पहाड़ी राज्य हिमाचल के कुल्लू ज़िले के शक्ति गाँव की गत 21 फरवरी की घटना है। मोबाइल फोन और एम्बुलेंस के अभाव में एक गर्भवती महिला को दुर्गम गाँव की महिलाएँ मिलकर 18 किलोमीटर दूर मुश्किल और जंगल वाले मार्ग से अस्पताल तक पैदल पालकी में बैठाकर ले गयीं, ताकि उसका सुरक्षित प्रसव हो सके। जीवट भरे इस कार्य से देश की महिलाओं पर चस्पा बेचारी या अबला का ठप्पा हास्यास्पद लगता है। लेकिन फिर अचानक देश में रोज़ हो रहे दर्जनों वीभत्स दुष्कर्म या उनका उत्पीडऩ महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दर्जनों सवाल खड़े कर देते हैं और इन सब के बीच सर्वोच्च न्यायालय का भारतीय सेना की महिलाओं को स्थायी कमीशन देने वाला ऐतिहासिक आदेश एक अलग तरह की उम्मीद जगाता है।
इस बात में कोई शक नहीं कि देश की असंख्य महिलाएँ आज भी जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गरीबी और अशिक्षा का सबसे बड़ा असर उन पर ही है और एक अभिशाप की तरह उन्हें बार-बार डसता है। ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन महिलाओं के पक्ष के लिहाज़ से जहाँ बहुत लाचारियों भरी तस्वीर सामने आती है, वहीं बहुत उम्मीद भरे परिवर्तन भी देखने को मिलते हैं।
अधिकार पर मुहर
पहले बात करते हैं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की, जिसने देश की सेना में सभी महिला अफसरों के लिए स्थायी कमीशन का रास्ता खोल दिया है। वायुसेना और नौसेना में यह पहले से था। कोर्ट का यह फैसला दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में शामिल भारतीय सेना में काम कर रही महिलाओं के लिए एक बड़ा सम्मान है, जो वास्तव में उनका अधिकार था।
वैसे यह एक लम्बी लड़ाई थी। करीब 17 साल के बाद इस लड़ाई का फैसला उनके हक में आया और महिलाओं के लिए सेना में स्थायी कमीशन का रास्ता खुल गया। सर्वोच्च न्यायालय ने 17 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में जहाँ सरकार को लताड़ लगायी; वहीं उसने यह सरकार और सेना पर छोड़ दिया कि महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने का फैसला वही करे। आपको एक आँकड़ा भी बता दें कि 2016 से पहले करीब 2.5 फीसदी महिलाएँ भारतीय सशस्त्र सेनाओं में शामिल थीं। जनवरी 2019 तक सेना में महिलाओं की संख्या कुल सैन्य बल का 3.89 फीसदी, जबकि जून 2019 तक नौसेना और वायुसेना में यह क्रमश: 6.7 और 13.28 फीसदी था।
आज जब देश में महिला सशक्तिकरण एक बड़ा मुद्दा है, थलसेना में महिलाओं को लेकर नियम सच में चौंकाते थे। इस फैसले से पहले उन्हें (मेडिकल कोर और नॄसग सर्विसेस को छोडक़र, जहाँ पहले से स्थायी कमीशन है) न तो पेंशन मिलती थी न अन्य सुविधाएँ। वैसे सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत भर्ती हुई महिलाएँ पहले केवल 10 साल तक ही नौकरी कर पाती थीं। बाद में 7वें वेतन आयोग में नौकरी की अवधि को बढ़ाकर 14 साल किया गया।
यदि इतिहास पर नज़र डालें, तो ज़ाहिर होता है कि साल 2010 में ही दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने का फैसला सुनाया था। तब दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हम महिलाओं पर अहसान नहीं कर रहे, बल्कि उन्हें उनका अधिकार दिला रहे हैं। इसके बाद सितंबर, 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी साफ कर दिया था कि वह हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगा रहा। तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी; लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। साल 2014 में मोदी सरकार आ गयी, लेकिन उसके बाद भी छ: साल तक इस मामले में कोर्ई कदम नहीं उठाया गया। अब जाकर सर्वोच्च अदालत से महिला अधिकारियों को न्याय मिला है।
वैसे केंद्र सरकार ने पिछले साल फरवरी में सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनायी थी, लेकिन साथ में यह शर्त राखी कि मार्च, 2019 के बाद सेवा में आने वाली महिला अफसरों को ही इसका लाभ मिलेगा। इससे हुआ यह कि वे तमाम महिला अफसर परमानेंट कमीशन से वंचित हो गयीं, जो इतने लम्बे समय से इस अधिकार की कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। यही नहीं केंद्र ने यह भी दलील सर्वोच्च अदालत में बाकायदा याचिका दायर कर दी थी कि पुरुष सैनिक महिला अफसरों से आदेश लेने को तैयार नहीं होंगे। सर्वोच्च अदालत के फैसले से भारत की सेना की महिला अधिकारी भी उन देशों की बराबरी कर सकेंगी, जहाँ उन्हें स्थायी कमीशन दिया जाता है। भले उन्हें कॉम्बैट (युद्ध) क्षेत्र में अपना हुनर दिखाने में अभी वक्त लगे, इसमें कोई दो राय नहीं कि सर्वोच्च अदालत का आदेश सेना में जाने वाली लड़कियों के लिए बहुत प्रेरणा देने वाला फैसला है।
युद्ध क्षेत्र को छोडक़र अब बाकी तमाम क्षेत्रों में महिला अधिकारी कमांड पा सकेंगी। इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सरकार ने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन न देने के लिए सामाजिक और मानसिक कारण गिनाये थे, जिसके लिए सरकार को कोर्ट से लताड़ भी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को इस अवसर से वंचित करना भेदभावपूर्ण है; इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया।
दिलचस्प यह भी है कि वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन पहले से मिल रहा है। सिर्फ थल सेना में काम कर रही महिलाओं के मामले में यह पाबंदी थी। दरअसल, सेना में महिलाओं के साथ इस भेदभाव को लेकर करीब 17 साल पहले एक याचिका दायर की गयी थी। दिल्ली हाइकोर्ट का फैसला याचिका के पक्ष में आया और कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को सेना में कमीशन दिया जाना चाहिए।
इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी। सभी पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद आिखर सर्वोच्च अदालत ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सही बताते हुए उस पर मुहर लगा दी। ज़ाहिर है सेना में काम कर रही महिला अधिकारियों की यह बहुत बड़ी जीत है और उनमें इस फैसले के बाद खुशी है।
ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि सेना से बाहर आने के बाद महिला अधिकारियों को पेंशन न मिलने के कारण आजीविका के लिए दूसरी नौकरियाँ ढूँढने के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी। अपने जीवन के बेहतरीन 14 साल सेना को देने के बाद 40 साल की उम्र से पहले ही बेरोज़गार होने से उन्हें निराशा झेलनी पड़ती थी।
यह भी दिलचस्प है कि सेवानिवृत्ति के बाद नौकरियों में पुरुषों को ही अधिमान मिलता रहा है। कई तो अच्छे पदों पर बैठे हैं। महिलाओं को इक्का-दुक्का ही बेहतर विकल्प मिल पाता है। स्थायी कमीशन से कम से कम इतना तो होगा ही कि महिलाओं को सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन और अन्य सभी सुविधाएँ मिल सकेंगी। इससे कम से कम उन्हें आजीविका की चिन्ता तो नहीं रहेगी।
दूसरी सबसे बड़ी बात, कोर्ट के इस फैसले से यह होगी कि वे कमांडिंग पद पर बैठ सकेंगी। सेना में रह चुकी हिमाचल के कांगड़ा की उज्ज्वला चौहान कहती हैं कि सेना में अधिकारी के रूप में आपकी सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है- अपनी यूनिट को कमांड करना। अब कोर्ट के फैसले के बाद महिलाओं को यह सम्मान मिलने जा रहा है। लिहाज़ा यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
महिलाएँ पुरुषों की तरह बहादुर होती हैं; यह वायुसेना और नौसेना में स्थायी कमीशन के साथ कार्यरत महिला अफसर कई बार साबित कर चुकी हैं। इससे यह उम्मीद बँधती हैं कि सेना में महिलाओं को कॉम्बैट क्षेत्र में भी उतारने का फैसला आने वाले वर्षों में हो जाएगा। हालाँकि, यह फैसला करने का ज़िम्मा उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने सेना पर ही छोड़ दिया है। क्योंकि उसके मुताबिक यह एक नीतिगत फैसला है।
सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फैसले में कहा गया है कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अन्दर आर्मी में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। साथ ही अदालत ने केंद्र की उस दलील को भी निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था। दरअसल, शॉर्ट सर्विस और स्थायी कमीशन में अन्तर होता है। स्थायी कमीशन मिलने से महिला अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में रह सकेंगी, जबकि शॉर्ट सर्विस के तहत वे 10 साल तक सेना में रह सकती थीं; जिसे बढ़ाकर 14 साल किया जा सकता था। वैसे शॉर्ट सर्विस में रहते हुए स्थायी कमीशन में जाने का विकल्प भी दिया जाता है। लेकिन यह सिर्फ पुरुषों के लिए ही था।
इसी तरह स्थायी कमीशन के लिए कॉमन डिफेंस सर्विस की परीक्षा की सुविधा अभी तक सिर्फ पुरुषों के लिए होती है। शार्ट कमीशन में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) के लिए सीडीएस की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के आधार पर एंट्री होती है। शारीरिक मापदंडों पर खरा उतरना होता है। यह चयन प्रक्रिया महिला-पुरुष दोनों के लिए होती है। जहाँ तक प्रशिक्षण की बात है, स्थायी कमीशन में चुने हुए उम्मीदवार पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए देहरादून के आईएमए में भेजे जाते हैं। जबकि शॉर्ट कमीशन में उन्हें चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) में पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है।
जहाँ तक शॉर्ट सर्विस कमीशन की बात है, इसके तहत महिला अधिकारी आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डनेंस, एजुकेशन कोर, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में ही एंट्री पा सकती हैं। उन्हें कॉम्बैट सर्विसेस, जैसे- इन्फैंट्री, आम्र्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में काम करने का मौका नहीं दिया जाता। हालाँकि, मेडिकल कोर और नॄसग सर्विसेस में ये नियम लागू नहीं होते। इनमें महिलाओं को परमानेंट कमीशन मिलता है, वे लेफ्टिनेंट जनरल पद तक पहुँचती रही हैं।
कोर्ट के आदेश के बाद अब सेना में महिला अधिकारी न्यायाधीश एडवोकेट जनरल, सेना शिक्षा कोर, सिग्नल इंजीनियर, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस कोर और इंटेलिजेंस कोर में स्थायी कमीशन हासिल कर सकेंगी।
महिलाओं के हक के इस फैसले में सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी केंद्र सरकार के लिए भी काफी तल्ख है, जिसमें कहा गया है कि महिला अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार के नीतिगत फैसले बहुत अनोखे रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार को महिला अफसरों को सेना में परमानेंट कमीशन देना चाहिए था; लेकिन ऐसा न करके उसने पूर्वाग्रह दिखाया है। दरअसल, केंद्र ने महिलाओं को सेना में कमीशन न देने के लिए तर्क दिया था कि शारीरिक सीमाओं और सामाजिक मानदंडों के चलते ऐसा करना सम्भव नहीं है। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि स्थायी कमीशन नहीं देने की केंद्र की यह दलील परेशान करने वाली है और इन्हें बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने जो कहा वह सरकारों के लिए एक सबक है। कोर्ट का कहना था कि महिला अफसरों ने देश के लिए बहादुरी दिखायी है। अंग्रेजों का दौर खत्म होने के 70 साल बाद भी सरकार को सशस्त्र बलों में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए मानसिकता बदलने की ज़रूरत है। कोर्ट का कहना था कि सेना में महिलाओं की बड़ी उपलब्धियाँ और भूमिका रही हैं और उनकी क्षमताओं पर संदेह करना महिलाओं ही नहीं, सेना का भी अपमान होगा।
दिलचस्प बात यह भी है कि वायुसेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन का विकल्प है। वायुसेना में तो महिलाएँ कॉम्बैट रोल, जिसमें फ्लाइंग और ग्राउंड ड्यूटी आती है; में शामिल हो सकती हैं। यही नहीं, शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत भी महिलाएँ वायुसेना में हवाई जहाज़ और फाइटर जेट (लड़ाकू विमान) तक उड़ा सकती हैं। जहाँ तक नौसेना की बात है, उसमें महिला अफसर लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पायलट और नेवल इंस्पेक्टर कैडर में सेवाएँ दे सकती हैं। नौसेना में भी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन का विकल्प पहले से है।
ऐसे में भला महिलाओं की शारीरिक और मानसिक क्षमता पर सवाल ही कहाँ उठता है? बल्कि सच यह है कि उन्होंने वायुसेना और नौसेना में अपनी क्षमताओं को साबित किया है। लिहाज़ा कोर्ट का फैसला महिलाओं की क्षमता का एक बहुत बड़ा सम्मान भी है। उम्मीद करनी चाहिए कि महिला अधिकारियों को भविष्य में कॉम्बैट सर्विसेस, जिनमें इन्फैंट्री, आम्र्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री शामिल हैं; में भी काम करने का अवसर मिलेगा और वे देश के लिए उतनी ही बड़ी एसेट साबित होंगी, जितना उनके पुरुष समक्ष रहे हैं।
कोर्ट के फैसले के असर
अब शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में पहले से कार्य कर रही तमाम महिला अफसर भी स्थायी कमीशन की हकदार हो जाएँगी। सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल से कम और उससे ज़्यादा सेवाएँ दे चुकी महिला अफसरों, जो रिटायरमेंट की उम्र तक नहीं पहुँची हैं; को स्थायी कमीशन का अवसर दिया जाए। हालाँकि, महिलाओं को कॉम्बैट (युद्ध) क्षेत्र में कोई रोल देने का फैसला सर्वोच्च अदालत ने सरकार और सेना पर छोड़ा है। कोर्ट ने इसे नीतिगत मामला बताया। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही कहा था। ज़ाहिर है सरकार को अब इस बारे में सोचना पड़ेगा। कोर्ट के फैसले से सेना में काम कर रही महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग अर्थात् यूनिट, कोर या कमान का नेतृत्व करने का अवसर मिल सकेगा।
कोर्ट में कैसे पहुँचा मामला
यह साल 2003 की बात है। एक महिला वकील बबिता पुनिया ने महिलाओं को थलसेना में स्थायी कमीशन देने के लिए पहली बार दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। यह मामला चलता रहा और इसी बीच इसके करीब छ: साल बाद 2009 में जाकर सेना की 9 महिला अधिकारियों ने हाईकोर्ट में इसी मसले पर याचिकाएँ दायर कीं। हालाँकि, यह याचिकाएँ अलग-अलग दायर गयी थीं। एक साल बाद ही, 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए महिलाओं को सेना में स्थायी (परमानेंट) कमीशन देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु तक नहीं पहुँची महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के अलावा पदोन्नति जैसे लाभ भी प्रदान किये जाएँ। अब सर्वोच्च अदालत से जो फैसला आया है, वह कमोवेश हाईकोर्ट के फैसले जैसा ही है।
जब शर्मशार हुआ देश
हैदराबाद में महिला डॉक्टर से गैंगरेप और उसकी बर्बर हत्या ने देश को झकझोरकर रख दिया। नवंबर के आिखरी हफ्ते में हैदराबाद की इस 26 वर्षीय डॉक्टर से हैवानियत कर उसे पेट्रोल डालकर जिस बेहरमी से जला दिया गया, उससे ज़ाहिर होता है कि देश में महिलाएँ बड़ी असुरक्षा में जी रही हैं। इस घटना की स्याही सूखी भी नहीं थी कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक रेप पीडि़ता को आरोपियों ने पेट्रोल डालकर जला दिया। कुल मिलाकर दिल्ली के निर्भया कांड से लेकर देशभर में महिला यौन उत्पीडऩ की कई ऐसी घटनाएँ हैं, जो रूह तक को कँपा देती हैं। हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली को लेकर यह शर्मनाक जानकारी सामने आयी थी कि यहाँ हर रोज़ छ: बलात्कार होते हैं। अन्य घटनाओं में जनवरी, 2019 में एक 16 वर्षीय लडक़ी के सिर के साथ-साथ शरीर के हर अंग को काट दिया गया और उसके बाद उस पर एसिड डाल दिया गया। फरवरी में मुम्बई के माहिम इलाके से 5 साल की बच्ची का अपहरण करने के बाद बलात्कार किया गया और फिर उसका शव सडक़ किनारे मिला। मार्च में यूपी में जहाँ एक व्यक्ति ने बंदूक के बल पर 16 साल की लडक़ी को किडनैप कर रेप किया। वहीं अगले ही महीने एक 30 वर्षीय व्यक्ति ने मंदिर जा रही लडक़ी के साथ बलात्कार करने के बाद उसकी हड्डियों को तोड़ दिया और फिर उसकी निर्मम हत्या कर दी। अप्रैल में ही कर्नाटक में एक महिला का जला हुआ शव मिला और जाँच के बाद पता चला उसके साथ रेप भी किया गया है। मई में जम्मू-कश्मीर में एक व्यक्ति ने तीन साल की मासूम के साथ तब बलात्कार किया, जब वो घर के बाहर खेल रही थी। यूपी के रामपुर में तीन लोगों ने 17 वर्षीय बहरी और मूक लडक़ी के साथ बलात्कार किया। मई में ही नोएडा में तीन पुरुषों ने एक 16 वर्षीय लडक़ी को कैद करके 51 दिन तक उससे दुष्कर्म किया। पति के साथ खरीदारी करने आयी महिला के साथ पाँच पुरुषों ने मारपीट की और फिर उससे दुष्कर्म किया और उसका वीडियो भी बना डाला। जून में तेलंगाना में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर नौ महीने की बच्ची का बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी। यूपी के अलीगढ़ में उसी महीने एक व्यक्ति ने चार साल की बच्ची को 10 रुपये का लालच देकर फुसलाया और फिर सुनसान जगह ले जाकर उससे दुष्कर्म किया। मुम्बई के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला से दुष्कर्म किया।
दिल्ली के जनकपुरी में जुलाई में रिक्शा चालक ने छ: वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार किया। गुजरात के स्कूल की म्यूजिक क्लास में दो शिक्षकों ने ही एक दृष्टिहीन छात्रा के साथ दुष्कर्म किया। सितंबर में एक बहुत भयावह जानकारी सामने आयी कि 12 साल की एक बालिका से दो साल में 30 से ज़्यादा पुरुषों ने दुष्कर्म किया था। बालिका द्वारा सॉरी, अम्मा! लिखे आिखरी नोट ने सबकी आँखें तो नम की हीं, उनमें गुस्सा भी भर दिया। झारखंड में चौथी की छात्रा के साथ वाइस-प्रिंसिपल और दो टीचर्स ने बलात्कार किया। वहीं, प्रिंसिपल के पति द्वारा सातवीं की छात्र के यौन उत्पीडऩ करने का मामला तब सामने आया, जब वह गर्भवती हो गयी। एक महिला ने जब तीन तलाक दिये जाने पर अपने पति का विरोध किया, तो उसके ससुर और देवर ने ही उसके साथ बलात्कार कर डाला और अक्टूबर में एक 24 वर्षीय महिला ने तब फाँसी का फंदा डालकर जान दे दी, जब उसके साथ गैंगरेप किया गया।
साल 2019 में महिलाओं की उपलब्धियाँ
बीता साल देश की महिलाओं की उपलब्धियों के हिसाब से बाहर उम्दा रहा है। साल भर देश की महिलाओं ने लैंगिक भेदभाव और तमाम रूढिय़ों के बावजूद देश को गौरव के पल दिये। यह 2 दिसंबर की बात है, जब सब-लेफ्टिनेंट शिवांगी स्वरूप भारतीय नौसेना में पहली महिला पायलट बनीं। नौसेना के एविएशन डिपार्टमेंट में महिला अफसरों को एयर ट्रैफिक कंट्रोल अधिकारी के रूप में तैनात किया जाता है। इससे कुछ दिन पहले ही लेफ्टिनेंट कर्नल ज्योति शर्मा भारतीय सेना में ऐसी पहली जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) बनीं, जो किसी विदेशी मिशन पर तैनात हुई हैं। अपनी नयी पोस्ट के अनुसार, लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा को सेशेल्स सरकार के साथ एक सैन्य कानूनी विशेषज्ञ के रूप में शामिल किया। देश को गौरव दिलाने वाली की एक नयी गाथा करीब 18 साल से भारतीय सेना का हिस्सा अंजलि सिंह ने भी लिखी, जब वे 10 सितंबर को देश की पहली महिला डिफेन्स अटैच बनीं। उनसे पहले पुरुष ही सैन्य अटैचमेंट के रूप में नियुक्त होते रहे थे। जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) में पुरुष वाइस चांसलर रहे। लेकिन पिछले साल अप्रैल में नजमा अख्तर ने विश्वविद्यालय की पहली वाइस चांसलर बनकर देश को गौरवान्वित किया। शिक्षा के क्षेत्र में यह उपलब्धि इस मायने में भी बहुत बड़ी है, क्योंकि अख्तर पहली ऐसी शिक्षाविद् हैं, जो दिल्ली में किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर बनी हैं। चंद्रिमा शाह ने एक अलग तरह का इतिहास रचा जब वह इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (आईएनएसए) के 85 साल के इतिहास में पहली महिला अध्यक्ष बनीं और पश्चिम बंगाल के एक चाय बागान के वर्करों की बेटियों ने रग्बी सीखकर नेशनल टीम में तो जगह बनायी ही। उन्हें आइकन ऑफ नार्थ बंगाल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का मोम का पुतला लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय में लगाया गया। इंटरनेट सेवा प्रदाता कम्पनी याहू इंडिया के एक आकलन में मोस्ट सच्र्ड पर्सनैलिटी की सूची में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दूसरे स्थान पर रखा गया, जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि की तरह है। चंद्रयान-2 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी महिला वैज्ञानिक मुथैया वनिता को सौंपी गयी, जिन्होंने अपने ज़िम्मे को बखूबी निभाकर बता दिया कि महिलाएँ चूल्हे-चौके से बाहर भी कामयाब हैं। भारतीय वायु सेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट हिना जायसवाल देश की पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर बनीं। मुम्बई की कैप्टन आरोही पंडित (24) लाइट स्पोट्र्स एयरक्राफ्ट (एलएसए) में अकेली अटलांटिक महासागर को पार करने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं। भारत के वेल्लोर कृत्रिम चिकित्सा महाविद्यालय में स्थित एक क्लीनियन वैज्ञानिक गगनदीप कंग रॉयल सोसायटी में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं। गगनदीप प्रतिष्ठित फेलो रॉयल सोसायटी में 358 वर्ष के इतिहास में चयनित होने वाली पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक हैं। बीजू जनता दल (बीजेडी) की आदिवासी महिला और पेशे से इंजीनियर चंद्राणी मुर्मू (25) संसद पहुँचीं। वह सबसे कम उम्र की महिला सांसद बनी हैं। भारत की जीएस लक्ष्मी इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ईवेंट की पहली महिला रेफरी बनीं। भारतीय महिला सलामी बल्लेबाज़ स्मृति मंधाना को इस साल के लिए आईसीसी वनडे और टी-20 टीम में शामिल किया गया है। एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक विजेता 19 साल की अर्जुन अवार्डी हिमा दास ने 2019 में साल भर में 6 गोल्ड जीतकर तहलका मचा दिया।