महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र से पहले राज्य के आदिवासी ज़िलों के सुदूर इलाक़ों में कार्यरत 281 डॉक्टरों ने स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता से तंग आकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर सामूहिक आत्महत्या की अनुमति माँगी थी।
लगभग दो दशकों से ये सभी बीएएमएस डॉक्टर 16 आदिवासी ज़िलों के दूरदराज़ के गाँवों के साथ-साथ उन गाँवों में चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जहाँ सडक़ें तक नहीं हैं। इन क्षेत्रों में ये डॉक्टर गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य जाँच से लेकर छोटी-मोटी बीमारियों और साँप-बिच्छू के काटने जैसी विभिन्न बीमारियों का इलाज करते हैं।
इनका कहना है कि गढ़चिरौली जैसे नक्सल प्रभावित इलाक़ों में काम करने वाले पुलिस या अन्य सरकारी कर्मचारियों को विशेष प्रोत्साहन भत्ता दिया जाता है; लेकिन उन्हें 24,000 रुपये में बँधुआ मज़दूर-सा काम करना पड़ रहा है। 281 डॉक्टरों का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर सूर्यवंशी का आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं; जबकि पिछले डेढ़ साल से बीएएमएस डॉक्टर गाँव में कोरोना मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं। 11 महीने पहले सितंबर में उप मुख्यमंत्री अजित पवार, स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और आदिवासी मंत्रियों के बीच हुई बैठक में आदिवासी ज़िले में कार्यरत 281 डॉक्टरों की मानदेय राशि 24,000 रुपये से बढ़ाकर 40,000 रुपये करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन आज तक उस पर अमल नहीं हो सका है। स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों के हज़ारों पद ख़ाली हैं।
आज हमें स्वास्थ्य विभाग से 18,000 रुपये और आदिवासी विभाग से 6,000, यानी कुल मिलाकर 24,000 रुपये मिलते हैं। डॉक्टर ने यह भी कहा कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह समय पर मिल जाएगा। डॉ. अरुण कोली पूछते हैं कि अगर 11 महीने बाद भी सरकार 40,000 मानदेय वृद्धि के फ़ैसले को लागू नहीं करती है, तो डॉक्टरों को क्या करना चाहिए?
मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और आदिवासी मंत्री को भेजे गये पत्र में डॉक्टरों पूछते हैं कि यदि सरकार अपने फ़ैसले को लागू नहीं करती है, तो हम कैसे जी सकते हैं? मेलघाट, नंदुरबार, गढ़चिरौली, अमरावती में डॉक्टरों से बातचीत करके देखिए फिर पता चलेगा कि हम लोग किस तरह पर ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। इन डॉक्टरों की उनसे अपील है कि वे आकर देखें कि हम किस परिस्थितियों और मानसिकता में काम कर रहे हैं। इन डॉक्टरों ने घर से दूर मरीज़ों की सेवा करते हुए अपने बच्चों और माता-पिता की देखभाल कैसे करें? इसका मुद्दा उठाया।
बक़ौल डॉ. राजू इंगले, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल, गैस से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक सब कुछ दिन-ब-दिन महँगा होता जा रहा है। यहाँ वर्षों से हम सभी अस्थायी हैं। डॉक्टरों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई बीमा कवरेज नहीं दिया गया है। यदि ड्यूटी के दौरान मौत हो जाती है, तो स्वास्थ्य विभाग एक पैसा भी नहीं देता है। हमारे कुछ डॉक्टर मर चुके हैं, उनके परिवार बर्बाद हो गये हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग उनसे पूछता तक नहीं है।
हममें इंसानियत है; हम अमानवीय नहीं हो सकते। दूर-दराज़ के इलाक़ों में मरीज़ों के बारे में सोचकर आन्दोलन भी नहीं कर सकते और सरकार है कि किसी तरह की सहानुभूति के लिए तैयार नहीं है। इसलिए हमने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कम-से-कम आत्महत्या की अनुमति देने का अनुरोध किया था।
राज्य में कोविड महामारी की स्थिति
दूसरी ओर कोविड महामारी की पहली और दूसरे लहर के दौरान आयुष डॉक्टरों की संविदा पर की गयी नियुक्ति, बिना पूर्व सूचना के किये जाने से आयुष डॉक्टर में रोष फैला हुआ है। उनका कहना है कि जब तक सरकार को महामारी में के दौरान उनकी सेवाओं की ज़रूरत थी, तो उसने हमारी सेवाएँ लीं। अब उन्हें लगता है कि महामारी ख़त्म हो रही है और हमारी उन्हें ज़रूरत नहीं है, तो उन्होंने हमें सडक़ में फेंक दिया है।
डॉक्टर अर्चना कहती हैं कि 02 अगस्त को अधिकतर आयुष डॉक्टरों को मौखिक रूप से कह दिया गया कि आपकी सेवाएँ समाप्त की जाती हैं। हमें इतना भी वक़्त नहीं दिया गया कि हम कुछ पूर्व तैयारियाँ करें। इतना ही नहीं, हमें मुहैया कराये गये आवास को भी तुरन्त ख़ाली करने को कह दिया गया। हमें पिछले दो महीने की तनख़्वाह तक नहीं मिली है। हम कहाँ जाएँ और किससे कहें? डॉक्टर अर्चना मुम्बई से सटे मीरा-भायंदर नगर पालिका से जुड़ी हैं। डॉक्टरों के अलावा नर्स एवं अन्य कर्मचारी भी हैं, जिन्हें महामारी के दौरान नियुक्त किया गया था, तक़रीबन 120 लोगों के सामने अचानक जीवनयापन की समस्या आन खड़ी हुई है।
ऐसी समस्या महाराष्ट्र के गोंदिया ज़िले की डॉक्टर शिल्पा के सामने आन खड़ी हुई है। गोंदिया नगर पालिका से जुड़े 100 से अधिक डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को उनकी सेवा ख़त्म होने की मौखिक सूचना दे दी गयी। डॉक्टर शिल्पा कहती हैं कि महामारी के दौरान जब डॉक्टरों की भारी कमी थी। लोग डरे हुए थे, हम लोग बिना डरे अपनी सेवाएँ देने अपने गाँव, घर छोडक़र आये। हम जानते हैं कि हम जिस पेशे में हैं, वहाँ पर मानव सेवा सर्वोपरि मानी जाती है। हमने अपना फ़र्ज़ तो अदा कर दिया, अदा कर भी रहे हैं और आगे भी आगे करना चाहते हैं। लेकिन सरकार कब अपना फ़र्ज़ निभाएगी? डॉक्टर अर्चना कहती हैं कि जब तक इन्हें हमारी ज़रूरत थी, तब तक उनके पास हमें देने के लिए वेतन के लिए फंड था। आज यह कहते कि हमारे पास फंड नहीं है। प्रशासन इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता? मीरा भायंदर के डॉक्टरों ने इस मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है।
हालाँकि कोरोना वायरस की तीसरी लहर के मद्देनज़र बीएमसी, मुम्बई महानगर नगर पालिका ने तीन महीने के लिए अनुबन्ध पर लगभग 1,000 डॉक्टरों और इतनी ही संख्या में नर्सों को काम पर रखने पर विचार कर रही है। 900-1,000 एमबीबीएस, आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टरों से आवेदन आमंत्रित करते हुए एक विज्ञापन जारी किया गया। इसके अलावा 50-70 विशेषज्ञों की भी नियुक्ति की जाएगी।
बीएमसी से जुड़े एक डॉक्टर अपना नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि आयुष डॉक्टरों के साथ भेदभाव से इन्कार नहीं किया जा सकता; लेकिन बीएमसी में इस बात की गारंटी होती है कि तनख़्वाह समय पर मिल जाती है। हालाँकि कई डॉक्टरों को बीच में दो माह की तनख़्वाह नहीं मिली थी और उसके लिए डॉक्टरों को अपनी आवाज़ उठानी पड़ी, जो अच्छी बात नहीं। आप ही बताएँ महामारी के दौरान डॉक्टर मरीज़ों की सेवा करेंगे या फिर अपनी तनख़्वाह के लिए लामबन्द होंगे?
इस सिलसिले में सूबे के स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि यह मामला स्थानीय प्रशासन के अधिकृत है, जिसकी ज़िम्मेदारी स्थानीय कलेक्टर के पास है। सरकार की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। उनका कहना था कि जब डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को संविदा पर नियुक्त किया गया था, उस समय उन्हें पता था कि उनकी नियुक्ति सिर्फ़ वैश्विक महामारी रहने तक ही है। स्वास्थ्य मंत्रालय को इस बात की भी कि आयुष डॉक्टरों इस तरह से कोई पत्र सरकार को या सम्बन्धित विभाग को भेजा था; की जानकारी नहीं है।