मुर्शिदाबाद में राजनीतिक हलचल: एक विधायक ने कैसे भड़काई बंगाल की ताज़ा सियासी आग

पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों तेज़ी से बदल रही है। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच टकराव और तीखा हो रहा है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिसंबर दौरे और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की फरवरी 2026 में प्रस्तावित यात्रा ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है। विश्लेषण: जयंता घोषाल

भले ही भाजपा का संगठन राज्य में अपेक्षाकृत कमजोर है, लेकिन पार्टी आक्रामक मोड में है। उधर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद को राष्ट्रीय स्तर की रणनीतिकार के रूप में पेश कर रही हैं, जो जटिल राजनीतिक समीकरणों को साधने में सक्षम हैं।

विवाद की शुरुआत टीएमसी विधायक हुमायूँ कबीर द्वारा मुर्शिदाबाद के भरतपुर में “बाबरी मस्जिद” निर्माण का प्रस्ताव रखने से हुई। भाजपा ने इसे हिंदू–मुस्लिम ध्रुवीकरण का बड़ा मुद्दा बना लिया है।
कबीर भाजपा से जुड़े नहीं हैं, लेकिन उनके बयान और पहल भाजपा के लिए राजनीतिक हथियार बन चुके हैं। टीएमसी के विधायक होने के बावजूद वे पार्टी लाइन से लगातार दूर जाते नजर आ रहे हैं।

हुमायूँ कबीर: महत्वाकांक्षा और विवाद

पूर्व कांग्रेस नेता कबीर लंबे समय से मुर्शिदाबाद के मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश करते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बेलडांगा में मस्जिद की मांग पुराने सांप्रदायिक तनावों को फिर से उभारने की रणनीति का हिस्सा है।

टीएमसी ने पहले उन्हें अधीर रंजन चौधरी का मुकाबला करने के लिए इस्तेमाल किया था, लेकिन अब कबीर कांग्रेस के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्रों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
ममता बनर्जी और पार्टी नेतृत्व ने उन्हें कई बार सचेत किया। अभिषेक बनर्जी और बॉबी हाकिम की नाराज़गी के बाद ममता ने 2026 के चुनाव में उन्हें टिकट न देने का फैसला कर लिया।
इसके बाद कबीर ने ओवैसी से समर्थन लेने की कोशिश की, लेकिन AIMIM प्रमुख ने अब तक स्पष्ट रुख नहीं दिखाया है।

मुस्लिम राजनीति के भीतर खिंचाव

क्या भाजपा मुर्शिदाबाद मुद्दे को पूरे बंगाल में चुनावी मुद्दा बना सकती है? मुझे नहीं लगता। क्योंकि दीदी की रणनीति लोगों से सीधे संपर्क करना है और अपने ज़िला-वार संगठन के ज़रिए वह एक ऐसा अभियान चला रही हैं जिससे यह साबित हो सके कि भाजपा की रणनीति मुस्लिम वोटों को तोड़ने की साज़िश है। यहां तक ​​कि टीएमसी भी प्रचार कर रही है कि भाजपा जानबूझकर घटनाएं करवा रही है, कानून-व्यवस्था बिगाड़ रही है, ताकि सत्ता हथियाने के बाद भाजपा बंगाल चुनाव लड़ सके। मुसलमान ज़्यादा एकजुट हैं। उत्तरी ब्लॉक के मुसलमान हुमायूं के साथ नहीं बल्कि टीएमसी के साथ जा सकते हैं।

बंगाल की करीब 30% मुस्लिम आबादी में अधिकांश बंगाली-भाषी हैं, जबकि केवल 2% उर्दूभाषी हैं।
ओवैसी पहले प्रत्यक्ष प्रवेश की कोशिश कर चुके हैं लेकिन अब आईएसएफ के माध्यम से काम कर रहे हैं, जो खुद आंतरिक मतभेदों से जूझ रही है।
कबीर इन्हीं दरारों में नई जमीन तलाशना चाहते हैं, लेकिन कोलकाता के वरिष्ठ मुस्लिम नेतृत्व—बॉबी हाकिम, अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख इमरान और टीएमसी सांसद अहमद हसन—ने उन्हें खुला समर्थन देने से इनकार कर दिया है।

भाजपा की चुनौतियाँ और SIR मॉडल

भाजपा लंबे समय से SIR (सिक्योरिटी–आइडेंटिटी–राइट्स) मॉडल को बंगाल में लागू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन बिहार में सफल यह फार्मूला यहां उतना कारगर नहीं रहा है।
सीमा से सटे जिलों—मालदा, बोंगांव और उत्तर 24 परगना—में हिंदू वोटर भी एकजुट नहीं हैं। मतुआ और राजबंशी जैसे समुदाय संगठित ब्लॉक नहीं बन पाते।

भाजपा अब SIR के दो मुद्दों पर जोर दे रही है:
1. मतदाता सूची में ‘बोगस वोट’ का आरोप
2. घुसपैठ का मुद्दा, जिसे आरएसएस वर्षों से उठाता आया है।

मुर्शिदाबाद का मस्जिद विवाद, भाजपा के लिए घुसपैठ और हिंदू सुरक्षा नैरेटिव को जोड़ने का नया अवसर बन गया है।

शासन बनाम कल्याणकारी राजनीति

भाजपा, ममता सरकार पर कुप्रशासन के आरोपों पर आक्रमण तेज कर रही है।
लेकिन स्वास्थ साथी और लक्ष्मी भंडार जैसी योजनाएँ टीएमसी की लोकप्रियता की रीढ़ बनी हुई हैं और चुनाव के दौरान और विस्तार की संभावना है।
भाजपा का कल्याण कार्यक्रमों को लेकर वैचारिक संकोच उसे नुकसान पहुँचा सकता है, जबकि भाजपा शासित राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी खुद कल्याण योजनाओं को प्रमुखता देते हैं।

शहरी मध्यम वर्ग में असंतोष होने के बावजूद भाजपा का कमजोर बूथ ढांचा उसे राजनीतिक लाभ में नहीं बदल पा रहा। इसी कमी को पूरा करने के लिए पार्टी ध्रुवीकरण पर और अधिक निर्भर होती दिख रही है—जहाँ कबीर और मुर्शिदाबाद विवाद केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।

मोदी–भागवत का दौरा

मोदी के प्रस्तावित दौरे और फरवरी में भागवत की यात्रा, भाजपा-आरएसएस के नए अभियान की ओर संकेत है। हाल ही में हुए बड़े धार्मिक आयोजनों—जैसे “गीता पाठ”, जिसमें लाखों लोगों के शामिल होने का दावा किया गया—से पार्टी की सांस्कृतिक सक्रियता में वृद्धि दिखती है।

इसके जवाब में टीएमसी बंगाल की सांस्कृतिक बहुलता पर जोर दे रही है, यह कहते हुए कि भाजपा सांप्रदायिक राजनीति “बाहरी” तौर पर थोप रही है। टीएमसी बंगाल के बौद्धिक इतिहास—राजा राममोहन राय से विवेकानंद तक—का हवाला देते हुए भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का मुकाबला कर रही है।