कलाईनार। प्यार से उनके समर्थक और तमिलनाडु के लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। राजनीति और उससे पहले तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक के रूप में मुत्तुवेल करुणानिधि का अपना मुकाम था। ९४ साल के करुणानिधि करीब ७८ साल तक तमिल राजनीति में रहे और बाद के सालों में देश की राजनीति का भी बड़ा चेहरा बने। किसी समय कांग्रेस विरोध की धुरी रहे करूणानिधि बाद में कांग्रेस और यूपीए के साथ भी रहे। पिछले कुछ दिन से बीमार चल रहे करुणानिधि आखिर मंगलवार को उसी कावेरी अस्पताल में अपने हज़ारों समर्थकों की दुआओं के बीच शाम ६.१० पर इस संसार को विदा कह गए, जिसमें वे कुछ दिन से भर्ती थे।
अस्पताल ने शाम पोन सात बजे प्रेस रिलीज में बताया की काफी कोशिशों के बाबजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी सहित देश के तमाम बड़े नेताओं, विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने उनके निधन पर गहरा दुःख जताते हुए इस देश की राजनीति के लिए बड़ा नुक्सान बताया है।
यदि उनके जीवन पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि जब वे १४ साल के थे ”हिन्दी-विरोधी” आंदोलन के जरिये करुणा ने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज़ किया। उनका जन्म ३ जून सन 1924 को मुत्तुबेल और अंजुगम के यहां भारत के नागपट्टिनम के तिरुक्कुवलइ में दक्षिणमूर्ति के रूप में हुआ था। सन १९६९ में डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुरई की मौत के बाद करुणा को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया गया। और ये पांच बार (1969 -71, 1971 -761989 -91, 1996 -2001 ,2006 -2011 ) तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके है। करूणानिधि ने अपने 60 साल के राजनीति के कॅरिअर में अपनी भागीदारी बाले हर किसी चुनाब में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। 2004 के लोकसभा चुनाब में उन्होंने तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व बाली डीपीए का नेतृत्व किया और लोकसभा की 40 सीटों को जीत लिया। इसके बाद उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाब में उन्होंने डीएमके के जरिये जीती गई सीटों की संख्या 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया। और तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे से गठबंधन के बाबजूद उन्होंने बहा पर 28 सीटों पर जीत प्राप्त की।
एम करूणानिधि तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक भी थे। उनके समर्थक उन्हें कलाईनार कहकर बुलाते थे।
करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया।[10] पराशक्ति तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया। शुरू में इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था लेकिन अंत में इसे 1952 में रिलीज कर दिया गया। यह बॉक्स ऑफिस पर एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई लेकिन इसकी रिलीज विवादों से घिरी था। रूढ़िवादी हिंदूओं ने इस फिल्म का विरोध किया क्योंकि इसमें कुछ ऐसे तत्व शामिल थे जिसने ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी। इस तरह के संदेशों वाली करूणानिधि की दो अन्य फ़िल्में पनाम और थंगारथनम थीं। इन फिल्मों में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे। जैसे-जैसे उनकी सुदृढ़ सामाजिक संदेशों वाली फ़िल्में और नाटक लोकप्रिय होते गए, वैसे-वैसे उन्हें अत्यधिक सेंसशिप का सामना करना पड़ा; 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने इसके सदस्यों को मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार परिचालित किया। बाद में उन्होंने तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था। करूणानिधि ने अन्य सदस्यों के साथ छात्र समुदाय और खुद को भी सामाजिक कार्य में शामिल कर लिया। यहां उन्होंने इसके सदस्यों के लिए एक अखबार चालू किया जो डीएमके दल के आधिकारिक अखबार मुरासोली के रूप में सामने आया।
कल्लाकुडी में हिंदी विरोधी विरोध प्रदर्शन में उनकी भागीदारी, तमिल राजनीति में अपनी जड़ मजबूत करने में करूणानिधि के लिए मददगार साबित होने वाला पहला प्रमुख कदम था। इस औद्योगिक नगर को उस समय उत्तर भारत के एक शक्तिशाली मुग़ल के नाम पर डालमियापुरम कहा जाता था। विरोध प्रदर्शन में करूणानिधि और उनके साथियों ने रेलवे स्टेशन से हिंदी नाम को मिटा दिया और रेलगाड़ियों के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए पटरी पर लेट गए। इस विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई और करूणानिधि को गिरफ्तार कर लिया गया। करूणानिधि को तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से 1957 में तमिलनाडु विधानसभा के लिए पहली बार चुना गया।
प्रदेश सरकार ने बुधवार को प्रदेश में करूणानिधि के निधन पर छुट्टी घोषित की है। करीब डेढ़ साल पहले तमिलनाडु की एक और बड़ी नेता जयललिता का भी लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था।
इस बीच प्रधानमंत्री मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांघी बुधवार को चेन्नई में अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रहे हैं।
अस्पताल और करूणानिधि के घर के बाहर जमा समर्थकों में शोक की लहर है। कईयों का रो-रोकर बुरा हाल है। हाथों में करुणानिधि की तस्वीर लिए वे रो रहे हैं। उनके गंभीर बीमार होने की खबर के बाद कुछ लोगों के आत्महत्या करने की भी खबर है।