याद करें 2013 को जब जस्टिस आरएम लोढा ने सीबीआई को ‘मालिक की आवाज’ कहा साथ ही इसे ‘पिंजरे में बंद तोता’ भी बताया था। अब ज़रा 2018 को याद करें ‘पिंजरे में बंद तोता तो पिंजरा भी खो चुका है और अपनी विश्वसनीयता भी।’ अब वह इस हाल में है कि इसके दो बड़े अफसरों को अपनी सेवा से मुक्त कर दिया गया है और अंतरिम निदेशक को नीतिगत फैसले लेने के अधिकार दिए गए हैं।
देश की सबसे महत्वपूर्ण जांच संस्था में क्या कुछ चल रहा है उसे बताने के लिए ‘दुर्भाग्य’ भी कहना बड़ा छोटा शब्द जान पड़ता है। इसके दूसरे बड़े अधिकारी एक दूसरे पर घूस लेने और दूसरे आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
सीबीआई ने विशेष निदेशक (स्पेशल डायरेक्टर)राकेश अस्थाना पर एक मामले में घूस लेने के आरोप लगाए हैं जिसकी पड़ताल वे खुद कर रहे थे। अस्थाना के खिलाफ यह एफआईआर लगभग दो महीने बाद दायर की गई जब उन्होंने अपने ही अधिकारी और सीबीआई के निदेशक आलोक कुमार वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के ढेरों मामलों में शामिल होने के आरोप लगाए। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सेंट्रल विजिलेस कमीशन) की सीबीआई के कामकाज पर नज़र रहती है। जिससे आरोपों की छानबीन के दौरान भ्रष्टाचार को रोका जा सके।
आधी रात के बाद जो कार्रवाई हुई उसमें आलोक वर्मा (सीबीआई निदेशक) और राकेश अस्थाना (विशेष निदेशक) को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया। नए कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राय को कार्यकारी निदेशक बनाया गया। तेरह अधिकारियों का तबादला सीबीआई में हुआ। दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैबिलिशमेंट एक्ट में व्यवस्था है कि सीबीआई निदेशक के लिए दो साल काम करने की अवधि होती है। उसका तबादला भी एक हाईपावर कमेटी ही करेगी जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और देश के मुख्य न्यायाधीश भी होंगे। सीबीआई का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट का यह दूसरा सबसे बड़ा हस्तक्षेप है। वह देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के कामकाज पर नज़र रख रहा है। इसने जांच के इस काम को नियत समय में पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनायक को जिम्मेदारी सौंपी। अदालत ने अंतरिम निदेशक को सिर्फ रोज़मर्रा के कामकाज तक ही सीमित रहने को कहा है। साथ ही तमाम ब्यौरों को सीलबंद लिफाफे में मंगाया है।
ऐसे बदले हुए माहौल में न्यायिक हस्तक्षेप बहुत ज़रूरी हो गया था क्योंकि ऐसी भी खबरें आ रही थीं कि इंवेस्टीगेटिंग ब्यूरो के चार कर्मचारी आलोकवर्मा के सरकारी आवास के बाहर संदिग्ध अवस्था में देखे गए। उनको वर्मा के सुरक्षा दस्तों ने पकड़ा। हाल-फिलहाल हुए इस मामले से पहले भी सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा पर आरोप थे कि उन्होंने कथित आरोपी को कई मामलों मेें मदद दी और उन्हें 2जी घोटाले से दूर रहने के लिए कहा गया। इसी तरह एक और निदेशक एपी सिंह को पिछले साल इसलिए धर-दबोचा गया क्योंकि गोश्त के निर्यातक मोइन कुरैशी से उनके संपर्क थे।
‘तहलका’ ने उन दोनों में हुई बातचीत भी प्रकाशित की थी।
जनता उम्मीद करती है कि सीबीआई का देश में बना हुआ मानक कायम रहेगा। इसका गौरव फिर से बहाल किया जाएगा। नरेंद्र मोदी सरकार के पास अब भी मौका है कि वह सीबीआई की दक्षता और ईमानदारी को सुधारें।