उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मन्दिर एवं आरती को लेकर पूरे प्रदेश में हंगामा मचा पड़ा है। संत महंत से बुलडोजर बाबा बनने के बाद अब योगी भगवान बने गोरखपुर मठ के महंत एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इतनी निंदा हुई कि वह अपनी इस पूजा-अर्चना पर चुप्पी भले ही साधे रहे, मगर पुलिस को सक्रिय अवश्य कर दिया। अब पुलिस मन्दिर बनाकर योगी की पूजा करने वाले प्रभाकर मौर्य को सिद्दत से ढूँढ रही है।
कहा जा रहा है कि प्रभाकर ने राम नगरी से केवल 15 किलोमीटर दूर स्थित पूराकलंदर थाना क्षेत्र के अयोध्या-प्रयागराज हाईवे के किनारे स्थित कल्याण भदरसा मजरे में अपने ही चाचा की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके उसे हड़पने की नीयत से उस पर योगी आदित्यनाथ का मन्दिर बना डाला। मगर उसके इस भगवान ने उसकी रक्षा नहीं की। अब मन्दिर से मुख्यमंत्री योगी की मूर्ति भी नदारद है। पुलिस की दबिश के बाद अब प्रभाकर मौर्य के पिता ने भी उसकी ग़लतियों को स्वीकार कर लिया है।
इधर योगी की आरती एवं पूजा-अर्चना पर घमासान मचा हुआ है। कुछ लोग इसे उचित ठहरा रहे हैं, तो कुछ अनुचित। प्रश्न यह उठने लगा है कि कहीं योगी तो इतने महत्त्वाकांक्षी नहीं हो गये कि अब वह लोगों के भगवान बनना चाहते हैं? इस बारे में एक निजी महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रदीप कहते हैं कि जीवन में ऊँचा उठने की आकांक्षा तो सबकी होती है, मगर भगवान बनने की आकांक्षा कुछ ही लोगों को होती है। हिन्दू शास्त्रों में भगवान से अपनी तुलना करने अथवा भगवान बनने की आकांक्षा करने वालों को राक्षस कहा गया है। मगर यह घोर कलियुग है। यहाँ जो जितना बड़ा पापी है, वही लोगों की दृष्टि में भगवान है। कोई व्यक्ति भगवान तभी बनता है, जब वो सामाजिक बन्धनों से ऊपर उठकर समाज की सेवा करता है। इस प्रकृति की विभूतियों को लोग अपना भगवान मानने लगते हैं, यह एक अलग बात है। मगर यहाँ न तो कोई सामाजिक बन्धनों से ऊपर उठा है एवं न ही समाज की सेवा में लगा है। यहाँ जो कुछ भी हो रहा है, वो अपने लाभ, स्वार्थ एवं सुख के लिए राजनीति से प्रेरित है।
नाम प्रकाशित न करने की विनती करते हुए एक स्थानीय भाजपा नेता ने योगी आदित्यनाथ की आरती व पूजा-अर्चना पर कहा कि देखिए, हम तो साधारण व्यक्ति हैं। अगर हमें इस स्तर की राजनीति आती होती, तो हम भी कम-से-कम मंत्री तो होते ही। हम तो आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित भारतीय जनता पार्टी के एक छोटे से सिपाही हैं तथा पार्टी की सेवा में जुटे हुए हैं। किन्तु योगी आदित्यनाथ को इस प्रकार की गतिविधियों पर स्वयं ध्यान देते हुए उनका मन्दिर बनाने वालों के अतिरिक्त आरती एवं पूजा-अर्चना करने वालों की कड़ी फटकार लगानी चाहिए। इससे उनका क़द और भी ऊँचा हो जाता। हालाँकि वह इस प्रकार के ढकोसलों से कोसों दूर रहने वाले एक बड़े सन्त हैं एवं ऐसी हरकतें स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि ऐसा नहीं करने से उनकी गरिमा को बड़ी ठेस पहुँचेगी।
इस वर्तमान समय में उन्हें इस बात का ध्यान है कि वह अब प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तथा उनके सिर पर पूरे प्रदेश के विकास का दारोमदार है। प्रदेश में हो रहे अपराधों पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता है। दूसरी बार भी सत्ता मिलने के बाद भी अगर वह कान में तेल डालकर बैठे रहेंगे, तो उन पर काम न करने वाले मुख्यमंत्री का ठप्पा लगते देर नहीं लगेगी। इस वर्तमान में प्रदेश में बहुत सारे काम करने को पड़े हैं। योगी को इस वर्तमान में उन पर ध्यान देने की परम् आवश्यकता है। जनता में जो उनका मान-सम्मान एवं उनके प्रति जो विश्वास है, अभी उसे बनाये रखने में ही उनकी भलाई है।
एक भाजपा कार्यकर्ता ओंमकार ने कहा कि नरेंद्र मोदी जी, योगी आदित्यनाथ इस राष्ट्र की आन, बान और शान हैं। वह हम सबके लिए पूज्यनीय तो हैं ही, देश के लिए कल्याणकारी भी हैं। अगर योगी ख़ुद इससे नाराज़ हैं, तो यह उनकी महानता है।
भौजीपुरा के कमुआ गाँव के मास्टर नंदराम कहते हैं कि सदियों से एक कहावत चली आ रही है कि चमत्कार को नमस्कार है। योगी आदित्यनाथ कई प्रकार से चमत्कृत हैं। आज वह जिसके सिर पर हाथ रख दें, उसके वारे-न्यारे हो जाएँगे। इसका कारण उनका प्रदेश का मुख्यमंत्री होना तो है ही, भविष्य में उनके प्रधानमंत्री बनने की बात चलने का भी है। अब ऐसे शहद लगे मुँह को कौन नहीं चाटेगा? योगी की आरती एवं पूजा-अर्चना करने वाले उस पुजारी ने भी यही किया है। सभी जानते हैं कि जिसकी सरकार देश अथवा किसी प्रदेश में बनती है, उसके हाथ में इतना कुछ होता है कि वह मनचाहे रूप से अपनों को लाभ पहुँचा सकता है। सम्भव है कि पुजारी ने भी ऐसा ही कुछ सोचा हो कि अगर योगी आदित्यनाथ उन पर कृपा कर दें, तो उसके भी ठाठ हो जाएँ।
चौधरी यशवंत सिंह कहते हैं कि जनता में जिन देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा है, वो उनकी पूजा करती है। अगर कोई एक पुजारी कहीं छोटा-सा मन्दिर बनवाकर किसी नेता की आरती करने लगे अथवा पूजा करने लगे, तो इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। यह सब कोई नया खेल नहीं है। योगी से पहले मोदी का भी मन्दिर बना था तथा उसमें पूजा भी हुई थी। मगर नरेंद्र मोदी ने चतुराई दिखाते हुए अपनी मूर्ति पूजा पर रोक लगाते हुए मूर्ति को ढकवा दिया। योगी को भी यहाँ इसी समझदारी से कार्य करने की आवश्यकता है। अगर वो अपने प्रति इस तरह के काम करने वालों को नहीं रोकेंगे, तो इससे उन्हीं की हानि होगी। क्योंकि जनता के भगवान हिन्दू ग्रंथों में वर्णित भगवान हैं। अत: जनता अचानक आदमी के रूप में मिले किसी भगवान को कभी स्वीकार नहीं कर सकती।
बहेड़ी के गाँव गौंटिया के मन्दिर के पुजारी सन्त कमलेश्वर जी कहते हैं कि यह अपनी-अपनी आस्था का प्रश्न हो सकता है कि कौन, किसकी पूजा कर रहा है? मगर हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि कोई आदमी भगवान बनने के योग्य तभी हो सकता है, जब वह अंतर्यामी होने के साथ साथ सभी से बैर-भावना भुलाकर सबको गले से लगाये एवं सबका भला करे। अगर योगी में ये तीनों लक्षण हों, तो उन्हें भगवान मानने में कोई आपत्ति नहीं है। अन्यथा उन्हें पुजारियों से कहना चाहिए कि वे उस एक परमपिता परमात्मा की उपासना करें, जिसने सबको रचा है।
जो भी हो किसी व्यक्ति विशेष की पूजा-अर्चना एवं आरती करना सबके मन को तो नहीं भाया है। जो लोग इसे पसन्द कर रहे हैं, उनके अपने तर्क हैं तथा जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनके अपने तर्क हैं। यह मुद्दा धार्मिक है, इसके चलते इस पर अपनी कोई टिप्पणी उचित नहीं है। देखना है कि योगी आदित्यनाथ अपनी इस पूजा-अर्चना एवं आरती के राजनीति में किस प्रकार उपयोग करते हैं? जनता जनार्दन इसे किस रूप में स्वीकार अथवा अस्वीकार करती है। योगी आदित्यनाथ को तो शायद यह रास आया नहीं।