इस साल दशहरे पर जो रेल हादसा अमृतसर में हुआ उसकी परछाई काफी लंबे समय तक लोगों के जहन में छाई रहेगी। इस हादसे में सरकारी आंकडों के अनुसार 59 लोगों की जान चली गई। मरने वालों में औरतें-पुरुष, बच्चे-बूढ़े और जवान शमिल हैं। 10-15 सेकेंड में जलंधर से अमृतसर जा रही डीएमयू गाड़ी ने रेल के ट्रैक पर खड़े इन लोगों को कुचल डाला। पता चला है कि जोड़ा फाटक पर जहां यह हादसा हुआ हर साल रावण के पुतले का दहन किया जाता है। यदि हालात पर नजऱ डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसा हादसा कभी भी हो सकता था। यह संयोग की बात है कि यह घटना अब हुई। इससे भी दुखद बात यह है कि हादसे के बाद उस पर पूरी सियासत शुरू हो गई। अकाली नेता सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को दोषी मान कर उस पर आरोप लगा रहे हैं और कांग्रेस पार्टी अकालियों को चपेट में लेने पर लगी है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की कोशिश इन दोनों को घेर कर अपने लिए एक वोट बैंक तलाश करने की ही।
इसी प्रकार नागरिक प्रशासन रेलवे को दोषी बता रहा है और रेलवे बोर्ड ने अपने पर लगे आरोप सिरे से खारिज कर दिए हैं। हालात ऐसे हैं कि लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है। किसी की जिम्मेदारी तय करने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना होगा।
सबसे पहले कि क्या दशहरे के लिए स्थान का चयन करने से पहले यह अंदाजा लगाया गया था कि जिस स्थान पर रावण का दहन होगा वहां कितने लोगों के लिए स्थान है, और कितने लोगों के इक_ा होने का अनुमान है? क्या किसी आपदा प्रबंधन के विशेषज्ञों से कोई राय ली गई थी? क्या आयोजकों ने इतने बड़े आयोजन के लिए प्रशासन से औपचारिक इज़ाजत ली थी? यदि प्रशासन ने इज़ाजत दी थी तो क्या उसने इसके लिए कोई आपात योजना तैयार की थी? क्या आयोजन से संबंधित सभी विभागों को पहले से सूचित कर दिया गया था? क्या फायर बिग्रेड और डाक्टरी सहायता वहां उपलब्ध थी?
हालात का जायजा लेने पर साफ पता चलता है कि उपरोक्त सभी सवालों के जवाब ‘नहींÓ में हैं। शहर के बीचो-बीच हुए इस हादसे में पहली डाक्टरी सहायता एक एंबुलेंस के तौर पर 30 मिनट के बाद घटना स्थल पर पहुंची। कहीं कोई योजना नहीं थी। चारों ओर अफरा-तफरी मची हुई थी। प्रशासन पूरी तरह पंगु नजऱ आ रहा था। हादसे के समय वहां मौजूद मुख्य अतिथि नवजोत कौर हादसा होते ही वहां से निकल गईं।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का यह पहला हादसा है। हमारे देश में ऐसे हादसे होते रहते हैं। खास कर धार्मिक स्थलों में जहां लोगों की अपार भीड़ जमा होती है। वहां कभी भगदड़ में सैंकड़ों लोग मर जाते हैं तो कभी पंडालों में लगी आग में लोग झुलस जाते हैं। सरकार वोटों की राजनीति के चलते किसी भी धार्मिक समागम पर कोई रोक नहीं लगाती। आयोजकों को सुरक्षा संबंधी हिदायतें नहीं दी जाती। यदि कागज़ों में कुछ निर्देश दिए भी गए हों तो उन पर अमल करने के लिए ज़ोर नहीं दिया जाता। बाकी की बात तो दूर है, पर प्रशासन आज तक रात को 10 बजे के बाद ‘लाऊड स्पीकरÓ का प्रयोग ही बंद नहीं करवा पाया। शादियों में तो कभी-कभी ऐसा हो भी जाता है, पर धार्मिक आयोजन में तो पूरी-पूरी रात यह सब चलता रहता है। आस पास के लोग सो नहीं सकते, मरीजों को आराम नहीं मिलता और बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती पर पुलिस प्रशासन ‘लाऊड स्पीकरÓ बंद नहीं करवा पाता । जब कोई हादसा हो जाता है तो फिर एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू हो जाता है। कुछ दिन उस पर टीवी पर बहस होती है, बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, पर हालात नहीं बदलते। इंतजार रहता है अगले हादसे का।
दोषी कौन?
अमृतसर रेल हादसे के लिए दशहरे के आयोजक और नागरिक प्रशासन पूरी तरह जिम्मेदार है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस आयोजन के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी। प्रशासन और आयोजकों को यह अनुमान तक नहीं था कि वहां कितने लोगों की भीड़ जुटने वाली है। उन्होंने आयोजन स्थल के निकट से गुजरने वाली रेल लाइन को भी पूरी तरह अनदेखा किया। वहां पर पूरी ‘बैरीकेटिंग’ नहीं की गई थी। फिर इस आयोजन को दिखाने के लिए लगाई गई एक बड़ी टीवी स्क्रीन ऐसे स्थान पर थी जिसे देखने के लिए लोग रेलवे ट्रैक पर चले गए। रावण के पुतले की ऊंचाई वहां उपलब्ध स्थान के अनुपात में बहुत ज़्यादा थी। लोगों की भीड़ के पास पीछे हटने की पूरी जगह नहीं थी। यही कारण था कि जैसे ही पुतले में आग लगाई गई, उसकी आग भड़की और उसमें रखे पटाखे फूटने लगे तो लोग घबराहट में पीछे हटते गए और रेलवे ट्रैक पर जा पहुंचे। संयोग से उसी वक्त वहां से डीएमयू गाड़ी गुजर रही थी। पटाखों के शोर में किसी को गाड़ी की आवाज़ सुनाई नहीं दी। जिन्हें सुनी भी उन्हें ट्रैक से बाहर आने का समय तक नहीं मिला। गाड़ी के चालक का यह कहना सही है कि उसे यह जानकारी नहीं थी कि ट्रैक पर सैकड़ों लोग खड़े हैं। फिर भी उसने गति को धीमा किया जो 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घटकर 65-68 किलोमीटर प्रति घंटा पर आ गई, लेकिन उस गति में गाड़ी के ‘इमरजेंसीÓ ब्रेक नहीं लगाए जा सकते थे, नही ंतो गाड़ी के पलटने का खतरा हो सकता था। यही वजह थी कि गाड़ी रुकी नहीं। वैसे भी ऐसे मौकों पर भीड़ अक्सर चालक पर हमला कर देती है। अब चालक अपनी जान बचाए या उन लोगों कि जो ट्रैक के बीच में खड़े हो कर तमाशा देख रहे थे।
आपदा प्रबंधन को गंभीरता से लेना ज़रूरी
अमृतसर की इस घटना के बारे में कनाडा में ब्रेंम्पटन इमरजेंसी मैनेजमेंट आफिस (बीईएमओ) से जुड़े कम्युनिटी इमरजेंसी रिस्पांस वलंटियर क्षितिज मोहन का कहना है कि इस घटना को बड़ी आसानी से रोका जा सकता था यदि आयोजकों ने पहले से ही आपदा प्रबंधन के विशेषज्ञों के साथ पूरी योजना पर विचार किया होता। कनाडा की मिसाल देते हुए क्षितिज ने बताया कि वहां चाहे छोटे से छोटा समारोह भी आयोजित करना हो, जिसमें बहुत कम लोग इक_ा होने हों, तो भी आयोजकों को आपदा प्रबंधन विभाग के साथ संपर्क करना पड़ता है। उसके बाद आपदा होने के जो-जो भी संभावित कारण हो सकते हैं, उन सभी पर विचार करके उनके निवारण के सभी प्रबंध पहले से कर लिए जाते हैं। क्षितिज के मुताबिक छोटे समारोहों के लिए जारी निर्देशों की जो फाइल बनती है उसके 24 से 25 पृष्ठ होते हैं। इस प्रकार वहां मानव जीवन को प्राथमिकता दी जाती है।
क्षितिज ने बताया कि किसी भी समारोह के लिए सबसे पहले उस समारोह के आयोजकों समेत उस आयोजन में शामिल होने वाले सभी लोगों और विभागों को आपस में जोड़ा जाता है। फिर एक -दूसरे से पुख्ता संबंध स्थापित करने के लिए पूरी योजना बनती है। एक-दूसरे से बातचीत करने के सभी माध्यमों को अपनाया जाता है।
इसके पश्चात समारोह स्थल और उसके आस-पास जहां से कोई भी खतरा हो सकता है, उन बिंदुओं को निर्धारित किया जाता है। तकनीकी भाषा में इसे ‘हैजडऱ् आइडेंटिफिकेशन एंड रिस्क एसेसमेंटÓÓ यानी एचआईआरए (हीरा) कहा जाता है। इसमें खराब से खराब स्थिति को ध्यान में रख कर पूरी तैयारी की जाती है। ताकि यदि कोई आपदा पैदा हो तो उससे आसानी से निपटा जा सके।
अब आयोजकों और उस समारोह से जुड़े दूसरे लोगों के साथ मिल कर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण समारोह स्थल पर आपदा की विभिन्न परिस्थितियों के लिए विभिन्न योजनाएं तैयार करता है। फिर उन योजनाओं का पूरा ब्यौरा आयोजकों और उससे जुड़े दूसरे लोगों में बांट दिया जाता है। इसके बाद ‘मॉक ड्रिल’ की जाती है, ताकि आपदा बचाव से जुड़े हर व्यक्ति को उसकी भूमिका पूरी तरह समझ में आ जाए। पूरे समारोह के दौरान इससे जुड़े सभी लोग और संस्थान रेडियो जैसे संचार माध्यमों से एक-दूसरे के साथ लगातार संपर्क में जुड़े रहते हैं।
इसके अलावा ‘इमरजेंसी रिस्पांस वालंटियर्स’ की भी तैनाती की जाती है। भारत में अभी ‘इमरजेंसी रिस्पांस वालंटियर्स’ वाली सोच नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ आम लोगों को इसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
क्षितिज के मुताबिक यदि इन छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान दिया गया होता और आयोजकों ने सिविल प्रशासन और रेलवे के साथ तालमेल बिठाया होता तो आज यह घटना न होती और बेकसूर लोग मारे नहीं जाते।
इसी प्रकार की एक घटना 23 अक्तूबर 2018 की है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा में एक फुट ब्रिज पर भगदड़ मच गई और दो लोग मारे गए व 17 घायल हो गए। रेलवे का यह फुटब्रिज प्लेटफार्म दो और तीन को जोड़ रहा था। घायलों में कई बच्चे और महिलाएं भी हैं। एक व्यक्ति की हालत बेहद गंभीर बताई गई। दक्षिण-पूर्वी रेलवे के अनुसार यह हादसा उस समय हुआ जब एक एक्सप्रैस ट्रेन और ईएमयू स्थानीय गाडिय़ां सवेरे 6.30 बजे एक साथ ही आ पहुंची। इन गाडिय़ों में सवार होने के लिए लोग इक_े ही फुटब्रिज पर चढऩे लगे। इसके साथ ही शालीमार-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस और संतरागाछी-चेन्नई एक्सप्रेस भी शीध्र ही आने वाली थीं। एक ही समय उतरने और चढऩे का प्रयास कर रहे यात्रियों के बीच धक्का-मुक्की होने के बाद भगदड़ मच गई।
यात्रियों का कहना था कि इस प्रकार की घटनाएं यहां, अक्सर होती रहती हंै, पर इन्हें रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की जाती।