िफल्में आम आदमी की ज़िन्दगी में इस कदर रच-बस गयी हैं कि सियासत की यादों की तरह धुँधली नहीं पड़तीं। क्योंकि िफल्में समाज के सच को भी दिखाती हैं। यही कारण है कि लोग िफल्मों को देखकर प्रतिक्रिया भी करते हैं। हाल ही में फिल्म ‘मर्दानी-दो’ के टीजर ने कोटा कोचिंग जैसी आसमानी ख्वाब बुनती इस बुलंद मीनार पर जमकर छींटाकशी कर दी। इसका विरोध हो रहा है। इसकी शुरुआत बेशक दबी-छुपी सरगोशियों से हुई, लेकिन दिन बीतते-बीतते ज़बरदस्त शोर में तब्दील हो गयी। इसके संकेत तो पहले ही दिखने लगे थे। लेकिन टीजर वायरल होने के साथ ही लोग सिनेमाघरों के प्रबन्धकों से गुत्थमगुत्था करने को उतावले नज़र आये। दरअसल, लोगों के भड़कते गुस्से के पीछे इस कोटा शहर की तस्वीर पर फिल्म के ज़रिये कालिख पोतने की नामुराद कोशिश थी, जो प्रतिभा का पालना कहलाता है और तालीम की दुनिया में खूब चमक रहा है। कोटा कोचिंग उद्योग बेहिसाब मेहनत के मुकम्मल मुजस्सिम की तरह आसमानी ऊँचाइयाँ ताकता हुआ खड़ा है। आज दुनिया-भर में कोटा का ज़िक्र फख्र से किया जाता है कि यहाँ तकनीकी शिक्षा के कोहिनूर तराशे जाते हैं। लेकिन िफल्म मर्दानी कोटा की शिनाख्त बदरंग और बदकार शहर के रूप में करती है। मानो यह शहर अस्मत के लुटेरों का अड्डा बन गया है। लाखों को रोज़गार देने के साथ डॉक्टर, इंजीनियर गढऩे वाले इस शहर पर अगर यह तोहमत लगेगी, तो तूफान तो खड़ा होगा ही। िफल्मकारों का दावा है कि िफल्म सच्ची घटनाओं पर बनायी गयी है। मगर लोगों को फिल्म का टीजर इस कदर नागवार गुज़रा कि िफल्म को बैन करने की चेतावनी के साथ प्रदर्शन पर उतर आये। राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना और कांग्रेस ने िफल्म की थीम को लेकर तीखी प्रतिक्रिया जतायी है। उनका कहना था कि शहर पर आपराधिक छींटाकशी करते हुए इसकी तस्वीर को बदरंग किया जा रहा है। भाजपा के आनुषांगिक संगठनों ने सिनेमाघरों के आगे िफल्म निर्माता का पुतला फूँका। शिक्षा शास्त्रियों का कहना है कि जिस शहर को प्रधानमंत्री शिक्षा का काशी कहते हैं, कैसे कोई उस पर गन्दगी उछाल सकता है? कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपने हालिया दौरे में इस खदबदाहट से बेखबर नहीं रहे। नतीजतन बिरला के दखल के बाद िफल्म के निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर गोपी पुरथन शर्मिन्दा होते नज़र आये। उन्होंने कहा कि हमारा मकसद यह नहीं था। हमने िफल्म से कोटा से जुड़ी सत्य घटनाओं की शाब्दिक टिप्पणी को हटा दिया है। इसके साथ ही सफाई दी कि मर्दानी एक िफल्म है, डाक्यूमेंटरी नहीं; और उसे इसी रूप में देखा जाना चाहिए। िफल्म की कहानियाँ आज के समय के यथार्थ को एक नज़ीर के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरती है। इसका सबसे बड़ा गुण है कि इसमें छिपी बलात्कार की जघन्य घटनाएँ समाज की कड़वी सचाइयों को बयान करती हैं और अपराधों की जटिल प्रकृति को बुनती-खोलती नज़र आती हैं। वहीं लोगों के विरोध से िफल्म की रिलीज पर िफलहाल रोक लग गयी है। देखना यह है कि यह िफल्म थोड़ी-बहुत हाय-तौबा के बाद सिनेमाघरों मेें चल पाती है या फिर इसका विरोध जारी रहेगा।