छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में तैनात पुलिस कप्तान राहुल शर्मा की खुदकुशी के मामले ने कई तरह के सुगबुगाते सवालों को जन्म दे डाला है. राहुल के परिजन उनकी मौत को हत्यारी व्यवस्था का परिणाम मानते हैं तो राजनीतिक दलों को पूरे प्रकरण में गहरी साजिश नजर आती है. भारतीय पुलिस सेवा 2002 बैच के राहुल ने अपने एक मित्र हरिमोहन ठाकुरिया से फेसबुक पर बातचीत के दौरान यह स्वीकारा था कि उन्हें चुनावी खर्चों का टारगेट दिया गया था. इस बातचीत ने प्रदेश की रमन सरकार को भी आरोपों के कटघरे में खड़ा कर दिया है.
गौरतलब है कि राहुल शर्मा बीती 12 मार्च को बिलासपुर स्थित पुलिस ऑफिसर्स मेस में मृत पाए गए थे. उन्हें नजदीक से जानने-समझने वाले एक साहित्यकार गोपनीयता की शर्त पर बताते हैं, ‘बड़े साहब जीपी सिंह (आईजी) ने उनके तमाम अधिकार छीन लिए थे. यहां तक कि उन्हें किसी की छुट्टी को मंजूर करने का अधिकार भी नहीं रह गया था. परेशान होकर राहुल शर्मा ने नवीन जिंदल के यहां नौकरी करने की बात कही थी.’ साहित्यकार ने अपनी बातचीत में एक जज का उल्लेख तो किया ही यह भी बताया कि जमीन हथियाने के एक मामले में राहुल शर्मा ठोस कार्रवाई करना चाहते थे लेकिन आला अफसरों और नेताओं के दबाव की वजह से वे कुछ कर नहीं पा रहे थे.
इधर राहुल शर्मा के परिजनों ने उनकी खुदकुशी के लिए उनके बॉस और एक जज को दोषी माना है. परिजनों का आरोप है कि राहुल शर्मा अपने बॉस के व्यवहार से प्रताड़ित तो थे ही, जज ने भी उन्हें ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार के लिए फटकारा था. राहुल शर्मा के पिता राजकुमार शर्मा कहते हैं, ‘ मेरा बेटा अक्सर यह कहता था कि बॉस का व्यवहार अच्छा नहीं है.’ राहुल शर्मा की पत्नी और रेलवे अधिकारी गायत्री शर्मा का भी कहना है कि बेहद दबाव की वजह से उनके पति स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रहे थे. वैसे पुलिस ने जो सुसाइड नोट बरामद किया है उसमें राहुल शर्मा ने यह लिखा है, ‘हद से ज्यादा अड़चनें पैदा करने वाले बॉस और हठधर्मी जज ने शांति छीन ली है और उनके परिवार को मुश्किल में डाल दिया है.’ राहुल ने अपने सुसाइड नोट में अपने बॉस और जज के नाम का उल्लेख तो नहीं किया है लेकिन उनकी पत्नी ने सिविल लाइन थाने के प्रभारी आरआर कश्यप को दिए गए बयान में हाई कोर्ट के एक जज का नाम लिखवाया है. इस बात की पुष्टि थाना प्रभारी आरआर कश्यप ने भी तहलका से की है.
राहुल शर्मा की मौत के बाद कई सवाल रहस्य के आवरण में लिपटे हुए नजर आ रहे हैं. हादसे से एक दिन पहले यानी 11 मार्च, 2012 की रात आठ से नौ बजे के बीच राहुल ऑफीसर्स मेस में रहने के लिए आ गए थे. सवाल उठ रहा है कि जब उनकी पत्नी का घर रेलवे कालोनी में मौजूद था तो फिर उन्हें आफीसर्स मेस में रहने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके जवाब में उनकी पत्नी कहती हैं, ‘पता नहीं किसने यह प्रचारित कर दिया था कि हमारे बीच कुछ अनबन चल रही है. सच्चाई यह है कि वे मुझे मेस में रुकने की जानकारी देकर ही गए थे.’ गायत्री विलंब से दी गई सूचना को लेकर भी सवाल उठाती हंै. वे कहती हैं, ‘जब घटना एक से डेढ़ बजे के आसपास की बताई जा रही है तब मुझे लगभग तीन बजे इसकी सूचना क्यों दी गई? इस बीच पुलिस क्या करती रही?’ मनोनीत सांसद इंग्रिड मैक्लाड भी घटना के बाद आनन-फानन में की गई पुलिसिया कार्रवाई को लेकर संदेह जताती हैं. पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए मैक्लाड आशंका जताती हैं कि मामला खुदकुशी की बजाय हत्या का भी हो सकता है.
राहुल शर्मा का शव 12 मार्च को मेस के बाथरूम में मिला. पुलिस ने उनका सुसाइड नोट 13 मार्च की शाम एक सूटकेस से बरामद किया. लेकिन इस नोट की बरामदगी से पहले ही पुलिस ने 12 मार्च को यह मान लिया था कि उन्होंने आइने के सामने खड़े होकर खुद को गोली मार ली है? शर्मा ने कब गोली चलाई? मेस में मौजूद कर्मचारियों ने गोली चलने की आवाज क्यों नहीं सुनी? इन सवालों पर भी रहस्य कायम है. पिस्टल से खुद को खत्म कर लेने के तरीके और सुसाइड नोट के सूटकेस में रखे होने को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सुसाइड नोट किसी खुली जगह की बजाय सूटकेस के भीतर से मिलने से भी सवाल उठ रहे हैं. पुलिस ने मौके पर जिन सामानों की जब्ती बनाई है उसे लेकर भी संदेह कायम है. पुलिस को मौके पर पिस्टल तो मिल गई है लेकिन उसका होल्स्टर ( कवर ) नहीं मिला है. इसी तरह लैपटॉप के कवर की बरामदगी दिखाई गई है, लेकिन लैपटाप कहां है इसे लेकर कोई भी अफसर कुछ बोलने को तैयार नहीं है. गायत्री शर्मा लैपटॉप में महत्वपूर्ण दस्तावेज होने की संभावना से इनकार नहीं करतीं.
राहुल शर्मा प्रकरण से जुड़ा एक अबूझ तथ्य यह भी है कि पुलिस ने अब तक किसी के खिलाफ भी आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मामला दर्ज नहीं किया है
एसपी राहुल शर्मा और आईजी जीपी सिंह के बीच टकराव को लेकर भी कई तरह की बातें सामने आ रही हंै. तहलका ने इस संबंध में कई पुलिस कर्मियों और अफसरों से चर्चा करनी चाही तो ज्यादातर इससे बचते नजर आए. एक-दो अफसरों ने दबी जुबान में माना कि सिंह और शर्मा के बीच सब कुछ ठीक नहीं था. एक अफसर की मानें तो इन दोनों अधिकारियों के बीच तनाव की शुरुआत तभी हो गई थी जब दोनों नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में तैनात थे. दोनों के बिलासपुर आने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा.
इधर राहुल शर्मा से चुनावी फंड के लिए रकम जुटाने के संबंध में एक बातचीत के सार्वजनिक हो जाने के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का यह आरोप है कि सरकार ने अफसरों को उगाही करने वाले कार्यकर्ताओं में तब्दील कर दिया है. विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष एवं कांग्रेस विधायक धर्मजीत सिंह का आरोप है कि सरकार ने चंदा उगाही करने वाले तत्वों का सेल गठित कर रखा है जिसमें कुछ अफसर और नेता शामिल हैं. हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि प्रदेश के किस नेता या अफसर ने राहुल शर्मा से चुनावी फंड के लिए तैयार रहने को कहा था लेकिन राहुल शर्मा ने अपने एक मित्र हरिमोहन ठाकुरिया से फेसबुक पर बातचीत करते हुए जो कुछ लिखा उसके चलते सरकार कटघरे में जरूर खड़ी हो गई है. इस मामले में सरकार की तरफ से कोई सफाई तो प्रस्तुत नहीं की गई है अलबत्ता सीबीआई जांच की घोषणा कर आरोपों की आंच को कम करने की कोशिश जरूर हुई है. राहुल ने फेसबुक पर जो टिप्पणी की थी वह कुछ इस तरह से है – ‘यार बहुत बेगार करवाते हैं. कोई सेल्फ रिसपेक्ट है ही नहीं. इलेक्शन के खर्चों का टारगेट अभी से दे दिया है. क्या इसलिए इतनी पढ़ाई करके आईपीएस बना था.’ ठाकुरिया ने बातचीत के इस अंश को अपने वाल पर चस्पा भी किया था. जब इस मामले में कांग्रेस ने हो-हल्ला मचाया तब सनसनीखेज अंश डिलीट कर दिया गया. ठाकुरिया कहते हैं, ‘मैंने वॉल पर जो कुछ चस्पा किया था दरअसल वह मेरा अपना निजी विचार था कि शायद राहुल शर्मा को चुनावी खर्चों का लक्ष्य पूरा करने के लिए कहा गया था. विवाद के बाद इसे डिलीट कर दिया गया.’
हालांकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मीडिया विभाग के मुख्य प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी इसे दबाव में दिया गया वक्तव्य मानते हैं. वे कहते हैं, ‘घटना के पहले दिन से सबूतों को नष्ट करने वाली ताकतें सक्रिय हैं. यदि ठाकुरिया के वक्तव्य का निहितार्थ कुछ अलग था तो उन्हें किसी दूसरी टिप्पणी के जरिए यह साफ करना था कि उनके कथन का गलत अर्थ निकाला जा रहा है.’ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते हैं, ‘ठाकुरिया की बात सही है या गलत इसकी जांच होनी चाहिए और यह देखने की कोशिश भी होनी चाहिए कि इसके पीछे कौन-कौन लोग शामिल हैं.’
वैसे राहुल शर्मा प्रकरण का एक खौफनाक सच यह भी है कि पुलिस ने अब तक ज्ञात-अज्ञात किसी भी शख्स के खिलाफ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मामला दर्ज नहीं किया है. एक वरिष्ठ पुलिस अफसर बीएस मरावी कहते हैं, ‘किसी भी मामले को दर्ज करने के पहले सभी पहलुओं पर विचार करना होता है. राहुल शर्मा के मामले में यह तो देखना ही होगा कि उन्हें आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का काम किसने और किसके सामने किया था. यदि शर्मा किसी तनाव में चल रहे थे तो छुट्टी ले सकते थे अथवा स्थानांतरण के लिए आवेदन लगा सकते थे.’ मरावी यह भी कहते हैं कि जब सरकार ने सीबीआई को प्रकरण सौंप ही दिया है तो फिर अब मामला सीबीआई ही दर्ज करेगी.
साफ है कि पुलिस ने कौन -सा ट्रैक पकड़ लिया है. राहुल शर्मा की खुदकुशी को खुदकुशी की बजाय सिस्टम के द्वारा की गई हत्या मानने वाले सामाजिक कार्यकर्ता आंनद मिश्रा मरावी के कथन को दोषियों को बचाने का एक तरीका मानते हैं. अंचल के वरिष्ठ लेखक मोहन राव का भी मानना है कि व्यक्ति के भीतर आत्महत्या की परिस्थितियां अपमान से ज्यादा आत्मसम्मान पर किए गए चोट पर निर्भर करती हैं. राव मानते हैं कि पूरे प्रकरण में यह देखना भी बेहद जरूरी है कि आखिर ऐसी कौन सी बात थी जिसने राहुल शर्मा की गैरत को रोने के लिए मजबूर कर दिया था. जिस रोज इस बात का पता चल जाएगा उस दिन मामला पूरी तरह साफ हो जाएगा.