मौत पर सियासत

उल जेहाद अल इस्लामी (हुजी) के कथित आतंकवादी खालिद मुजाहिद की पुलिस हिरासत में मौत हो गई है.
उल जेहाद अल इस्लामी (हुजी) के कथित आतंकवादी खालिद मुजाहिद की पुलिस हिरासत में मौत हो गई है.

उत्तर प्रदेश में हरकत उल जेहाद अल इस्लामी (हुजी) के कथित आतंकवादी खालिद मुजाहिद की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद एक तरफ अनसुलझे सवाल हैं और दूसरी तरफ अनवरत राजनीति. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी खालिद की मौत की कोई साफ वजह पता नहीं चल पाई है. उधर, प्रदेश की कमान संभाल रही समाजवादी सरकार ने खालिद के परिजनों की छह लाख रु. की आर्थिक सहायता का एलान किया है तो भारतीय जनता पार्टी ने इस कदम को आतंक का सरकारी महिमामंडन बताते हुए इसका विरोध किया है.

खालिद की मौत ऐसे समय पर हुई है जब प्रदेश सरकार उसके मुकदमों की वापसी की प्रक्रिया शुरू कर चुकी थी. लोकसभा चुनाव भी सिर पर हैं. सपा सरकार मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है. खालिद आतंकी था कि नहीं, उसकी गिरफ्तारी सही थी कि नहीं, इन मुद्दों पर भी शुरू से ही विवाद था. लिहाजा पुलिस हिरासत में उसकी मौत ने प्रदेश सरकार को राजनीतिक तौर पर एक झटका जरूर दिया है. सरकार ने भी अपने बचाव में आनन-फानन में खालिद की गिरफ्तारी के समय उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे विक्रम सिंह, एडीजी ब्रज लाल सहित 42 पुलिस कर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने का निर्देश देते हुए मामले की सीबीआई जांच का आदेश देकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है.

2007 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ, फैजाबाद व गोरखपुर कोर्ट में हुए धमाकों के मामले में खालिद मुजाहिद लखनऊ जेल में बंद था. उसके तीन अन्य साथी तारिक कासमी, सज्जादुर्र-हमान तथा अख्तर भी इसी जेल में हैं. 18 मई, 2013 को चारों आरोपितों की फैजाबाद जिला जेल में पेशी थी. इसके लिए लखनऊ पुलिस की निगरानी में चारों को सरकारी वाहन से फैजाबाद भेजा गया था. जिला जेल फैजाबाद में ही मामले की सुनवाई के बाद शाम करीब पौने चार बजे चारों आरोपितों को लेकर पुलिस वैन लखनऊ जेल के लिए निकली थी.

खालिद की मौत के बाद लखनऊ जेल में बंद उसके साथी तारिक कासमी से मिलकर आए उनके वकील मोहम्मद शुएब बताते हैं, ‘फैजाबाद की जिला जेल से निकलने के बाद वाहन रामसनेही घाट पहुंचने ही वाला था कि खालिद के पड़ोस में बैठे तारिक को अपने शरीर पर किसी भार का अहसास हुआ. उसने पलट कर देखा कि खालिद उसके कंधे पर झुका हुआ है.’ शुएब आगे बताते हैं, ‘तारिक को पहले लगा कि खालिद सो गया है लिहाजा उसने उसे हिलाकर जगाने की कोशिश की. लेकिन खालिद का शरीर ढीला पड़ गया था और उसकी आंखें चढ़ने लगी थीं. इस पर तारिक और उसके साथियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. शोर सुन कर पुलिस ने वाहन रुकवाया.’ इसके बाद शाम करीब सवा पांच बजे पुलिस वाहन खालिद को लेकर बाराबंकी के जिला अस्पताल पहुंचा. शुएब के मुताबिक तारिक ने उन्हें बताया कि छह पुलिसकर्मी खालिद को स्टेचर पर लाद कर अस्पताल के भीतर ले गए जबकि तारिक व तीन अन्य आरोपितों को वैन में ही बंद करके दो पुलिसकर्मी उनकी सुरक्षा में बाहर ही रहे.

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करीब 15-20 मिनट बाद बाहर आए पुलिसवालों से जब तारिक ने खालिद का हाल-चाल जानना चाहा तो बताया गया कि आईसीयू में डॉक्टर उपचार कर रहे हैं. इसके बाद तारिक सहित तीनों आरोपितों को लखनऊ जेल रवाना कर दिया गया. उसके बाद क्या हुआ तारिक और उसके साथियों को कुछ भी नहीं पता चल पाया. बाराबंकी की अदालत में खालिद और उसके साथियों का मामला देख रहे वकील रणधीर सिंह सुमन बताते हैं, ‘सूचना मिलते ही जब जिला अस्पताल पहुंचा तो मालूम हुआ कि खालिद का शव मोर्चरी में भेज दिया गया है. वहां जाकर देखा तो खालिद के शरीर पर टी शर्ट तथा लोअर था. लखनऊ जेल से फैजाबाद पेशी के दौरान और पेशी से वापस आते समय तक खालिद कुर्ता-पायजामा व टोपी पहने था. आखिर खालिद के कपड़े क्यों बदल दिए गए?’

खालिद की मौत पर बवाल खड़ा होते ही सरकार तुरंत हरकत में आ गई. मौत की सूचना पर खालिद के चाचा जहीर आलम फलाही भी जौनपुर के मड़ियाहू स्थित पैतृक आवास से 18 मई की रात बाराबंकी पहुंच गए थे. भारी आक्रोश को देखते हुए प्रदेश सरकार ने फलाही के प्रार्थना पत्र के आधार पर खालिद की गिरफ्तारी के समय उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे विक्रम सिंह, एडीजी ब्रज लाल, एएसपी मनोज कुमार झा, डिप्टी एसपी चिरंजीव नाथ सिन्हा तथा आईबी के अज्ञात लोगों सहित 42 लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया. फलाही ने  कोतवाली बाराबंकी के प्रभारी निरीक्षक को दिए प्रार्थना पत्र में आरोप लगाया है कि 16 दिसंबर, 2007 को उनके भतीजे का स्पेशल टास्क फोर्स उत्तर प्रदेश द्वारा जौनपुर के मड़ियाहू बाजार से अपहरण कर लिया गया था और बाद में एक साजिश के तहत 22 दिसंबर, 2007 को रेलवे स्टेशन बाराबंकी पर फर्जी विस्फोटकों की बरामदगी के साथ उसकी गिरफ्तारी दिखा दी गई. वे कहते हैं कि सोची समझी रणनीति के तहत एटीएस के गठन के बाद फर्जी जांच करके  इस मामले में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया. प्रार्थना पत्र में फलाही ने यह भी लिखा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने  इस गिरफ्तारी व फर्जी बरामदगी को लेकर आरडी निमेश आयोग गठित किया था. आयोग ने जांच करके अपनी रिपोर्ट 31 अगस्त, 2012 को उत्तर प्रदेश सरकार को दे दी थी. सरकार ने राज्यपाल की आज्ञा के बाद मुकदमा वापसी का प्रार्थना पत्र भी न्यायालय में दिया था. फलाही ने अपने प्रार्थना पत्र में लिखा है, ‘यदि मुकदमा पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कायम होता तो उस मुकदमे का मुख्य गवाह मेरा भतीजा खालिद मुजाहिद होता जिससे पुलिस के उच्च अधिकारियों को सजा होती. इसलिए सोची-समझी रणनीति के तहत उसकी हत्या कर दी गई.’

पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा कायम करवाने के बाद सरकार की ओर से पोस्टमार्टम के लिए एक पैनल का गठन किया गया था. लेकिन इसमें मौत का कोई निश्चित कारण नहीं निकला लिहाजा पैनल ने हृदय और दोनों फेफड़ों के हिस्से बिसरा जांच के लिए भेजे हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण भले ही साफ न हुआ हो लेकिन खालिद के वकील रणधीर सिंह सुमन व मोहम्मद शुएब शव की स्थिति को देख कर कोई जहरीला पदार्थ खिलाए जाने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं. शुएब कहते हैं, ‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही यह बताती है कि खालिद की नाक से खून आया था. शरीर का ऊपरी हिस्सा भी नीला पड़ गया था, कार्निया भी धुंधला था. ये सारे लक्षण जहरीले पदार्थ के सेवन के बाद होने वाली मौत के ही हैं.’

[box]लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में पुलिस हिरासत में खालिद की मौत ने मुस्लिमों को रिझाने की कवायद में लगी सपा सरकार को झटका देने का काम किया है[/box]

दिसंबर, 2007 में हुई खालिद की गिरफ्तारी शुरू से ही विवादों में घिरी रही. गिरफ्तारी के विरोध में जौनपुर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए थे. लिहाजा तत्कालीन बसपा सरकार ने 2008 में रिटायर जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरडी निमेश की अगुवाई में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन कर दिया था. जांच रिपोर्ट 31 अगस्त, 2012 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार को सौंपी गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिद मुजाहिद को 16 दिसंबर, 2007 को कस्बा मड़ियाहू जिला जौनपुर से उठाने की खबर दूसरे दिन यानी 17 दिसंबर, 2007 के अखबारों में छपी है. रिपोर्ट में पूछा गया है कि सूचना का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया और उस पर कार्यवाई क्यों नहीं की गई. रिपोर्ट आगे कहती है कि इसी तरह 20 दिसंबर, 2007 को खबर छपी कि एसटीएफ ने युवक को उठाया, उक्त सूचना पर कोई कार्यवाई क्यों नहीं की गई और यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि उसे किस तरह और किसने उठाया और यह सूचना गलत छपी है या सत्य. रिपोर्ट यह भी कहती है, ‘18 दिसंबर, 2007 को अखबार में यह छपा कि एसटीएफ ने पूर्वांचल के जौनपुर व इलाहाबाद में छापा मार कर हुजी के दो सदस्यों को हिरासत में लिया है व मड़ियाहू में भी छापा मारने वाली बात छपी है. इसी तरह 21 दिसंबर, 2007 को एक अखबार में ‘मड़ियाहू का खालिद जा चुका है तीन बार पाक’ इस शीर्षक के साथ खबर छपी. यदि खालिद पुलिस अभिरक्षा में नहीं था तो ऐसी खबरें कहां से छपीं? इस पर भी न कोई संज्ञान लिया गया और न ही कोई कार्यवाई की गई.’ आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सभी तथ्यों से आरोपित खालिद मुजाहिद की दिनांक 22 दिसंबर, 2007 को सुबह 6.20 बजे आपत्तिजनक वस्तुओं के साथ गिरफ्तारी संदेहजनक प्रतीत होती है.

दूसरी ओर खालिद की गिरफ्तारी के बाद एसटीएफ ने उसका जो बयान दर्ज किया वह चौंकाने वाला है. इसके मुताबिक खालिद ने कहा था, ‘मैं 2001 में अमरोहा से आलिम की पढ़ाई कर रहा था, वहीं मेरी अब्दुल रकीब से मुलाकात हुई जो असम का रहने वाला था. उसने मुझे जेहाद के बारे में काफी समझाया और 2003 में मुझे प्रशिक्षण के लिए जम्मू-कश्मीर में किश्तवाड़ ले गया जहां हुजी के कैंप में मैंने 15 दिन का प्रशिक्षण लिया.’ बयान के मुताबिक खालिद ने खुद को तंजीम के फौजी दस्ते का कमांडर बताया है. निमेश आयोग की रिपोर्ट में खालिद की गिरफ्तारी पर जहां संदेह जताया गया है वहीं एसटीएफ व एटीएस का खुलासा कुछ और ही कहानी बयान करता है. इस पर जस्टिस आरडी निमेश तहलका से बात करते हुए कहते हैं, ‘मैंने सिर्फ खालिद की गिरफ्तारी वाले मामले की जांच की है क्योंकि इसको लेकर काफी विवाद हुआ था जिस पर सरकार ने आयोग का गठन किया था. खालिद का हाथ दूसरी घटनाओं में था या नहीं इस मामले की जांच मेरी ओर से नहीं की गई है.’

उधर, पुलिसकर्मियों पर मुकदमा लिखे जाने से नाराज पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, ‘मेरी टीम ने एक आतंकी को गिरफ्तार किया था, जिसका कोई पछतावा नहीं है. यह देश का दुर्भाग्य है कि एक आतंकी के मरने पर पुलिसवालों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है.’ सिंह के मुताबिक पुलिस के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए खालिद के पास हवाला के जरिए धन आता था.
फिलहाल खालिद की मौत के साथ ही एसटीएफ व एटीएस के सारे दावे भी दफन हो गए हैं जो उसे आतंकी बताते थे क्योंकि मौत के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच की जो सिफारिश की है वह सिर्फ इसलिए है कि खालिद की मौत आखिर हुई कैसे.