इन दिनों तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ पूरे देश के किसान एकजुट होकर आन्दोलनरत हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी नहीं मिलना है। एक तरफ केंद्र सरकार कह रही है कि किसानों को हर फसल (अनाज) का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा, तो वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कई बार कह चुके हैं कि मध्य प्रदेश सरकार किसानों की फसलों को खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी। लेकिन मध्य प्रदेश में ही कपास के किसानों से सरकारी बिक्री केंद्रों पर ही खुली लूट की जा रही है। मध्य प्रदेश में निमाड़ की मंडियों में कपास (रुई) को औने-पौने दामों में खरीदने की साज़िश की जा रही है। किसानों का आरोप है कि मंडियों में कपास को औने-पौने दामों में, जो कि एमएसपी से काफी कम हैं; खरीदने के पीछे भारतीय कपास निगम के अधिकारियों और मंडी प्रबन्धन की ही मिलीभगत है। उनका कहना है कि भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) किसानों की कपास को खराब बताकर या दूसरी कमी निकालकर उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दे रहा है। किसानों का यह भी आरोप है कि उनकी अच्छी गाँठों को खराब गाँठों से बदलवाने तक का खेल कर अन्दर चल रहा है। अभी पिछले दिनों इस बात को लेकर किसानों और मंडी के अधिकारियों के बीच छिटपुट झड़पें भी हुईं। अब किसानों ने राज्य सरकार के खिलाफ न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए मोर्चा खोल दिया है।
बता दें कि कपास की मध्य प्रदेश में इतनी पैदावार है कि उसे सफेद सोना कहा जाता है; क्योंकि यह एक नकदी फसल है। हालाँकि कपास की खेती से किसानों को उतना लाभ कभी नहीं मिल पाता, जितना कि बिचौलिये और अधिकारी मिलकर लूट ले जाते हैं। लेकिन इन दिनों जैसे ही मंडी में कपास की आवक चरम पर होती है, मंडियों के अन्दर किसानों से धोखाधड़ी करके लूट का यह खेल शुरू हो जाता है।
जहाँ तक मध्य प्रदेश में कपास की पैदावार की बात करें, तो गुजरात के बाद मध्य प्रदेश को कपास उत्पादन में गिना जा सकता है। मध्य प्रदेश में कपास सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार के क्षेत्रों में पैदा होती है। यहाँ कपास की खेती करीब साढ़े सात लाख हेक्टेयर से भी ज़्यादा ज़मीन पर होती है, जिसकी 75 फीसदी पैदावार अकेले निमाड़ क्षेत्र से होती है। इसके अलावा छिंदवाड़ा और देवास भी कपास के प्रमुख ज़िले हैं।
किसानों के साथ आये संगठन
मध्य प्रदेश में कपास के किसानों के साथ अब कई संगठन आ गये हैं। राज्य सरकार से किसानों की माँग ही कि कपास में कमी निकालकर किसानों से की जा रही लूट बन्द करके उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य, जो कि सरकार ने ही तय किया है, दिया जाए। किसानों के साथ आरएसएस से जुड़े संगठन भी उतर आये हैं। सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं अधिकारी अपनी सफाई पेश करने में लगे हुए हैं। वहीं अगर मंडी की स्थिति देखें, तो वहाँ रुई खरीदने में जिस कदर आना-कानी की जा रही है, उसका अंदाज़ा मंडी में लगे रुई से भरे किसानों के अनगिनत वाहनों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इन संगठनों ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर वह किसानों से लूट का खेल करेगी, तो वो विधानसभा का घेराव करेंगे।
किसानों की समस्याएँ
किसानों का कहना है कि मंडियों में कपास की खरीद आराम तरीके से अधिकारियों की मनमानी से होती है। इससे किसानों को काफी तकलीफ होती है। जिन किसानों के भाड़े के वाहन होते हैं, उन पर भाड़ा बढ़ता जाता है। सीसीआई के नियमों के अनुसार कपास में 12 फीसदी से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए; लेकिन कई-कई हफ्ते खुले में वाहन खड़े रहते हैं, जिससे रुई पर ओस पडऩे से वह गीली और खराब होने लगती है, जिसे बाद में खराब बता दिया जाता है। इतना ही नहीं उनकी अच्छे रेशे की रुई को मशीनों में जाँच के नाम पर ले जाकर खराब रेशे की रुई से बदलने का खेल भी खूब चलता है। इसके अलावा रेशे की लम्बाई को मशीन से न मापकर हाथ से मापकर मन-मर्ज़ी के दाम किसानों को बता दिये जाते हैं, जिससे किसानों को हज़ारों-लाखों का नुकसान हो जाता है। सीसीआई ने किसानों को दाम करके पहले ही बताने शुरू कर दिये हैं। किसानों का यह भी आरोप है कि निमाड़ में कपास के रेशे की लम्बाई की जाँच करने वाली मशीन है, लेकिन अधिकारी उसका उपयोग नहीं करते हैं और हाथ से कपास के रेशे को मापकर मनमाने तरीके से भाव बताते हैं।
बता दें कि सरकार की तरफ से देश भर में कपास की खरीद के लिए अधिकृत सीसीआई ही तय करती है कि कपास के भाव क्या होंगे? लेकिन इस भाव को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भी नहीं होना चाहिए। इस बार कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5825 रुपये तय था; लेकिन किसानों का आरोप है कि उन्हें कपास की यह कीमत भी नहीं मिल रही, जो कि पहले ही काफी कम है। लेकिन इतने पर भी मंडी में किसानों को 23.5 से 24.5 मि.मी. के कपास का भाव 5365 रुपये प्रति कुंतल और 24.5 से 25.5 मि.मी. रेशे वाली कपास का भाव 5515 रुपये प्रति कुंतल दिया जा रहा है। यहाँ खरीदी के बाद कपास को प्राइवेट जिनिंग प्रेसिंग के लिए भेजा जाता है, जहाँ भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा है। किसानों का आरोप है कि जिस जिनिंग प्रेसिंग में सीसीआई द्वारा खरीद की गयी रुई (कपास) का गठान किया जाता है, वहाँ उनकी रुई को खराब रुई से बदल दिया जाता है। खरगौन में स्थापित कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया में जो रुई जाँच के लिए आती है, गुणवत्ता के हिसाब से उसका न्यूतम समर्थन मूल्य- 23.5 से 24.5 मि.मी. रेशे वाली कपास का मूल्य 5775 रुपये प्रति कुंतल और 24.5 से 25.5 मि.मी. रेशे वाली कपास का मूल्य 5825 रुपये प्रति कुंतल होना चाहिए। लेकिन किसानों को यह भाव भी नहीं दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, किसानों की कपास को हल्का या भारी माल, गीला या अधिक सूखा माल कहकर भी उसमें कटौती की जाती है, जिससे किसानों को सीधे-सीधे हज़ारों रुपये का नुकसान हो जाता है। अगर किसानों की बात सही है, तो सवाल यह उठता है कि जब सरकार के न्यूनमम समर्थन मूल्य के आश्वासन के बाद खुद सरकारी कम्पनी किसानों के साथ यह धाँधली का खेल करती है, तो फिर प्राइवेट खरीदारों और दलालों पर लगाम कैसे कसी जा सकती है?
समय पर नहीं होता भुगतान
कपास को नकदी फसल कहा जाता है। सरकार इसे नकद में खरीदने का दावा करती है। लेकिन मंडियों की सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। कपास बेचने वाले किसानों का कहना है कि उनकी कपास उधार में ली जाती है और उसका भुगतान 15-20 दिन से लेकर एक-सवा महीने तक में किया जाता है। किसानों का कहना है कि पहले से ही लूट मचा रही सीसीआई के अधिकारी किसानों को काफी टहलाकर, परेशान करके और काफी टालमटोल के बाद कई-कई दिनों में कपास खरीदते हैं और उसके बाद किसानों को भुगतान के लिए चक्कर लगवाते रहते हैं। किसानों ने माँग की है कि अगर सरकार उनका नकद भुगतान करने को सुनिश्चित नहीं करती है, जो कि पहले से ही तय है; तो किसान इसके खिलाफ आन्दोलन करने को मजबूर होंगे। वहीं देरी से भुगतान को लेकर मंडी अधिकारियों का कहना है कि मंडी में आवक बहुत ज़्यादा है। एक-एक दिन में भारी मात्रा में कपास खरीदी जाती है, जिसके चलते भुगतान में थोड़ी-बहुत देरी हो गयी होगी; लेकिन इसके पीछे किसानों को परेशान करने का कोई मकसद नहीं है। इधर किसानों के समर्थन में उतरे संगठनों का कहना है कि मंडियों में किसानों को हर तरह से लूटा जा रहा है। सरकार का यह खेल बहुत लम्बे समय तक चलने वाला नहीं है।
जाँच कराकर कार्रवाई करे सरकार
कपास को लेकर इन दिनों मंडियों में आरोप-प्रत्यारोपों और हंगामे का दौर जारी है। सीसीआई और मंडी-प्रबन्धन के अधिकारी अपनी सफाई पेश करने में लगे हैं, तो किसान उन पर ठगी और खुली लूट का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह मामले की जाँच कराये और किसानों का बाजिव दाम दिलाने की दिशा में पहल करे। जयस से विधायक हिरालाल अलावा ने इस बारे में कहा है कि किसानों को हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना ही चाहिए। लेकिन अफसोस कि सत्ता में बैठे लोग अपने फायदे के लिए अधिकारियों के माध्यम से किसानों को सीधे तौर पर लूटते हैं, जो कि गलत है। उनका कहना है कि जब सरकार ने खुद ही हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है, तो फिर वह किसान को ईमानदारी के साथ दिया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को मंडियों में चल रही कथित धाँधली की जाँच करानी चाहिए और अगर कहीं किसी भी स्तर पर धाँधली चल रही है, तो दोषियों के खिलाफ सख्त-से-सख्त कार्रवाई करनी चाहिए; ताकि किसानों के साथ किसी तरह का अन्याय न हो।