जिस दिन सेना की अदालत ने मेजर गोगोई पर श्रीनगर के होटल में एक स्थानीय लड़की के साथ जाने का अभियोग लगाया उसी दिन एक अखबार की एक खबर का र्शीषक था, ”एक नागरिक को ढाल बनाने पर छोड़ दिए गए, पर होटल जाने पर पकड़े गए’’। पिछले साल अप्रैल में इस अधिकारी ने पत्थराव करने वालों से बचने के लिए एक आम नागरिक फारुक डार को ढाल बना कर बडगांव के गावों में घुमाया था। इस घटना का वीडियो सामने आने पर इसकी चारों ओर भारी आलोचना हुई थी लोगों में इस घटना पर भारी गुस्सा था। लेकिन सेना ने उसे सज़ा देने की बजाए उसे ‘क्लीन चिट’ दी और यह कहते हुए कि गोगोई ने शानदार काम किया है उसे एक मेडल भी प्रदान किया और वह भी सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के हाथों। कश्मीर में इसे घाव कुरेदने वाली घटना के तौर पर देखा गया।
विडंबना यह है कि डार उन गिन चुने लोगों में से एक था जिसने हुर्रियत का विरोध किया और उनके कहने के मुताबिक संसदीय उप चुनाव में वोट नहीं डाला। उसने कश्मीर के आज़ादी आंदोलन के खिलाफ जाकर केंद्र सरकार का साथ दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि उसे कोई ईनाम देने की जगह केंद्र ने उसे प्रताडऩा के लिए सेना के हवाले कर दिया। डार के बारे में सभी कुछ जानते हुए भी सेना ने केवल अपने इस तर्क को पुख्ता करने के लिए कि पत्थरबाजों के खिलाफ उनके किसी साथी को जीप पर बांधना सही कदम था, उसे पत्थरबाज घोषित कर दिया गया।
पर अब सेना ने उसी मेजर के खिलाफ एक स्थानीय लड़की के साथ होटल में जाने के मामले में ‘कोर्ट मार्शल’ की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उस समय गोगोई एक लड़की के साथ होटल गया। वहां स्वागत कक्ष में कमरा देने के मुद्दे पर उसका और वहां रिसेप्शन पर मौजूद महिला के बीच गरमा गरमी हो गई । उसे दो अभियोगों में दोषी पाया गया। पहला एक स्थानीय लड़की से दोस्ती करना जबकि सेना के सभी जवानों और अफसरों को ऐसा न करने की हिदायत है। दूसरे ऐसा उस समय करना जब आप ‘आपरेशनल एरिया’ में डयूटी पर हों। मज़ेदार बात यह है कि ‘मानव ढाल’ मामले में सेना की जांच अभी चल रही है। पर अब जबकि उसे सेना प्रमुख ने उसी कार्य के लिए मेडल दे दिया है, उस जांच का कोई अर्थ नही रह जाता। जांच में इस बात का कोई जि़क्र नहीं है कि गागोई एक नाबालिग लड़की को होटल में क्यों लाया, पर यह ज़रूरी है कि उसने अपने ‘कमांडिंग ऑफिसर’ को बिना बताए कैंप क्यों छोड़ा।
कुछ लोग इसे ‘आदर्श न्याय के तौर पर देख रहे हैं ।
आज दक्षिणपंथियों के बीच पूरी चुप्पी है । ये वे लोग हैं जो गोगोई के मानवाधिकार उल्लंघन पर खुशियां मना रहे थे। वे उस समय भी उसकी तरफदारी कर रहे थे जब वह एक नाबालिग लड़की को होटल ले गया था। यह बात निघट राठर ने सोशल मीडिया पर लिखी। उसने लिखा कि अब जबकि सेना की अदालत ने मेजर गोगोई के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी है, तो उन लोगों की जुबान पर ताला लगा गया है। अब वे फंस गए हैं कि क्या करें। अब न तो वे सेना पर उंगली उठा सकते हैं और न ही उसके खिलाफ बोल सकते हैं जिसकी तारीफ में वे आसमान सिर पर उठाए हुए थे।
मानव ढाल बना फारूक डार खुद इसे खुदा का न्याय मानता है। उसने लिखा,”मेरे लिए न्याय हो गया और यह न्याय खुदा ने किया है। उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती’’। डार ने तहलका को बताया। उसने कहा मैंने कई बार घाटी में बंद की ‘काल’ का विरोध करके वोट डाले पर उन्होंने मुझे ही पत्थरबाज बना कर जीप से बांधा और मेरी पिटाई की।
इसी प्रकार उस नाबालिग लड़की जिसे वह लेकर होटल गया था के पिता ने मेजर को दोषी करार देने पर संतोष जताया और सेना प्रमुख से अपना वह वादा निभाने की गुजारिश की है जिसमें उन्होंने दोषी को मिसाल योग्य सज़ा देने का आश्वासन दिया था। उसने कहा कि इस घटना से हमारे परिवार ने बहुत कुछ भोगा है। हम फिर से अपना सामान्य जीवन जीने का प्रयास कर रहे हैं। उसने पत्रकारों से कहा कि यदि उस अफसर को अपने किए की सही सज़ा मिले तो हमे पूरा संतोष मिलेगा।
इसके साथ ही लड़की के पिता ने समीर अहमद मल्ला को भी सज़ा देने की मांग ही है। समीर ही वह आदमी था जो किसी न किसी बहाने गोगोई को लड़की के घर ले गया था और उस समय भी मेजर के साथ था जब उसने होटल के स्टॉफ के साथ झगड़ा किया था। लड़की के पिता ने कहा कि वह भी दोषी है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता।
यह गऱीब परिवार जो एक गांव में रहता है, उस घटना के बाद से सामाजिक तौर पर घुटन में रह रहा है। उस लड़की को दूर किसी रिश्तेदार के यहां भेज दिया गया है। हालंाकि उस लड़की ने अदालत में दर्ज बयान में कहा है कि वह अपनी मर्जी से मेजर के साथ होटल गई थी।
कश्मीर में लोग सेना का दोहरा व्यवहार देख रहे हैं। एक अपने अफसर के प्रति और दूसरा आम कश्मीरी के प्रति। वे कहते हैं कि जब कोई फौजी अफसर किसी नागरिक के साथ ज़्यादती करता है तो सेना उसे अनदेखी कर देती है और उस अफसर को ईनाम तक दिया जाता है । उसकी कार्रवाई सही साबित की जाती है। एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि जब कहीं सेना के साथ कोई बात हो जाए तो तुरंत कार्रवाई की जाती है। इसी कारण मेजर के होटल मामले को तुरंत हल कर लिया गया पर मानव ढाल का मामला आज तक लटका हुआ है।
मेजर अदित्य कुमार को शौर्य चक्र दिए जाने पर भी काफी रोष है क्यों वह कभी दुश्मन से सीधे तौर पर लड़ा ही नहीं। इस साल जनवरी में मेजर कुमार की यूनिट ने शोपियां में पत्थरबाजों पर गोली चलाई थी जिसमें तीन नागरिक मारे गए थे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अदित्य सहित सेना की टुकड़ी के खिलाफ धारा 302 (हत्या) और धारा 307 (हत्या की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया, लेकिन जब कुमार के पिता लैफ्टिनेंट कर्नल कर्मवीर सिंह ‘एफआरआई’ को खत्म करवाने सुप्रीम कोर्ट चले गए तो अदालत ने इस मामले में पुलिस की काईवाई पर रोक लगा दी। फिर कुमार को पुरस्कार दिए जाने पर यहां लोगों में गुस्सा भड़क गया।
नसीर का कहना है कि कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन पर केंद्र सरकार की नीतियां कश्मीरियों को देश से ओर दूर कर देगी और इससे और अधिक हिंसा हो सकती है।