भारत में पत्रकार असहाय से होते जा रहे हैं, क्योंकि अच्छे पत्रकारों की अपराधियों द्वारा हत्या करना और उनके लिए ज़रूरी मेडिकल इमरजेंसी की व्यवस्था जैसे अहम मसले मुद्दा नहीं बनते हैं। पत्रकार बिरादरी के बीच यह कैसे सम्भव है, जिसे पत्रकारिता के अपने फर्ज़ निभाने वाले काम के लिए निशाना बनाकर मार दिया जाए। वह भी ऐसे दौर में जब इस साल के करीब 200 दिनों में देश कोविड-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है और बड़ी आबादी इससे प्रभावित है। साथ ही संक्रमितों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। महामारी के बीच पत्रकारों को निशाना बनाकर हत्या किया जाना बेहद चिन्ताजनक है।
गाज़ियाबाद के विजय नगर इलाके में 22 जुलाई की हत्या की घटना पत्रकारों के हालात को बयाँ करने के लिए काफी है, जिसने अपराधियों के खिलाफ उनके कृत्य का विरोध करने का साहस किया। गाज़ियाबाद के स्थानीय पत्रकार विक्रम जोशी को अपराधियों ने न केवल बुरी तरह से मारा-पीटा, बल्कि घटनास्थल से भागने से पहले उन्हें गोली मार दी। स्थानीय लोगों ने गम्भीर रूप से घायल जोशी को पास के अस्पताल ले गये, जहाँ दो दिन बाद उन्होंने दम तोड़ दिया।
विक्रम जोशी एक स्थानीय समाचार पत्र के लिए काम करते थे। उन्होंने 16 जुलाई को गाज़ियाबाद के विजय नगर पुलिस चौकी में अपनी भाँजी को परेशान करने वाले कुछ बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी; लेकिन पुलिस की लापरवाही इस कदर रही कि बदमाशों ने जोशी को उनकी दो बेटियों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया। मौत के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा, तब उत्तर प्रदेश पुलिस सक्रिय हुई और हत्या में उनकी भूमिका पर संदेह करने वाले नौ लोगों को गिरफ्तार किया।
इस वारदात के हफ्ते भर पहले उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 25 वर्षीय युवा पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी की हत्या कर दी गयी थी। कानपुर स्थित एक हिन्दी दैनिक के लिए काम करते थे। उन्नाव ज़िले के ब्रह्मनगर के निवासी त्रिपाठी एक ईमानदार पत्रकार थे और अपने इलाके में अवैध रेत खनन की लगातार रिपोर्ट कर रहे थे। हाल ही में शुभममणि की शादी राशि दीक्षित से हुई थी। त्रिपाठी को भी अज्ञात व्यक्तियों से धमकी मिल चुकी थी। अवैध खनन की रिपोर्टिंग करने पर इससे जुड़े बदमाशों ने उनको पहले से ही हमले की धमकी दी थी। लेकिन साहसी पत्रकार अपने काम से पीछे नहीं हटे और लगातार मामले की रिपोर्टिंग करते रहे। यूपी पुलिस ने पत्रकार की जान जाने के बाद हत्या में शामिल होने के संदेह में तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था।
आंध्र प्रदेश के नंदीगाम इलाके में 29 जून को गंटा नवीन (27) नाम के एक डिजिटल चैनल के संवाददाता की हत्या कर दी गयी थी। संवाददाता ने अपने इलाके के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ दुश्मनी मोल ले ली थी और उन्होंने नवीन की हत्या के लिए अपराधियों का सहारा लिया। पुलिस ने उसकी हत्या के मामले में आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया। ओडिशा के पत्रकार आदित्य कुमार रणसिंह (40) व कांग्रेस नेता की हत्या 16 फरवरी को कटक ज़िले में बाँकी इलाके में कर दी गयी थी। एक न्यूज पोर्टल से जुड़े रणसिंह को दो अपराधियों ने काट डाला था, जिन्हें बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मामले में पाया गया कि पत्रकार से दोनों आरोपियों के बीच लम्बे समय से खुन्नस चल रही थी।
2019 में देश में पत्रकारों की हत्या की नौ घटनाएँ दर्ज की गयी थीं। लेकिन इनमें से महज़ एक वारदात ऐसी थी, जिसमें पत्रकार को निशाना बनाकर मारा गया था। आंध्र के एक तेलुगु दैनिक अखबार के पत्रकार के सत्यनारायण (45) को पेशागत गतिविधियों के कारण मौत के घाट उतार दिया गया। 15 अक्टूबर को उनकी हत्या कर दी गई थी। स्थानीय लेखकों ने बताया कि सत्यनारायण पर उससे पहले भी हमला हो चुका था। पिछले साल भारत में मारे गये लोगों में जोबनप्रीत सिंह (पंजाब का ऑनलाइन पत्रकार पुलिस की गोलीबारी में मारे गये), विजय गुप्ता (कानपुर में पत्रकार की करीबी रिश्तेदारों गोली मारकर हत्या कर दी थी), राधेश्याम शर्मा (कुशीनगर आधारित पत्रकार की उनके पड़ोसियों द्वारा हत्या), आशीष धीमान (सहारनपुर में फोटो पत्रकार की पड़ोसियों ने गोलीमारकर हत्या कर दी थी), चक्रेश जैन (शाहगढ़ में स्वतंत्र पत्रकार की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी थी), आनंद नारायण (मुम्बई के एक न्यूज चैनल से जुड़े पत्रकार की बदमाशों ने हत्या कर दी थी) और नित्यानंद पांडे (ठाणे में एक पत्रिका के सम्पादक को एक कर्मचारी मार दिया) शामिल थे।
केरल के पत्रकार के मोहम्मद बशीर पर सरकारी अधिकारी ने अपने वाहन से कुचलकर मार दिया था। गुवाहाटी शहर में संदिग्ध हालात में हुई दुर्घटना में पत्रकार नरेश मित्रा के सिर में चोट लगने के बाद मौत हो गयी। बिहार में बदमाशों ने पत्रकार प्रदीप मंडल को निशाना बनाया; लेकिन वह सौभाग्य से बच गये। एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र के मंडल ने स्थानीय शराब माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग की थी, जिससे माफिया उनसे शत्रुता मानने लगे थे।
भारत में पत्रकारों के लिए कोरोना वायरस से ज़्यादा खतरनाक उन पर जानलेवा हमले हो गये हैं, जिससे उनकी संक्रमण से कहीं ज़्यादा मौत हुई है। पिछले चार महीनों के अन्दर 10 मीडियाकर्मियों की हत्या हो चुकी है। देश के अलग-अलग राज्यों में सैकड़ों पत्रकार कोरोना वायरस संक्रमण के शिकार हुए हैं; क्योंकि वे भी बाहर निकलकर काम करते हैं और समाज को आईना दिखाने की कोशिश करते हैं। पत्रकार भी डॉक्टरों, नर्सों, स्वच्छता कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों की तरह ही कोरोना योद्धा की भूमिका अदा कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश के तिरुपति के एक वरिष्ठ टेलीविजन रिपोर्टर (मधुसूदन रेड्डी) ने 17 जुलाई को कोरोना संक्रमित हो गये, जिनको तेज़ बुखार के साथ साँस लेने में तकलीफ के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मधुसूदन आंध्र में दूसरे ऐसे पत्रकार थे, जो कोविड-19 की वजह से मौत के शिकार हुए। इससे पहले 12 जुलाई को वीडियो पत्रकार एम. पार्थ सारथी की इलाज के दौरान मौत हो गयी थी।
इससे पूर्व तमिलनाडु के टेलीविजन रिपोर्टर रामनाथन, ओडिशा के पत्रकारों सीमांचल पांडा, के.सी. रत्नम और प्रियदर्शी पटनायक भी वायरस संक्रमण के कारण दम तोड़ चुके थे। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक प्रतिष्ठित अखबार के रिपोर्टर तरुण सिसोदिया की कोरोना का इलाज कराने के दौरान संदिग्ध हालात में ट्रॉमा सेंटर की चौथी मंज़िल से गिरकर मौत हो गयी थी। चेन्नई में करने वाले वीडियोग्राफर ई. वेलमुरुगन, चंडीगढ़ में न्यूज एंकर दविंदर पाल सिंह, हैदराबाद में टी.वी. पत्रकार मनोज कुमार और आगरा में अखबार के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ कोरोना संक्रमण से अपनी जान गँवा चुके हैं। इनके अलावा कोलकाता के फोटो पत्रकार रॉनी रॉय भी वायरस की चपेट में आयीं और नहीं बच सकीं।
गुवाहाटी के असोमिया खबर के प्रिंटर और पब्लिशर रंटू दास का दिल का दौरान पडऩे से निधन हो गया; जिनकी बाद में कोरोना जाँच करायी, तो वह संक्रमित पाये गये। अखबार, न्यूज चैनल और न्यूज पोर्टल के लिए काम करने वाले सौ से अधिक गुवाहाटी के ही मीडिया कर्मचारी वायरस के संक्रमण की गिरफ्त में आ चुके हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि ज़्यादातर स्थानीय मीडिया आउटलेट्स ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया है और न ही इसके लिए ज़रूरी कदम उठाये हैं; जो चिन्ता का सबब है। भले ही उनके कर्मचारी संक्रमित हो गये हों। महामारी के चपेट में आकर देश भर के सैकड़ों मुख्यधारा के मीडिया संस्थान भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं; क्योंकि इस दौरान कई अखबार या संस्करण बन्द कर दिये गये हैं। कई मुख्य अखबारों ने अपने संस्करण घटा दिये, ज़्यादातर ने पेज कम कर दिये हैं; साथ ही कर्मचारियों व पत्रकारों के वेतन में कटौती कर दी है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि विज्ञापन से आने वाले राजस्व में बेहद कमी आयी है। हमेशा की तरह किसी भी मीडिया संस्थान के पत्रकारों ने प्रबन्धन के ऐसे फैसलों के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं की; भले ही वे खुद में कुंठित हों।