यूं तो आज पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के जरिये आधी आबादी सम्मान देने की बात कह रही है। सोशल मीडिया में खूब बखान भी किया जा रहा है। इस सबके बावजूद क्या महिलाओं को वह मुकाम मिल रहा है, जिसकी वह हकदार हैं। शायद नहीं, इसकी बानगी हम आज के ही कुछ उदाहरणों के जरिये समझ सकते हैं।
महिलाओं में खासकर निचले तबके में अभी भी उनको घरेलू कामकाज वाली ही समझा जाता है। इसके अलावा समाज में उनको लड़कों जैसी अहमियत नहीं मिलती है। कई जगह ऊंच-नीच का फर्क भी है। आज भी बहुत से इलाकों में निचली जाति के लोगों के घोड़े पर बैठने तक नहीं दिया जाता। इसकी झलक यूपी में गत वर्ष देखी जा चुकी है। शादी में एक युवक को बैठने के लिए अदालत का रुख करना पड़ा था।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर घोड़े पर बैठने की शान और अहमियत को आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में देखने को मिली। राजधानी रांची में कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद ने इस खास दिन को खास तरीके से मनाकर और खास बना दिया। सोमवार को कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद घोड़े पर सवार होकर शान से विधानसभा पहुंचीं। हालांकि इसके पीछे की सोच और सामाजिक स्तर को मापा जा सकता है।
महिला विधायक को घोड़े पर सवार देख सभी विधानसभा के बाहर सभी लोग हैरान थे। वहीं, जब उनसे घोड़े पर सवार होकर विधानसभा पहुंचने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह घोड़ा उन्हें उपहार में मिला है। खास दिन पर यह तोहफा उनको कर्नल (सेवानिवृत्त) रवि राठौर ने दिया है। फिर भी इस घुड़सवार ने युवा महिलाओं में जोश भर दिया।
वहीं, तुर्किस्तान में बड़ी संख्या में महिलाओं ने चीन में उइगर मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ हो रही ज्यादती पर आवाज बुलंद की। उन्होंने महिला दिवस पर हो रहे अत्याचार के लिए वैश्विक संस्थाओं का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया ताकि जरूरी कदम उठाए जा सकें।
महिलाओं का सम्मान करने के लिए कहीं बस, ट्रेन चलाने से लेकर फाइटर विमान तक में फर्राटा भर्ती नजर आईं। इसके अलावा हर क्षेत्र में उन्होंने अपने आपको साबित किया है। तीनों सेनाओं में आज वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
इस बीच, मध्य प्रदेश में महिला कांस्टेबल मीनाक्षी वर्मा को विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक दिन के लिए राज्य का गृह मंत्री बनाकर सम्मानित किया गया।
यह भी सच है कि मजदूर वर्ग में खास बदलाव नहीं देखने को मिला है। आज के दिन भी वह मजदूरी करने वाली औरतें ईंट भट्ठों में मजदूरी करती दिखीं। हालांकि मेहनत करने में हर्ज नहीं, बावजूद इसके उनकी अहमियत को मुकाम न मिलने पर तकलीफ होती है।