पिछले दिनों में हुई घटनाओं, जिसमें गौरक्षा के नाम पर लोगों को मार देने के घटनाएं भी शामिल हैं, पर देशव्यापी चर्चा के बीच मंगलवार को भीड़ की हिंसा पर नकेल कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने देश भर में चल रही मॉब लिंचिंग पर केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि भीड़तंत्र की इजाज़त नहीं दी जा सकती। साथ ही कोर्ट ने सरकार से इस मामले में सख्त कानून बनाने को भी कहा है।
गोरक्षा के नाम पर होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर सख्त नाराजगी जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता, चाहे वो भीड़ क्यों न हो। गौरतलब है की देश में पिछले छह साल में अकेले गौरक्षा के नाम पर ही करीब ८४ घटनाएं हुई है जिसमें ३२ लोगों की मौत हुई है। अन्य मामले अलग से हैं। गोरक्षा के नाम पर हुई हिंसा से जुडी याचिका पर मुख्या न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ती एएम खानविलकर और न्यायमूर्ती डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने इस मसले पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन एस पूनावाला और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी समेत कई अन्य ने इस मामले में याचिका दायर की थी।
कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि शांति और विभिन्न समुदाओं के भारतीय समाज की रक्षा का जिम्मा राज्य का है। मुख्या न्यायाधीश ने कहा कि संसद भीड़ की हिंसा के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार करे। अपने निर्देश में उन्होंने राज्य की सरकारों से कहा कि भीड़ की हिंसा को रोकना उनकी भी जिम्मेदारी है। शीर्ष अदालत २० अगस्त को इस मसले पर समीक्षा करेगी जब केंद्र की तरफ से इसपर कुछ जवाब दायर होगा।
तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत में उसके कुछ मामले में पहले के निर्देशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि कुछ राज्यों के खिलाफ मानहानि याचिका भी दायर की गयी हैं। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 6 सितंबर को सभी राज्यों से कहा था कि गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा रोकने के लिये सख्त कदम उठाये जाएँ।
एक और याचिकाकर्ता इंदिरा जयसिह ने कहा कि भारत में अपराधियों के लिए गोरक्षा के नाम पर हत्या करना गर्व की बात बन गई है। उन्होंने कहा कि सरकार अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है और उन्हें जीवन की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पा रही है।
मामले की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि केंद्र सरकार इस मामले में सजग और सतर्क है, लेकिन मुख्य समस्या कानून व्यवस्था की है। उनहोंने कहा था कि कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखना राज्यों की जिम्मेदारी है और केंद्र इसमें तभी हश्तक्षेप कर सकता है जब राज्य इसके लिए उससे आवेदन करे।
मंगलवार को कोर्ट ने कहा कि भीड़तंत्र की इजाज़त नहीं दी जा सकती। शांति और बहुलतावादी समाज की रक्षा राज्य का दायित्व है। चीफ जस्टिस ने कहा कि संसद भीड़ की हिंसा के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि चार हफ्ते के भीतर ”मॉब लिन्चिंग” पर दिशा-निर्देश जारी करें।