सरकारों द्वारा जनता को मुफ़्त सुविधाएँ देने को लेकर चार साल से छिड़ी राजनीतिक बहस अब ठंडी होती जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे मुफ़्त की रेवड़ी कहा था और जनता को इससे दूर रहने की सलाह दी थी। उस समय उनका इशारा दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा दिल्ली की जनता को दी जा रही मुफ़्त शिक्षा, मुफ़्त स्वास्थ्य लाभ, हर महीने 200 यूनिट मुफ़्त बिजली, हर महीने 20,000 लीटर मुफ़्त पानी और महिलाओं को दिल्ली में मुफ़्त बस यात्रा की तर$फ था। उन दिनों आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में भी अपने घोषणा-पत्र में दिल्ली जैसे तमाम वादे जनता से कर रही थी और आज भी उसके वही वादे आगे-पीछे होकर चुनावी घोषणा पत्रों में नज़र आते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान इसे मुफ़्त की रेवड़ी कहते हुए इसके मनगढ़ंत नुक़सान तो गिना दिये; लेकिन चुनावों में ख़ुद भी ऐसे वादे करने से बच नहीं सके। उनकी अपनी पार्टी के घोषणा पत्र में भी कई मुफ़्त की घोषणाएँ तब भी की गयीं और आज भी की जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तो अपने हर वादे को गारंटी से जोड़ दिया है। राजनीति में यह नया प्रयोग है। इससे पहले किसी सामान पर में गारंटी या वारंटी लिखा देखा जाता रहा है। हालाँकि यह बात अलग है कि अब कई राजनीतिक वादे गारंटी के साथ चुनावों में पेश किये जाते हैं और चुनाव होने के बाद उनमें से कई की तो वारंटी भी नहीं रहती। सिर्फ़ विज्ञापनों और काग़ज़ात में उनके पूरे होने के दावे पाँच साल तक ज़रूर किये जाते रहते हैं। चुनावी रैलियों और जनसभाओं में जनता को वादों की पोटली थमाने वाले फिर पाँच साल कहीं नज़र भी नहीं आते।
इस बार ही पाँच राज्यों में से तीन (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) में भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की है। इन राज्यों में भाजपा ने विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान जनता से अनेक वादे किये। भाजपा ने इन घोषणा पत्रों को ‘मोदी की गारंटी’ के नाम से जारी किया। इनमें भाजपा ने राजस्थान में उज्ज्वला योजना वाला गैस सिलेंडर 450 रुपये में देने, किसान सम्मान निधि की राशि 6,000 रुपये वार्षिक से बढ़ाकर 12,000 रुपये करने, अगले पाँच साल तक पाँच किलोग्राम राशन देने, 12वीं पास करने वाली मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने और ग़रीब परिवार की बच्चियों की केजी (शिशु मंदिर) से लेकर पीजी (परास्नातक) तक की पढ़ाई मुफ़्त कराने के वादे किये।
भाजपा ने मध्य प्रदेश में उज्ज्वला योजना वाले गैस सिलेंडर 450 रुपये में देने, अगले पाँच साल तक पाँच किलोग्राम राशन मुफ़्त देने, ग़रीब परिवार की बच्चियों की 12वीं तक की पढ़ाई मुफ़्त कराने के अलावा यूनिफॉर्म, किताबें और स्कूल बैग ख़रीदने के लिए 1,200 रुपये वार्षिक देने, लोगों को हर महीने 100 यूनिट बिजली 100 रुपये में देने, 21 वर्ष की होने पर ग़रीब परिवार की बच्चियों को 2,00,000 रुपये देने, लाडली बहना योजना के तहत ग़रीब महिलाओं को हर महीने 1,250 रुपये की जगह 3,000 रुपये देने, किसान सम्मान निधि और किसान कल्याण योजना के दायरे में आने वाले किसानों को 12,000 रुपये वार्षिक देने जैसे वादे किये।
ऐसे ही छत्तीसगढ़ में उसने महतारी वंदन योजना के तहत विवाहित महिलाओं को 12,000 रुपये वार्षिक देने, अगले पाँच साल तक पाँच किलोग्राम राशन मुफ़्त देने, दीनदयाल उपाध्याय कृषि मज़दूर योजना बनाकर उसके तहत कृषि मज़दूरों को 10,000 रुपये वार्षिक देने, ग़रीब परिवार की महिलाओं को 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने और छात्रों को हर महीने यात्रा भत्ता देने जैसे वादे किये हैं।
अब तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और उसे अपने वादे पूरे करने होंगे। हालाँकि इससे पहले भी कई चुनावों में भाजपा द्वारा किये गये वादों के पूरा होने का लोगों को इंतज़ार है। अभी कुछ ही महीनों में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। तय है कि भाजपा की ओर से देश के इस सबसे अहम चुनाव में भी कई वादे किये जाएँगे, जिनमें मुफ़्त की रेवडिय़ाँ भी ज़रूर होंगी। ऐसे में प्रधानमंत्री और दूसरे किसी भी नेता को मुफ़्त की रेवडिय़ों पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जनता को आवश्यक सुविधाएँ देना मुफ़्त की रेवडिय़ाँ हैं, तो फिर चुने हुए विधायकों, सांसदों और मंत्रियों को मिलने वाली मुफ़्त सुविधाएँ क्या हैं? क्या उन्हें वेतन नहीं मिलता? क्या उन्हें कई-कई पेंशन लेने का अधिकार है? क्या उन्हें चुनाव हारने के बाद भी मुफ़्त की रेवडिय़ाँ लेने का हक़ है? भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरे ये जनप्रतिनिधि कितने नाकारा हैं, इस बात का अंदाज़ा ज़िम्मेदारी वाले कामों में इनकी सुस्ती से लगाया जा सकता है। नये संसद भवन के भीतर घुसकर जिस प्रकार से एक बार फिर हमला हुआ है, वो भी इन जनप्रतिनिधियों की लोकतंत्र को बचाने की सुस्ती को दर्शाता है। फिर भी इन्हें मुफ़्त की रेवडिय़ाँ चाहिए। लेकिन जनता को चंद सुविधाएँ न मिलें।