के.रवि (दादा)
यह साल भी हर साल की तरह गुज़रने वाला है। 2024 चुनावों के नज़रिये से बड़ी हलचल वाला होने वाला है। 2024 में लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद अक्टूबर के आसपास महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने हैं। महाराष्ट्र की शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट, भाजपा और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अजित पवार गुट की मिलीजुली सरकार ने इस चुनाव के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया है।
एक आरोप हाल ही में संविधान रचयिता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पोते और वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने सरकार पर लगाया कि महाराष्ट्र सरकार ने टमाटर घोटाला करके 35,000 करोड़ रुपये कमा लिये हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा और आरएसएस पर टमाटर की कालाबाज़ारी करवाकर करोड़ों रुपये की इस लूट का आरोप लगाया। उन्होंने वंचित के सांगली में ‘बिजली अधिग्रहण बैठक’ में खुले मंच से कहा कि हमें आरएसएस-भाजपा शासन के 10 वर्षों का हिसाब-किताब शुरू करना चाहिए। नरेंद्र मोदी एक लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक तानाशाह हैं। लोकसभा चुनाव तक वह एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करेंगे। मोदी पत्रकारों के सामने जाकर जवाब देने से डरते हैं, क्योंकि पत्रकार उनसे ज़्यादा होशियार हैं। वह बहुत डरपोक प्रधानमंत्री हैं। प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि जब व्यापारियों और सरकार की मिलीभगत हुई, तो टमाटर की कमी हो गयी, दाम बढ़ा दिये गये, चुनाव का ख़र्चा निकाल लिया गया और दाम फिर गिर गये।
प्रकाश अंबेडकर ने जो आरोप महाराष्ट्र की जोड़-तोड़ की सरकार पर आरोप लगाये हैं, वो पिछले महीनों में महँगे हुए टमाटर को लेकर लगाये। जो टमाटर किसानों से 2 से 3 या बहुत हुआ तो 4 रुपये किलो ख़रीदा जाता था और बाज़ार में 10 से 15 रुपये किलो बिकता था, वो अचानक 200 रुपये किलो पहुँच गया था। इसके पीछे की कहानी और घोटाले की योजना कोई नयी या लंबी नहीं है। बस व्यापारियों पर दबाव बनाकर उन्हें टमाटर को होल्ड करने को कहा जाता है और यह खेल बड़े आराम से हो जाता है। जब भी चुनाव पास आते हैं, तो हर सरकार और सरकार में बैठे मंत्री से लेकर संतरी तक $खूब पैसा बटोरते हैं। तो $खाली टमाटर से ही सरकार ने चुनावों के लिए पैसा नहीं जुटाया है, उसके लिए और भी रास्ते ज़रूर निकाले होंगे; क्योंकि आजकल चुनाव जीतने के लिए चुनाव आयोग के नियमों को ध्यान में न रखते हुए करोड़ों से लेकर अरबों रुपये पार्टियाँ ख़र्च करती हैं और हर एक चुनाव में हर पाँच साल में इसी तरह से जनता के सिर पर वो पैसे ख़र्चने का बोझ बढ़ता रहता है और हर साल महँगाई भी कमायी से ज़्यादा बढ़ती रहती है।
मेरे संज्ञान में ऐसे कई मामले हैं, जिनमें पैसे को पार्टियाँ और उनके उम्मीदवार पानी की तरह बहाते हैं और फिर भी वो कभी ग़रीब नहीं होते। सरकार में आते ही वो और अमीर होते चले जाते हैं। यह तो रही पैसा जुटाने के एक तरीक़े की बात। महाराष्ट्र सरकार ने आगामी चुनाव जीतने के लिए दूसरा तरीक़ा निकाला है- मराठों को ओबीसी दर्जे में लाकर आरक्षण देने का।
असल में महाराष्ट्र में सरकार गिरने के बाद भी अभी उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार वाली राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी भाजपा के माफिक कमज़ोर नहीं हुई है। इसके लिए एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को ओबीसी के तहत आरक्षण देने की बात दोहरायी है। अभी इसी महीने महाराष्ट्र सरकार ने सभी प्रमुख मराठी समाचार पत्रों में पहले पन्ने पर विज्ञापन देकर महाराष्ट्र में एक हलचल पैदा कर दी है। मराठा आरक्षण की समय सीमा से ठीक पहले आया यह विज्ञापन महाराष्ट्र में चुनाव जीतने की जमीन तैयार करने के वास्ते है। पड़ इसमें मराठों की अपनी अपनी माँगें भी हैं, जो सरकार के लिए सिरदर्द बन सकती हैं।
एक-दो उदाहरण देखें, मसलन मराठवाड़ा के मराठा कुनबी जाति प्रमाण-पत्र माँग रहे हैं। दूसरी ओर मराठा आरक्षण के लिए क़ानूनी मोर्चे पर महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँच गयी है। इसमें उसने सुप्रीम कोर्ट के 2021 के मराठा आरक्षण को अमान्य करने के फ़ैसले को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई करने को तैयार भी हो गयी है। सुनवाई कब शुरू होगी, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा स्थापित समिति ने आरक्षण पर रिपोर्ट सौंपने के लिए जनवरी तक का टाइम माँगा है।
कुछ राजनेता मराठा आरक्षण को ओबीसी के तहत देने के ख़िलाफ़ हैं। महाराष्ट्र में ओबीसी आबादी 52 फ़ीसदी है। यह महाराष्ट्र का प्रमुख बीपी वोट बैंक हैं। इसलिए ओबीसी अपना दम दिखा रहे हैं और मराठों को ओबीसी के तहत आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं।
अब सरकार मराठा आरक्षण का रास्ता निकालना चाह रही है, जिसमें उसकी नस दब भी सकती है। विपक्षी दल ऐसे ही किसी मौक़े की तलाश में है, जिसमें वो सरकार की नाकामी का फ़ायदा उठा सकें। बाकी तस्वीर आने वाले दिनों में सामने आएगी।