कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 के आम चुनाव में पूरी सूझबूझ और तैयारी से चुनावी तालमेल कर रहे हैं। इसी साल के अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने को हैं। उसके मद्दे नज़र कांगे्रस और बीएसपी का साथ होना आपस में तालमेल रखने की दिशा में एक बड़ी पहल है।
बसपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेताओं की विभिन्न मुद्दों पर बातचीत अर्से से चल रही है। दोनों पक्षों में एक ऊपरी सहमति तो बन गई है लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेता पूरा ब्यौरा देने पर फिलहाल राजी नहीं हैं।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया का कहना है कि राज्य में साथ मिल कर चुनाव लडऩे की योजना पर चल रहा राय-मश्विरा अब भी जारी है। हालांकि तालमेल पर सहमति बन चली है। सहयोग के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत का सिलसिला विभिन्न स्तरों पर जारी है। उन्होंने कहा कि सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। लेकिन फार्मूला क्या है और सीटों का अनुपात कितना रखा जाएगा इसके बारे में फैसले तक अभी कई और बैठकें होंगी। तब कहीं सहमति के आसार बनेंगे।
मध्यप्रदेश में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी को चार सीटें मिली थी। राज्य की एक दर्जन सीटों पर यह दूसरे स्थान पर थी। इस दौरान राज्य में बीएसपी की ताकत और प्रभाव में बढ़ोतरी हुई है। कंाग्रेस ने बीएसपी की क्षमता और राज्य में संभावनाओं का आकलन करते हुए बसपा को अपना सहयोगी दल माना है।
कांग्रेस फिलहाल राजस्थान, और छत्तीसगढ़ में भी ऐसे दूसरे राजनीतिक दलों की तलाश में है जिनकी चुनावों में बढ़ी क्षमता का उपयोग करते हुए चुनावी रणक्षेत्र में मजबूती से उतर कर भाजपा को पराजित किया जा सके। हालांकि राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायल का मानना है कि राज्य में सभी सीटों पर कांग्रेस फिलहाल जीतने में सक्षम है। इसी कारण किसी और दल के साथ कोई बातचीत भी नहीं की गई है। वहां की सभी सीटों के आकलन की रपट कांग्रेस हाईकमान के पास है। उनके इशारे पर ही अगली कार्रवाई होगी।
छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस का पलड़ा कुछ इलाकों में मजबूत हैं लेकिन दूसरे कुछ कमज़ोर क्षेत्रों में कोई और एसी पार्टी दिख नहीं रही है जो आगे निकले। जानकारों के अनुसार राज्य भाजपा को पूरा भरोसा है कि इस बार भी रमन सिंह के ही नेतृत्व में छत्तीसगढ़ केसरिया ही बना रहेगा।