‘मुझे अफसोस है कि मैंने भारत के विकास की कहानी दुनिया भर में साझा की’

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आपने बहुत ही कम उम्र में अपने पिता की कंपनी संभाल ली थी. तब शायद आप 25-26 साल के रहे होंगे और इसके बाद आपने यूबी ग्रुप को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी कंपनी बना दिया. सबसे पहले आप उस समय की चुनौतियों के बारे में बताएं और यह भी कि कैसे इसे इतने बड़े मुकाम पर पहुंचाया?
मैंने सीनियर कैंब्रिज स्कूल (ब्रिटेन) की परीक्षा दिसंबर के महीने में दी थी और उसका रिजल्ट जून में आना था. ज्यादातर बच्चे इस समय छुट्टियां मनाते हैं या मनपसंद काम करते हैं. लेकिन मुझे उसी समय से पिता जी के साथ कारोबार में हाथ बंटाना पड़ा. उनका मानना था कि जितनी जल्दी हो सके मुझे उनके साथ काम शुरू कर देना चाहिए. स्कूल के बाद मैं कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से बी.कॉम. करने लगा. यहां मैं सुबह साढ़े छह बजे से लेकर साढ़े दस बजे तक कॉलेज में रहता था. उसके बाद पूरे दिन पिता जी के साथ कंपनी में काम करता. मैंने बहुत कम उम्र से ही कारोबार संभालना शुरू कर दिया था. इससे बिजनेस की कुछ बुनियादी बातें मुझे पहले ही समझ में आ गईं. 1976 के आस-पास मैं अमेरिका चला गया और 1980 में वहां से लौटा. पिता जी की सेहत तब तक ज्यादा खराब रहने लगी. इस बीच उन्हें दूसरी बार हार्ट अटैक भी हो गया. इसके बाद मेरे ऊपर जिम्मेदारी बढ़ती गई. मुझे ये जिम्मेदारियां अच्छी लगती थीं और मैं काफी कुछ सीख रहा था. मैंने अमेरिका में एक दवा कंपनी के लिए काफी वक्त तक सेल्समैन का काम किया था. तब वहां मार्केटिंग रिसर्च और कंज्यूमर रिसर्च जैसे कई मार्केटिंग टूल प्रचलन में थे, जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं था. पिता जी की मृत्यु के बाद लोगों को लगा कि मैं अचानक निराश हो जाऊंगा. मुझे स्थिरता की जरूरत होगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरे पास पहले ही अपने पैर जमाने के लिए सब कुछ था. मैं बिजनेस संभालने के लिए तैयार था.

आपके पिता जी उस समय के ज्यादातर उद्योगपतियों की तरह बहुत ही शांत और तड़क-भड़क से दूर रहने वाले व्यक्ति थे पर आपकी छवि इसके उलट है. क्या यह इसलिए कि आपकी कंपनी के लिए यह छवि एक मार्केटिंग टूल है या फिर आप ऐसे ही हैं?
यूनाइटेड ब्रेवरीज कंपनी ब्रिटेन की कंपनी थी. मेरे पिता जी ने सबसे पहले यही कंपनी खरीदी थी. यह पहले सिर्फ बीयर बनाती थी, 1956 में यह स्प्रिट के कारोबार में आई. उस समय कंपनी यूबी ब्रांड के तहत कई उत्पाद बेचा करती थी, लेकिन इनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती थी. उस समय तक हम किंगफिशर नाम से कोई उत्पाद नहीं बनाते थे. यूबी का इतिहास देखते हुए मुझे किंगफिशर ब्रांड का पता चला. 1855 के आस-पास कंपनी इस नाम से बीयर बेचा करती थी. पहली बार में ही यह नाम देखकर मुझे लगा कि यह तो बहुत अलग है. तड़क-भड़क वाला, कलरफुल और एक्साइटिंग ब्रांड है. इसके बाद मैं अपने पिता जी के पास गया और उनसे कहा कि मैं इसे रीलॉन्च करना चाहता हूं. मैंने इसके लिए उनसे दस लाख रुपये मांगे. जाहिर है उन्होंने तुरंत ही मुझे दरवाजे का रास्ता दिखा दिया. खैर, आखिर में मुझे एक लाख रुपये मिले. इस समय कर्नाटक की आबकारी नीति कुछ ऐसी थी कि बैंगलोर में पब कल्चर आ चुका था और बहुत अच्छे से फल-फुल रहा था. इसलिए मैंने किंगफिशर बीयर वहीं लॉन्च की. फिर धीरे-धीरे हम इस ब्रांड को आगे बढ़ाते गए. इस सबमें मार्केटिंग टूल्स का बहुत महत्व रहा. मैं खुद इस दौरान शहर के कॉलेजों में गया. वहां कई युवाओं से बात की. उनमें भी जो युवा मोटरसाइकिल से कॉलेज आते थे, वे मेरे ग्राहक थे. इनसे बात करके मुझे पता चला कि युवा एक्साइटमेंट चाहते हैं. इतने सालों तक बिजनेस करते हुए मुझे यह भी समझ आया है कि हम भारतीय बहुत महत्वाकांक्षी होते हैं. हम जैसे ही सफल होते हैं, पैसा कमाना शुरू करते हैं तो यह दिखाना भी चाहते हैं.

यह आपको कब समझ में आया कि हमारे देश में भी पश्चिम की तरह युवाओं की महत्वाकांक्षाओं और अपेक्षाओं का विस्तार विस्फोटक तरीके से होगा?
मुझे 90 के दशक के शुरुआत में ही इसका एहसास हो गया था. इसलिए हमने फैसला किया कि यूबी के सभी उत्पाद लाइफस्टाइल से जुड़े होंगे. अपनी ब्रांड इक्विटी बढ़ाने के लिए हमने म्यूजिक, घुड़दौड़, खेलों या फैशन जैसे क्षेत्रों को चुना. उस समय की एक बड़ी चुनौती जो आज भी है कि हम शराब से जुड़े उत्पादों का मीडिया में सीधा विज्ञापन नहीं कर सकते.

इसके लिए हमें सरोगेट एडवर्टाइजिंग (उत्पाद को प्रोमोट करने के बजाय सिर्फ उसके ब्रांड का छद्म तरीके से विज्ञापन करना) सहारा लेना पड़ा.

vijaymaliyaकिंगफिशर एयरलाइंस भी क्या सरोगेट एडवर्टाइजिंग के लिए बनाई गई थी?
दुर्भाग्य से मीडिया का एक बड़ा हिस्सा ऐसा मानता है लेकिन मैं दुनिया का सबसे बड़ा बेवकूफ कहलाता यदि मैंने इस तरह की सरोगेट एडवर्टाइजिंग के लिए 5, 000 करोड़ रुपये खर्च किए होते (हंसते हुए).  बड़े ब्रांड बनाने के लिए कंपनियों को ब्रांड एंबेसडर चुनने पड़ते हैं. लेकिन अपनी कंपनी के लिए मैं खुद ही ब्रांड एंबेसडर हूं. और इसमें कुछ गलत भी नहीं है. सबसे अच्छी बात है कि मैं अपनी कंपनी के लिए फ्री हूं (हंसते हुए). किंगफिशर ब्रांड के विज्ञापन में एक लाइन थी, ‘किंगफिशर किंग ऑफ गुड टाइम्स ‘. इसके चलते मीडिया ने भी मुझे ऐसे प्रचारित किया कि मैं ‘किंग ऑफ गुड टाइम’ हूं. मैंने जब कंपनी संभाली तब मेरी उम्र 26 साल थी. मैं युवा था और मेरे शौक भी वही थे. किस युवा को फेरारी चलाना, डिजाइनर कपड़े पहनना या महंगी घड़ियां पहनना पसंद नहीं है. मैं भी यह सब करता था. तब के मेरे समकालीन उद्योगपति राम प्रसाद गोयनका और धीरूभाई अंबानी जैसे लोग मुझसे दोगुनी उम्र के थे. अब आप उनसे तो मेरे जैसी जीवनशैली की उम्मीद नहीं कर सकते थे. मैं उस समय बस अपनी उम्र के हिसाब से जिंदगी जी रहा था और मीडिया ने मेरी तड़कीली-भड़कीली छवि बना दी. हालांकि आज मैं 56 साल का हुं फिर भी युवा की तरह ही जीना पसंद करता हूं. इस उम्र में मुझे 76 साल के व्यक्ति की तरह जीवन जीने की जरूरत नहीं है.

बिजनेस के इतर बात करें तो आप संसद सदस्य भी रह चुके हैं. यह एक ‘ एक्सक्लूसिव क्लब ‘ सरीखी जगह है, जहां देश के भविष्य और उसकी आकांक्षा-अपेक्षाओं का निर्धारण होता है. संसद सदस्य बनने के बाद आपके नजरिये में क्या बदलाव आया?
मैं 2002 में पहली बार संसद के लिए चुना गया तो मुझे लगा कि यह देश को कुछ वापस लौटाने का समय है. मैंने संसद को ऐसे मंच की तरह देखा जिसके माध्यम से मैं अपने विचार, जो मुझे लगता है देश के लिए फायदेमंद हैं, व्यक्त कर सकता था. मुझे लगता है कि इस समय देश की सबसे बड़ी संपत्ति उसकी युवा जनसंख्या है. यह बात मुझे देश के भविष्य के बारे में ज्यादा आशावान बनाती है. हां, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उनको आगे बढ़ने के लिए माहौल मिले. जहां तक ‘एक्सक्लूसिव क्लब’ वाली बात आपने कही तो मैं कहना चाहूंगा मैं बाकी सदस्यों की तरह एक और हिप्पोक्रेट या ढोंगी सांसद बनकर नहीं रहना चाहता था. मुझे जिस दिन शपथ लेनी थी, उसके पहले मैंने अपने दोस्त रोहित बल (फैशन डिजाइनर) से कहा कि मेरे लिए सफेद लेनिन से बनी ड्रेस तैयार करना, मैं उसी में शपथ लेना चाहता हूं. मैंने ऐसा किया भी. इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं लगती. आखिर मैंने किसी का पैसा नहीं चुराया. किसी से रिश्वत नहीं ली. उसी समय मैंने सरकार के उत्तरदायित्व पर एक भाषण दिया था. लेकिन यह उत्तरदायित्व वाली बात मुझे आज भी कहीं नजर नहीं आती. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. तब संसद में जो बहस होती थी उसमें मेरी बहुत दिलचस्पी थी. उनसे मुझे देश की समस्याओं और अर्थव्यवस्था के बारे में काफी कुछ जानने का मौका मिला. लेकिन आज संसद में बहस का माहौल पूरी तरह खत्म हो चुका है.

भारत में इस बात को लेकर एक गर्व की भावना रहती है कि आपके पास धन-संपत्ति होने के बाद भी उसका दिखावा न करें. इसके पीछे विचार है कि हम एक गरीब देश हैं और ऐसा करना गरीबों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. जब आपकी उम्र 26 साल थी तब की बात और है लेकिन अब आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
देखिए, मैं किसी तरह के पाखंड में विश्वास नहीं करता. मैं संसद के अपने कई साथियों को जानता हूं जो खादी में दिखते हैं, एंबेसडर में चलते हैं लेकिन उनके घरों में इतना ज्यादा पैसा है जितना मेरे पास भी नहीं है.

अच्छा चलिए, किंगफिशर एयरलाइंस की बात करते हैं. लोग कहते हैं कि विजय माल्या अपनी छवि से काफी अलग हैं. मुझे किसी ने एक वाकये के बारे में बताया था कि एक बार आपने यॉट में पार्टी आयोजित की थी. इसमें काफी बड़े-बड़े लोग शामिल हुए थे. जब सभी लोग पार्टी का मजा ले रहे थे तब नीचे डेक में आप अगले सप्ताह होने वाले किसी कारोबारी सौदे की तैयारी कर रहे थे. किसी ने मुझे यह भी बताया है कि आप अपने बिजनेस से जुड़े हर पहलू की बारीकियों को बखूबी समझते हैं. ऐसे में क्या किंगफिशर एयरलाइंस शुरू करना कारोबारी चूक थी?
मैं अपने काम को लेकर जुनूनी हूं. मैंने अपने पिता जी से सीखा है कि कारोबार के हर पहलू की आपको पूरी समझ होनी चाहिए. मैं बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा हूं लेकिन पिता जी के समय हर फैक्टरी से जो लेन देन होता था उसका हर एक बिल चेयरमैन के ऑफिस तक आता था. वह व्यक्ति केंद्रित प्रबंधन का श्रेष्ठ उदाहरण था. मैं जब अमेरिका गया तो मैंने वहां से टीम बनाने और टीम से काम कराने की कला सीखी. आज यूनाइटेड स्प्रिट अपने क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है वहीं युनाइटेड ब्रेवरीज बाजार के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर काबिज है. और इस उपलब्धि का पूरा श्रेय उन लोगों को है जिन्हें मैंने विभिन्न कामों की जिम्मेदारी सौंपी और वे समूह को आगे ले गए.

अब हम किंगफिशर एयरलाइंस पर आते हैं. यदि हमें इस क्षेत्र से इतनी उम्मीद नहीं होती तो हम कभी इस क्षेत्र में कदम नहीं रखते. मैंने इस कंपनी में खुद के 3,000 करोड़ रुपये लगाए थे. मुझे इसमें जोखिम समझ में आता तो मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करता.

तो आखिर गड़बड़ कहां हुई?
हां, मैं उसी पर बात कर रहा हूं. किंगफिशर एक समय भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बन गई थी. प्रतिदिन इसकी 490 उड़ानें होती थीं. लेकिन 2008 के बाद अचानक कच्चे तेल के दाम बढ़ गए. इसकी कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 140 डॉलर प्रति बैरल तक हो गई. किसी भी एयरलाइन कंपनी के लिए ईंधन सबसे बड़ा खर्च होता है. यहां हमारा खर्च सौ फीसदी बढ़ गया. ऐसे में मैंने कुछ राज्य सरकारों से तेल पर लगाया जाने वाला एड वेलोरम टैक्स (मूल्यवर्धित कर) कम करने की बात कही लेकिन इसके लिए सरकारों ने मना कर दिया. मैं उनसे बस यह कह रहा था कि आप अपना टैक्स लो लेकिन जो कीमत अचानक बढ़ गई है उस पर तो कर मत लगाओ. लेकिन हमारे यहां सरकारों को अपना खजाना भरने से मतलब है चाहे इस वजह से कारोबारियों की हालत जो हो. हमने केंद्र सरकार से रियायत देने की बात की लेकिन इसके लिए भी हमें मना कर दिया गया. फिर हमने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति मांगी लेकिन वह भी नहीं मिली. तो कुल मिलाकर सरकार ने उड्डयन क्षेत्र को बचाने के लिए कुछ नहीं किया. सबसे बड़ी एयरलाइन होने की वजह से किंगफिशर एयरलाइंस पर सबसे बुरा असर पड़ा. लेकिन समय बीतने के साथ हालात में कुछ सुधार हुआ और क्षेत्र में कुछ स्थिरता आ गई. फिर मुंबई पर आतंकवादी हमला हो गया. इससे भी एयरलाइंस क्षेत्र की दिक्कतें बढ़ गईं. हम सरकार के पास मदद मांगने गए लेकिन एक बार फिर हमें निराशा हाथ लगी. धीरे-धीरे कच्चे तेल की कीमतें सौ डॉलर प्रति बैरल हो गईं और संकेत मिलने लगे कि कीमत इससे नीचे नहीं आएगी. इस समय हमारी कंपनी का वित्तीय संकट काफी बढ़ गया. हमने सरकार से कहा कि कंपनी के कर्ज की शर्तों पर रियायत दी जाए लेकिन वह भी हमें नहीं मिली. हम रिजर्व बैंक द्वारा बनाए गए तंत्र ‘कॉरपोरेट डेट रिस्ट्रक्चरिंग’ में गए लेकिन चूंकि एयरलाइन विजय माल्या की थी इसलिए कंपनी को इसकी सुविधा नहीं मिली. हम और भी सरकारी विभागों में गए लेकिन हर जगह हमारे लिए दरवाजे बंद थे. किंगफिशर एयरलाइंस भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी थी जो देश के कई शहरों को जोड़ती थी. इसका फायदा भी आखिर देश के आर्थिक विकास में था, लेकिन इसके लिए किसी ने हमें श्रेय नहीं दिया. एक दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने कभी भी सरकार से कर्ज माफ करने की बात नहीं कही और न भविष्य में कहूंगा. आज आप देखिए देश में बड़े औद्योगिक समूहों को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है. मेरे कई उद्योगपति दोस्त हैं और यह कहते हुए मुझे दुख है कि उनमें से ज्यादातर देश में निवेश करना नहीं चाहते. यह भी देखिए किस तरह से हमारा टैक्स डिपार्टमेंट मल्टीनेशनल कंपनियों के पीछे पड़ा है. चाहे बात माइक्रोसॉफ्ट की हो या वोडाफोन की, कई बड़ी कंपनियों के साथ यह हो रहा है. ऐसा माहौल देश में निवेश को हतोत्साहित करता है. यह अच्छी बात है कि आप खाद्य सुरक्षा कानून पास करें. भूमि अधिग्रहण कानून पारित करके किसानों से कहें कि अब आपकी जमीन कोई जबरदस्ती नहीं ले सकता. लेकिन बिना उद्योग के, विकास के,  बड़े औद्योगिक समूह जो लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाते हैं और कई दूसरी चीजों में योगदान देते हैं, इसके बिना क्या हम अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. मेरे विचार से बिल्कुल नहीं. यदि सरकार के पास कोई दूसरा तरीका है तो ठीक है. हम चुपचाप उसके दर्शक बनने के अलावा कुछ नहीं कर सकते.

तो क्या हम आने वाले समय में किंगफिशर एयरलाइंस को फिर पहले की तरह उड्डयन क्षेत्र में उड़ानें भरते हुए देखेंगे?
हां, इसकी पूरी संभावना है.

भारत के आर्थिक विकास की कहानी के पीछे सोच है कि यदि भारतीय कारोबारियों को अनुकूल माहौल मिले तो वे असाधारण सफलता हासिल करते हैं. आपसे पूछना चाहता हूं क्या आज भी आप देश के बारे में आशान्वित हैं?
आज से कुछ साल पहले मैं अपने कारोबारी दोस्तों के साथ जहां-जहां अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गया वहां मैंने अपने साथियों के साथ भारत के विकास की कहानी को दुनिया से साझा किया. मुझे याद है कि आज से तकरीबन पांच साल पहले अमेरिका के सांटा क्लारा में अमेरिका में रह रहे भारतीयों के सामने अपनी बात रखते हुए मैंने कहा था कि जिस वजह से आपके पुरखों ने भारत छोड़ा था आज उसी वजह से आपको भारत जाने की जरूरत है. लेकिन आज मुझे अपनी उस बात पर अफसोस होता है.

सबसे आखिरी सवाल आपसे यह कि पिछले दस साल से आप संसद सदस्य हैं. इस बीच आपने किंगफिशर एयरलाइंस शुरू की. उसके बाद इससे जुड़ी कई चुनौतियों का भी सामना किया. मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या इस सबने आपको एक अधिक समझदार व्यक्ति बनाया है.
इसके जवाब में मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि हर एक चीज आपकी समझ बढ़ाने का काम करती है और दूसरी बात यह है कि बिना गलतियां किए आप अपना जीवन पूरा नहीं कर सकते.