30 जुलाई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की तरफ़ से मानव तस्करी के ख़िलाफ़ विश्व दिवस के रूप में नामित किया गया है। इस दिन को चिह्नित करने और तस्करी के शिकार लोगों की दुर्दशा की याद दिलाने के लिए ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम (एसआईटी) इस बार आवरण कथा ‘बेबसी की दास्तान’ लेकर आयी है। रिपोर्ट इस सच को उजागर करती है कि कैसे बच्चों को उनकी शुरुआती अवस्था से किशोरावस्था तक, जिसे मासूमियत और आज़ादी के स्वर्ण युग में परिभाषित किया जाता है; देश के विभिन्न हिस्सों में निर्दयता से तस्करी करके लाया जाता है।
विशेष जाँच टीम के छिपे कैमरे ने सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल के एक मानव तस्कर को जीवन के जोखिम वाले दवा परीक्षण के लिए काम के झूठे वादे पर पैसे के बदले में प्रदान करने की पेशकश करते हुए रिकॉर्ड किया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा ग़ायब हो जाता है। कुछ समय पहले ‘ओरिएंट लॉन्गमैन’ द्वारा प्रकाशित, ‘एनएचआरसी एक्शन रिसर्च ऑन ट्रैफिकिंग’ से ज़ाहिर होता है कि किसी एक साल में औसतन 44,000 बच्चों के लापता होने की सूचना है और उनमें से 11,000 से अधिक का पता नहीं चला है। अकसर बच्चे और उनके ग़रीब माता-पिता, जिन्हें हरे नोट देने का वादा किया जाता है; अन्त में सम्पन्न लोगों के शहरी घरों में बहुत कम भुगतान, दुव्र्यवहार और कभी-कभी यौन उत्पीडऩ के साथ काम करने को मजबूर होते हैं। जैसा कि निजी घरों के अन्दर होता है; अकेले बच्चे पीडि़त होते हैं।
रिपोट्र्स से पता चलता है कि 2020 में तस्करी किये गये 2,222 बच्चों में से सबसे अधिक 815 (36.6 फ़ीसदी) राजस्थान से थे। इसके बाद केरल (184) और ओडिशा (159) थे। इसके बाद बिहार था, जहाँ 123 बच्चों और झारखण्ड से 114 बच्चों की तस्करी की गयी। भारत इस मामले में विशेष रूप से संवेदनशील है और ग़ैर-सरकारी संगठनों के अनुसार प्रतिदिन 21 बच्चों की तस्करी यहाँ की जाती है। चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन को केवल एक वर्ष में 50 लाख इमरजेंसी कॉल प्राप्त हुए। एनजीओ का अनुमान है कि भारत में क़रीब 3,00,000 (तीन लाख) बाल भिखारी हैं और हर साल 44,000 बच्चे इससे जुड़े गिरोहों के चंगुल में फँसते हैं। वेश्यावृति में क़रीब 40 फ़ीसदी बच्चे हैं। ऐसा अनुमान है कि भारत में रेड-लाइट ज़िलों में 20 लाख से अधिक महिलाओं और बच्चों का यौन सम्बन्ध बनाने के लिए तस्करी की जाती है।
प्रौद्योगिकी के आगमन के बावजूद, जिसने सूचना और ज्ञान की उपलब्धता को सरल किया है; बुनियादी शिक्षा की कमी, बेरोज़गारी और ग़रीबी के परिणामस्वरूप मानव तस्करी, यौन शोषण, जबरन श्रम, भीख माँगना और बच्चों के शोषण के मामले बढ़े हैं। निस्संदेह दुनिया भर में मानव तस्करी को ड्रग्स और हथियारों के बाद तीसरा सबसे आकर्षक अवैध व्यापार माना जाता है। हालाँकि यह अपराध है। ‘तहलका’ की जाँच से यह भी पता चला है कि नेपाली बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में जबरन मजदूरी के लिए भारत लाया जाता है। भारतीय महिलाओं को पैसे और यौन शोषण के लिए मध्य पूर्व में तस्करी कर लाया जाता है।
भारत में मानव तस्करी को संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार के रूप में प्रतिबन्धित किया गया है; लेकिन एक संगठित अपराध के रूप में मानव तस्करी जारी है। मानव तस्करी एक ऐसा अपराध है, जिसे ज़्यादातर पुलिस में कम रिपोर्ट किया जाता है। आज इसे रोकने और पीडि़तों के पुनर्वास के लिए गम्भीर नीतिगत पहल की आवश्यकता है। भारत की नयी शिक्षा नीति की प्रशंसा की गयी है। लेकिन तस्करी की जाँच के लिए मानव अधिकारों का पाठ्यक्रम अभी भी हमारी शिक्षा में शामिल किया जाना बाक़ी है।