मौत के सौदागर

हाल में जब ताजिकिस्तान में ताजिक स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी से एक एमबीबीएस को ख़ुद को डॉक्टर के रूप में नामांकित करने के लिए विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा को पास करने के लिए एक प्रॉक्सी का उपयोग करते हुए पकड़ा गया। इससे ज़ाहिर होता है कि भारत में स्वास्थ्य प्रणाली बीमार क्यों है? लगातार छ: बार फेल होने वाला यह उम्मीदवार ऐसा करते हुए लगभग बच ही गया था; लेकिन जब फेस डिटेक्शन सिस्टम ने परीक्षा लेखक की तस्वीर में अंतर को चिह्नित किया, जिसे प्रतिरूपण के बदले एक बड़ी राशि दी गयी थी; तब वह पकड़ा गया। यह कुख्यात मामला करोड़ों रुपये के व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले जैसा ही था, जिसे व्यापम घोटाला के नाम से जाना जाता है। इसमें सीबीआई ने पाया था कि आरोपी उम्मीदवारों ने परीक्षा में बुद्धिमान छात्रों को सॉल्वर उम्मीदवारों के रूप में शामिल कर परीक्षा पास करने का एक अनोखा फ़र्ज़ी तरीक़ा ईजाद किया था, जिसमें लाभार्थी उनके उत्तरों की नक़ल करेंगे, जो उनके पीछे बैठेंगे।

सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद व्यापम घोटाले की जाँच अपने हाथ में ली थी और इसने राजनेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों के गठजोड़ का भंडाफोड़ किया था। इसमें अब तक 1200 से अधिक अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर किया है, जिनमें से 55 की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। ‘तहलका’ ने आरोपों की गम्भीरता को देखते हुए फ़र्ज़ी डॉक्टरों के मामले की जाँच करने का फ़ैसला किया। हमारे विशेष जाँच दल द्वारा की गयी जाँच से ज़ाहिर होता है कि कैसे बिचौलियों ने विदेशी विश्वविद्यालयों से मेडिकल डिग्री वाले भारतीयों के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट (एफएमजीई) को धोखा देने और पास करने में उम्मीदवारों की मदद की। लेकिन चिन्ता की बात यह है कि जो लोग परीक्षण में विफल हो जाते हैं, उनकी भारत में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता संदेह के घेरे में होने के बावजूद उन्हें अस्पताल गुप्त रूप से काम पर रख लेते हैं। नतीजा, ये फ़र्ज़ी डॉक्टर बेख़ौफ़ लोगों की जान जोखिम में डाल रहे हैं।

नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (एनबीए), जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है; फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा आयोजित करता है। यह उन भारतीय या विदेशी नागरिकों के लिए एक लाइसेंस परीक्षा है, जिन्होंने अन्य देशों से प्राथमिक चिकित्सा योग्यता पूरी की है। भारतीय चिकित्सा परिषद् के साथ पंजीकृत होने के लिए विदेशी चिकित्सा स्नातकों को एफएमजीई अर्हता प्राप्त करना आवश्यक है। हर साल रूस, यूक्रेन, चीन, फिलीपींस, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों के विदेशी विश्वविद्यालयों से मेडिकल डिग्री वाले हज़ारों भारतीय विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा में शामिल होते हैं। इनमें औसतन 20 प्रतिशत से कम परीक्षा उत्तीर्ण कर पाते हैं, और अन्य के पास अनुचित साधनों का उपयोग कर डॉक्टर बनने या फिर अपने सपने को भूलने का विकल्प बचता है। फिर कुछ ऐसे भी हैं, जो बिना एफएमजीई योग्यता प्राप्त किये डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं।

पिछले महीने सीबीआई ने देश भर में 91 स्थानों पर कई राज्य चिकित्सा परिषदों और विदेशी चिकित्सा स्नातकों की तलाशी ली, जिन्हें अनिवार्य परीक्षा उत्तीर्ण किये बिना भारत में डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी गयी थी। एजेंसी ने 14 राज्य चिकित्सा परिषदों और 73 विदेशी चिकित्सा स्नातकों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की, जिन्हें अनिवार्य विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण किये बिना भारत में चिकित्सा का अभ्यास करने की अनुमति दी गयी थी। हालाँकि ‘तहलका एसआईटी’ ने पाया है कि घोटाला इसके अनुपात में बहुत बड़ा है। दरअसल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि लगभग 10 लाख नीम-हकीम एलोपैथिक दवा का अभ्यास कर रहे हैं। क्या कोई सुन रहा है?