मामला भ्रष्टाचार की मलाई मिल बांटकर खाने का है. कुछ साल पहले तक उत्तर प्रदेश में लैकफेड रंग-रोगन और छोटे-मोटे निर्माण कार्य कराने वाली एक गुमनाम-सी सरकारी संस्था हुआ करती थी. इसे पांच लाख रुपये से अधिक लागत का कार्य कराने का अधिकार नहीं था. 2010 में इसे अचानक कार्यदायी संस्था (सरकार के विभिन्न विभागों से जुड़े निर्माण कार्य करने वाली एजेंसी) का दर्जा मिला और यह करोड़ों रुपये के निर्माण कार्य करने लगी. वह भी तब जब इसके पास इतने बड़े स्तर पर निर्माण कार्य के लिए विशेषज्ञता नहीं थी. अब पता चल रहा है कि इसके पीछे करोड़ों का गोलमाल हुआ है जिसमें पिछली बसपा सरकार की कई कद्दावर हस्तियां शामिल हैं.
दरअसल बसपा शासन काल में उत्तर प्रदेश श्रम एवं निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड यानी लैकफेड को करोड़ों रुपये का निर्माण कार्य मिला था. कोऑपरेटिव सेल के स्पेशल इनवेस्टीगेटिंग ब्यूरो (एसआईबी) की जांच बता रही है कि कार्य कराने की संस्तुति या आश्वासन माननीयों की ओर से मुफ्त में नहीं मिला बल्कि इसके एवज में मंत्रियों ने संस्था के अधिकारियों से मोटा कमीशन लिया. अपनी जांच के तहत एसआईबी अब तक पूर्व श्रममंत्री बादशाह सिंह को गिरफ्तार कर चुकी है. इसके अलावा उसने पूर्व मंत्रियों लक्ष्मी नारायण चौधरी, रंगनाथ मिश्र, नंद गोपाल गुप्ता उर्फ नंदी, चंद्रदेव राम यादव, सदल प्रसाद, अवधपाल सिंह यादव और अनीस अहमद खां उर्फ फूल बाबू को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है. इन नामों का खुलासा लैकफेड के पूर्व चेयरमैन सुशील कटियार के पीआरओ प्रवीण सिंह ने किया है. बताते हैं कि एनआरएचएम घोटाले के आरोपित और फिलहाल जेल में बंद बाबू सिंह कुशवाहा का नाम भी संस्था से कमीशन लेने वालों की फेहरिस्त में शामिल है.
जांच में सवाल उठा कि जिस संस्था को करोड़ों रुपये का कार्य कराने का अधिकार ही नहीं था उसे आखिर कैसे इतने बड़े-बड़े कार्य दे दिए गए. इसका खुलासा हाल ही में रिटायर हुए लैकफेड के मुख्य अभियंता गोविंद शरण श्रीवास्तव ने किया. श्रीवास्तव ने जांच अधिकारियों को बताया कि 2009 में लैकफेड को कार्यदायी संस्था बनाने का प्रस्ताव तत्कालीन एमडी ओंकार यादव द्वारा शासन को भेजा गया, लेकिन मानक पूरे न होने के कारण यह प्रस्ताव वापस आ गया. 2010 में यह प्रस्ताव फिर से भेजा गया. उस समय लैकफेड के चेयरमैन सुशील कुमार कटियार थे. श्रीवास्तव के मुताबिक कटियार और यादव ने बसपा के तत्कालीन विधायक राम प्रसाद जायसवाल के माध्यम से तत्कालीन सहकारिता मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को 45 लाख रुपये दिए. इसका मकसद यह था कि मानक पूरे न होने के बावजूद कुशवाहा द्वारा शासन पर दबाव डलवा कर लैकफेड को कार्यदायी संस्था बनवाया जाए. जांच अधिकारी बताते हैं कि नियमों को ताक पर रख कर लैकफेड को कार्यदायी संस्था बनवाने के इस खेल में कुछ बड़े अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है. बताते हैं कि लैकफेड के कार्यदायी संस्था बनने के बाद बीच में किसी कारणवश चेयरमैन कटियार व एमडी यादव के बीच मतभेद हो गए लिहाजा कटियार ने यादव को बाबू सिंह कुशवाहा के माध्यम से महत्वहीन पद पर भिजवा दिया. इतना ही नहीं, एमडी के पद पर कुशवाहा के विश्वासपात्र वीपी सिंह को बैठा दिया गया. कुशवाहा की मेहरबानी नियमों को ताक पर रख कर लैकफेड को कार्यदायी संस्था बनवाने तक ही सीमित नहीं रही. नवंबर, 2010 में उन्होंने राज्य के विभिन्न जिलों को आवंटित हो चुके पंचायती राज विभाग के लगभग 90-95 करोड़ रुपये उन जिलों से लैकफेड को वापस करा दिए थे.
श्रीवास्तव ने अपने बयान में बताया है कि अप्रैल, 2010 से फरवरी, 2012 तक संस्था के चेयरमैन की कुर्सी सुशील कुमार कटियार के पास रही. कटियार पूर्व मंत्री कुशवाहा के सबसे करीबियों में से थे जो अब फरार चल रहे हैं. बताते हैं कि 2010 में जब एमडी ओंकार यादव और कटियार के बीच काम को लेकर मनमुटाव शुरू हुआ तो कटियार के कहने पर बाबू सिंह कुशवाहा ने वीपी सिंह को संस्था का नया एमडी बनाया. कुछ ही दिनों में मंत्री कुशवाहा से वीपी सिंह के संबंध ऐसे हो गए कि लैकफेड के साथ उन्हें पीसीयू के एमडी, संस्थागत सेवा मंडल के चेयरमैन और अपर निबंधन (बैंकिंग) का भी जिम्मा सौंप दिया गया.
जांच अधिकारियों के मुताबिक काम न मिलने के बाद लैकफेड के अधिकारी जब पांच करोड़ रुपये वापस मांगने बादशाह सिंह के पास गए तो मंत्री ने उनके पीछे अपने पालतू शिकारी कुत्ते दौड़ा दिए थे
इस पूरे खेल में कटियार के पीआरओ प्रवीण सिंह की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रही है. संस्था के मुख्य अभियंता रहे श्रीवास्तव ने अपने बयान में बताया है कि प्रवीण सिंह चेयरमैन कटियार के साथ तत्कालीन सहकारिता मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के यहां जाते थे. रकम को एक झोले में रख कर उसमें अपने नाम व मोबाइल नंबर की पर्ची डाल दी जाती थी और झोला कुशवाहा के यहां रख दिया जाता था. मंत्री का दर्जा प्राप्त कटियार के लिए उनका पीआरओ कितना महत्वपूर्ण था, यह अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सिंह को संस्था का जनसंपर्क अधिकारी भी बना दिया गया था. सूत्र के मुताबिक रुपयों के लेन-देन का सबसे बड़ा माध्यम होने के चलते सिंह की हनक ऐसी थी कि उनके कार्यालय में बड़े-बड़े अभियंता हाजिरी लगाने आते थे.
कमीशनबाजी के खेल में बसपा शासन में श्रम मंत्री रहे बादशाह सिंह भी पीछे नहीं रहे. अपनी शानोशौकत के चलते बसपा के सभी मंत्रियों में अपनी अलग पहचान रखने वाले बादशाह सिंह को एसआईबी ने लैकफेड के इंजीनियरों से पांच करोड़ रुपये रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है. सिंह फिलहाल भाजपा में हैं. इलाहाबाद में तैनात अभियंता सुशील कुमार ओझा ने जांच एजेंसी को बताया है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से कई स्थानों पर लेबर अड्डा बनना था. इसके लिए धन केंद्र सरकार की तरफ से आना था. यह पैसा लैकफेड में आवंटित हो, इसके लिए चीफ इंजीनियर गोविंद शरण श्रीवास्तव, पंकज त्रिपाठी, प्रवीण सिंह व झांसी के अधिशासी अभियंता आरपी सिंह द्वारा पांच करोड़ रुपये तत्कालीन मंत्री बादशाह सिंह को एडवांस कमीशन के रूप में दिए गए थे. अभियंता अजय कुमार दोहरे ने भी अपने बयान में बताया है कि 28 से 30 मार्च, 2011 के बीच पांच करोड़ रुपये की रकम इकट्ठा हुई थी. यह रकम तत्कालीन चेयरमैन कटियार के सरकारी वाहन से चार काले बैगों में भर कर मंत्री के गांव खरैला तक पहुंचाई गई थी. बादशाह सिंह ने इसे गिनवा कर दूसरे कमरे में भिजवा दिया था. बरेली के अभियंता डीके साहू ने भी अपने बयान में कुछ यही बात कही है. उनके शब्दों में, ‘झांसी मंडल के अधिशासी अभियंता आरपी सिंह द्वारा मुझे बताया गया था कि केंद्र सरकार से करीब 100 करोड़ की धनराशि लाने के लिए आरपी सिंह, चीफ इंजीनियर जीएस श्रीवास्तव व पंकज त्रिपाठी द्वारा पांच करोड़ रुपये की धनराशि तत्कालीन श्रम मंत्री बादशाह सिंह को दी गई है.’
लेकिन फिर किसी कारणवश केंद्र से बजट नहीं आ सका. ऐसे में लैकफेड के अधिकारी मंत्री से पांच करोड़ रुपये वापस लेने पहुंचे. एसआईबी के अधिकारी बताते हैं कि अधिकारी जब पैसा वापस मांगने बादशाह सिंह के पास गए तो मंत्री ने उनके पीछे अपने पालतू शिकारी कुत्ते दौड़ा दिए थे.
उच्च शिक्षा विभाग तक भी गई रिश्वत की रकम
कमीशनबाजी के खेल से उच्च शिक्षा विभाग भी अछूता नहीं रहा है. पूर्व मुख्य अभियंता श्रीवास्तव ने अपने बयान में बताया है कि अभियंता अजय कुमार दोहरे ने लैकफेड की सभी डिवीजनों से लगभग चार करोड़ रुपये इकट्ठा करके उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी को दिए थे. मकसद यह था कि उच्च शिक्षा विभाग का कार्य लैकफेड को ही मिले. तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री त्रिपाठी को पैसा अभियंता अजय कुमार दोहरे व प्रवीण सिंह ने पहुंचाया था. महीना भर गुजरने के बाद भी उच्च शिक्षा विभाग के बजट का पैसा लैकफेड को नहीं मिला तो सभी ने मिलकर काम के लिए पैरवी की. श्रीवास्तव ने अपने बयान में कहा है, ‘कार्य की पैरवी के सिलसिले में हम लोग उच्च शिक्षा सचिव से मिले तो उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी को समझाया कि ये लोग बाबू सिंह कुशवाहा के करीबी हैं, बात हाईकमान तक पहुंच सकती है. अगले दिन अजय कुमार दोहरे चार करोड़ रुपये लैकफेड में वापस ले आए तो मैंने कहा कि यह पैसा लैकफेड के खाते में जमा करवा दिया जाए. लेकिन एमडी रामहित गुप्ता ने कहा था कि शर्तें हटवाने के लिए अभी और पैसे की जरूरत पड़ेगी इसलिए इस पैसे को दिनेश कुमार साहू जो बरेली में अधिशासी अभियंता के पद पर कार्यरत थे उनके पास रखवा दिया.’ श्रीवास्तव के बयान के मुताबिक चार करोड़ रुपये की रकम अभी तक अभियंता साहू के पास ही है. लेकिन जांच एजेंसी ने हाल ही में जब साहू से पूछताछ की तो उनका कहना था कि यह रकम पंकज नाम के किसी व्यक्ति के पास है. यह पंकज कौन है और पूरे प्रकरण में उसकी क्या भूमिका है, इस बारे में साहू से अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है.
पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी तहलका से बातचीत में खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताते हैं. वे कहते हैं, ‘मेरी न तो आरोप लगाने वाले लोगों से कभी कोई मुलाकात हुई है और न मेरे विभाग का कोई काम ही लैकफेड को दिया गया है. पूरा प्रकरण राजनीति से प्रभावित है. सरकार मुझे किसी केस में फंसाने के उद्देश्य से ऐसा प्रयास कर रही है.’ फिलहाल कोऑपरेटिव सेल के एसपी कार्यालय में त्रिपाठी से पूरे प्रकरण के संबंध में पूछताछ भी हो चुकी है.
बिना एमओयू के ही बंट गया करोड़ों रुपये का काम
उच्च शिक्षा विभाग के साथ-साथ माध्यमिक शिक्षा विभाग भी जांच के दायरे में है. यहां भी नियमों को ताक पर रखकर काम का आवंटन हुआ. राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत लैकफेड को 25 स्कूलों को उच्चीकृत करने का काम मिला था. प्रत्येक स्कूल के लिए केंद्र सरकार की ओर से 58.12 लाख रुपये स्वीकृत हुए थे. नियमों के अनुसार लैकफेड को काम देने के पहले राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के परियोजना निदेशक और लैकफेड के बीच एमओयू होना था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बिना एमओयू के ही पहली व दूसरी किस्त जारी कर दी गई. इस बीच शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने कागजी खेल करना शुरू किया. अनुबंध करने के लिए शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारियों ने 19 सितंबर, 2011 को स्टांप खरीद कर उस पर 16 सितंबर की तारीख डाल दी. एक जांच अधिकारी बताते हैं, ‘अनुबंध पत्र को नोटराइज तक नहीं कराया गया. इतना ही नहीं, बिना अनुबंध के जो दो किस्तें जारी की गई थीं उनका उपयोग प्रमाण पत्र लेना भी संबंधित जिलों से शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने मुनासिब नहीं समझा.’ जांच से जुड़े एक अन्य पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘ऐसा लगता है कि यहां भी खेल विभागीय मंत्री के स्तर से हुआ क्योंकि निर्माण एजेंसी नामित करने तथा धन की निकासी का अनुमोदन बिना मंत्री के सहमति के संभव नहीं है. बिना एमओयू के पूरा खेल होता रहा, इससे साफ है कि इसमें बड़े लोग शामिल रहे हैं.’ जिस समय यह पूरा प्रकरण हो रहा था उस समय रंगनाथ मिश्र माध्यमिक शिक्षा मंत्री थे. इसीलिए एसआईबी ने पूछताछ के लिए रंगनाथ मिश्र को भी नोटिस जारी किया है.