मानव तस्करी का मकडज़ाल

नौकरी का लालच देकर अवैध रूप से लोगों को विदेश भेजने वालों पर हरियाणा सरकार कसेगी शिकंजा

आजीविका के लिए उन्होंने विदेश का रास्ता चुना; लेकिन गलत लोगों ने उन्हें ऐसी राह दिखायी कि वे डिटेंशन सेंटर या जेल पहुँच गये। गनीमत यह रही कि सब कुछ लुटाकर वे किसी तरह घर तक पहुँचने में सफल रहे, जिनको कभी घर पहुँचने की उम्मीद भी नहीं थी। यातनाओं में ही विदेशी धरती पर मर जाने का खौफ का मंज़र उनके ज़हन में अब भी है। घर तो सकुशल पहुँच गये, लेकिन वह भयावह मंज़र ज़हन से जाता नहीं।

बाहर नौकरी कर अच्छी ज़िन्दगी का उनका सपना मर गया, यहीं नौकरी या छोटा-मोटा काम करके इज़्ज़त की ज़िन्दगी परिजनों के साथ बसर करने की हसरत ही रह गयी है। देश में हज़ारों लोग गलत दस्तावेज़ के आधार पर विदेश पहुँच जाते हैं, जिनमें से ज़्यादातर गुमनामी की ज़िन्दगी जीने को मजबूर होते हैं। कुछ ही लोग किसी तरह कुछ साल गुज़ारकर, पैसा कमाकर सकुशल वापस घर पहुँचने में सफल रहते हैं। ऐसे लोग विदेश घूमने नहीं, बल्कि नौकरी और काम की तलाश में जाते हैं; लेकिन एजेंट गैर-कानूनी तरीके से उन्हें ऐसी जगह पहुँचा देते हैं, जहाँ से वापसी बहुत मुश्किल से होती है।

गैर-कानूनी तरीके से अमेरिका और मेक्सिको पहुँचे सैकड़ों भारतीयों को पिछले दिनों वहाँ की सरकारों ने विशेष विमान से जबरन भेज दिया। इनमें से 200 से ज़्यादा लोग हरियाणा और पंजाब के थे। 21 से 35 वर्ष के इन युवकों की दर्दभरी दास्तान सुनकर या पढ़कर कोई दूसरा बाहर जाने से पहले हज़ार बार सोचेगा। जंगलों और दुर्गम रास्तों से एक से दूसरे देश की सीमा चोरी-छिपे पार करना और छिपकर रहा। फिर अगले पड़ाव के लिए चल देना। इन्हें पहले बताया नहीं गया था कि उन्हें ऐसा करना होगा। उन्हें तो लाखों रुपये देने के बदले सीधे अमेरिका में उतारने और काम दिलाने की गारंटी दी गयी थी। इन्हें क्या पता था कि वे ऐसी अँधेरी सुरंग में पहुँच जाएँगे, जिसका सिरा उन्हें दूर-दूर तक नज़र नहीं आयेगा।

कोरोना महामारी के चलते वहाँ की सरकारों का फैसला एक मायने में उचित ही कहा जाएगा, वरना लम्बे समय तक यातना केंद्रों में रख सकती थी। उन पर अवैध तरीके से देश में घुसपैठ या अन्य गम्भीर धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जा सका था। किसी भी देश में गलत दस्तावेज़ के आधार पर रहना गम्भीर अपराध है। इसे वे भी जानते थे; लेकिन यह उन्हें बताया नहीं गया था। उनकी आँखों में विदेशी धरती पर नौकरी कर पैसा कमा खुद अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारने और परिजनों की मदद करने का था।

हरियाणा में ज़िला करनाल के गाँव शांबली का कुलजीत सिंह 12वीं तक पढ़ा है। खेती की ज़मीन तीन एकड़ है, परिवार का गुज़र-बसर मुश्किल से होता है। यहाँ नौकरी के लिए कोशिश की, लेकिन मिली नहीं। पिता जगजीत सिंह की मुलाकात किसी शिवकुमार नामक व्यक्ति से हुई। उन्होंने बेटे के बारे में बताया, तो उसने कहा कि क्या मुश्किल है। उसे बाहर भेजो देखो घर की हालत कैसे बदलती है। वह यह काम आसानी से करा देगा। कई लड़कों को वह भेज चुका है, कुलजीत भी चला जाएगा। उसके लिए पुर्तगाल ठीक रहेगा, उसे वहाँ काम मिल जाएगा। उन्होंने परिवार में बात की तो बेटा तैयार हो गया, भला बाहर नौकरी का मौका इतनी आसानी से किसे मिलता है। यहाँ घर बैठे काम हो रहा है। तीन लाख में सौदा पक्का हो गया। लेकिन इतना पैसा जगजीत सिंह के पास नहीं था। तीन एकड़ में से कुछ ज़मीन उन्होंने 12 लाख में बेच दी।

शिव कुमार ने सभी दस्तावेज़ भी तैयार कर दिये। सब कुछ ठीकठाक ही था। घर वाले बेटे के पुर्तगाल पहुँचने और काम शुरू करने की खबर का इंतज़ार करते रहे वह नहीं आयी। उन्हें पता चला कि कुलजीत पुर्तगाल नहीं, बल्कि मलेशिया में है। वहाँ की सरकार ने उसे अवैध तौर पर देश में घुसने के आरोप में पकड़ लिया है। एजेंट उसे छुड़ाने की एवज़ में जगजीत सिंह से पैसे वसूलता रहा। कुल मिलाकर उसने 4 लाख 19 हज़ार रुपये ले लिए। इनमें 30 हज़ार रुपये उसके बैंक खाते में जमा कराये बाकी राशि नकद दी गयी थी।

जगजीत कहते हैं, वहाँ कुलजीत को डेंगू हो गया था। हम लोग बिल्कुल टूट से गये थे। अब बात नौकरी की नहीं, बेटे की सकुशल घर वापसी की थी। लगभग एक महीने के बाद किसी तरह बेटा घर पहुँच गया, यही हमारे लिए बड़ी बात है। जगजीत ने थाने में मामला दर्ज करा दिया है, जिसकी जाँच चल रही है। पैसों की वापसी की उन्हें ज़्यादा उम्मीद नहीं लगती। उनका कहना है कि फिर किसी कुलजीत के साथ ऐसा न हो फिर बाहर जाकर नौकरी कर अच्छी ज़िन्दगी जीतने का सपना न टूटे इसलिए ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

करनाल के राहुल यादव स्नातक है। यहाँ नौकरी नहीं मिल रही थी, अमेरिका में काम और अच्छा पैसा मिलने का भरोसा मिला, तो तैयार हो गये। पर इसके लिए लाखों रुपये का बंदोबस्त कैसे हो? यह पैसा कैसे जुटाया गया यह उनके परिजन ही जानते हैं। इस उम्मीद के साथ कि बेटा किसी तरह अमेरिका पहुँच जाए, वहाँ काम कर अच्छा पैसा कमाने लगेगा, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। ट्रेवल एजेंटों ने राहुल और उसके साथियों को 10 से 20 लाख रुपये में अमेरिका तक पहुँचाने की बात तय की थी। उन्हें सपने में भी गुमान नहीं था कि उनके बुरे दिन शुरू हो गये हैं। जिन ट्रेवल एजेंटों को वे जाने से पहले भद्र पुरुष मान रहे थे, उन्हें बाद में शैतान नज़र आने लगे।

अमेरिका में प्रवेश से पहले उन्हें मेक्सिकों की पुलिस ने पकड़ लिया। वे मेक्सिको तक कैसे पहुँचे, कैसे-कैसे खतरे उठाये, इसे वे कभी भुला नहीं पाएँगे। कई बार जान जाते-जाते बची। उन्हें पता चल चुका था कि वे गैर-कानूनी तरीके से अमेरिका में पहुँचेंगे, जबकि तय शर्तों में इसका कहीं उल्लेख नहीं था।

राहुल कहते हैं कि लाखों रुपये खर्च करके और मुसीबतें उठाकर हम किसी आरामदायक घर में नहीं, बल्कि डिटेंशन सेंटर (नज़रबंदी शिविर) में पहुँच गये। जहाँ भेड़ बकरियों की तरह हमें ठूँस दिया गया। वहाँ भारतीयों के अलावा अन्य देशों के लोग भी थे। ये भी हमारी ही तरह गैर-कानूनी तरीके से देश में घुसने के आरोपी थी।

रवि यादव के मुताबिक, वहाँ कैदियों से भी बदतर ज़िन्दगी थी। अपराध बोध का अहसास होता था। कभी लगता हम कोई बड़ा गुनाह कर बैठे हैं, जिसकी कितनी सज़ा होगी यह हमें नहीं मालूम। शिविरों में न रहने की व्यवस्था और न खाने पीने की। पुलिस की सख्ती के आगे कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। रात दिन अपने को विदेश जाकर नौकरी करने और ट्रेवल एजेंटों को कोसते, जिन्होंने हमें ऐसे दुर्दिन दिखा दिये। अब कोई चारा नहीं था, अमेरिका में काम, पैसे और अच्छी ज़िन्दगी की बातें पीछे छूट गयी। अब अपने देश पहुँचने के ही लाले थे। कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी। करीब पाँच माह तक हम लोगों ने कैदियों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारी। वह भयावह सपने जैसा नहीं, बल्कि हकीकत थी। जिसे हम लोगों ने भोगा। हम लोगों को डुप्लीकेट वीजा पर भारत से रवाना किया गया था, इसका पता हमें बाद में हुआ।

हम लोग मुश्किल में थे, तो हमारे परिजन किसी तरह हमारी वापसी की दुआएँ माँग रहे थे। वे अपने तौर पर कोशिश कर रहे थे और हम भी चाहते थे कि किसी तरह से यहाँ से मुक्त हो जाएँ। हमारे कई साथी तो मानने लगे थे कि शायद वे यहीं मर जाएँगे। इन शिविरों में लम्बे समय तक वे नहीं जी सकेंगे। कहते हैं कि खाने में उन्हें गाय का मांस (बीफ) दिया जाता, तो भूख गायब हो जाती थी। ऐसे में भूखे रहने के अलावा दूसरा चारा नहीं था। शारीरिक और मानसिक तौर पर हम सभी टूट चुके थे। सभी को गाँव, घर, परिजन और देश याद आते, लेकिन वह तो सपने जैसा ही था। करीब पाँच माह इन शिविरों में गुज़ारे जो हमारे लिए पाँच साल जैसे रहे।

हरियाणा के सुखविंदर सिंह पोलीटेक्निक डिग्री होल्डर है। अमेरिका आने के लिए उन्होंने एजेंटों को 18 लाख रुपये दिये। यह पैसा बड़ी मुश्किल से जुटाया गया। पहले पढ़ाई पर पैसा खर्च हुआ और अब बाहर नौकरी करने के लिए लाखों रुपये लगे, लेकिन मिला क्या कुछ भी तो नहीं। सब कुछ बर्बाद होने जैसा है, इसकी भरपाई कौन करेगा? कितने सपने थे, अमेरिका में जाकर यह करेंगे, वह करेंगे। पैसा कमाएँगे और आराम से रहेंगे। फिर घर वालों की मदद करेंगे, जिन्होंने न जाने किन-किन लोगों से ऊँचे ब्याज पर पैसा जुटाया था। परिजनों को हमारी वजह से मुसीबतें उठानी पड़ी है।

नौकरी की तलाश में जाली दस्तावेज़ों के आधार पर गैर-कानूनी तरीके से विदेशों में जाने वाले की संख्या हज़ारों में है। ट्रेवल एजेंसी वाले कहते हैं कि उनके सम्पर्क शीर्ष स्तर तक है। उनकी पहुँच सीधे दूतावास तक है। ऐसा ही हवाला देकर वे ग्रामीण और भोले भाले युवकों को अपना शिकार बनाते हैं। बड़ी आव्रजन एजेंसी वाले ग्रामीण स्तर पर अपने एजेंट तैनात करती है जो कमीशन के आधार पर ऐसे लोगों को अपने जाल में फँसाते है। पैसों के बदले वे सभी काम अपने पर ले लेते हैं। वीजा से लेकर विदेश पहुँचाने की गारंटी तक देते हैं। विदेश जाने और वहाँ की चकाचौंध जैसी ज़िन्दगी गुज़राने के लालच में युवा आ जाते हैं। कुछ ही समय में पैसा कमा सारी भरपाई कर लेने का भ्रम भी उन्हें रहता है।

मेक्सिको से जबरन भेजे गये युवकों में कुछ तो इंजीनियर तक है, जिन्हें यहाँ काम नहीं मिला, तो बाहर जाने की सोची थी। इनमें से कुछ तो अब ज़िन्दगी में कभी भी देश के बाहर जाने की सोचेंगे भी नहीं; क्योंकि जो उन पर गुज़री है, वह उन्हें हमेशा याद रहेगा। उनकी राय में विदेश जाकर नौकरी करना कोई गलत बात नहीं; लेकिन इसके लिए सही दस्तावेज़ से कानूनी तौर पर जाना चाहिए। सरकार का ट्रेवल एजेंसियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर ऐसा होता, तो हमारे जैसों को क्यों सुनसान जंगलों से गुज़रना पड़ता? क्यों रात के अँधेरे में खतरनाक रास्तों से चलकर चोरी से सीमा पार करनी पड़ती। इसके लिए हमसे ज़्यादा ट्रेवल एजेंट दोषी है। वे बड़े लोग हैं, उनकी पहुँच ऊपर तक है; उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता। पर हम जैसे लोग पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं।

हरियाणा सरकार ने गैर-कानूनी तौर पर विदेश भेजने वालों शिकंजा कस दिया है। ऐसा करने वालों पर अब मानव तस्करी की धारा भी जोड़ी जाएगी। राज्य में दो साल के दौरान कोई 300 से ज़्यादा ऐसे मामले लम्बित हैं, जिनकी व्यापक स्तर पर जाँच चल रही है।

डंकी वीजा

फर्ज़ी दस्तावेज़ के आधार पर विदेश भेजने को डंकी फ्लाइट के तौर पर भी जाना जाता है। इस विधि से सीधे उस देश में नहीं, बल्कि कई रूटों के ज़रिये भेजा जाता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका तक पहुँचने के लिए कोलंबिया, पनामा, कोस्टारिका, निकारगुआ, ग्वाटेमाला और मेक्सिको और गंतव्य तक। इसमें हज़ारों तरह के खतरे उठाने पड़ते हैं। कहीं समुद्र के रास्ते, कहीं जंगलों के बीच, कहीं नदी-नालों को पार करना पड़ता है। इसी डंकी वीजा के बदले एजेंट लाखों रुपये वसूलते हैं। बहुत बार वे बता भी देते हैं कि कुछ खतरे तो उठाने पड़ेंगे, लेकिन उनकी जान को किसी तरह का खतरा नहीं होगा। कुछ तो सकुशल पहुँचाने के नाम पर अतिरिक्त पैसा भी वसूल कर लेते हैं। पकड़े जाने के बाद उन्हें छुड़ाने की एवज़ में मोटी रकम ऐंठते हैं। इसे फिरौती के तौर पर देखा जाना चाहिए। एजेंटों की ज़िम्मेदारी येन केन प्रकारेण अमुक देश तक पहुँचाने की है। उसके बाद क्या होता है, इसे वे देखते भी नहीं है।

एसआईटी गठित

हरियाणा में गैर-कानूनी तरीके से विदेश भेजने के मामलों को सरकार ने काफी गम्भीरता से लिया है। इसके चलते सरकार ने मानव तस्करी और अवैध वसूली जैसी धाराएँ जोडऩे को मंज़ूरी दी है। ऐसे मामलों की जाँच के लिए आई स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में विशेष जाँच समिति (एसआईटी) गठित की गयी है, जो पूरे राज्य में ऐसे सभी मामलों की विस्तृत जाँच करेगी। गृहमंत्री अनिल विज ने कहा है कि जाँच समिति के पास व्यापक अधिकार रहेंगे। करनाल रेंज की आईजी भारती अरोड़ा के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति गठित की गयी है। उनके अलावा छ: आईपीएस अधिकारी रहेंगे। इनमें मोहित हांडा, नाजनीन भसीन, राहुल शर्मा, हिमांशु गर्ग, लोकेंद्र सिंह और शशांक कुमार हैं। ज़्यादातर मामले कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल, पानीपत और कैथल क्षेत्रों से जुड़े हैं। एसआइटी 323 मामलों की व्यापक स्तर पर जाँच कर रही है। अभी तक कार्रवाई में 112 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इनके कब्ज़े से करीब 50 लाख रुपये बरामद हुए हैं। राज्य में वर्ष 2018-19 के दौरान 154 ऐसे मामले थे। इनमें 47 लोगों की गिरफ्तारी के समय एक लाख रुपये बरामद हुए। प्रभावितंों में ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों के है। भारती अरोड़ा मानती है कि ऐसे मामले केवल गैर-कानूनी तरीके से विदेश भेजने तक सीमित नहीं है। ये मानव तस्करी जैसा है, जो बहुत गम्भीर अपराध है। सरकार ने ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया। मानव तस्करी के साथ अवैध वसूली की धारा भी आरोपियों पर लगायी जाएगी, ताकि उन्हें कड़ा दण्ड मिल सके।