11 जुलाई को मध्य प्रदेश विधानसभा के हंगामेदार होने की सौ फीसदी संभावना तो थी लेकिन कौन जानता था कि यह दिन प्रदेश की राजनीति का अति नाटकीय दिन साबित होगा.
अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्षी दल कांग्रेस भाजपा सरकार को हिला देने की तैयारी से आई थी. किंतु विधानसभा के भीतर ही कांग्रेस विधायक दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने भाजपा से ऐसे हाथ मिलाया कि कांग्रेस का दांव उलटा पड़ गया.
इस घटनाक्रम पर सरसरी नजर डालें तो कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए कि उनके पीछे उन्हीं के दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने यह कहते हुए हवा निकाल दी कि अविश्वास प्रस्ताव अधूरा है. इतना सुनना था कि भाजपा विधायकों ने नारेबाजी शुरू कर दी और थोड़ी देर बाद रोहाणी ने नेता प्रतिपक्ष के प्रस्ताव का उपनेता द्वारा विरोध करने पर शून्य मान लिया. इसके पहले कि कांग्रेस राकेश सिंह को पार्टी से निकालती, वे मुख्यमंत्री चौहान के साथ भाजपा कार्यालय पहुंचे और भाजपा में शामिल हो गए.
काबिले गौर है कि यह मप्र की 13वीं विधानसभा का आखिरी दिन था. और चुनावी सरगर्मियों के मद्देनजर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के बयानों से जाहिर था कि इस बार उनके द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव हंगामेदार रहेगा. दरअसल सिंह ने एक हफ्ते पहले ही साफ कर दिया था कि इस बार वे मुख्यमंत्री के परिजनों और करीबियों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले उठाएंगे. जवाब में चौहान ने भी सार्वजनिक तौर पर अपने विधायकों को जता दिया था कि ऐसे हालात में उन्हें चुप नहीं बैठना हैं. लेकिन 11 जून को सदन में जो हुआ वह अप्रत्याशित था और अभूतपूर्व भी.
सवाल है कि शिवराज सरकार ने भारी बहुमत होने के बावजूद इस हद तक जाकर अविश्वास प्रस्ताव खारिज क्यों करवाया? राजनीतिक बिरादरी का एक तबका मानता है कि इस बार यदि सदन में चर्चा होती तो मुख्यमंत्री की पत्नी साधना सिंह, उनके साले संजय सिंह, भाई नरेन्द्र चौहान और रोहित चौहान आदि से जुड़े सवाल उठते. विधानसभा की प्रक्रिया संवैधानिक होती है और उसका डाक्यूमेंटेशन हमेशा संदर्भों के तौर पर उपलब्ध रहता है. वहीं इस दौरान लगाये जाने वाले आरोप-प्रत्यारोप अगली दिन मीडिया की सुर्खियां भी बनतें. यही वजह है कि चुनावी साल में चौहान ने ऐसे विवादों से किनारे होना ही ठीक समझा. वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पटेरिया के मुताबिक, ‘चौहान को भलीभांति पता है कि सदन में यदि उनके परिवार पर अंगुलियां उठीं तो इसका असर उनकी उस छवि पर पड़ता जिसकी दम पर पूरी भाजपा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.’
वहीं सूबे का कांग्रेस खेमा मानता है कि वह राकेश सिंह के मामले में बड़ी चूक कर गया. बड़े नेता बताते हैं कि पार्टी को इस बात की भनक थी कि राकेश सिंह और मुख्यमंत्री चौहान के बीच कुछ पक रहा है. लहार के कांग्रेस विधायक डॉ गोविंद सिंह की सुनें तो, ‘हम लोगों को यह तो भान था कि राकेश चुनाव से पहले भाजपा में चला जाएगा, लेकिन यह सोचा भी नहीं था कि वह ऐन मौके पर पीठ पर चुरा घोपेगा.’ वहीं कांग्रेस के अंदरखाने की मानें तो इस पूरे प्रकरण में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी के विरोधी धड़ों को फायदा पहुंचेगा. दरअसल सियासी गलियारों में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पार्टी से निकाले गए राकेश सिंह पचौरी गुट के रहे हैं. लंबे समय से पार्टी के अंदर पचौरी और उनकी मंडली हाशिए पर है.
असल में कांग्रेस आलाकमान उन पर लगे इन आरोपों से खफा है कि बीते विधानसभा चुनाव के समय जब वे प्रदेश अध्यक्ष थे तो उन्होंने पैसा लेकर टिकटें बांटी और इसके चलते पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि विधानसभा की दीर्घा में पचौरी न के बराबर ही दिखते हैं. लेकिन इस अविश्वास प्रस्ताव में उनकी भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश सारंग के साथ उपस्थिति चर्चा के केंद्र में थी. इस दौरान पचौरी के दीर्घा में रहते हुए राकेश सिंह ने बगावती तेवर अपनाए और कांग्रेस के अविश्वास पर असहमति जता दी. ऐसे में कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन के एक नेता का मत है, ‘इस घटना के बाद पार्टी का पचौरी पर से विश्वास और उठ गया. है’
जानकार बताते हैं कि चुनावी साल में विधानसभा का आखिरी सत्र विरोधी पार्टी के लिए सबसे अहम इसलिए होता है कि इसमें वह सरकार को आखिरी बार घेर सकती है. और इसीलिए कांग्रेस के नेताओं ने इस बार मुख्यमंत्री चौहान पर निशाना साधने के लिए खासी तैयारी भी की थी. लेकिन इस सत्र में जो कुछ भी घटा उसने सिद्ध कर दिया कि सियासी चतुराई में सूबे की भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे है. ऐसा इसलिए भी कि भाजपा सरकार ने सत्र की शुरूआत विधेयकों को पास कराने से की और सभी विधेयक पास हो जाने के बाद जब आखिरी में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का मौका आया तो उसने कांग्रेस को अंगूठा दिखा दिया.