एकनाथ शिंदे बने मुख्यमंत्री और फडणवीस उप मुख्यमंत्री
यह 01 दिसंबर, 2019 की बात है। जगह थी महाराष्ट्र की विधानसभा। चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के साथ मिलाकर सरकार बना ली। इसके बाद विपक्ष के नेता बने देवेंद्र फडणवीस ने कहा था- ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बना लेना। मैं समंदर हूँ, लौटकर वापस आऊँगा।’
ठीक ढाई साल बाद फडणवीस लौट आये, लेकिन अलग अंदाज़ में। इस बार ख़ुद मुख्यमंत्री नहीं, उप मुख्यमंत्री बने, वो भी भाजपा आलाकमान के फ़रमान के दबाव में। उद्धव से टूटे विधायकों के नेता एकनाथ संभाजी शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया और जब फडणवीस की नाराज़गी की जानकारी लगी, तो उन्हें उप मुख्यमंत्री बनने का दिल्ली से फ़रमान जारी कर दिया गया, वह भी मीडिया के ज़रिये। निश्चित ही महाराष्ट्र में शिंदे और फडणवीस के रूप में सत्ता के दो केंद्र भी बन गये हैं।
फडणवीस ने 30 जून की शाम शिंदे के साथ राज्यपाल को जब सरकार बनाने के दावे का पत्र सौंपा तब तक यही लग रहा था कि फडणवीस मुख्यमंत्री होंगे; लेकिन इसके बाद पत्रकार सम्मेलन में शिंदे के नये मुख्यमंत्री होने की जानकारी देकर उन्होंने सबको चौंका दिया। साथ ही यह भी कहा कि वे सरकार में शामिल नहीं होंगे। यह कहते हुए उनके चेहरे से कहीं उदासी झलक रही थी और नाराज़गी भी। तय हो गया कि अकेले शिंदे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। फडणवीस के नाराज़ होने की $खबर फैलने लगी थी। कहा जाता है कि उन्हें सुबह ही आलाकमान ने निर्देश दिया था कि वह उप मुख्यमंत्री बनें; लेकिन फडणवीस इसके लिए तैयार नहीं थे। जब फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे और वह ख़ुद सरकार से बाहर रहेंगे, तो इसके एक घंटे के भीतर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने लाइव मीडिया के सामने आकर घोषणा कर दी कि पार्टी ने फडणवीस को निर्देश दिया है कि वह सरकार में शामिल हों और उप मुख्यमंत्री बनें।
गृहमंत्री और वरिष्ठ नेता अमित शाह ने इसके बाद ट्वीट कर बताया कि फडणवीस इसके लिए तैयार हो गये हैं। ज़ाहिर है फडणवीस पर दबाव बना दिया गया। इसके बाद राजभवन में दो घंटे से शपथ ग्रहण के लिए लगी दो कुर्सियों की जगह तीन कर दी गयीं। 7:30 बजे जब शपथ हुई, तो फडणवीस को शिंदे के बाद शपथ लेनी पड़ी।
ज़ाहिर है फडणवीस ने अपने लिए जो मेहनत की थी, उसका असली फल शिंदे के हिस्से आया और मुख्यमंत्री रह चुके फडणवीस को पार्टी के दबाव में उप मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा। शिंदे की शपथ होते ही प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें मुख्यमंत्री की बधाई वाला ट्वीट किया। उधर ऐन शपथ के समय शिंदे की ट्वीटर तस्वीर बदल गयी और उन्होंने बाला साहब ठाकरे के पैरों के पास बैठी अपनी तस्वीर लगा दी। शायद यह संकेत देने के लिए कि बालासाहेब के असली वारिस ख़ुद वह और उनके नेतृत्व वाली शिवसेना है! एक बात साफ़ है कि भाजपा को शिंदे के साथ वाले सभी सेना विधायकों के साथ होने को लेकर अभी भी पूरा भरोसा नहीं है। यह चर्चा रही है कि शिंदे के साथ जाने वाले आधे विधायक वो हैं, जिनके ख़िलाफ़ ईडी ने केस खोल रखे थे और उन्हें दबाव में शिंदे (भाजपा) के साथ जाना पड़ा।
शिंदे ने 30 जून की शाम मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कहा- ‘भाजपा ने बड़ा दिल दिखाया है। मुझ जैसे छोटे कार्यकर्ता को इतना बड़ा पद देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, जे.पी. नड्डा और फडणवीस का आभार।’
शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा नेतृत्व ने उद्धव के लिए उनकी पार्टी के भीतर ही चुनौतियों के कई दरवाज़े ज़रूर खोल दिये हैं। ज़ाहिर है नयी सरकार अगले ढाई साल में कई दिलचस्प दौर देखेगी। उद्धव के पास फ़िलहाल उन 16 विधायकों और संगठन का कमोवेश पूरा ढाँचा है, जो विपरीत परिस्थिति में भी अपने नेता के साथ खड़े रहे। शिवसेना संगठन में 12 नेता, 30 उप-नेता, 5 सचिव, एक मुख्य प्रवक्ता और 10 प्रवक्ता में से अधिकांश उनके साथ हैं। उद्धव के बाद 12 नेता में से 11, कुल 30 उप-नेताओं में गुलाबराव पाटिल, तानाजी सावंत, यशवंत जाधव उद्धव को छोड़ बाक़ी सभी, पाँचों सचिव, मुख्य प्रवक्ता राज्यसभा सदस्य संजय राउत, 10 प्रवक्ताओं में विधायक प्रताप सरनाईक को छोड़ अन्य सभी, 18 में से श्रीकांत शिंदे, भावना गवली उद्धव को छोड़ अन्य सभी उद्धव के साथ हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की 11 जुलाई की सुनवाई अभी होनी है, जबकि उद्धव गुट ने शिंदे सरकार के विश्वास मत के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में जो याचिका दी, उस पर भी उसी दिन सुनवाई होगी। फ़िलहाल लोग भाजपा से पूछ रहे हैं कि अब किस राज्य का नंबर है?