बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि 36 साल पहले भोपाल गैस लीक हादसे से मौतों का जो सिलसिला 2-3 दिसंबर, 1984 को शुरू हुआ था; उस ज़हरीली गैस के असर से प्रभावित लोग बरसों बाद तक मरते रहे। जो प्रभावित हुए उनकी एक समय के बाद कोई खोज-खबर नहीं ली गयी। हज़ारों को नाम मात्र का मुआवज़ा मिला और फिर इस बड़ी त्रासदी की फाइलें, सरकारी अलमारियों में हमेशा के लिए दफ्न कर दी गयीं।
और अब इतने साल बाद इसी 6 मई को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम की एक फैक्ट्री में गैस लीक की घटना हो गयी, जिसमें उक्त रिपोर्ट लिखे जाने तक कम-से-कम 13 लोगों की जान जा चुकी थी और दर्ज़नों गम्भीर रूप से बीमार होकर अस्पतालों में ज़िन्दगी की जंग लड़ रहे हैं। भोपाल हादसे के बाद इन 36 वर्षों में गैस लीक के छ: बड़े हादसों में 490 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि भोपाल त्रासदी में जान गँवाने वाले करीब 16,000 से ज़्यादा लोग अलग से हैं।
भोपाल गैस त्रासदी से लेकर अब तक देश में कई घटनाएँ हो गयीं, लेकिन इनसे बचने का कोई ठोस रास्ता नहीं निकाला गया। नियमों की बराबर धज्जियाँ उड़ती हैं और घटना के कुछ दिन बाद सब कुछ भूलकर फिर एक नये हादसे की नींव तैयार होने लगती है। फैक्ट्री मालिकों और मुनाफाखोरों की नज़र में अगर आम इंसानों की ज़िन्दगी की कीमत होती, तो ऐसा नहीं होता। फैक्ट्रियों के मालिक पैसे के ज़ोर पर सब कुछ सँभाल लेते हैं और बेचारे अनेक पीडि़त न्याय का इंतज़ार करते-करते दुनिया से ही कूच कर जाते हैं।
लापरवाही और घटना
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के आरआर वेंकटपुरम गाँव के साथ लगते क्षेत्र में स्थित बहुराष्ट्रीय कम्पनी एलजी पॉलीमर प्रा. लि. की यूनिट में स्टाइरीन गैस के रिसाव की घटना भी लापरवाही और नियमों को ताक पर रखने का एक बड़ा उदहारण है। यह हैरानी की बात है कि घटना के बाद इसे एक अधिकारी ने इसे मामूली तकनीकी लीक बताया। हालाँकि सच यह है कि 9 मई तक एक दर्ज़न से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी थी और करीब 80 लोग वेंटिलेटर पर ज़िन्दगी की जंग लड़ रहे थे; जबकि करीब 1000 लोग इससे प्रभावित हुए थे।
घटना उसी दिन लडक़े हुई, जब लॉकडाउन के कारण करीब 40 दिन बन्द रहने के बाद इसे दोबारा शुरू किया गया। कुछ लोगों के मुताबिक, कम्पनी ने नियमों की धज्जियाँ उड़ायीं, जो पहले भी उड़ायी जाती रही हैं। यह यूनिट 14 साल के लम्बे अंतराल तक बिना केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की मंज़ूरी के चलती रही। किसी ने नहीं पूछा, कोई सवाल नहीं किया। जबकि नियमों के मुताबिक यह मंज़ूरी लेनी ज़रूरी थी।
इस दौरान एलजी पॉलिमर की यह यूनिट सिर्फ आंध्र प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मंज़ूरी के आधार पर ही काम करती रही। साल 2004 से 2018 तक काम नियमों को ताक पर रखने के बावजूद किसी सरकार ने इसे लेकर कोई जाँच नहीं की। और तो और पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की अधिसूचना 1994 और 2006 को भी ताक पर रख दिया गया, जिसमें साफ निर्देश हैं कि वर्तमान परियोजनाओं के विस्तार या उनमें आधुनिक तकनीक जोडऩे के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी आवश्यक है।
इस तरह की स्थिति में मंत्रालय पहले परियोजना के इतिहास का मूल्यांकन करता है। नियमों के मुताबिक, यदि कोई औद्योगिक इकाई ईआईए अधिसूचना से पहले स्थापित किया गया हो, तो उसे आधुनिकीकरण के विस्तार की योजना के लिए नये सिरे से मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होती है।
इस बहुराष्ट्रीय कम्पनी की यूनिट में गैस लीक का मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुँच गया। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने रोजाना मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत के आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक रसायन संयंत्र में गैस लीक होने की घटना की अच्छी तरह जाँच होनी चाहिए। हम हादसे में जान गँवाने वालों के प्रति शोक जताते हैं और प्रभावित लोगों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं। इस तरह की घटनाओं की स्थानीय अधिकारियों को अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए।
इस घटना पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने लोगों की मौत और उनके बीमार होने पर आंध्र प्रदेश सरकार और केंद्र को नोटिस जारी किया है। आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव से इलाज और बचाव कार्य की विस्तृत रिपोर्ट माँगी है। इसके साथ ही आंध्र के पुलिस महानिदेशक को भी एक नोटिस जारी किया है। इसमें उनसे चार सप्ताह के इस बात की जानकारी देने को कहा गया है कि इस मामले में कितनी एफआईआर दर्ज हुईं और जाँच की स्थिति क्या है?
घटना के दिन ही मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी किंग जॉर्ज अस्पताल पहुँचे और वहाँ भर्ती पीडि़तों से मुलाकात की। सीएम ने कहा कि हादसे के कारण जान गँवाने वालों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा। इसके साथ ही पीडि़तों को 10-10 लाख रुपये और अस्पताल से छुट्टी मिलने वाले मरीज़ों को एक-एक लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। पाँच सदस्यीय कमेटी पूरे मामले की जाँच करेगी।
जब तडक़े यह घटना हुई लोग गहरी निद्रा में थे। कई लोग गैस लीक होने से दम घुटने के कारण नींद में ही मर गये। गैस लीक होने के बाद सुबह तक इलाके में हृदय-विदारक दृश्य था। गैस के असर से अद्र्ध-बेहोशी में लोग सडक़ों पर पड़े तड़प रहे थे। चारों तरफ एम्बुलेंस के सायरन का शोर सुनाई दे रहा था। तब तक दहशत का माहौल बन चुका था। लोगों को लगने लगा कि भोपाल जैसा कुछ हो गया और बड़ी औद्योगिक त्रासदी हो गयी है।
यह घटना इतनी व्यापक थी कि इस गैस रिसाव से आसपास के पाँच गाँव प्रभावित हो गये और उन्हें खाली करवाकर वहाँ के लोगों को सुरक्षित इलाकों को ले जाना पड़ा। करीब 7,500 लोगों को घरों से सुरक्षित जगह ले जाया गया। जिन 13 लोगों की इस हादसे में जान गयी, उनमें दो बच्चे भी शामिल हैं।
गैस रिसाब के वक्त लोग गहरी नींद में थे और गैस लीक होने का शोर मचते ही वहाँ भगदड़ मच गयी। लोग भागने लगे। उन्हें साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। कई लोग बेहोश होकर गिर पड़े। एक व्यक्ति कुएँ में छलाँग लगते हुए जान गँवा बैठा, जबकि एक अन्य घर की बालकनी से गिर गया। गलियों और अस्पतालों में लोग बदहवास नज़र आये। सभी लोग साँस लेने में तकलीफ और आँखों में जलन की शिकायत कर रहे थे।
अधिकारियों के मुताबिक, लॉकडाउन के कारण बन्द हुई यह रासायनिक इकाई 7 मई की सुबह ही दोबारा शुरू की गयी थी और उसके तुरन्त बाद वहाँ टैंकों से गैस लीक होने लगी। कम-से-कम तीन किलोमीटर इलाके में यह गैस फैल गयी।
सक्रिय हुआ पीएमओ
घटना की भयावहता इससे समझी जा सकती है कि चंद घंटे के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आपात बैठक बुलायी। गैस रिसाव के बाद पैदा हुए हालात का जायज़ा लेने के लिए पीएम ने राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए) की बैठक तलब की। इसमें विचार विमर्श किया गया साथ ही समुचित निर्देश जारी किये गये।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट कर घटना पर अफसोस जताया और कहा कि दिल्ली (केंद्र सरकार) लगातार अपनी नज़र घटना पर बनाये हुए है। उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी से बात की और उन्हें हर तरह की मदद और समर्थन देने का भरोसा दिया। गृह मंत्री अमित शाह ने भी घटना को परेशान करने वाला बताया और कहा कि केंद्र सरकार स्थिति पर निगाह रखे हुए है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव से बात कर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमों को पीडि़तों को ज़रूरी मदद मुहैया कराने के निर्देश दिये।
ताक पर नियम
तहकीकात से ज़ाहिर होता है कि एलजी पॉलिमर की इस यूनिट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास नियमों के उल्लंघन कैटेगरी (विशेष कैटेगिरी) के तहत एन्वायरनमेंटल क्लीयरेंस (ईसी) के लिए आवेदन किया था। यह केटेगिरी पहली नहीं होती थी और इसे 2017 में ही ईसी नियमों में जोड़ा गया है। इसके तहत मंत्रालय उन इकाइयों को एक बार की माफी (वन टाइम एमनेस्टी) देता है, जो विभिन्न क्षेत्रों की परियोजनाओं को शुरू करते हुए पर्यावरण मंज़ूरी नहीं लेतीं। सूत्रों के मुताबिक, पर्यावरण मंत्रालय को एलजी पॉलिमर का यह आवेदन मार्च में मिला था।
देश में 1994 और 2006 में एनवायरेनमेंट इंपेक्ट एसेसमेंट (ईआईए) अधिसूचना जारी की गयी। इस अधिसूचना के मुताबिक, कोई कारखाना लगाने से पहले उसके आसपास के इलाकों की आबादी (लोगों) और पर्यावरण पर असर की समीक्षा होनी ज़रूरी थी। जनता से भी इसे लेकर राय ली जानी होती है। लेकिन कानून लागू करने में सरकारों ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। अब पर्यावरण मंत्रालय ईआईए अधिसूचना 2020 लाने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत बगैर पूर्व एसेसमेंट के कारखाना खोला जा सकता है और बाद में ज़ुर्माना भरकर लाइसेंस हासिल किया जा सकता है।
जाने-माने पर्यावरणविद् नित्यानंद जयारमन के मुताबिक, विशाखापत्तनम घटना में बड़े पैमाने पर स्टायीरन की ज़हरीली गैस से फैक्ट्री के बाहर दुनिया में पहली बार इतना बड़ा हादसा हुआ है। जयारमन के मुताबिक, इंसान की जान तभी जा सकती है, जब बहुत अधिक मात्रा में यह गैस हवा में घुल जाए। स्टायरीन से फैक्ट्री से बाहर आज तक कभी किसी के मरने का एक भी उदाहरण नहीं है। ज़ाहिर है स्टायीरन नाम की गैस फैक्ट्री से बहुत बड़े पैमाने पर लीक हुई। फैक्ट्री के अन्दर नहीं, बाहर लोगों की मौत हुई। जयारमन कहते हैं कि यह बहुत महत्त्वपूर्ण है।
पर्यावरण कार्यकर्ता केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ईआईए अधिसूचना, 2020 के संशोधित मसौदे में परियोजनाओं के लिए पोस्ट-फैक्टो की मंज़ूरी पर ज़ोर देने का ज़बरदस्त विरोध कर रहे हैं। मंत्रालय के ऐसा करने के पीछे एक बड़ा कारण सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के फैसलों में इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं की गयी है।
हादसे में 13 लोगों की मौत और 1000 से ज़्यादा के बीमार होने से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 50 करोड़ रुपये की अंतरिम राशि जमा करने का निर्देश कम्पनी को दिया है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एकल बेंच ने इस हादसे की जाँच के लिए जस्टिस बी शेषासन रेड्डी की एक पाँच सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति को 18 मई तक एक रिपोर्ट एनजीटी के समक्ष पेश करनी है। इस रिपोर्ट के काफी कुछ सामने आने की उम्मीद है।
आंध्र प्रदेश सरकार ने भी एलजी पॉलीमर से गैस रिसाव की घटना को लेकर पाँच सदस्यीय दल के गठन किया है। कुछ क्षेत्रों में यह आरोप लगाये गये हैं की जगनमोहन रेड्डी सरकार कम्पनी के प्रति नरमी से पेश आ रही है।
आंध्र प्रदेश के उद्योग मंत्री गौतम रेड्डी ने घटना के बाद कहा कि राज्य सरकार सुरक्षा में कोई चूक नहीं चाहती, इसलिए फैक्ट्री से रिसने वाली स्टाइरीन गैस को निष्प्रभावी करने के लिए 500 किलो रसायन हवाई मार्ग से मँगवाया गया। हालाँकि मंत्री ने कहा कि रिसाव को एक घंटे के भीतर बन्द कर लिया गया था, लेकिन कम्पनी से स्पष्टीकरण माँगा जाएगा कि आिखर चूक कहाँ हुई? वैसे यहाँ यह भी दिलचस्प है कि रेड्डी ने पहले कहा था कि राज्य सरकार गैस के प्रभाव को बेअसर करने के लिए 500 टन रसायन मँगवा रही है। बाद में इसे 500 किलो कर दिया गया।
गैस का असर
भोपाल गैस लीक घटना का एक बड़ा सच यह है कि आज भी करीब 12 हज़ार मीट्रिक टन कचरा तत्कालीन यूनियन कार्बाइड के कारखाने के विशाल परिसर में दबा हुआ है। यही नहीं यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे से इसके आस-पास का भूजल मानक सामान्य स्तर से 562 गुना प्रदूषित हो गया। इन वर्षों में बरसात के समय पानी के साथ यह खतरनाक कचरा एक दर्ज़न से ज़्यादा बस्तियों की 48 हज़ार से ज़्यादा की आबादी के भूजल को ज़हरीला बना चुका है। सीएसई के एक शोध के मुताबिक, कारखाने के परिसर से तीन किलोमीटर दूर और 30 मीटर गहराई तक ज़हरीले रसायन पाये गये। रासायनिक गैस की चपेट में आने वाले लोगों ही नहीं उनकी पीढिय़ों में आज भी इसके प्रभाव के लक्ष्ण देखे जाते हैं। कई लोग हादसे के बाद कैंसर या अन्य बीमारियों के मौत के शिकार हुए। जो हादसे में बच गये, उनके बच्चे और आगे की पीढिय़ों में रसायनिक गैस के लक्ष्ण और प्रभाव यह हुए हैं कि वे आज भी विकलांगता, फेफड़े और त्वचा सम्बन्धी रोगों का सामना कर रहे हैं।
ऐसे में यह सवाल उभरते हैं कि जो लोग विशाखापत्तनम गैस रिसाव में प्रभावित हुए हैं, भले उनकी जान बच गयी हो, क्या नपर भोपाल जैसा ही असर होने का खतरा है? यह भी एक सवाल है कि क्या इन लोगों की अगली पीढ़ी पर भी इसका असर वैसा ही पडऩे का खतरा है, जैसा भोपाल वाले मामले में हुआ?
कौन है एलजी पॉलीमर कम्पनी
एलजी पॉलीमर कम्पनी की विशाखापत्तनम यूनिट का स्वामित्व दक्षिण कोरिया की बैटरी निर्माता कम्पनी एलजी केमिकल लिमिटेड के पास है। कम्पनी यहाँ पॉलीस्टाइरीन का उत्पादन करती है। कम्पनी इलेक्ट्रिक फैन ब्लेड, कप और कटलरी और मेकअप जैसे कॉस्मेटिक उत्पादों के लिए कंटेनर बनाने का काम करती है। प्लांट इन उत्पादों के लिए स्टाइरीन के कच्चे माल का उपयोग करता है। स्टाइरीन अत्यधिक ज्वलनशील होता है और जलने पर एक ज़हरीली गैस छोड़ता है।
कम्पनी की स्थापना 1961 में पॉलीस्टाइरीन और को-पॉलिमर्स का निर्माण करने के लिए हिंदुस्तान पॉलीमर्स के तौर पर हुई थी। साल 1978 में इसका यूबी समूह के मैक डॉवेल एंड कम्पनी लिमिटेड के साथ विलय हो गया था। 1997 में कम्पनी को एलजी केमिकल ने अपने कब्ज़े में ले लिया और इसका नाम बदलकर एलजी पॉलिमर इंडिया प्रा. लि. कर दिया गया। दरअसल एलजी केमिकल की दक्षिण कोरिया में स्टाइरेनिक्स के कारोबार में बहुत मज़बूत उपस्थिति है। कम्पनी वर्तमान में भारत में पॉलीस्टाइरीन और विस्तार योग्य पॉलीस्टाइरीन के अग्रणी निर्माताओं में से एक है।
जानवरों की भी मौत
विशाखापत्तनम गैस रिसाव में सिर्फ इंसानों की ही जान नहीं गयी। इसमें बड़ी संख्या में पशुओं की भी मौत हुई है। तहलका की जानकारी के मुताबिक, 100 से ज़्यादा पशु गैस के प्रभाव से मौत का शिकार हो गये।
गैस रिसाव से उनके मुँह से झाग निकलने लगी और वे तड़पने लगे। जल्दी ही इनमें से कई की जान चली गयी। जानवरों की मौत को लेकर फिलहाल कोई सरकारी आँकड़ा नहीं आया है और 100 से ज़्यादा पशुओं की मौत हुई हो सकती है।
रायगढ़ में भी गैस लीक कांड
विशाखापत्तनम में जिस दिन गैस रिसाव की घटना हुई, उसी दिन खबर आयी कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में भी ऐसी ही घटना हुई है। बहुत दिलचस्प बात है कि छत्तीसगढ़ में गैस रिसाव की घटना विशाखापत्तनम से एक दिन पहली ही हो गयी थी, लेकिन फैक्ट्री मालिकों ने घटना को छिपा लिया।
इस घटना में सात मज़दूूर बीमार हो गये, जिन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। मिल मालिक ने घटना छिपाने की कोशिश की लेकिन अगले दिन (6 मई) पुलिस को किसी ने इसकी जानकारी दे दी। घटना रायगढ़ के तेतला गाँव की है जहाँ एक पेपर मिल में ज़हरीली गैस लीक होने से सात मज़दूूरों की तबीयत बिगड़ गयी। इनमें तीन की हालत गम्भीर होने के कारण उन्हें रायपुर रैफर करना पड़ा, जहाँ यह रिपोर्ट फाइल होने तक वे इलाज करवा रहे थे।
मिल के मालिक ने इस हादसे को छिपाने की कोशिश की। जानकारी मिलने पर डीएम, एसएसपी और दूसरे अधिकारियों ने मिल में जाकर जायज़ा लिया और सूचना तो सही पाया। वे अस्पताल गये, जहाँ मज़दूूर भर्ती थे। इसके बाद मिल मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गयी। रायगढ़ के पुसौर ब्लॉक में शक्ति पेपर मिल में यह हादसा हुआ। मिल दो महीने से बन्द पड़ी थी, लेकिन लॉक डाउन में ढील के बाद इसका टैंक साफ करने के दौरान गैस का रिसाव हो गया। कई लोग ज़हरीली गैस की चपेट में आ गये। रायगढ़ के एसपी संतोष कुमार सिंह के मुताबिक, घटना की सूचना पेपर मिल संचालक ने दी ही नहीं। उन्होंने कहा था कि जाँच के बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी, यह गम्भीर मामला है।
घटना की जाँच के आदेश दिये गये हैं। जाँच रिपोर्ट आने के बाद ज़िम्मेदारी तय कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। लोगों की मौत पर सरकार चिन्तित है और उनके परिजनों को पूरा मुआवज़ा दिया जाएगा। जो घायल हुए हैं, उनका इलाज किया जा रहा है और आॢथक मदद के लिए राशि जारी की गयी है। जाँच में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।
जगनमोहन रेड्डी
सीएम, आंध्र प्रदेश
विशेषज्ञ समिति करे जाँच : नायडू
एलजी पॉलीमर से गैस रिसाव की घटना को लेकर आंध्र प्रदेश सरकार के पाँच सदस्यीय जाँच दल के गठन के बाद तेलगू देशम् पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से इस मामले में पड़ताल के लिए वैज्ञानिकों की एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का आग्रह किया। नायडू के मुताबिक, इससे मुआवज़ा देने में भी मदद मिलेगी। तेदेपा अध्यक्ष नायडू ने मोदी को एक पत्र लिखा, जिसमें प्लास्टिक उत्पाद वाली इस फैक्ट्री से स्टाइरीन गैस के मामले की जाँच पर ज़ोर दिया। उन्होंने केंद्र सरकार के त्वरित कदमों की प्रशंसा भी की। नायडू ने अपने पात्र में सुझाव दिया कि विषैली गैस के रिसाव की परिस्थितियों की जाँच के लिए वैज्ञानिकों की एक विशेषज्ञ समिति बनाएँ। उन्होंने कहा कि घटना के स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभाव को समझने के लिए विस्तृत जाँच ज़रूरी है। नायडू के कहा कि विशाखापत्तनम और उसके आसपास हवा की गुणवत्ता पर गहराई से नज़र रखनी होगी, ताकि मौजूदा और भविष्य में सम्भावित प्रभावों को समझा जा सके। उन्होंने स्वास्थ्य सम्बन्धी आकलन करने और इस दिशा में कदम उठाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद लेने का सुझाव दिया।
फैक्ट्रियों के बड़े हादसे
चासनाला खान दुर्घटना झारखंड के धनबाद में 27 दिसंबर, 1975 को घटी। गैस भरने से कोयले की खदान में एक भयंकर धमाका हो गया, जिसके बाद उसमें पानी भर गया। करीब 390 मज़दूूरों की इस घटना में जान चली गयी। कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन/शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत काला पत्थर फिल्म इसी घटना से प्रभावित थी।
भारत में भोपाल गैस त्रासदी को सबसे बड़ी घटना माना जाता है। मध्य प्रदेश के भोपाल में 2-3 दिसंबर, 1984 को यह हादसा हुआ। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कम्पनी से मिथाइल आईसोसाइनेट गैस और साथ में कुछ अन्य केमिकल का रिसाव हुआ। हादसे से जुड़े मामले में आज तक करीब 16,000 लोगों की जान जा चुकी है। यही नहीं, कोई 38,000 लोग गैस के असर से स्थायी रूप से प्रभावित हुए।
छत्तीसगढ़ के कोरबा में 23 सितंबर, 2009 को चिमनी हादसा हुआ। निर्माण के समय चिमनी अचानक करीब 100 मज़दूूरों पर गिर गयी। इस घटना में 45 लोगों की मौत हो गयी, जबकि कई घायल हुए; जिनमें कुछ स्थायी रूप से अपाहिज हो गये।
राजस्थान के जयपुर ऑयल डिपो में आग हादसा 29 अक्टूबर, 2009 को हुआ। इंडियन ऑयल के डिपो में हुए इस हादसे में 12 लोगों की जान चली गयी और 300 से ज़्यादा लोग घायल हुए। इस घटना में करीब 8,000 किलोलीटर पेट्रोल वाला टैंक फट गया था।
उत्तर प्रदेश में ऊँचाहार एनटीपीसी प्लांट हादसा 01 नवंबर, 2017 को हुआ। इसमें एनटीपीसी के प्लांट में गैस लीक हुई और एनटीपीसी के प्लांट में बॉयलर में धमाका हो गया। इस हादसे में 40 लोगों की जान चली गयी। इसमें करीब 125 लोग घायल हुए।