देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भाजपा ने रातोंरात क्यों सरकार बनाई। ऐसा नहीं है कि वो इससे पहले चुपचाप बैठे सिर्फ वेट एंड वॉच की स्थिति में थे। बल्कि पहले ही आरएसएस से लेकर केंद्रीय मंत्री और नागपुर से सांसद नितिन गडकरी इशारा कर चुके थे कि राजनीति और क्रिकेट में कुछ भी संभव है। दरअसल असली लड़ाई तो आर्थिक राजधानी पर कब्जा जमाना है।
क्या किसी दूसरे राज्य में ऐसा संभव हो पाता कि रातोंरात जो करीब एक लाख करोड़ रुपये के दो बड़े घोटालों में आरोपी है, उसको उप मुख्यमंत्री का पद देकर लोगों के उठने से पहले शपथ भी दिला दी गई। जिस नेता पर जेल जाने की तलवार लटकी हो, उसे शान से लाल बत्ती का ऑफर मिल गया। इसके पीछे जाने के लिए आपको थोड़ा-सा देश के आर्थिक व्यापार और कारोबार पर नजर दौड़ानी होगी। सबसे ज्यादा कंपनियां महाराष्ट्र में पंजीकृत हैं। इतना ही नहीं, टैक्स देने वाले राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है और वह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक टैक्स देता है।
देश के सबसे समृद्ध माने जाने वाले राज्य गुजरात से इनकम टैक्स कलेक्शन की बात करें तो यह मात्र 4.5 फीसदी ही है, जबकि इस मामले में महाराष्ट्र अव्वल है। यह कर देश के आयकर में जमा होने वाली रकम का 38 फीसदी से अधिक है। इस मामले में दिल्ली दूसरे नंबर पर है जिसका हिस्सा करीब 14 फीसदी है। उसके बार कर्नाटक और तमिलनाडु का नंबर आता है।
किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए महाराष्ट्र इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अधिकतर कॉर्पोरेट घरानों के कार्यालय के मुख्यालय यहीं पर हैं। यह कहना गलत भी नहीं है कि कॉर्पोरेट घराने ही तय करते हैं कि अगली बार किसकी सरकार बननी है। इसके लिए महज चंदा ही विकल्प नहीं होता, बल्कि इनको राज्यों में ठेके दिलवाने का सिलसिला भी जुड़ा होता है।
मोदी सरकार से अडानी और अंबानी घराने के रिश्तों से सभी वाकिफ़ हैं। अगर सरकार बदलती है तो इनके नीति निर्धारण में परिवर्तन के साथ ही अन्य समाज कल्याण से जुड़ी योजना और परियाजनाएं इनके कारोबार को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में इनके कारोबार पर किसी भी तरह का ‘ब्रेक’ न लगे, उसके लिए जरूरी है कि विपरीत सोच वाले की सरकार न बने। अन्यथा आगे चलकर रोड़े अटकाने का सिलसिला तो शुरू हो ही सकता है।
इसलिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के शब्दों में कहें तो यह फर्जिकल स्ट्राइक रातोंरात यूं ही नहीं की गई, बल्कि इसकी बिसात कई दिनों से बिछ रही थी। अगर इनकी सरकार नहीं बनी तो इनके चहेतों व बुलेट ट्रेन जैसे ड्रीम प्रोजेक्ट पर साया मंडरा सकता है। इसका इशारा शिवसेना, कांगेस और एनसीपी की ओर से पहले ही किया जा चुका है। किसानों का कर्जमाफ करने के साथ ही उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं लागू करने से कॉर्पोरेट घरानों के लिए चिंता यूं ही नहीं है। अब तो शक्ति परीक्षण के बाद ही तय होगा कि किसकी शक्ति हावी है, जो महाराष्ट्र पर काबिज होगा।