सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक हटाने से इनकार कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से बोलते हुए, मुकूल रोहतगी, कपिल सिब्बल आदि सरकारी वकिलों ने विभिन्न उदाहरण देते हुए अंतरिम रोक को हटाने की मांग की। शीर्ष अदालत ने कहा है कि स्टे को तुरंत नहीं हटाया जाएगा। इस मसले पर अगली सुनवाई जनवरी के तीसरे या चौथे सप्ताह में तय की गयी है।
छात्रों और एडमिशन के नुकसान के बारे में ठाकरे सरकार के मुकुल राहतोगी द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में कोर्ट ने कहा,’ हमने किसी भी भर्ती को रोकने से इनकार नहीं किया है। हालांकि, अदालत ने कहा कि भर्ती अधिनियम के तहत नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने मराठा आरक्षण मामले को पाँच न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया। शीर्ष अदालत द्वारा आरक्षण पर रोक बरकरार रखे जाने से सरकार को गहरा झटका लगा है । सितंबर में मराठा आरक्षण पर लगी रोक को कम से कम आज हटाए जाने की उम्मीद थी।
मराठा आरक्षण पर राज्य सरकार की ओर से बोलते हुए, रोहतगी ने कहा कि राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण को ठेस पहुंचाए बिना मराठा समुदाय को स्वतंत्र आरक्षण दिया गया है। इसके लिए, अलग-अलग एसईबीसी वर्ग बनाए गए हैं और उन्हें नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मुंबई उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार कानून को बरकरार रखा था।
रोहतगी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कई राज्यों में अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार कर ली गई है। 1993 में, सीमा को तमिलनाडु में 69 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान किया है क्योंकि यह शिक्षा और रोजगार के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी पिछड़ रहा है। रोहतगी ने अदालत को यह भी बताया कि पिछले 30 वर्षों में इस समुदाय के साथ बहुत अन्याय हुआ है।
उधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने ठाकरे सरकार की आलोचना करते हुए है कहा कि सरकार की तैयारियों की कमी के कारण मराठा आरक्षण के मामले में मराठों को यह दिन देखना पड़ा। अब मराठा समुदाय के सामने अंधेरा ही अंधेरा है जनवरी तक। चंद्रकांत पाटिल ने यह भी कहा है कि मुकुल रोहतगी ने आज अदालत के समक्ष कोई नया मुद्दा नहीं उठाया।