प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नज़र में भारत में चार जातियाँ हैं- ग़रीब, युवा, किसान व महिलाएँ। इन चार जातियों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। संख्या के लिहाज़ से महिलाओं की आबादी क़रीब 60 करोड़ से ज़्यादा है। प्रधानमंत्री बड़े-बड़े मंचों पर अक्सर अपने भाषणों में आधी आबादी का ज़िक्र करते सुनाई पड़ते हैं। उन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षी नारे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के ज़रिये अपने राजनीतिक मंसूबों में महिला हितों का ध्यान रखने वाले संदेश देने में कोई क़सर नहीं छोड़ी। हाल में ही प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित भारत संकल्प यात्रा की महिला लाभार्थियों से संवाद करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को एकजुट रहना चाहिए। आजकल कुछ लोग महिलाओं के बीच दरार पैदा कर रहे हैं। सभी महिलाओं की एक जाति होती है, जो इतनी बड़ी है कि वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकती हैं।’
दरअसल मोदी की इस टिप्पणी को कांग्रेस और अन्य दलों पर निशाने के तौर पर देखा जा रहा है, जो जाति आधारित जनगणना पर ज़ोर दे रहे हैं। बहरहाल विभिन्न राजनीतिक दलों में महिला हितैषी होने की होड़ लगी हुई है और चुनावी मौसम में इस होड़ की रफ़्तार बहुत तेज़ हो जाती है। महिलाओं की एक मतदाता के तौर पर राजनीतिक ताक़त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुत अच्छी तरह से समझा और ऐसी योजनाओं के ज़रिये उन्हें अपने साथ जोड़ते चले गये कि बिहार के राजनीतिक परिदृष्य में महिलाओं की गिनती अहम होती चली गयी। बीते कुछ वर्षों से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा नैरेटिव यानी विमर्श गढ़ा है कि केवल भाजपा को ही महिलाओं के हितों की चिन्ता है। केवल चिन्ता ही नहीं है, बल्कि इसी पार्टी की राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा व कार्यक्रमों में महिला सशक्तिकरण को ज़मीनी स्तर पर उतारने का दमख़म भी है।
मोदी व योगी महिलाओं के संरक्षक के तौर पर ख़ुद को पेश करने में कोई क़सर नहीं रखते। लेकिन बीते तीन वर्षों के सरकारी आँकड़े ही बोलते हैं कि देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़े हैं। हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की क्राइम इन इंडिया-2022 नामक जारी रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार, देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किये गये। इस तरह वर्ष 2022 में हर घंटे 51 महिलाएँ अपराध की शिकार हुईं यानी महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सिलसिले में हर 60 मिनट में 51 प्राथमिकी दर्ज की गयीं। इससे पहले वर्ष 2021 में यह आँकड़ा 4,28,278 मामलों का था; जबकि वर्ष 2020 में 3,71,503 प्राथमिकी दर्ज की गयी थीं।
एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2022 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामलों में सबसे अधिक 65,743 प्राथमिकी दर्ज की गयीं। इसके बाद महाराष्ट्र में यह आँकड़ा 45,331,राजस्थान में 45,058, पश्चिम बंगाल में 34,738 और मध्य प्रदेश में 32,765 है। राजधानी दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की दर सबसे अधिक है। वर्ष 2022 में 144.4 प्रति लाख दर दिल्ली में दर्ज की गयी, जो कि राष्ट्रीय औसत दर 66.4 प्रति लाख से काफ़ी अधिक है। ग़ौरतलब है कि एनसीआरबी एजेंसी अपनी रिपोर्ट में यह रेखांकित करती है कि ये आँकड़े दर्ज अपराधों के आँकड़े हैं, न कि वास्तविक संख्या को दर्शाते हैं।
ज़ाहिर है महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों की असली संख्या अधिक ही होगी; क्योंकि हज़ारों मामलों में महिलाओं पर उनके ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों को लेकर ख़ामोश रहने के लिए पारिवारिक व सामाजिक दबाव डाला जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा की मानना है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों के मामलों में प्राथमिकी की संख्या में वृद्धि के एनसीआरबी के आँकड़ों से संकेत मिलता है कि अधिक महिलाएँ आगे आ रही हैं और मामले दर्ज करा रही हैं, जो एक सकारात्मक बदलाव है।
वैसे पुलिस अधिकारी भी यही कहते हैं कि अब अधिक महिलाएँ प्राथमिकी दर्ज कराने आती हैं। अपनी-अपनी दलीलें हैं; मगर ज़ोर-शोर से महिलाओं के सशक्तिकरण के नारों से महिला सुरक्षा का जो माहौल बनाने का दावा किया जाता है, उसमें बहुत छेद हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए गठित निर्भया फंड का सही तरह से पूरा इस्तेमाल न होना भी सरकारी अधिकारियों की संवेदनशीलता व क्रियान्वयन पर सवाल खड़ा करता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि मोदी की गांरटी में महिलाओं की सुरक्षा की गांरटी पर बात नहीं होती। महिला सुरक्षा को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री यदा-कदा कड़े बयान देते ज़रूर नज़र आते हैं; लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात भिन्न हैं।