मनोहर परिकर,
उम्र-57,
मुख्यमंत्री, गोवा
2012 की घटना है. मनोहर परिकर गोवा के मुख्यमंत्री बने ही थे. राज्य के एक पांचसितारा होटल में किसी कार्यक्रम का आयोजन हो रहा था जिसमें उन्हें मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. तय वक्त पर परिकर आयोजनस्थल पर पहुंचे. लेकिन उनके साथ वह तामझाम नहीं था जो अमूमन मुख्यमंत्रियों के साथ देखने को मिलता है. गेट पर खड़ा सुरक्षाकर्मी उन्हें पहचान नहीं पाया और उसने परिकर को जांच के लिए रोक दिया. पूरी सुरक्षा जांच करने और हर तरह से आश्वस्त होने के बाद ही सुरक्षाकर्मी ने परिकर को अंदर जाने दिया. अगर उत्तर भारत के किसी मामूली नेता को भी कोई सुरक्षाकर्मी इस तरह रोक दे तो नतीजे का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.
लेकिन यह सरलता तो मनोहर परिकर के स्वभाव का सिर्फ एक पहलू है. ऐसी कई वजहें हैं जिनके चलते उनसे उम्मीदें जगती हैं. पिछले दिनों जब भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे और उनके दोबारा अध्यक्ष बनने की संभावनाओं पर आशंकाओं के बादल मंडराए तो विकल्प के रूप में जिन नामों की चर्चा प्रमुखता से हुई उनमें एक परिकर भी थे. कइयों का मानना था कि परिकर जैसा ईमानदार आदमी अगर पार्टी को संभालेगा तो कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा होगा.
2012 में गोवा में हुए चुनावों में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करके भाजपा को सत्ता में लाने वाले परिकर की छवि न सिर्फ पार्टी में बल्कि पार्टी के बाहर भी बहुत अच्छी है. गोवा में हुए चुनाव के बाद पता चला कि परिकर को वहां के ईसाइयों ने भी बड़ी संख्या में वोट दिया था. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने वहां की खनन लॉबी के खिलाफ जिस तरह का रुख अख्तियार किया है उसकी तारीफ हर कोई कर रहा है. अब भी अपने निजी मकान में रहने वाले और जरूरत पड़ने पर कहीं भी स्कूटर उठाकर चल देने वाले मुख्यमंत्री की कार्यशैली की वजह से लोगों को काफी उम्मीदें हैं.
13 दिसंबर, 1955 को जन्मे मनोहर गोपालकृष्ण प्रभु परिकर की स्कूली शिक्षा मराठी माध्यम के स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने आईआईटी मुंबई से इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1978 में पूरी की. कम ही लोगों को मालूम होगा कि आधार परियोजना के प्रमुख नंदन नीलेकणी और परिकर आईआईटी मुंबई में एक ही बैच में थे. 1994 में वे पहली दफा विधायक बने और 1999 में गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता. 24 अक्टूबर, 2000 को उन्होंने पहली बार गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. 2002 में उनके नेतृत्व में भाजपा ने विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और परिकर दोबारा मुख्यमंत्री बने. 2005 में उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर वे विपक्ष के नेता की भूमिका में आ गए. 2007 में भाजपा गोवा में विधानसभा चुनाव हार गई, लेकिन 2012 में फिर से एक बार पार्टी ने जीत हासिल की और परिकर ने तीसरी दफा प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला.
भाजपा में जो लोग परिकर की कार्यशैली को जानते हैं उनका कहना है कि वे बिल्कुल वैज्ञानिक ढंग से काम करते हैं और अगर उन्होंने कोई काम किसी को सौंपा है तो वे चाहते हैं कि तय समय में वह काम पूरा हो. बहुत कम लोगों को पता होगा कि मनोहर परिकर पहले गुटखा भी खाते थे. 2003 में जब वे बतौर मुख्यमंत्री एक स्कूल में गए तो उन्होंने छह साल के एक बच्चे को अपने सामने गुटखा खाते देखा. उन्होंने उस बच्चे को डांट लगाई और तय किया कि गोवा में गुटखा प्रतिबंधित करना है. लेकिन उनके सामने दुविधा यह थी कि वे खुद गुटखा खाते थे. ऐसे में उन्होंने पहले खुद गुटखा खाना बंद किया और फिर इसे प्रतिबंधित किया. अब उनकी तैयारी ‘गोवा’ नाम से भारत के कई हिस्सों में बेचे जा रहे गुटखे को गोवा नाम का इस्तेमाल करने से रोकने की है. इसके लिए वे जरूरी कदम उठा रहे हैं.
उनके काम करने की शैली भी ‘जरा हटके’ है. बीते जून में उनसे एक पत्रकार ने गोवा के किसी थाने के बारे में शिकायत की कि उस थाने का लैंडलाइन फोन काम ही नहीं करता. फिर क्या था परिकर ने पत्रकार से नंबर पूछकर उसके सामने ही अपने मोबाइल से वह नंबर मिला दिया. फोन लग गया. इसके बाद उन्होंने मोबाइल पत्रकार महोदय को थमा दिया. इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं. उन्होंने 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पेट्रोल की कीमतों में कटौती करके खूब वाहवाही लूटी. इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएफएफआई) को गोवा में लाने का श्रेय भी परिकर को ही दिया जाता है.
-हिमांशु शेखर