं है, बल्कि सभी मज़हबों में दी गयी वह सीख है, जो इंसान को इंसान बनाने का दूसरा सबक है। अब इसी सीख को बड़ी संख्या में लोग भूलते जा रहे हैं।
ये वे लोग हैं, जो अपने-अपने मज़हबों की खातिर खून-खराबा करते-कराते हैं। दूसरे मज़हब वालों पर अत्याचार करते हैं। मज़हबी नारे लगाते हैं। हमेशा दूसरे मज़हब को गलत ठहराते रहते हैं। दूसरे नाम से पुकारे जाने वाले उसी ईश्वर को गाली देने लगते हैं, जिसे वे अपनी भाषा में अपना मालिक, पिता और न जाने क्या-क्या मानकर सर्वोत्कृष्ट और पूजनीय मानते हैं और किसी-न-किसी रूप में, किसी-न-किसी तरीके से पूजते भी हैं। ये वे लोग हैं, जिन्होंने कभी अपने मज़हब की किताबों को या तो पढ़ा ही नहीं या कभी ठीक से नहीं पढ़ा। ये वे लोग हैं, जिनके लिए मज़हब कोई आदर्श नहीं, बल्कि गले में लटकाकर घूमने वाली एक तख्ती है; जिसे वे एक लिबास यानी वेशभूषा और शरीर के साज-ओ-शृंगार से तय करते हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें मज़हब की अच्छी शिक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं, बल्कि उसके नाम पर पाखण्ड करने की आदत है। ये वे लोग हैं, जिन्हें मिथ्या शोरगुल में धर्म दिखायी देता है। ये वे लोग हैं, जो इंसान के रूप में पैदा होकर भी आज तक इंसान नहीं हो सके।
दरअसल ये लोग सही मायने में इंसानियत के दुश्मन हैं; जो मज़हबों में सिखाये प्यार से लोगों का दिल नहीं, बल्कि तलवार के बल पर संसार जीतना चाहते हैं। लोगों का विश्वास जीतकर उनके दिलों पर राज करना नहीं चाहते, बल्कि ज़बरन उनका हक छीनकर, उन पर अत्याचार करके पूरे संसार को अपने वश में करना चाहते हैं और उस पर शासन करना चाहते हैं। मेरी नज़र में ऐसे लोग अपने ही मज़हब के सबसे बड़े दुश्मन हैं; अपने ही मज़हब के अपराधी हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसे लोग केवल दूसरे मज़हब के लोगों पर ही अत्याचार करते हैं, बल्कि ये वे लोग हैं, जो मौका मिलने पर अपने ही मज़हब के निचले पायदान पर खड़े लोगों को भी रौंद डालते हैं। ऐसे लोग न सिर्फ मज़हब के, बल्कि इंसानियत के भी दुश्मन हैं और ईश्वर के वास्तविक अपराधी भी। क्योंकि ये लोग ईश्वर के द्वारा पैदा किये गये प्राणियों का हक छीनते हैं; उनकी हत्या करते हैं; उनका जीवन दुश्वार बनाते हैं। यानी ईश्वर की बनायी सृष्टि में खलल डालते हैं। ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध अपना कानून चलाते हैं; अपनी मर्ज़ी चलाते हैं। ऐसे लोग दुुनिया की हर चीज़ पर केवल खुद का हक मानते हैं और उम्र भर दूसरों के हक छीन लेने की कोशिश में लगे रहते हैं।
दु:ख इस बात का होता है कि मज़हब के नाम पर मरने-मारने पर आमादा लोग चन्द ऐसे लोगों के हाथ की कठपुतली मात्र होते हैं, जो धाॢमक और राजनीतिक सत्ताओं पर अपना एकाधिकार चाहते हैं। और चिन्ता की बात यह है कि संसार भर में, हर मज़हब में ऐसे उन्मादी लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। ऐसे ही अन्ध-समर्थकों के बलबूते पर चन्द मज़हब के अपराधी मज़हब के लिए मरने-मारने वालों की फौज इकट्ठी करने में सफल भी हो जाते हैं। ये सत्ता के पिस्सू लोग किसी एक मज़हब में ही नहीं हैं, बल्कि सभी मज़हबों में हैं। यही वजह है कि आये दिन किसी-न-किसी मज़हब के लोगों का झगड़ा दूसरे मज़हब के लोगों से चलता रहता है।
मज़े की बात यह है कि इन मज़हब के ठेकेदारों को मज़हबों को लेकर झगडऩे वाले लोगों को समझाना चाहिए, लेकिन ये उन्हें और उकसाते हैं; लड़वाते हैं और मरवाते हैं। इस बात को लोग सभी लोग भले ही न समझें, लेकिन कुछ लोग तो ज़रूर समझते हैं। शायद यही वजह है कि संसार में अमन-चैन, भाईचारा, मोहब्बत और इंसानियत जैसी जीवन के बहुमूल्य रत्न बचे हुए हैं और शायद हम भी।
यह एक अफसोसनाक सच है कि एक बुरा आदमी पूरी बस्ती में झगड़ा करा सकता है। और ऐसा आदमी जितना ताकतवर होता जाता है, लोगों में उतना बड़ा झगड़ा करा सकता है, उनके दरमियान उतनी ही बड़ी खाई पैदा कर सकता है। ऐसा नहीं है कि इस खाई में केवल उस समुदाय या मज़हब के लोग गिरते-मरते हैं, जिनके खिलाफ दूसरे मज़हब या समुदाय के लोगों को भडक़ाया जाता है; बल्कि उतनी ही संख्या में उस समुदाय या मज़हब के लोग भी इसी खाई में गिरते-मरते हैं, जिन्हें उनकी और उनके मज़हब या समुदाय की सुरक्षा का भरोसा दिया जाता है। कहने का मतलब इतना है कि मज़हबी झगड़े में हर किसी को नुकसान ही होता है।
इसलिए दुनिया भर के लोगों को ऐसे किसी भी व्यक्ति, मज़हब के ठेकेदारों या सियासी लोगों के बहकावे में कतई और कभी भी नहीं आना चाहिए, जो उन्हें मज़हब और ईश्वर की रक्षा का जोश दिलाकर झगड़े-फसाद और धर्मांधता की खाई में धकेलना चाहते हैं। क्योंकि ऐसे सत्तालोलुप लोग न केवल आपके और संसार भर के दुश्मन हैं, बल्कि ईश्वर और मज़हब के अपराधी भी हैं।
सवाल यह है कि ऐसे लोगों से बचा कैसे जाए? इसका सीधा-सरल उपाय है कि हम ऐसे लोगों पर आँखें बन्द करके भरोसा न करें। ऐसे लोग जहाँ भी दूसरे मज़हबों या दूसरे मज़हबों के लोगों को जब भी गलत कहें, उनका तुरन्त विरोध करें। ऐसे लोगों की कोई फालतू बात, जिसमें कि इंसानियत न हो; झगड़े की बू आती हो; आपसी भाईचारा और मोहब्बत पर हमला होता हो; बिल्कुल न सुनें। और सबसे बड़ी बात, ऐसे लोगों को धन देकर सबल न बनाएँ। क्योंकि ये लोग किसी का भी भला नहीं कर सकते; अपने मज़हब और अपने मज़हब के लोगों का भी नहीं।