100 रुपये लीटर पेट्रोल और 28 फ़ीसदी तक जीएसटी वसूली के बावाजूद उखड़ती साँसों को थामने में नाकाम मोदी सरकार
केंद्र सरकार की ग़लत प्राथमिकताओं की वजह से कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने कहर बरपा दिया है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं और व्यवस्था पर केंद्र की अपंगता उजागर हो गयी है। इसके साथ ही समुचित इलाज और ऑक्सीजन न मिलने के चलते रोज़ाना हज़ारों लोगों को जान गँवानी पड़ रही है। कोरोना के इस दंश से निपटने, तंत्र की ख़ामियों और विशेषज्ञों की राय पर आधारितअमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट :-
देश में संक्रमित मरीज़ोंकी संख्या बढ़ रही है। हर दिन कोरोना संक्रमण के हज़ारों नये मामले आ रहे हैं। अस्पतालों में न तो बेड की व्यवस्था और न ही वेंटिलर, न ऑक्सीजन की ठीक से आपूर्ति, न दवाओं की समुचित व्यवस्था। हट्टे-कट्टे नौजवान लोग बेहतर इलाज न मिलने के चलते मौत के मुँह में समा रहे हैं। सन्मार्ग अख़बार के दिल्ली कार्यालय के संपादकीय सहयोगी सोनू कुमार केशव की इसी तरह मृत्यु होना इसका बड़ा उदाहरण है। मेडिकल ऑक्सीजन की शहरों में तक कमी होने के चलते श्मशान के बाहर शवों की लम्बी $कतारें देखकर अव्यवस्था के आलम को समझा जा सकता है। अन्तिम संस्कार के लिए लकडिय़ों की कमी, $कब्रिस्तानों में जगह का भरना और यहाँ तक शवों को श्मशान तक पहुँचाने की भी व्यवस्था नहीं हो पा रही। इससे ज़्यादा अफ़सोस और शर्म की बात क्या हो सकती है कि 100 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल बेचने और 28 फ़ीसदी तक जीएसटी वसूलने के बावाजूद लोगों की उखड़ती साँसों को थामने में मोदी सरकार नाकाम साबित हो रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमित मामलों और मौतों की वास्तविक संख्या भारत के आधिकारिक रिकॉर्ड की तुलना में कहीं ज़्यादा है। भारत जो दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है, कोविड-19 की घातक दूसरी लहर पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त ख़ुराक की व्यवस्था करने के लिए ख़ुद संघर्षरत है। अब जिस समय राष्ट्र तकलीफ़ के दौर से उबरने की कोशिश कर रहा है, विशेषज्ञों ने वायरस की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर फिर से चिन्ता में डाल दिया है। सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन के विचारों को ध्यान में रखते हुए कि कोविड-19 की तीसरी लहर के दौरान, जिसका फ़िलहाल समय निश्चित नहीं है, उसमें ख़ासकर 12-15 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को ज़्यादा प्रभावित करने की बात कही जा रही है। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सभी को समय से पहले इंतज़ाम पुख़्ता करने के लिए कहा है। हालाँकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बच्चों के लिए टीका कब तक उपलब्ध होगा?
भारत में शहरों से लेकर ग्रामीण इला$के तक कोविड-19 का पाँव पसारना विचलित करने वाला है। ग्रामीणों में तेज़ी से कोरोना वायरस फैलने ने विशेषज्ञों को चिन्तित कर दिया है; क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति वहाँ और भी ख़राब है। बिहार के में बक्सर के पास गंगा नदी में 150 से अधिक शव मिले। अन्य नदियों में भी लोगों ने सम्भवत: संक्रमित शवों को बहा दिया हो। लोगों का अपने ही लोगों का रीति-रिवाज के साथ अन्तिम संस्कार तक न कर पाना बेहद दु:खद और शर्मनाक है। यह पूरी व्यवस्था पर गम्भीर तमाचा है।
विपक्ष ने देश में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बेहद गम्भीर हालात को देखने के बावजूद 20,000 करोड़ रुपये की सेंट्रल विस्टा परियोजना को जारी रखने के लिए सरकार को दोषी ठहराया है। इस प्रोजेक्ट में प्रधानमंत्री के लिए आलीशान आवास बनने जा रहा है। यह सब उस दौर में हो रहा है, जब देश के कई राज्य तमाम वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे हैं और अपने लोगों को टीकाकरण करना चाह रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दोनों ने केंद्रीय बजट में टीकाकरण कार्यक्रम के लिए 35,000 करोड़ रुपये के आवंटन पर सवाल किया है? चिकित्सा सुविधा के लिए उखड़ती साँसों से अपनों को बचाने के लिए लोगों को अस्पतालों में, सडक़ों पर, वाहनों में इंतज़ार करना पड़ रहा है, ऐसे दृश्य देखकर कोई भी विचलित और हैरान हो सकता है। लोगों के दिल टूट रहे हैं, पर कुछ कर नहीं पा रहे हैं। बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं। लगता है जैसे सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। इसमें हमें बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि सिस्टम विफल नहीं हुआ है, बल्कि मोदी सरकार रचनात्मक रूप से भारत की कई शक्तियों और संसाधनों का उपयोग करने में नाकाम रही है। सोनिया गाँधी ने ऑनलाइन बैठक के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व अपंग हाथों में है, जिसकी अपनी प्रजा के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। मोदी सरकार ने हमारे देश के लोगों को विफल कर दिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है- ‘सरकार अपने ही देश के लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समय पर पर्याप्त टीकों के उत्पादन करने में विफल रही। इसके बजाय उसने जानबूझकर ग़ैर-जरूरी परियोजनाओं के लिए हज़ारों करोड़ रुपये आवंटित कर दिये, जिनका जनता की भलाई से कोई लेना-देना नहीं है। सोनिया गाँधी की अपील के बावजूद सर्वदलीय बैठक न बुलाये जाने के बाद उन्होंने अपने नेताओं के साथ बातचीत के दौरान ये बातें कहीं। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि जब वे नयी संसद और अपने लिए भवन बनवाने के लिए 20,000 रुपये ख़र्च करने पर तुले हैं, तो देश में कोरोना टीकाकरण पर 30,000 करोड़ रुपये का आवंटन क्यों नहीं कर रहे हैं? उन्होंने पूछा कि कहाँ है पीएम केयर्स फंड का पैसा?
भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के टीकों के मूल्यों में भी राज्यों के लिए अलग-अलग दरें तय की गयीं। यहाँ केंद्र सरकार को सस्ती- 150 रुपये प्रति खु़राक मिल रही है, वहीं अब यह राज्यों के लिए महँगी- 400 रुपये प्रति ख़ुराक ख़रीदने को मजबूर किया जा रहा है और यह सब राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने टीकाकरण के तीसरे चरण के दौरान टीकों के दामों में अन्तर को मिटाने के लिए देश की सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान भी लिया है। समस्या यह थी कि अप्रैल तक केंद्र सरकार ने एसआईआई और भारत बायोटेक से टीके ख़रीदे और राज्यों को मुफ़्त में वितरित किये। बाद में उसने नीति को संशोधित किया और निर्माताओं को तीसरे चरण के टीकाकरण के लिए राज्यों और निजी संस्थाओं को कुल निर्मित टीकों का 50 फ़ीसदी आपूर्ति करने की अनुमति दी गयी, जिसके तहत 18-44 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को पहली मई से कवर किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफ़नामे में पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि राज्यों को वैक्सीन की क़ीमतों पर सौदेबाज़ी करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। पश्चिम बंगाल सरकार ने तर्क दिया कि टीके के लिए धन आवंटित करने के लिए अगर बाध्य किया जाएगा, तो इससे पहले से चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था प्रभावित होगी। ममता बनर्जी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े दोनों ने टीकों और मेडिकल ऑक्सीजन पर जीएसटी छूट देने की माँग की। इसके बरअक्स वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस क़दम का बचाव करते हुए कहा कि इससे कम्पनियों को बाद में छूट का दावा करने की अनुमति मिलेगी और लोगों को फा़यदा नहीं होगा और वे सीधे उपभोक्ताओं से पूरी की़मत लेंगी। जैसा कि वैक्सीन नीति को सर्वोच्च न्यायालय की जाँच के तहत बनाया गया था और केंद्र ने अदालत को बता दिया है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
वैश्विक महामारी के सन्दर्भ में यहाँ राष्ट्र की प्रतिक्रिया और रणनीति पूरी तरह से विशेषज्ञ चिकित्सा और वैज्ञानिक राय से प्रेरित होती है, वहाँ पर न्यायिक हस्तक्षेप के लिए बहुत कम जगह होती है। इसके परिणाम स्वरूप किसी भी विशेषज्ञ की सलाह या प्रशासनिक अनुभव की ग़ैर-मौजूदगी में डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और कार्यकारी को समाधान खोजने में बहुत कम अहमियत मिलती है। केंद्र सरकार ने कहा कि टीकों का मूल्य निर्धारण देश भर में न केवल उचित है बल्कि दो वैक्सीन कम्पनियों के साथ सरकार की अनुनय है। जबकि केंद्र ने स्थिति से निपटने के लिए संघर्ष किया। विशेषज्ञों ने इस पर बहस की कि क्या यह कोरोना वायरस ब्रिटिश वैरिएंट का सामना कर सकेगा? जिसका कई देश सामना कर रहे थे। उससे भी कहीं ज़्यादा भयावह भारतीय वैरिएंट सामने आ गया, जो देशभर में कहर बरपाने लगा। इतना ही नहीं, कई पड़ोसी देशों के साथ ही अन्य तमाम देश भी इस दोहरा उत्परिवर्ती (डबल म्यूटेंट) की चपेट में आ गये।
अधिकतर विशेषज्ञ सिर्फ़ इस बात पर सहमत हो सकते थे कि कोविड-19 यहाँ आने के बाद जल्द ख़त्म होने वाला नहीं है और यह आने वाले समय में पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बना रहेगा। इस पृष्ठभूमि में देखा जाए, तो बड़ी जनसंख्या की सुरक्षा का एकमात्र तरी$का सभी लोगों का टीकाकरण करना था, लेकिन देश अब भी वैक्सीन की कमी का सामना कर रहा है। एक ओर केंद्र ने दावा किया कि अब तक 16 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है। लेकिन भारत की 130 करोड़ आबादी को देखते हुए यह अभी नाकाफ़ी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जिस गति से टीके लगाये जा रहे हैं। अगर पूरी आबादी को ऐसे ही टीके लगाये गये, तो कई साल का समय लग सकता है। नये बनाये गये पोर्टल कोविन भी पूरी तरह अपडेट नहीं है और उसकी गति पर देश की शीर्ष अदालत हस्तक्षेप कर सवालिया निशान लगा दिया। यहाँ तक कि कोविडन ऐप को पंजीकरण के दौरान 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए वैक्सीन की तारीख़ और स्लिप हासिल करने के लिए तकनीकी गड़बडिय़ों का भी सामना करना पड़ा। क्योंकि टीका केंद्रों को 45 साल से अधिक के लोगों को टीका लगाने के लिए पहले ही ख़ुराक की कमी का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में कई राज्यों ने पहली मई से सभी वयस्कों का टीकाकरण शुरू नहीं किया।
इस भ्रम को तब और हवा मिल गयी जब एसआईआई के प्रबन्ध निदेशक अदार पूनावाला लंदन के लिए विमान से निकल लिए और वहाँ जाकर उन्होंने बयान दिया कि भारत में उन्हें धमकियाँ मिल रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा वाई-श्रेणी की सुरक्षा कवर हासिल करने वाले पूनावाला ने देश छोड़ दिया। बाद में उन्होंने द टाइम्स, लंदन को दिये साक्षात्कार में कहा कि उन्हें सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों से टीके की आपूर्ति करने और मुख्यमंत्रियों और व्यापारिक नेताओं को शामिल करने की धमकी मिल रही है। पूनावाला ने कहा- ‘ख़तरे को समझना जरूरी है। उम्मीद और आक्रामकता का स्तर वास्तव में अभूतपूर्व है। यह बहुत ही भयानक है। सभी को लगता है कि उन्हें टीका मिलना चाहिए। वे समझ नहीं सकते कि किसी और को उनसे पहले क्यों मिलना चाहिए?’ पूनावाला ने कहा कि उनसे कहा गया है कि अगर आप हमें यह टीका नहीं देते हैं, तो यह अच्छा नहीं होने वाला है। यह कोई बेईमानी नहीं है, बल्कि बोलने का अंदाज है। इसका निहितार्थ यह है कि अगर मैं इसका पालन नहीं करता, तो वे क्या कर सकते हैं? जब तक हम उनकी माँगों को नहीं मानते, तो वे हमें कुछ नहीं करने देंगे। दिलचस्प बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार की ख़ामियों को उजागर करते हुए आलोचनाएँ कीं, साथ ही उसने अक्षम प्रणाली को उजागर किया। केंद्र ने दावा किया कि स्थिति नियंत्रण में थी और सरकार की सकारात्मक छवि बनाने के लिए अपने नौकरशाहों के लिए बाक़ायदा कार्यशालाओं का आयोजन किया। इससे साबित होता है कि सरकार की प्राथमिकता में कुछ और ही है। मोदी सरकार ने उत्तराखण्ड के हरिद्वार में कुम्भ मेले को रद्द करने की माँग को नजरअंदाज कर दिया, यहाँ महामारी के दौरान सरकारी आँकड़ों में क़रीब 70 लाख से ज़्यादा लोगों की भीड़ जमा हुई। जब हालात बेक़ाबू हो गये, तो बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भक्तों से प्रतीकात्मक मेला मनाने की अपील करनी पड़ी। विशेषज्ञों ने कहा था कि कुम्भ मेला कोविड-19 के लिए एक सुपर स्प्रेडर ईवेंट बन सकता है और ऐसा ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर चुनावी रैलियों में उमड़ती भीड़ में भी यह सम्भव है।
उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय चुनावों को टालने के लिए तमाम सुझावों और यहाँ तक कि उच्च न्यायालय में याचिकाएँ दायर किये जाने के बावजूद उनको ख़ारिज कर दिया गया और सरकार ने चुनाव कराने का फ़ैसला किया। राज्य सरकार द्वारा इस क़दम का विरोध करने के बावजूद पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव आठ चरणों में कराये जाने की न सि$र्फ चुनाव आयोग ने घोषणा का समर्थन किया, बल्कि आख़री चरणों में हालात ख़राब होने के बाद भी आठ ही चरण में चुनाव पूरे कराये गये।
सरकार प्रतिदिन मौतों की संख्या में इज़ाफ़ा होने के बावजूद संक्रमितों की संख्या और ठीक होने वालों की तादाद को बताती रही या कहें कि दबाती रही। लेकिन जब मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज मरने लगे तो केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि ऑक्सीजन की देश में कोई कमी नहीं है, केवल वितरण में अड़चनें हैं। केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच बार-बार लगने वाले ऐसे आरोपों और रोज वार-पलटवार का दौर चला। हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया और आख़िर में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सख़्त लहजे में आदेश दिया कि किसी भी क़ीमत पर दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देनी ही होगी। बाद में शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय टास्क फोर्स की स्थापना की, जिसमें देशव्यापी ऑक्सीजन की आपूर्ति की निगरानी और नियमन करने के लिए जाने-माने डॉक्टर्स और विशेषज्ञों को शामिल किया। इससे साबित होता है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय निर्देशों के बावजूद सिस्टम प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम नहीं था।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की पीठ ने टीकाकरण प्रक्रिया को तेज करने आवश्यकता पर जोर दिया और सुझाव दिया कि ऑक्सीजन ऑडिट के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाए, जबकि यह देखते हुए कि केंद्र सरकार के ऑक्सीजन फॉर्मूले में पूरी तरह से सुधार की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने तीसरी लहर के बारे में बताते हुए कहा कि जब बच्चा अस्पताल जाएगा, तो माँ और पिता को भी जाना होगा। इसीलिए लोगों के इस समूह को बचाने के लिए टीकाकरण जल्द पूरा करना होगा। हमें पहले से ही इसके लिए वैज्ञानिक तरी$के से योजना बनाने की जरूरत है, ताकि समय पर व्यवस्था की जा सके। अदालत ने सरकार से उन डॉक्टरों की सेवाओं का उपयोग करने की सम्भावना तलाशने का आग्रह किया, जो एमबीबीएस पूरा कर चुके हैं और पीजी पाठ्यक्रमों में दाख़िला लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दिल्ली के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति का मामला सुलझने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वादा किया कि शहर के सभी निवासियों को अगले तीन महीनों में मुफ़्त टीकाकरण किया जाएगा, बशर्ते राज्य सरकार को एसआईआई से हर महीने लगभग 85 लाख ख़ुराकें प्राप्त हो जाएँ। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी सेंट्रल विस्टा परियोजना को लेकर सरकार की खिंचाई की है। उन्होंने कहा कि इस दौर में सेंट्रल विस्टा आपराधिक अपव्यय है। केंद्र में लोगों के जीवन को बचाने की बजाय नया घर पाने के लिए अन्धा घमण्ड नहीं करना चाहिए। कांग्रेस नेता ने केंद्र से आग्रह किया कि वैज्ञानिक रूप से जीनोम अनुक्रमण के साथ-साथ इसके रोग पैटर्न का उपयोग करते हुए देश भर में कोरोना वायरस और इसके रूपों को ट्रैक करें। सभी नये म्यूटेशनों के ख़िलाफ़ सभी टीकों की प्रभावशीलता का आकलन करें। क्योंकि इनकी पहचान के बाद उनसे लडऩे में आसानी होगी। देश की पूरी आबादी का तेज़ी से टीकाकरण करें। पारदर्शी रहकर पूरी दुनिया को अपनेे निष्कर्षों के बारे में भी जानकारी दें।
राहुल के इस बयान के बाद केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी सामने आये और इसकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल ने सत्ता में होने पर सेंट्रल विस्टा विचार का समर्थन किया था। सेंट्रल विस्टा पर कांग्रेस का प्रवचन विचित्र है। पुरी ने ट्वीट किया कि सेंट्रल विस्टा की लागत कई वर्षों में करीब 20,000 करोड़ रुपये है। भारत सरकार ने टीकाकरण के लिए उस राशि को लगभग दो बार आवंटित किया है। इस वर्ष के लिए भारत का हेल्थकेयर बजट तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक था। हम अपनी प्राथमिकताओं को जानते हैं। नये संसद भवन के अलावा सेंट्रल विस्टा का पुनर्विकास राष्ट्र के शक्ति गलियारे में एक सामान्य केंद्रीय सचिवालय की परिकल्पना को चरितार्थ करता है, जो राष्ट्रपति भवन से तीन किलोमीटर लम्बे राजपथ को इंडिया गेट, नये प्रधानमंत्री निवास और प्रधानमंत्री कार्यालय और एक नये उप राष्ट्रपति भवन के रूप में फिर से स्थापित करने वाला है।
यह मामला शीर्ष अदालत में चला गया था, जिसने कुछ सवालों के साथ परियोजना के पक्ष में जनवरी में फ़ैसला सुनाया था। मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा और इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की माँग की गयी। फिर शीर्ष अदालत ने इसे हाईकोर्ट में सुनने के लिए कहा है। अब दिल्ली उच्च न्यायालय जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को जारी रखा जाए या नहीं?
पुरी यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि कांग्रेस पाखण्ड पर नहीं रुकती है। उनका शर्मनाक दोहरा चरित्र सामने आया गया है। यूपीए शासन के दौरान कांग्रेस नेताओं ने एक नये संसद भवन की आवश्यकता के बारे में लिखा था। सन् 2012 में शहरी विकास मंत्रालय को उसी के लिए एक पत्र लिखा था और यह उनके पास है। और यही लोग अब इसी परियोजना का विरोध कर रहे हैं। पुरी ने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी महाराष्ट्र में एक एमएलए आवास का निर्माण कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में नये विधानसभा भवन का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर वह सब ठीक है, तो सेंट्रल विस्टा के साथ क्या समस्या है? इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र को याद दिलाया कि वह सेंट्रल विस्टा को एक ‘आवश्यक सेवा’ के रूप में मानकार काम को अंजाम दिया जा रहा है, जबकि पूरे देश में ऑक्सीजन की $िकल्लत है और लोग जान गँवा रहे हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
कोरोना वायरस से बचाव के लिए या संक्रमण होने पर क्या करें? इस बारे में ‘तहलका’ ने स्वास्थ्य निदेशालय दिल्ली सरकार (स्कूल स्वास्थ्य योजना) के अंतर्गत गीता कॉलोनी में कार्यरत वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अनूप नाथ से बातचीत की। मेडिकल की कई बड़ी डिग्रियों के धारक और लम्बे चिकित्सीय अनुभव वाले डॉक्टर अनूप नाथ सरकारी सेवा के अलावा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य, आस्ट्रेलियन ट्रेडीशनल मेडिसियन सोसायटी के मान्यता प्राप्त सदस्य, माँ आद्यशक्ति हॉलिस्टिक हेल्थ ऐंड केयर फाउण्डेशन के संस्थापक भी हैं।
डॉक्टर अनूप नाथ कहते हैं- ‘कोरोना वायरस से ही नहीं, किसी भी बीमारी से बचने के लिए स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। इसके लिए अगर आपके पास कोई शारीरिक मेहनत का काम नहीं है, तो व्यायाम, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, योग आदि करते रहना चाहिए। थोड़ी देर पेट के बल लेट जाना चाहिए। क्योंकि फेफड़ों के पिछले हिस्से का काम करना बहुत जरूरी है, जो अक्सर कम काम करता है। आपने देखा होगा कि मजदूरों और किसानों को, यदि वह किसी बीमारी से पीडि़त न हों; तो कोरोना नहीं हो रहा है। इसकी सीधी-सी वजह यही है कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मेहनत करते रहने के कारण अच्छी है। अगर कोरोना वायरस का संक्रमण किसी को हो जाए, तो उसे सबसे पहले ख़ुद ही एकांतवास कर लेना चाहिए। दूसरों से दूर रहना चाहिए। दरअसल कोरोना वायरस को आरएनए वायरस कहते हैं, जो एक तरह का विषाणु है और संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर दूसरे लोगों में भी फैल जाता है। यह आरएनए वायरस कोशिकाओं में पहुँच जाता है और उनमें अपने तरी$के से तेज़ी से वृद्धि कर लेता है, जिसे रोकने के साथ-साथ शरीर से विदा करना जरूरी है। इसके लिए धैर्य से काम लेने, दवाएँ लेने और स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है। कोरोना वायरस को दिल और दिमाग़ में बसा लेना भी ठीक नहीं। बस इसे शरीर में प्रवेश करने से रोकना जरूरी है। कोरोना वायरस श्वसन तंत्र को सबसे ज़्यादा संक्रमित करता है, जिसमें फेंफड़े ज़्यादा प्रभावित होते हैं। क्योंकि इससे फेंफड़ों की और फिर शरीर की कोशिकाओं में साइटोक्रोम स्ट्रोम होता है, जिससेऊतकों को बहुत नुक़सान है।’
डॉक्टर अनूप कहते हैं- ‘कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर डॉक्टर की सलाह देखरेख में इलाज और ऑक्सीजन बहुत जरूरी है। कोरोना संक्रमण ख़त्म करने के लिए डॉक्टर आईवर मैक्टिन देते हैं, जो कोरोना वायरस को कोशिकाओं के अन्दर जाने से रोकती है। यह उसी को देनी चाहिए, जिसे कोरोना वायरस हो। इसके अलावा डॉक्सीसाइक्लिन और ऐजीथ्रोमाइसिन दवाएँ भी वायरस से लडऩे में मदद करती हैं और निमोनिया आदि से रक्षा करती हैं। ध्यान यह रखा जाना चाहिए कि जब स्टेरॉयड के जरिये दवाएँ शुरू होती हैं, तो मरीज का शुगर बढ़ जाता है, जिससे बीमारी जल्द ठीक होने में दिक़्क़त आती है। लेकिन इससे वायरस नष्ट हो जाता है। यही वजह है कि मरीज को पहले जैसी शक्ति हासिल करने में वक़्त लगता है।’
मास्क और सेनिटाइजर कहाँ तक उचित?
डॉक्टर नाथ का कहना हैं- ‘मास्क लगाना और सेनिटाइज करना तो जरूरी है। लेकिन हर समय नहीं। मास्क तभी लगाना चाहिए, जब आप बाहर जाएँ या किसी के सम्पर्क में आएँ। बाहर जाते समय मास्क के अलावा आँखों पर चश्मा भी लगाएँ और जब घर आएँ, तो मास्क हटाकर अच्छी तरह मुँह हाथ धो लें। मास्क को भी धो दें। और फिर घर में बिना मास्क के ही रहें। क्योंकि मास्क अधिक लगाने से भी शरीर के अन्दर ऑक्सीजन की कमी होती है, जिसके चलते फेफड़ों को ऑक्सीजन देने के लिए हृदय को अधिक काम करना पड़ेगा, जिससे धडक़नें बढ़ जाएँगी और इससे हृदयाघात (हार्ट अटैक), मस्तिष्काघात या पक्षाघात भी हो सकता है। सबसे ज़्यादा जरूरी है, प्रकृति ओर लौटना। इस महामारी ने संकेत दे दिया है कि अब हमें कृत्रिम जीवनशैली जीना छोडक़र प्राकृतिक या आयुर्वेदिक तरीके़ से जीना चाहिए। खानपान पर ध्यान रखने के साथ-साथ शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए।’मुझसे कहा गया है कि अगर आप हमें यह टीका नहीं देते हैं, तो यह अच्छा नहीं होने वाला है। यह कोई बेईमानी नहीं है, बल्कि बोलने का अंदाज है। इसका निहितार्थ यह है कि अगर मैं इसका पालन नहीं करता, तो वे क्या कर सकते हैं? जब तक हम उनकी माँगों को नहीं मानते, तो वे हमें कुछ नहीं करने देंगे।’’
विशेषज्ञों ने चेताया
विश्व स्तर पर सम्मानित स्वास्थ्य पत्रिका ‘लैंसेट’ ने कहा कि संकट पर क़ाबू पाना भारत की प्रधानमंत्री मोदी सरकार पर निर्भर करेगा कि वह अपनी ग़लतियों को स्वीकारती है या नहीं। उसने लिखा कि संकट के इस दौर में सच्चाई का उजागर करने वालों पर मुक़दमा दर्ज करना और प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना को दबाने का काम करना एक अक्षम्य अपराध है। भारत ने कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलता को नाकाम कर दिया है। लैंसेट ने संपादकीय में लिखा कि अप्रैल तक सरकार की तरफ़ से बनाये गये कोविड-19 टास्क फोर्स की महीनों तक कोई बैठक तक नहीं हुई। इससे साबित होता है कि भारत को इस लड़ाई को लडऩे के लिए नये सिरे से काम करना होगा; क्योंकि संकट लगातार बढ़ रहा है।
सफलता सरकार के उस प्रयास की पर निर्भर करेगी कि वह स्वीकारे कि अपनी ग़लतियों के लिए ज़िम्मेदार है। विज्ञान को केंद्र में रखकर ज़िम्मेदार नेतृत्व और पारदर्शिता के जरिये ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को लागू किया जा सकता है। मेडिकल जर्नल के अनुसार, केंद्र इस बात का प्रचार कर रहा रहा था कि देश ने कई महीनों तक कम मामलों के बाद कोविड-19 को हरा दिया। हालाँकि विशेषज्ञ महामारी की दूसरी लहर के बारे में लगातार चेतावनी दे रहे थे।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कोविड-19 के मामलों की दूसरी लहर के बारे में मार्च की शुरुआत में ही घोषणा कर दी थी कि भारत में इस महामारी का यह एंडगेम होगा। लैंसेट ने लिखा कि सुपर-स्प्रेडर कार्यक्रमों के जोखिमों के बारे में चेतावनी देने के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजनों के होने देने की न सि$र्फ अनुमति दी, बल्कि कोविड-19 के तमाम उपायों की ख़ुद धज्जियाँ उड़ाते हुए केंद्रीय मंत्री भी चुनावी रैलियों में लाखों के हुजूम के बीच वोट माँगते नजर आये। टीकाकरण नीति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए पत्रिका ने लिखा कि केंद्र ने राज्यों के साथ नीति में बदलाव करने के लिए काई चर्चा तक नहीं की। लैंसेट ने कहा कि कई बार सरकार ने महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने की तुलना में ट्विटर पर आलोचना को हटाने के लिए कहीं ज़्यादा तत्परता दिखायी।
इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन का अनुमान है कि भारत में 01 अगस्त तक कोविड-19 से 10 लाख लोगों की मौत हो जाएगी। यदि ऐसा होने वाला है, तो इसके लिए सरकार ख़ुद इस तबाही की ज़िम्मेदार होगी। देश में डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी महामारी के केंद्र की महामारी के हैंडलिंग पर सवाल उठाते हुए ऐसे कामकाज और नजरिये को बेहद घातक बताया। आईएमए ने कहा कि सरकार ने स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा जारी सलाह और सुझावों पर ध्यान नहीं दिया और जमीनी ह$की$कत को समझे बिना एकतरफ़ा फ़ैसले लिये। सरकार द्वारा देशव्यापी तालाबंदी लागू करने का अनुरोध करने वाले कई विशेषज्ञों के उदाहरणों का हवाला देते हुए आईएमए ने कहा कि केंद्र सरकार ने इससे इन्कार किया। इसके बाद ही देश में कई दिनों तक चार लाख से अधिक रोज़ाना कोरोना मरीज़ोंके मामले सामने आये, जो दुनिया भर में आये मरीज़ोंके $करीब आधे से भी ज़्यादा रहे। आईएमए ने कहा कि 01 मई से पीएम के तीसरे चरण के टीकाकरण की घोषणा के बावजूद स्वास्थ्य मंत्रालय एक रोडमैप तैयार करने और स्टॉक की व्यवस्था करने में पूरी तरह नाकाम रहा। इससे अलग ही तरह की ऊहापोह की स्थिति पैदा हो गयी; क्योंकि राज्यों के पास लोगों को लगाने के लिए टीके ही नहीं पहुँचे।
टीकों के मूल्यों को तय करने में अन्तर पर कटाक्ष करते हुए मेडिकल एसोसिएशन ने चेचक और पोलियो के $िखलाफ़ पिछले टीकाकरण ड्राइव का हवाला दिया; जब देश भर में सभी के लिए मुफ़्त टीकाकरण सुनिश्चित किया गया। आईएमए ने कहा कि निजी अस्पतालों को उत्पादन की समस्याओं के कारण चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ा। एसोसिएशन ने कोरोना संक्रमण के नये मामलों और इससे होने वाली मौतों की संख्या के आधिकारिक आँकड़ों पर सवाल उठाया और आश्चर्य जताया कि सरकार वास्तविक कोविड-19 के आँकड़ों को क्यों छिपा रही है। आईएमए ने फ़र्ज़ी आरटी-पीसीआर नकारात्मक परीक्षणों का एक उदाहरण देते हुए कहा कि अधिकारी सीटी-स्कैन रिपोर्ट के जरिये मामलों को जोड़ नहीं रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने भी भारत को आगाह किया कि कोविड-19 का बी.1.617 वैरिएंट बेहद तेज़ी से फैलता है, जिससे इसके संक्रमण के पुराने मामले पीछे छूट जाते हैं। स्वामीनाथन ने कहा कि भारत में महामारी के कारण न केवल लोगों की संख्या संक्रमित हुई, बल्कि बड़ी तादाद में लोगों की मौतें भी हुईं। क्योंकि कोरोना वायरस का नया रूप तेज़ी से फैला और कहीं ज़्यादा ख़तरनाक तरीके़ से सामने आया। उन्होंने कहा कि यह रूप पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन गया है।
विदेशी मदद
भारत ने एक दशक के बाद कोई विदेशी सहायता स्वीकार की है। देश के संकट से निपटने में मदद के लिए लगभग 40 देश एक साथ आये। न केवल अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, यूएई, सिंगापुर जैसे देशों और कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जैसे- गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ऍमेजन ने भी भारत की मदद करने का फ़ैसला किया। यूनिसेफ ने आशंका व्यक्त की है कि देश में कोरोनो वायरस जिस गति से फैल रहा है, उससे दुनिया के लिए ख़तरा है। यह भी अपील की है कि कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में ज़्यादा-से-ज़्यादा देश भारत की मदद करें।
ऑक्सीजन जनरेटर, एन-95 मास्क, पीपीई किट और वेंटिलेटर से युक्त लगभग 3000 टन की सहायता सामग्री देश में पहुँची। लेकिन इसके वितरण पर सवाल उठे। इसके लिए भी कोई एसओपी नहीं थी, बताया गया कि एसओपी बनाने में क़रीब एक हफ़्ता लग गया। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि अमेरिका भारत को 100 मिलियन डॉलर की सहायता राशि भेज रहा है। हालाँकि कुछ अमेरिकी पत्रकारों ने सवाल किया कि क्या सहायता लाभार्थियों तक पहुँच रही है?
एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, फास्ट ट्रैक आधार पर विदेशी सहायता की शीघ्र निकासी के लिए उठाये गये क़दमों में सीमा शुल्क निकासी की उच्च प्राथमिकता में रखा गया है। नोडल अधिकारियों को महामारी सम्बन्धित आयातों में देरी, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निगरानी, पहुँच और सहायता केंद्र के लिए त्वरित व्यवस्था करने की बात कही गयी। इसके अलावा सीमा शुल्क, आईजीएसटी को माफ़ कर दिया गया था और व्यक्तिगत उपयोग ऑक्सीजन सांद्रता पर आईजीएसटी 28 फ़ीसदी से घटाकर 12 फ़ीसदी कर दिया गया।
राहुल गाँधी ने यहाँ पर फिर केंद्र पर तंज कसा कि अगर सरकार ने अपना होमवर्क किया होता, तो ची•ों इस दायरे में नहीं आतीं। देश की स्थिति पर भाजपा की पूर्व सहयोगी शिवसेना ने केंद्र पर ताना मारा कि आत्मनिर्भर भारत को अब अपने छोटे पड़ोसी देशों से मदद मिल रही है और भगवा पार्टी को यह याद दिलाना बनता है कि कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के बनाये बुनियादी ढाँचे के कारण ही इस महामारी से लडऩे में सक्षम है। बांग्लादेश ने 10,000 रेमडेसिवीर शीशियों को भेजा है, जबकि भूटान ने मेडिकल ऑक्सीजन भेजी है।
शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है- ‘आत्मनिर्भर भारत को नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका ने भी मदद की पेशकश की है। स्पष्ट शब्दों में कहें, तो भारत नेहरू-गाँधी परिवार द्वारा बनायी गयी प्रणाली पर जीवित है। कई ग़रीब देश भारत को मदद की पेशकश कर रहे हैं। इससे पहले पाकिस्तान, रवांडा और कांगो जैसे देश दूसरों की मदद लेते थे। लेकिन ग़लत नीतियों के कारण आज के शासक अब ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं।’ शिवसेना ने आश्चर्य व्यक्त किया कि किसी को भी अफ़सोस नहीं है कि भारत बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान जैसे देशों से सहायता स्वीकार कर रहा है। लेकिन केंद्र हज़ारों करोड़ वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर काम रोकने को तैयार नहीं है।