बधाई हो! यहां बीते साल की सफल हिंदी फिल्मों में शुमार बधाई हो फिल्म की बात नहीं हो रही बल्कि 17वीं लोकसभा में जीत कर पहुंची 78 महिला सांसदों की बात हो रही है। आजाद भारत के लोकतंात्रिक इतिहास में पहली मर्तबा 78 महिलाओं ने संसद में जीत दर्ज कर पुरुषों की संख्या में 16वीं लोकसभा की तुलना में तीन फीसद की कमी ला दी है। अब 524 सांसदों वाली लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 14 प्रतिशत हो गई है और उम्मीद की जानी चाहिए कि 2024 आम चुनाव में इससे भी अधिक महिलाएं जीत दर्ज कर पुरुष प्रधान लोकसभा में पुरुषों के वर्चस्व को तोडऩे में सफल होंगी। दरअसल 2019 आम चुनाव के नतीजों पर एक निगाह इस नज़रिए से भी डालना जरूरी हो जाता है क्योंकि मुल्क में आधी आबादी महिलाओं की हैं। मुल्क में 48.5 फीसद महिलाएं हैं। महिलाओं की भागीदारी और सफलता चुनावी राजनीति में सकारात्मक संदेश है और महिला उम्मीदवारी से संबधित कई राजनीतिक पूर्वाग्रहों में हो रहे बदलाव पर चर्चा के दायरे को विस्तार और उसे अगले स्तर तक ले जाने में मददगार हो सकता है। महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण एक ऐसी ताकतवर कुंजी है,जिससे नई राहें खुलती हैं व कई गांठें सुलझती हैं। बतौर मतदाता उनकी भागीदारी पर चर्चा 2009, 2014 के आम चुनाव में भी हुई थी और इस बार महिलाओं ने पहली बार पुरुषों से अधिक मतदान किया। यह भी तथ्य गौरतलब है कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब 67.11 फीसद मतदाताओं ने अपने मतदान का इस्तेमाल किया। मुल्क के 13 सूबों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक थी। 9 सूबों में महिलाओं ने प्रतिशत की दृष्टि से पुरुषों से अधिक मतदान किया। 2014 में महिला मतदान 66 फीसद था। 1962 में पुरुष व महिलाओं की वोटिंग का अंतर 17 फीसद था और 1967 में महिला मतदाता पुरुष मतदाता से 11.3 फीसद पीछे थीं। 2014 में यह अंतर 1.4 फीसद का था और 2019 में यह .4 तक सिमट गया है। महिला मतदाताओं की बढ़ती संख्या महिला-पुरुष मतदाताओं के बीच के फासले को पाटने में अहम साबित हुई हैं। प्रसंगवश यहां इसका जि़क्र करना जरूरी लग रहा है कि 1952 में जब आज़ाद भारत के पहले आम चुनाव होने थे तब उसकी तैयारियों के लिए घर-घर जाकर मतदाताओं की संख्या, नाम आदि के ब्यौरे इक_े करने की जो कवायद चल रही थी, उससे पता चला कि परिवार का मुखिया पुरूष घर की महिलाओं के बारे में जो परिचय देता था, उसमें उसे किसी की पत्नी, बहन मां, बेटी आदि के रूप में कराता था यानी पुरुष महिला को बतौर स्ंवतंत्र मतदाता के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। उनका यह मानना था कि जहां उनकी वोट जाएगी वही घर की महिला की वोट भी जाएगी। जबकि आजाद भारत ने पुरुषों व महिलाओं को मतदान का अधिकार देते समय कोई भेदभाव नहीं किया था। मुल्क में महिला मतदाताओं की संख्या 2014 के 47 फीसद से बढ़कर 2019 में 48.13 फीसद हो गई है। 4.35 करोड़ नए वोटरों में आधे से अधिक महिला वोटर हैं। महिला वोटरों के नामांकन में अग्रणी सूबों में उत्तरप्रदेश (54 लाख),महाराष्ट्र (45 लाख), बिहार (42.8 लाख),पश्चिम बंगाल (42.8 लाख) तमिलनाडु ( 29 लाख) शमिल हैं। जाहिर है महिला मतदाताओं की संख्या और मतदान करने में महिला-पुरुष के बीच के फासले के पटने की दर को देख राजनीतिक दलो ने भी अपनी चुनावी रणनीति व घोषणा पत्रों में उन पर फोकस किया। ओडिसा के मुख्यमंत्री और बीजीडी नेता नवीन पटनायक ने आम चुनाव की तारीखें घोषित होते ही ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में 33 फीसद टिकट महिलाओं के लिए आरक्षित करेगी। उसके अगले ही दिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने 40 फीसद टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर डाली। केंद्र में भाजपा सरकार ने तो उज्जवला, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सौभाग्य, जनधन खाते, मुद्रा लोन आदि के जरिए महिला मतदाताओं को अपनी ओर करने की भरपूर कोशिश की और बकायदा इसके लिए रोडमैप भी बनाया। मोदी सरकार ने पांच राज्यों उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान की 216 सीटों पर 4.5 करोड़ उज्जवला गैस कनेक्शन बांटे थे और इन 216 सीटों में से भाजपा ने 156 यानी 66 फीसद सीटें जीत ली। गौर करने वाला तथ्य यह भी है कि 4.5 करोड़ उज्जवला गैस कनेक्शन में से 48 फीसद कनेक्शन उत्तरप्रदेश व बंगाल में बांटे गए थे। हो सकता है कि चुनाव परिणाम आने से पहले उत्तरप्रदेश में भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन के चलते भारी नुकसान होने के जो विश्लेषण किए जा रहे थे, उन्हें गलत साबित करने में उज्जवला ने अपनी भूमिका निभाई हो। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 18 सीटों पर जो जीत दर्ज कर सबको चैंका दिया है,उसमें भी उज्जवला ने भाजपा का साथ दिया होगा। बहरहाल 17वीं लोकसभा में 78 महिला सांसदों का पहुंचना यानी 14 प्रतिशत महिलाएं लोकसभा में जनता का प्रतिनिधित्व करेंगी और यह आजाद भारत में पहली बार होगा। 16वीं लोकसभा में करीब 11 प्रतिशत महिलाएं थीं और सबसे पहली लोकसभा में पांच प्रतिशत महिलाएं थी। 78 महिला सांसदों में से एक तिहाई ऐसी हैं,जिन्हें जनता ने दोबारा भेजा है। इस बार (2019) 78 महिला सांसदों में से 11 उत्तर प्रदेश और 11 ही पश्चिम बंगाल से निर्वािचत हुई हैं। उत्तर प्रदेश मुल्क का सबसे बड़ा सूबा है और पश्चिम बंगाल से 11 महिला सांसदों का श्रेय बहुत हद तक ममता बनर्जी को जाता है क्योंकि ममता ने 41 फीसद टिकटें महिलाओं को दी थीं। 22 टीएमसी सांसदों में से 9 महिलाएं हैं। ओडिसा में बीजेडी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया था और पांच ने जीत दर्ज की। भाजपा ने देशभर में 54 महिलाओं को टिकट दिए और 40 को जनता ने लोकसभा में भेजा है। कांगे्रस ने 53 महिलाओं को टिकट दिए और 6 के हिस्से जीत आई। इस बार आम चुनाव के लिए खड़े 8000 उम्मीदवारों में से महिला उम्मीदवारों की संख्या 10 फीसद से भी कम थी लेकिन संसद में जीतकर पहुंचने वाली महिलाओं का प्रतिशत 14 है। 2014 में पुरुष सांसदों की संख्या 462 थी,जोकि 2019 में घटकर 446 रह गई है। यूनाइेटड नेंशस यूनिवसिर्टी वल्र्ड इस्ंटीटयूट फॉर डवलपमेंट इकॉनामिकस की 2018 में कराई गई एक स्टडी के अनुसार जिन संसदीय इलाकों में महिलाओं को चुना जाता है,वहां आर्थिक गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्वि होती है। 78 महिला सांसदों के समक्ष महिला आरक्षण बिल को पारित कराना, रोजगाार में महिलाओं की भागीदारी की दर इस समय 26 प्रतिशत है उसे बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव डालना ,महिला सुरक्षा और महिलाओं से जुड़े मुददों को राजनीति में प्राथमिकता दिलाने की चुनौती उनके सामने है।