नये साल के पहले दिन की पहली सुबह अक्सर इंसान को एक नयी दुनिया में ले जाती है। इंसान कुछ नया करने की ऊर्जा, जोश से भरा होता है। उसकी आँखों के सामने उस साल का रोडमैप तैरने लगता है। लेकिन अफ़सोस कि वर्ष 2022 की पहली सुबह ने देश के एक अल्पसंख्यक समुदाय की क़रीब 100 महिलाओं के लिए उल्लास के इस पर्व को फीका कर दिया। ऑनलाइन बुलिंग के ज़रिये केवल 100 मुस्लिम महिलाओं के भीतर ही दहशत पैदा करने की कोशिश नहीं की गयी, बल्कि इसके ज़रिये अल्पसंख्यक समुदाय की हज़ारों महिलाओं को सन्देश भिजवाया गया कि मुखर, ग़लत नीतियों, फ़ैसलों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने पर उनकी भी इसी तरह बोली लगायी जा सकती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में हाल के वर्षों में जिस तरह से राजनीति को ध्रुवीकरण ने जकड़ लिया है, धर्म संसदों में धर्म के नाम पर नफ़रती तकरीरें सुनायी पड़ रही हैं। ऐसे माहौल में एक ख़ास समुदाय विषेश की महिलाओं को अपमानित करने वाले मामले देश की छवि पर दाग़ ही लगाते हैं।
बहरहाल पहली जनवरी को दिल्ली की एक पत्रकार ने व्हाट्स ऐप पर अपने एक दोस्त का सन्देश खोला और उसमें दर्शाये गये लिंक को इस उम्मीद के साथ खोला कि यह हैप्पी न्यू ईयर का सन्देश होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था, जो मेरे ख़यालों में चल रहा था। इसके उलट मैंने अपनी एक फोटो का स्क्रीनशॉट देखा, जिसमें यह लिखा हुआ था कि ‘मैं बुल्ली ऑफ द डे हूँ। मुझे यह देख सदमा लगा।’
इस महिला पत्रकार ने ट्विट किया- ‘यह बहुत दु:खद है कि एक मुस्लिम महिला होने के रूप में आपको अपने नये साल की शुरुआत इस डर और नफ़रत के साथ करनी पड़ रही है।’
महिला पत्रकार ने ख़ामोश बैठने की बजाय दिल्ली पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का फ़ैसला लिया। और 2 जनवरी को दिल्ली व मुम्बई पुलिस ने पीडि़त महिलाओं की शिकायत पर अज्ञात व्यक्तियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की। दिल्ली व मुम्बई की पुलिस ने यह लेख लिखे जाने तक इस मामले में चार लोगों को देश के अलग-अलग शहरों से गिरफ़्तार किया था।
दरअसल दिल्ली पुलिस की विषेश शाखा ने इस मामले में असम के ज़ोरहाट ज़िले से एक 21 साल के नीरज बिश्नोई को पकड़ा है, जो कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। पुलिस का दावा है कि जिस वेब आधारित ऐप पर 100 मुस्लिम महिलाओं की आपत्तिजनक तस्वीरें व भद्दी टिप्पणियाँ डाली गयी थीं, वह इसी युवा छात्र ने बनाया था और उसे संचालित भी कर रहा था। दरअसल यह समझना भी ज़रूरी है कि बुल्ली बाई ऐप क्या है? बुल्ली बाई ऐप गिटहब नाम के प्लेटफॉर्म पर मौज़ूद है। गिटहब एक खुला मंच है और यह अपने इस्तेमालकर्ता को कोई भी ऐप बनाकर उन्हें साझा करने का विकल्प देता है। आप यहाँ निजी और व्यावसायिक किसी भी तरह का ऐप साझा करने के साथ उसे बेच भी सकते हैं।
इस ऐप को खोलने पर समुदाय विशेष की 100 महिलाओं के चेहरे नज़र आते थे। इस सूची में महिला पत्रकार, कार्यकर्ता, वकील शामिल थीं। यह ऐप खोलने पर इस्तेमाल करना इन तस्वीरों में से एक महिला की तस्वीर को बुल्ली बाई ऑफ द डे चुनता था। बुल्ली बाई नाम के एक ट्विटर हैंडल से इसे प्रमोट भी किया जा रहा था। इस हैंडल पर समुदाय विशेष की महिलाओं की बोली लगने की बात लिखी थी। यह मामला सामने आने पर विपक्षी दलों ने इसका तत्काल विरोध करना शुरू कर दिया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने महिलाओं का उत्पीडऩ किये जाने की निंदा की और दावा किया कि यह भाजपा द्वारा अमानवीयकरण का नतीजा है। शिव सेना की सांसद प्रिंयका चतुर्वेदी ने भी इस घटना की निंदा की और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी-से-कड़ी कार्रवाई करने की अपील की।
चौतरफ़ा दबाव के मद्देनज़र पुलिस ने फ़ौरन कार्रवाई शुरू करते हुए गिरफ़्तारियाँ करनी शुरू कीं, जो जारी हैं। बुल्ली बाई ऐप व ट्विटर हैंडल को भारत सरकार के दख़ल के बाद हटा लिया गया है। इस मामले में अभी कितनी और गिरफ़्तारियाँ होंगी, न्यायालय में यह मामला क्या मोड़ लेता है, क्या दोषियों को सज़ा होगी व कब होगी? ऐसे सवालों के जबाव अभी नहीं दिये जा सकते हैं। लेकिन इस घटना से प्रभावित कुछेक महिलाओं का कहना है कि अगर सरकार जुलाई, 2021 में सख़्ती दिखाती, तो बुल्ली बाई वाले मामले को रोका जा सकता था।
ग़ौरतलब है कि 4 जुलाई 2021 को कई ट्विटर यूजर्स ने ‘सुल्ली डील्स’ नाम के एक ऐप के स्क्रीनशॉट साझा किये थे, जिसे गिटहब पर एक अज्ञात समूह द्वारा बनाया गया था। ऐप में एक टैगलाइन थी, जिस पर लिखा था- ‘सुल्ली डील ऑफ द डे’ और इसे समुदाय विशेष की क़रीब 80 महिलाओं की तस्वीरों के साथ लगाया गया था। सुल्ली व बुल्ली सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ प्रयोग किये जाने वाले अपमानजनक शब्द हैं। दोनों मामलों में किसी भी तरह की असली नीलामी नहीं थी, बल्कि असल मक़सद मुस्लिम महिलाओं को नीचा दिखाना था। ध्यान देने वाली बात यह है कि उस समय भी प्रभावित महिलाओं ने पुलिस से शिकायत दर्ज करायी; लेकिन पुलिस ने मामले के तूल पकडऩे से पहले किसी को भी गिरफ़्तार तक नहीं किया। अब जब बुल्ली बाई का मामला सामने आया और सुल्ली डील्स के मामले में पुलिस की निष्क्रियता, अगम्भीरता, संवेदनहीनता की पोल फिर से खुलने लगी, तो दिल्ली के डीसीपी के.पी.एस. मल्होत्रा ने 5 जनवरी को मीडिया को बताया कि सुल्ली ऐप मामले में म्यूचुअल लीगल असिस्टेंट ट्रीटी प्रक्रिया (एमएलएटी) भारत में पूरी हो गयी है और जल्द ही इसे न्याय विभाग को सौंप दिया जाएगा। डीसीपी मल्होत्रा ने यह भी कहा कि बुल्ली बाई ऐप सुल्ली डील्स जैसा ही प्रतीत होता है, जिसने पिछले साल इसी तरह की गतिविधि शुरू की थी। भारत में महिलाओं के ऑनलाइन उत्पीडऩ के बाबत अमनेस्टी इंटरनेशनल 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जो औरत जितनी मुखर थी, उसको निशाना बनाये जाने की सम्भावना उतनी अधिक थी। और इस सम्भावना का स्केल धार्मिक अल्पसंख्यक महिला व वंचित समुदाय की महिला होने के कारण बढ़ जाता है। यह उन्हें चुप कराने व शर्मिंदा करने का प्रयास है और उन्होंने समाज, सार्वजनिक मंचों पर अपना जो वजूद बनाया है, जो जगह बनायी है, उसे छीनने की कोशिश है।’
दरअसल भारत की आबादी में 48 फ़ीसदी महिलाएँ हैं और ऑनलाइन महिलाओं का उत्पीडऩ एक गम्भीर मुद्दा है। देश में टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के अनुसार, मार्च 2021 तक क़रीब 82 करोड़ 50 लाख इंटरनेट उपभोक्ता थे। इनमें से अधिकतर अपनी वास्तविक पहचान के साथ इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो ग़लत मंशा से फ़र्ज़ी नाम से इस्तेमाल करते हैं। कई लड़कियों, महिलाओं को निशाना बनाते हैं। कड़ुवी हक़ीक़त यह है कि यह संगीन अपराध केवल महानगरों, नगरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गाँवों तक में भी फैल चुका है। लेकिन अभिभावक, परिजन ऐसे मामलों की अक्सर शिकायत ही दर्ज नहीं कराते। उन्हें एक तो अपने परिवार, सम्बन्धित लड़की, महिला की इज़्ज़त ख़राब होने का डर सताता है, दूसरा उन्हें इस बात की सही जानकारी भी नहीं होती कि साइबर अपराध दर्ज कराने की प्रक्रिया क्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड शाखा की रिपोर्ट ‘भारत में अपराध 2020’ महिलाओं को बदनाम करने, उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करने के 251 मामले और उनके फ़र्ज़ी प्रोफाइल बनाने के 354 मामले ही बताती है।
सरकारी रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश में 2020 में साइबर अपराध के कुल 50,035 मामले दर्ज किये गये, जिसमें महिलाओं के ख़िलाफ़ मामलों की संख्या 10,405 थी। ये आँकड़े ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बोलते। आधी आबादी की ऑनलाइन हिफ़ाज़त के लिए कई र्मोचों पर तेज़ी से काम करने की ज़रूरत है। क्योंकि इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का आँकड़ा रोज़ बढ़ ही रहा है और तकनीक में बदलाव भी तेज़ी से हो रहे हैं। समाज को महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले साइबर अपराधों को गम्भीरता से लेना होगा, ज़िला प्रशासन, क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को शिविर लगाकर आम लोगों को इससे सम्बन्धित क़ानूनी जानकारी व लिखित सामग्री मुहैया करानी चाहिए।
इसके अलावा शैक्षाणिक संस्थानों व कार्यस्थलों पर लड़कियों, महिलाओं को इससे सम्बन्धित जानकारियाँ देकर उन्हें सशक्त करने की दिशा में ठोस काम करने की ज़रूरत है। साइबर अपराधों की सुनवाई भी त्वरित होनी चाहिए। दोषियों को सही समय पर मिली सज़ा का सन्देश कहीं-न-कहीं अपना असर दिखाता है। सोशल मीडिया से अरबों की मुनाफ़ा कमाने वाली दिग्गज कम्पनियों को भी महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा के प्रति अपनी जबावदेही को गम्भीरता से लेना होगा।
सुल्ली डील्स मामले के बाद जुलाई, 2021 में दुनिया भर से 200 से अधिक जाने-माने अभिनेताओं, संगीतकारों, पत्रकारों व सरकारी अधिकारियों ने फेसबुक, गूगल, ट्विटर व टिकटॉक के सीईओ को एक खुला पत्र लिखकर महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की अपील की थी। हालाँकि इस मामले में कार्रवाई हुई है; लेकिन देर से हुई है। साथ ही अभी ऐसे मामलों में और सख़्ती की ज़रूरत है।