मोदी पर मोहित चैनल

न्यूज चैनलों की कई कमजोरियों में से एक बड़ी कमजोरी यह है कि उन्हें पूर्वनियोजित घटनाएं यानी इवेंट बहुत आकर्षित करते हैं. खासकर अगर उस इवेंट से कोई बड़ी शख्सियत जुड़ी हो, उसमें ड्रामा और रंग हो, कुछ विवाद और टकराव हो और उसमें चैनलों के लिए ‘खेलने और तानने’ की गुंजाइश हो तो चैनल उसे हाथों-हाथ लेते हैं. चैनलों की इस कमजोरी की कई वजहें हैं. पहली बात तो यह है कि दृश्य-श्रव्य माध्यम होने के नाते विजुअल उनकी सबसे बड़ी कमजोरी हैं. वे हमेशा विजुअल की खोज में रहते हैं. इवेंट में उन्हें बहुत आसानी से विजुअल मिल जाते हैं. उन्हें इसके लिए अपने दिमाग पर बहुत जोर नहीं लगाना पड़ता है क्योंकि इवेंट में उन्हें सब कुछ बना-बनाया मिल जाता है. दूसरे, इवेंट को कवर करने के लिए उन्हें कोई खास खर्च नहीं करना पड़ता. यही नहीं, ऐसे इवेंट कई बार प्रायोजित भी होते हैं जिन्हें कवर करने के बदले चैनलों को मोटी रकम मिलती है. तीसरे, इवेंट के लाइव कवरेज और उस पर स्टूडियो चर्चाओं में चैनलों को अपनी ओर से भी ड्रामा, विवाद और सस्पेंस रचने का मौका मिल जाता है. इससे उन्हें अधिक से अधिक दर्शक खींचने में भी मदद मिलती है.

यह मोदी ब्रांड की नई मार्केटिंग रणनीति है जिसमें दागों को ‘विकास की चमक’ में छिपाने की कोशिश की जा रही हैचैनलों की इस कमजोरी से राजनेता से लेकर कारपोरेट जगत तक और अभिनेता-खिलाड़ी से लेकर धर्म गुरुओं तक सभी वाकिफ हैं. वे इसका खूब इस्तेमाल भी करते हैं. वे मीडिया खासकर न्यूज चैनलों में प्रचार पाने और सुर्खियों में बने रहने के लिए जमकर मीडिया इवेंट आयोजित करते हैं. आखिर उनका धंधा भी काफी हद तक सुर्खियों में बने रहने से टिका है. आश्चर्य नहीं कि न्यूज मीडिया खासकर चैनलों की इस कमजोरी को भुनाने और अपने क्लाइंटों को अधिक से अधिक प्रचार देने और सुर्खियों में बनाए रखने के लिए इवेंट मैनेजमेंट का एक विशाल उद्योग खड़ा हो गया है. इवेंट या पीआर मैनेजरों का एक बड़ा काम यह है कि वे अपने क्लाइंटों के लिए ऐसे इवेंट आयोजित करें जो न सिर्फ मीडिया को ललचाएं बल्कि उनके क्लाइंट को सकारात्मक कवरेज दिलवाने में मदद करें.

कई ‘मीडिया सुजान’ नेताओं की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी मीडिया खासकर चैनलों की इस कमजोरी को अच्छी तरह जानते हैं. इसलिए जब उन्हें लगा कि मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल के बीच 2014 के आम चुनावों के मद्देनजर अब राष्ट्रीय राजनीति और खासकर भाजपा के अंदर प्रधानमंत्री पद के लिए दावा ठोकने का समय आ गया है तो उन्होंने एक मीडिया इवेंट आयोजित करने में देर नहीं लगाई. मोदी और उनकी टीम को इस राजनीतिक मीडिया इवेंट का स्वरूप तय करने में ज्यादा दिमाग नहीं खर्च करना पड़ा. अन्ना हजारे और उनके अनशन इवेंट की शानदार सफलता उनके सामने थी. आश्चर्य नहीं कि बगैर देर किए मोदी ने गुजरात में सद्भावना के लिए तीन दिन के अनशन करने की घोषणा कर दी. करोड़ों रु खर्च करके देश भर के अखबारों में विज्ञापन दिया गया. न्यूज चैनलों के लाइव कवरेज के लिए विशेष इंतजाम किए गए, रिपोर्टरों और खासकर दिल्ली से बुलाए स्टार रिपोर्टरों/एंकरों की पूरी आवभगत की गई. उसके बाद क्या हुआ, वह इतिहास है. कल तक अन्ना की सेवा में लगा ‘डिब्बा’ मोदी सेवा में भी पीछे नहीं रहा. तीन दिन तक मोदी चैनलों के परदे पर छाए रहे और हर दिन उनकी छवि और बड़ी होती गई. चैनलों ने थोक के भाव मोदी के ‘एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यू दिखाए. प्राइम टाइम चर्चाओं में मोदी बनाम राहुल गांधी से लेकर मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता पर घंटों चर्चा हुई. मोदी को बिना किसी गहरी जांच-पड़ताल के विकास पुरुष और सुशासन के प्रतीक के रूप में पेश किया गया.
हालांकि इन रिपोर्टों, साक्षात्कारों और चर्चाओं में गुजरात के 2002 के दंगों और उसमें मोदी की भूमिका की भी खूब चर्चा हुई और सवाल भी पूछे गए, लेकिन कुल मिलाकर उसे एक ‘विचलन’ (एबेरेशन) की तरह पेश करने की कोशिश की गई. 2002 को 1984 के सिख नरसंहार और अन्य दंगों के बराबर ठहराने के प्रयास हुए. 2002 को भूलने और आगे देखने की सलाहें दी गईं. इसके लिए गुजरात के कथित विकास का मिथ गढ़ा जा रहा है. कहा जा रहा है कि मोदी ने गुजरात में विकास की गंगा बहा दी है. राज्य बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है. राज्य में सुशासन है.

साफ है कि यह मोदी ब्रांड की नई मार्केटिंग रणनीति है जिसमें दागों को ‘विकास की चमक’ में छिपाने की कोशिश की जा रही है. चैनलों में मोदी भक्तों की कभी कमी नहीं रही लेकिन अब वे खुलकर सामने आने लगे हैं. ‘आपको आगे रखने वाले’ चैनल के एक ऐसे ही स्टार एंकर/रिपोर्टर तो मोदी से इतने प्रभावित दिखे कि इंटरव्यू में अपनी पक्षधरता छिपाए बिना नहीं रह सके. सवाल पूछते हुए कहा कि ‘मैं निजी तौर पर मानता हूं कि देश की जनता आपको प्रधानमंत्री के रुप में देखना चाहती है.’ क्या बात है! इस महान रिपोर्टर को यह इलहाम कहां से हुआ? क्या आजकल उनका जनता जनार्दन से कोई दैवी संवाद हो रहा है? सचमुच, चैनलों की महिमा अपरंपार है! मानना पड़ेगा कि मोदी मोह में उन्होंने सच की ओर से आंखें बंद कर ली हैं.