दिल्ली- एनसीआर में कोरोना के कहर से लोग जूझ रहे है। मर –खप रहे है। गरीब से गरीब आदमी कोरोना के उपचार के लिये अपनी जमा पूंजी को निकाल कर इलाज कराने को अस्पताल दर अस्पताल भटक रहा है। वहीं केन्द्र सरकार, राज्य सरकार के अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों में मरीजों को आँक्सीजन और बैड ना मिलने से मरीजों की मौत हो रही है। मरीज के परिजन तो भगवान भरोसे लाचार खड़ा है। अस्पताल में डाँक्टरों का व्यवहार मरीजों के साथ नहीं है। मरीज ऐसे वातावरण में शारीरिक और मानसिक रूप से टूट रहे है।
मौजूदा वक्त में सरकार का हेल्थ सिस्टम फेल हो गया है। देश का कोई भी ऐसा शहर व कस्बा नहीं है। जहां पर मरीज इलाज को ना भटक रहा हो । सबसे चौकाने वाली बात तो ये है। जिला प्रशासन तो निकम्मा ही साबित हो रहा है। जिला के आला अधिकारी तो कुछ करने के सोचते है। लेकिन उनका चतुर्थ और तृतीय श्रेणी का कर्मचारी आम जनमानस को गुमराह कर रहै है। जिला अधिकारियों के पास इलाज या अन्य फरियाद लेकर जाते है। तो कर्मचारी भगा देते है। मिलने नहीं देते है। ऐसा में जनमानस के साथ अभद्रता हो रही है।
देश की राजधानी में जहां पर एम्स जैसे संस्थान है। पंच सितारा अस्पताल है। और काफी बड़े अस्पताल है। यहां पर स्वास्थ्य सेवाओं के चरमाने के पीछे का मतलब है। दलाली प्रथा का हावी होना है। जिसमें हेल्थ अधिकारियों की मिली भगत का होना है।सरकारी अस्पताल और निजी अस्पताल में एक प्रकार का ऐसा नैक्सिस है। जो मोटा कमाई का जरिया बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि मंत्रालय और सरकारों को इन सारी गतिवधियों की जानकारी नहीं है। सब पता है।सब चल रहा था। कोरोना के कहर ने इन दलालों की पोल खोल दी है।
देश में लोग बीमारी के साथ –साथ हेल्थ सिस्टम में फैली आराजकता से डर रहे है। तहलका संवाददाता को मरीजों के परिजनों सुरेश सिंह और शीतल घोष ने बताया कि नोएड़ा, गुड़गांव, नोएड़ा और गाजियाबाद में जो नामी-गिरामी अस्पतालों की अगर जांच सही तरीके से हो जाये तो पता चलेगा। किस हद तक मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते रहे है। इन अस्पताल वालों ने सरकार को प्रलोभन देकर किस कदर चूना लगाया है।
कहते है दगा किसी का सगा नहीं होता है। वो हाल आज नामी –गिरामी अस्पताल वाले नेताओं के साथ कर रहे है। नेताओं के परिजनों को आँक्सीजन और बैड ना होने का हवाला देकर मरीजों को एडमिट तो क्या देख भी नहीं रहे है।