एक अर्से से विभिन्न राज्यों से बूढ़े माँ-बाप की देखरेख न करने वाले बच्चों के लिए केंद्र सरकार अब सज़ा की मियाद बढ़ाने को है, क्योंकि पहले की कानूनी व्यवस्था पर शायद उचित अमल नहीं हो रहा था। गांवों, जि़लों और महानगरों से ऐसी ढरों घटनाएं सामने आ रही थी जिनमें असहाय वृद्धों को घर-घर भीख के लिए भटकना पड़ रहा था। जबकि उनके बच्चे उनकी देखरेख करने के लिए सामाजिक-आर्थिक तौर पर समर्थ थे।
प्रशासन के सामने यह बड़ी मानवीय समस्या हो गई थी कि शहरों में अकेले और असहाय बुजूर्गों के साथ लूटपाट, जालसाजी और हत्या के मामले तेजी से बढऩे लगे थे। ऐसी भी शिकायतें आ रही थी कि असहाय और अकेले वृद्ध जो अपने स्वास्थ्य और खान-पान की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं पर उनके बच्चे देश के दूसरे शहरों में या विदेश में है। इस कारण उनकी जिंदगी बोझ बन गई है। ऐसी भी कई घटनाएं सामने आई जहां बुजुर्ग दंपति या अकेले वृद्धजन अपने खाने-पीने की समुचित व्यवस्था न कर पाने के कारण मौत का शिकार हुए।
ऐसी घटनाओं पर कुछ रोक लगे इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट ने उन बच्चों को सज़ा देने का प्रावधान किया है जो चाह कर या अनजाने में अपने ही माता-पिता की देखरेख करने से बचते हैं। ऐसे लोग जब पकड़ में आएंगे तो सज़ा की अवधि तीन महीने थी। इसे अब बढ़ा कर छह महीने करने और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
केंद्र के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और कल्याण कानून 2007 में बच्चों की परिभाषा को भी विस्तार देने की सिफारिश की है। बच्चों की परिभाषा में अब दत्तक या सौतेले बच्चों, दामाद-बहुओं, पोते-पोतियों, नाती-नातिनों, और ऐसे नाबालिग भी शामिल करने की सिफारिश की गई है जिनका प्रतिनिधित्व कानूनी अभिभावक करते हैं। मौजूदा कानून में सिर्फ सगे बच्चे और पोते-पोतियां ही हैं। मंत्रालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और कल्याण कानून 2018 का मसविदा तैयार कर लिया है। कानूनी रुप मिलते ही इसे 2007 के कानून की जगह अमल में लाया जाएगा। नए संभावित कानून में मासिक देखभाल भत्ता की अधिकतम सीमा 10,000 रुपए मात्र भी खत्म कर दी गई है। यदि बच्चों को माता-पिता की देखभाल करने से इंकार करने का दोषी पाया जाता है तो उन पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
एक ऐेसे ही मामले में कोर्ट के आदेश पर अपने मां-बाप को एक बच्चा तो ‘मेंटिनेंस’ देने लगा था लेकिन दूसरा राजी नहीं हो रहा था। बुजुर्ग मां-बाप ने सीआरपीसी की धारा 125(3) के तहत अनपेड अमाउंट पाने की याचिका हाईकोर्ट में लगाई थी। उस पर अदालत ने सज़ा दी। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट संजय मेहरा ने जानकारी दी कि अदालती आदेश के बाद भी मां-बाप को ‘मेंटिनेंस’- न देना अपराध है। इस पर धारा 125 सीआरपीसी, गुज़ारा भत्ता देने के लिए बना है। इसके तहत सुनवाई के बाद अदालत आदेश देती है। इसमें परेशान पत्नी अपने पति से, बच्चे पिता से और बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों से गुजारा भत्ता ले सकते हैं।
इसी तरह हिंदू दंपत्ति को पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी को गुज़ारा भत्ता नहीं मिल सकता। इसी तरह बिना तर्क संगत कारण के अलग रह रही पत्नी भी गुज़ारा भत्ता नहीं पा सकती है। हालांकि गुज़ारा भत्ता तय हो जान के बाद पति को छोड़कर मनमर्जी से अलग रह रही पत्नी के बच्चों को गुज़ारा भत्ता मिल सकता है। बशर्ते वह शारीरिक या मानसिक तौर पर खुद की देखभाल करने में असमर्थ हों। नए मसविदे के कानून बन जाने पर हजारों मजबूर बुजुर्गों को राहत उनके जीवन के संध्याकाल में मिल सकेगी।