भारत में मुद्रास्फीति अक्टूबर, 1974 में सर्वाधिक 34.7 फीसदी और मई, 1976 में 11.3 फीसदी के निचले स्तर को छू चुकी है। अब 2020 की बात करें, तो इससे पहले और 2019-20 की पहली छमाही के दौरान 4 फीसदी के लक्ष्य से नीचे थी, जबकि दूसरी छमाही के दौरान मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी दर्ज की गयी और और जनवरी, 2020 में यह पिछले 68 महीनों के दौरान सर्वाधिक उच्च स्तर 7.6 फीसदी पर पहुँच गयी।
आरबीआई ने मुद्रास्फीति की पुष्टि की
संकट के इस दौर में चेतावनी भरी मुद्रास्फीति की पुष्टि भारतीय रिजर्व बैंक ने की है। 25 अगस्त, 2020 को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आरबीआई ने बताया कि भारत में दिसंबर, 2019 से फरवरी, 2020 के दौरान, मौद्रिक मुद्रास्फीति ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के लिए अनिवार्य मुद्रास्फीति की तय सीमा को पार कर दिया।
मुद्रास्फीति के अन्त: वर्ष वितरण में भी फर्क देखा गया, जबकि साल की दूसरी छमाही के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि देखी गयी।
सन् 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया था कि महँगाई पूरी तरह से नियंत्रण में है। महँगाई को लेकर हमारी सरकार पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। सन् 2014 के बाद से महँगाई दर में कोई तेज़ी नहीं आयी है। यह सन् 2009 से 2014 (यूपीए के दौरान) पर था, जब आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दो अंक में थीं।
माँग-आपूर्ति में अवरोध
आरबीआई की रिपोर्ट यह साबित होता है कि अप्रैल, 2020 के बाद खाद्य कीमतों में इज़ाफा हुआ है, जो मुद्रास्फीति बढऩे का अहम कारक कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाये गये एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण आपूर्ति में अवरोध रहा।
खाद्य कीमतों में भारी वृद्धि ने भारत की खुदरा मुद्रास्फीति को नवंबर में 5.54 फीसदी तक पहुँचा दिया, जो पिछले 68 महीने के उच्च स्तर पर यानी 7.60 फीसदी तक पहुँच गयी; जबकि इसी अवधि में थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति 2.59 फीसदी बढ़ गयी। सकल घरेलू उत्पाद के निराशाजनक परिणाम के अनुमानों के साथ ये आँकड़े सरकार के महँगाई न होने के लम्बे दावों को भी खोखला साबित कर रहे हैं।
सब्ज़ियों की कीमतें आसमान पर
2019-20 की पहली छमाही के दौरान 4 फीसदी के लक्ष्य के नीचे रहने के बाद दूसरी छमाही के दौरान मुद्रास्फीति बढ़ गयी और जनवरी, 2020 में 7.6 फीसदी पहुँचने के साथ पिछले करीब साढ़े पाँच साल के उच्च स्तर पर पहुँच गयी। सितंबर से दिसंबर, 2019 तक खरीफ की फसल-अवधि के दौरान बेमौसम बारिश से हुए नुकसान और दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूए) में भी बारश के साथ चलते फसलों को नुकसान हुआ; साथ ही सब्ज़ियों की आपूर्ति में भी बाधा हुई, जिससे कीमतें आसमान पर पहुँच गयीं।
2019-20 में पूरे वर्ष के लिए मुद्रास्फीति औसतन 4.8 फीसदी दर्ज की गयी, जो पिछले एक साल की तुलना में 136 आधार अंक (बीपीएस) ज़्यादा रही। सितंबर, 2019 से मुद्रास्फीति में वृद्धि के साथ 2019-20 की दूसरी छमाही के दौरान महँगाई की मार का आसर दिखा, जिसमें मुद्रास्फीति 103 बीपीएस से अगले तीन महीने में 133 बीपीएस तक पहुँच गयी।
दूसरी छमाही के दौरान स्थिति उलट गयी और खाद्य मुद्रास्फीति के शीर्ष पर रही, जिसमें भोजन और ईंधन की कीमतों को छोडक़र स्थिति नियंत्रण में रही। फरवरी, 2019 से फरवरी, 2020 तक ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी ने मुद्रास्फीति को कम कर दिया था; लेकिन मार्च, 2020 में इस पर दबाव बढ़ गया।
खाद्य और पेय पदार्थ
अप्रैल, 2019 में खाद्य और पेय पदार्थों की कीमतों में मुद्रास्फीति 1.4 फीसदी से बढक़र दिसंबर, 2019 में 12.2 फीसदी पर पहुँच गयी। परिणामस्वरूप कुल मुद्रास्फीति के योगदान में जहाँ 2019-20 से एक साल पहले 9.6 फीसदी था, वह बढक़र 57.8 फीसदी हो गया। दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूएम) की शुरुआत में लगभग एक सप्ताह की देरी, इसके बाद वापसी में काफी देरी (39 दिनों तक) के बाद हालात और खराब हो गये, जिससे खाद्य व पेय पदार्थों की कीमतों में भारी इज़ाफा दर्ज किया गया। इसके अतिरिक्त चक्रवाती तूफान और बेमौसम बारिश के कारण दिसंबर-जनवरी 2019-20 के दौरान खरीफ फसलों की, मुख्य रूप से सब्ज़ियों और दालों की आपूर्ति बाधित हुई, जिससे काफी नुकसान हुआ। इससे अचानक से अनाज, दूध, अण्डे, मांस और मछली और मसालों जैसी वस्तुओं की कीमतों में भारी उछाल देखा गया। जनवरी-मार्च, 2020 के दौरान सर्दी के दिनों में सब्ज़ियों की कीमतों में मामूली राहत मिली।
सब्ज़ियों की कीमतों में कमी रहने के बहुत-से कारण रहे। खाद्य और पेय पदार्थों ने 2019-20 के दौरान समग्र खाद्य मुद्रास्फीति के हिसाब से अच्छा नहीं कहा जा सकता। सब्ज़ियों को छोडक़र खाद्य मुद्रास्फीति 2019-20 (सब्ज़ियों सहित 6.0 फीसदी) में औसतन 236 बीपीएस कम हो गयी। फसलों को हुए नुकसान के चलते ऐतिहासिक सब्ज़ियों की महँगाई दिसंबर, 2019 में ऐतिहासिक स्तर पर 60.5 फीसदी के उच्च स्तर को छू गयी।
सब्ज़ियों में प्याज की कीमतों ने जून, 2019 से ही बाज़ार में हाहाकार मचा दिया, जिसकी वजह मंदी और विपरीत हालात बने; क्योंकि सूखे जैसी स्थिति के कारण रबी की फसल में पैदा होने वाली प्याज की आवक कम होने से बाज़ार में इसकी कमी से यह महँगी हो गयी।
फसलों को नुकसान
सितंबर-अक्टूबर, 2019 के दौरान बेमौसम बारिश ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के प्रमुख उत्पादक राज्यों में खरीफ की फसल वाली प्याज को नुकसान पहुँचाया, जिससे सितंबर, 2019 से कीमतों में तेज़ी आयी। इसके अलावा बारिश की वजह से खरीफ फसल वाली प्याज को खराब कर दिया।
दिसंबर, 2019 में प्याज की महँगाई दर 327.4 फीसदी पर पहुँच गयी। सितंबर, 2019 में थोक व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं पर स्टॉक होल्डिंग की सीमा लागू करते हुए आपूर्ति का 850 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू कर दिया। इसके अलावा सरकार ने 1.2 लाख टन के प्याज आयात करने की घोषणा नवंबर-दिसंबर, 2019 में तुर्की, अफगानिस्तान और मिस्र से की, ताकि कीमतों के दबाव को कम किया जा सके।
आलू की कीमतों में भी साल भर (सितंबर, 2019 और फरवरी, 2020 तक) की वृद्धि हुई, मुख्य रूप से बेमौसम और अधिक बारिश के कारण। इससे तैयार फसलों को नुकसान तो पहुँचाया ही साथ ही बाज़ारों में आपूर्ति बाधित हुई। नतीजतन नवंबर, 2019 में 7 महीनों के लगातार अपस्फीति के बाद जनवरी, 2020 में आलू की कीमत मुद्रास्फीति 63 फीसदी के उच्च स्तर पर पहुँच गयी। टमाटर की कीमतों के मामले में मई, 2019 में मुद्रास्फीति 70 फीसदी पर पहुँच गयी। दिसंबर, 2019 तक उच्च दोहरे अंकों में महाराष्ट्र में देरी से पैदावार और कर्नाटक में फसलों को नुकसान की वजह से प्रमुख आपूर्तिकर्ता राज्यों- कर्नाटक, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश से आवक नहीं हो सकी। हालाँकि नवंबर, 2019 से फरवरी, 2020 के दौरान टमाटर की कीमतें सामान्य मौसमी पैटर्न के अनुरूप रहीं। लेकिन अब टमाटर फिर से बहुत महँगा हो चुका है।
अनाज़ की कीमतें
अनाज और उत्पादों की कीमतों में भी 2019-20 के दौरान देखा गया कि इनकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई। कीमतों में अप्रैल, 2019 में 1.2 फीसदी से जनवरी-मार्च, 2020 के दौरान लगभग 5.3 फीसदी की वृद्धि हुई। गेहूँ के मामले में वर्ष के दौरान मुद्रास्फीति में औसतन 6.5 फीसदी की वृद्धि हुई। उच्च स्तर पर खरीदारी के चलते आयात भी सीमित (2019-20 में 31.4 प्रति फीसदी कम) हुआ। जनवरी, 2019 में गैर-पीडीएस चावल की कीमतें सकारात्मक मूल्य दबाव और प्रतिकूल आधार प्रभाव के कारण अक्टूबर, 2019 में अपस्फीति के 11 महीनों में ऊपर आ गयीं, जिनकी जनवरी, 2020 में मुद्रास्फीति का स्तर 4.2 फीसदी पर पहुँच गया।
दूध के दाम बढ़े
दूध और इसके उत्पादों की कीमतें भी साल भर माँग के चलते बढ़ीं। दूध की खरीद की कीमतों में वृद्धि के कारण अमूल और मदर डेयरी जैसी प्रमुख दुग्ध सहकारी समितियों ने खुदरा दूध की कीमतें प्रति लीटर दो बार- मई और फिर दिसंबर, 2019 में बढ़ा दीं। इसके बाद दुग्ध सहकारी समितियों द्वारा इसी तरह की बढ़ोतरी की गयी अन्य राज्यों में वर्ष के दौरान दूध और उत्पादों की कीमतों में इज़ाफा किया गया। चारे की उपलब्धता कम होने के कारण उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई है, जिसके चलते खुदरा कीमतों में इज़ाफा दर्ज किया गया। मार्च, 2020 में दूध की महँगाई दर 6.5 फीसदी पर पहुँच गयी।
दालों की कीमतों ने छुआ आसमान
मई, 2019 में 29 महीने के लम्बे समय तक अपस्फीति की समाप्ति के साथ दालों की कीमतों में इज़ाफा सन् 2019-20 की शुरुआत से हुआ। पर्याप्त पैदावार के बावजूद, 2018-19 के दौरान आयात में पर्याप्त गिरावट (54 फीसदी) दर्ज की गयी। इसके अतिरिक्त दालों के उत्पादन में गिरावट के तमाम अनुमानों को देखते हुए 2019-20 के दौरान आयात में लगभग 14.6 फीसदी की बढ़ोतरी होने के बावजूद, मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी हुई। प्रोटीन युक्त वस्तुओं, जैसे कि अण्डा, मांस और मछली में मुद्रास्फीति औसतन 4.5 फीसदी और 9.3 फीसदी रही; जो कि पिछले छ: वर्षों में सबसे अधिक थी। इसके साथ ही 2019-20 के दौरान कुल खाद्य मुद्रास्फीति का 13.7 फीसदी रही। मांस और मछली की कीमतों की वजह इनके लिए ज़रूरी बीज जैसे कि मक्का और सोयाबीन आदि की कीमतें भी बढ़ीं। इसी तरह सितंबर, 2019 से जनवरी, 2020 के दौरान अण्डे की कीमतों में वृद्धि देखी गयी। हालाँकि कोविड-19 के प्रकोप और प्रसार के साथ फरवरी-मार्च, 2020 के दौरान पोल्ट्री की खपत कम हो गयी और कीमतों में भारी कमी आयी।
चीनी और मिष्ठान
अन्य प्रमुख खाद्य पदार्थों में चीनी और मिष्ठान और तेल और वसा ने भी समग्र खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ाया। इससे पहले के उच्च कीमतों के मामले में हालाँकि बाद में घरेलू उत्पादन में गिरावट को दर्शाता है।
मसालों के दाम में भी उछाल
मसाले की कीमतें, विशेष रूप से सूखी मिर्च और हल्दी के उत्पादन में कमी के कारण इनकी कीमतों में काफी उछाल दर्ज किया गया।
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मुद्रास्फीति के अन्य संकेतक और 2019-20 के दौरान औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित सेक्टोरल सीपीआई मुद्रास्फीति दिसंबर, 2019 में बढक़र 9.6 फीसदी (73 महीने में उच्चतम) पर पहुँच गयी। इसकी मुख्य वजह आवास और भोजन की कीमतों में इज़ाफा रहा। कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और ग्रामीण मज़दूरों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति हुई, जिसमें आवास घटक नहीं है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान उसमें भी वृद्धि हुई और यह क्रमश: 11.1 फीसदी व 10.6 फीसदी तक पहुँच गयी। दिसंबर, 2019 में (72 महीनों में सबसे अधिक) से पहले भोजन की कीमतों में नरमी रही थी।
आरबीआई की रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय बाज़ारों में बढ़ी अस्थिरता का असर मुद्रास्फीति पर भी पड़ता है। खाद्य और ईंधन की कीमतों का झटका सभी घरों की मुद्रास्फीति की उम्मीदों को प्रभावित कर सकता है, जो प्रकृति व संवेदनशीलता के अनुकूल नहीं है। इसलिए मौद्रिक नीति को मूल्य आंदोलनों पर निरंतर सतर्कता बरतनी होगी, खासकर ऐसी स्थिति में जब सामान्यीकृत मुद्रास्फीति के हालात बनते हैं।
सक्रिय दृष्टिकोण की ज़रूरत
केंद्र सरकार के लिए यह इंतज़ार करने और देखने का समय नहीं है; क्योंकि आम आदमी के सब्र का इम्तिहान कभी भी टूट सकता है। सरकार को माँग-आपूर्ति की खाई को पाटने के लिए सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है और जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए; जो कोरोना वायरस जैसी महामारी द्वारा उत्पन्न अनिश्चितता का फायदा उठाते हैं। केंद्र सरकार इसे ईश्वर का काम कहकर नहीं बच सकती; क्योंकि तथ्य यह है कि उच्च बेरोज़गारी और स्थिर माँग के साथ उच्च मुद्रास्फीति न केवल अर्थ-व्यवस्था, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुँचा रही है।
जीडीपी की चिन्ता
31 अगस्त, 2020 को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किये गये सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान भी चिन्ता का बड़ा सबब है, जो पहली तिमाही अप्रैल से जून 2020-21 तक का है। रिपोर्ट के अनुसार, 2020-21 की पहली तिमाही में निरंतर कीमतों पर जीडीपी का अनुमान 26.90 लाख करोड़ रुपये है, जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में 35.35 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 23.9 फीसदी का संकुचन दिखा। वहीं पिछले वर्ष इसी दौरान यह 5.2 फीसदी रहा। 2020-21 की पहली तिमाही के लिए लगातार कीमतों पर बेसिक मूल्य पर त्रैमासिक सकल मूल्य 25.53 लाख करोड़ रुपये का अनुमान है, जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में 33.08 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले, 22.8 फीसदी का संकुचन दिखा।
वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी का मूल्य 38.08 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में 49.18 लाख करोड़ रुपये था, जो 2019-20 में 8.1 फीसदी वृद्धि की तुलना में 22.6 फीसदी था। 2020-21 में वर्तमान मूल्य पर आधार मूल्य में सकल मूल्य को जोडक़र 35.66 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, जबकि 2019-20 में 44.89 लाख करोड़ रुपये था, यानी इसमें 20.6 फीसदी का संकुचन दिखा।