ट्रांसजेंडर (तीसरा लिंग) के मानवीय अधिकारों की पक्षधर निशा गुलर आज अपने कार्य पर गर्व महसूस कर रही है। कुछ साल पहले ऐसा नहीं था। उसने 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। फिर वह एक ‘सेक्स वर्कर’ बन गई। वह भीख भी मांगती वह नहीं चाहती थी कि उसके परिवार को उसकी वजह से शर्मिदगी उठानी पड़े। उसे जीवन भर समाज की फब्तियां सुनने को मिलीं। हालांकि कुछ सालों बाद उसका परिवार उससे मिल गया।
आज निशा को इस बात का डर है कि नया कानून उससे सम्मानपूर्ण जीविका अर्जन का अधिकार छीन लेगा। निशा और उन जैसी कई और भी आज ‘सेक्स वर्कर’ के तौर पर और ‘भीख’ मांग कर अपना जीवन यापन करती हंै, और वे उसी पर निर्भर हैं। निशा का मानना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि यदि इस बिल में कुछ फेर बदल नहीं हुआ तो यह ट्रांसजेंडर और सेक्स वर्कर समुदाय के सपनों को तोड़ देगा।
नए बिल ने सेक्स वर्करों और ट्रांसजेंडर को बेचैन कर दिया है। बिल में रोक, सुरक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था की गई है। यह बिल लोकसभा में 26 जुलाई को पास हुआ। इसमें कई खामियां हंै। मानव तस्करी रोधक इस बिल के खिलाफ मानव तस्करी रोधक कार्यकर्ता, वकील और सिविल सोसायटी के लोग भी हैं। उनके अनुसार इस बिल में उस पुराने बिल की कमियों को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया गया है। इन लोगों को अब राज्यसभा सदस्यों से उम्मीद है कि वे इसका पूरा विश्लेषण करके ही इसे पास करेंगे। उनकी मांग है कि यह बिल स्थाई समिति के हवाले किया जाए।
सामाजिक विज्ञानी मीना सरस्वती सिशु ने ‘तहलका’ को बताया कि वे लोग अब राज्यसभा के सदस्यों से मिल कर बात करेंगे। उनकी यही उम्मीद है कि यह बिल स्थाई समिति को भेज दिया जाए।
‘तहलका’ ने सवाल किया कि यदि राज्यसभा भी इसे पास कर देती है तो आप क्या करेंगे? सिशु ने कहा तब हमें अदालत में जाना पड़ेगा क्योंकि उसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
महिला व शिशु विकास मंत्री मेनका गांधी ने विश्वास दिलाया कि यह बिल पीडि़त केंद्रित है और देश में मानव तस्करी के स्थाई समाधान की दिशा में पहला कदम। इस पर यह विवाद भी है कि इसमें गरीबी, कम वेतन या बेरोज़गारी, स्तर हीन शिक्षा, वर्ग और जाति उत्पीडऩ, खराब सामाजिक व आर्थिक हालात वगैरा का जि़क्र तक नहीं है, इनके बारे में सोचने की बात तो बहुत दूर की है।
महाराष्ट्र के सभी सेक्स वर्करस ने इक_े हो कर कहा कि बजाए इसके कि सरकार इससे प्रभावित होने वाले लोगों से बात करती, उनकी समस्याएं जानती, उनकी चिंता समझती, उनके प्रतिदिन होने वाल शोषण पर ध्यान देती, वह एक ऐसा बिल ले आई जो नैतिकता की सेना (मोरेल पुलिसिंग) को बढ़ावा देगा और सेक्स वर्करस का शोषण बढ़ाएगा।
इसके अलावा बहुत से सामजिक संगठनों ने इस बिल का विरोध किया है। इनमें नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्करस, आल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्करस, एचएयू सेंटर फॉर चाइल्ड वुमेन और न्यू ट्रेड यूनियन शामिल हंै।
ट्रांसजेंडर और सेक्स वर्करस के अधिकारों को समझना
नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्करस (एनएनएसडब्ल्यू) इंडिया ने 19 और सेक्स वर्करस के संगठनों की तरफ से जारी बयान में इस विषय पर लोकसभा द्वारा की गई जल्दबाजी की आलोचना की है। उनका सबसे ज़्यादा गुस्सा महिला व शिशु विकास मंत्री की उस टिप्पणी पर है जिसमें उन्होंने कांग्रेस के सांसद शाशि थरूर के बारे में कहा था कि वे सेक्स वर्करस के प्रतिनिधियों के साथ आए थे न कि पीडि़तों के साथ। इससे सेक्स वर्करस में काफी गुस्सा है।
उन्होंने कहा,’ मैडम मनिस्टर क्या हमें मत्रियों, सरकारों और सांसदों को अपनी बात कहने का अधिकर नहीं है? आपके अनुसार क्या हम निंदा के पात्र हैं और आप हमारे आत्मसम्मान की कीमत पर हमारा मज़ाक उड़ा सकते है? क्या हम भारत के नागरिक नहीं जिन्हें सम्मान से जीने का अधिकार हो? क्या हम महिलाएं नहीं हैं?
मानवाधिकार कार्यकर्ता अकाई पद्माशली को इस बात पर नाराजगी है कि सरकार बिल में ट्रांसजेंडर (तीसरा लिंग) का जि़क्र तक करना भूल गई। अकाई ने मेनका गांधी को संबोधित करते हुए कहा,’ आप केबिनेट में उच्च पद पर हैं और एक महिला होने के नाते आप अपने कत्र्तव्य निर्भयन में विफल रहीं हैं और अपने ‘ट्रांसजेंडर’ (तीसरा लिंग) की शब्दावली का इस्तेमाल तक नहीं किया। जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ने हमारे हक में फैसला दिया है। अदालत ने भारतीय संविधान के तहत हमारे अधिकारों को मान्यता दी है, तो आप उसे कैसे नहीं पहचानती। यह बिल पूरी तरह संवेदनहीन और गैर लोकतांत्रिक है, मैं इसकी निंदा करती हूं।
बिल की पृष्ठभूमि
इससे पहले भी मानव तस्करी को लेकर कई कानून हैं। इनमें आईपीसी की धारा 370 व 370ए, अनैतिक तस्करी (रोधक) कानून 1956 जिसमें किशोर न्याय (देखभाल और बाल सुरक्षा) कानून 2015 और कई कानून शामिल हैं। नए कानून से अपेक्षा थी कि वह पुराने सभी कानूनों की जगह एक संपूर्ण कानून बना देगा जो इसमें नहीं हुआ। इसकी बजाए बिल में कानून लागू करने वाली एजेसियों को और उहापोह की स्थिति में डाल दिया।
ट्रैफिकिंग ऑफ परसनस (प्रीवेशन, प्रोटेकशन और रीहैवलिटेशन) बिल 2018 महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 18 जुलाई को पेश किया और 26जुलाई को इसे पास कर दिया गया। ” ट्रैफिकिंग ऑफ परसनस’’ – यह शब्दावली आईपीसी की धारा 370 से ली गई है।
बिल की खामियां?
‘तहलका’ ने बिल में एक कमी देखी कि वह इसमें मानव अंगों और चमड़ी व्यापार के गैर कानूनी पहलू पर खामोश है। जो कि मानव तस्करी का ही हिस्सा है। यहां हजारों ऐसे लोग हैं जो आरोप लगाते हैं कि उन्हें पैसों का लालच दे कर उनके अंग निकाल लिए गए हैं। मिसाल के तौर पर तमिलनाडु के रामा पाथी (नाम बदला हुआ) का कहना है उसे गुर्दा देने के लिए सात लाख रुपए देने की बात हुई थी पर उसे केवल दो लाख ही मिले।
मानव तस्करी बिल ‘तस्करी’ की नई परिभाषा नहीं देता बल्कि पहली ही परिभाषा को धारा 370 के तहत नए रूप में जोड़ देता है। हां यह एक नया वर्ग ” ऐगरावेटिड फॉरम ऑफ ट्रैफिकिंग’’ बना देता है जिसमें कम से कम सजा 10 साल की है। जिसे उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है। ‘एगरावेटिड’ में बंधुआ या जब्री मज़दूरी के लिए तस्करी, भीख मंगवाने के लिए तस्करी, शादी या बच्चा पैदा करने के लिए की जाने वाली तस्करी भी शामिल है लेकिन ये सभी तो आईपीसी की धारा 370 मे ंपहले से ही निहित हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों (एनसीआरबी) के अनुसार 2016 में पुलिस ने जब्री मज़दूरी के 10,357 मामले दर्ज किए जबकि जब्री शादी के 349 और भीख मंगवाने के 71 मामले दर्ज किए गए थे। यह कहना कि ये सभी नए मामले हैं और मौजूदा कानूनों में इन पर काबू नहीं पाया जा सकता, पूरी तरह आधारहीन हैं।