पूरे भारत में टाइल्स के कारोबार के लिए मशहूर मोर्वी शहर गुजरात के समृद्धतम शहरों में से है, लेकिन आज से तकरीबन 34 साल पहले इसने ऐसी आपदा का सामना किया था जब यह लगभग पूरी तरह तबाह हो गया था. अगस्त, 1979 की यह आपदा माच्छू बांध ढहने का नतीजा थी.
उस साल मॉनसून के दौरान पश्चिमी भारत में भारी बारिश हो रही थी. सौराष्ट्र (मोर्वी इसी हिस्से में है) के कुछ क्षेत्रों में हल्की बाढ़ की स्थिति थी और माच्छू बांध पानी से लबालब भर चुका था. सरकारी स्तर पर किसी को यह सूचना नहीं थी कि इस बांध के टूटने का खतरा है. इन हालात में अचानक इस चार किलोमीटर लंबे बांध का टूटना शहर के लिए अचानक आई भयावह आपदा की तरह साबित हुआ. कुछ घंटों के भीतर ही क्षेत्र की 15 से 20 हजार की आबादी (कुछ अनुमानों में इसे 25 हजार तक बताया गया है) काल के गाल में समा गई. दुनिया में इसे अपनी तरह की सबसे विध्वंसकारी दुर्घटना की तरह दर्ज किया गया.
दुर्घटना की जांच के लिए बाद में राज्य सरकार ने एक आयोग भी बनाया. लेकिन इसे 18 महीने बाद भंग कर दिया गया. राज्य सरकार के इस फैसले की काफी आलोचना हुई. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना था कि आयोग की जांच में सिंचाई विभाग के बड़े अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. इस बात के पक्ष में उनके तर्क थे कि बांध निर्माण में तकनीकी गड़बड़ियां तो थी हीं साथ में अधिकारी पानी भराव और निकास के लिए जिस गणना पद्धति का उपयोग करते थे उसमें गलतियां थीं. भारी बारिश के दौरान यही गलतियां बांध टूटने का कारण बनीं. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को भंग करने के सरकारी फैसले को सही ठहराया. इसके बाद कभी इस मामले की जांच नहीं हो पाई और आज तक इस घटना की जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकी है.
-पवन वर्मा