इस साल 28 मार्च को भारतीय रिजर्ब बैंक (आरबीआई) ने डेटा जारी किया था। इसमें दावा किया गया था कि वित्तीय वर्ष के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा सकल ग़ैर-निष्पादित परिसम्पत्तियों की वसूली वित्त वर्ष 2017-18 में 11.33 फ़ीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 में 13.52 फ़ीसदी और 2019-20 में 14.69 फ़ीसदी हो गयी है। हालाँकि बिल्ली थैले से बाहर आ गयी, जब 2 अगस्त को वित्त राज्य मंत्री भागवत के. कराड ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में बताया कि बैंकों ने पिछले पाँच वित्तीय वर्षों में क़रीब 10 लाख करोड़ रुपये को क़र्ज़ बट्टे खाते में डाल दिया।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले पाँच वित्तीय वर्षों में क़रीब 10 लाख करोड़ रुपये के ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया है। वित्त वर्ष 2021-22 में राइट-ऑफ की गयी राशि 1.57 लाख करोड़ रुपये थी। जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में यह राशि 2.02 लाख करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2019-20 में 2.34 लाख करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2018-19 में 2.36 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2017-18 में 1.61 लाख करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान राइट-ऑफ राशि पिछले वित्त वर्ष के 2,02,781 करोड़ रुपये की तुलना में घटकर 1,57,096 करोड़ रुपये रह गयी। वित्त वर्ष 2019-20 में राइट-ऑफ राशि 2,34,170 करोड़ रुपये थी, और वित्त वर्ष 2018-19 में दर्ज राशि 2,36,265 करोड़ रुपये से कम थी, जो कि सभी पाँच वर्षों में सबसे अधिक थी। कुल मिलाकर पिछले पाँच वित्त वर्षों (2017-18 से 2021-22) के दौरान 9,91,640 करोड़ रुपये का बैंक ऋण बट्टे खाते में डाला गया है।
निश्चित ही बट्टे खाते में डाले गये क़र्ज़ से सवाल खड़े होते हैं। सवाल यह कि यह सब ऐसे समय में कैसे हो सकता है, जब ईडी बहुत मज़बूत है? प्रवर्तन निदेशालय ने 23 मार्च, 2022 तक 19,111 करोड़ रुपये की सम्पत्ति कुर्क की है। यह धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत ऋण भगोड़ों के कुछ मामलों से जुड़ी है, जो कि इन मामलों में 22,586 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की राशि का 84.61 फ़ीसदी है। इन कुर्क की गयी सम्पत्तियों में से 15,113 करोड़ रुपये, जो कि धोखाधड़ी की राशि का 66.91 फ़ीसदी है; को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बहाल कर दिया गया है।
ग़ौरतलब है कि केंद्र ने विलफुल बैंक लोन डिफॉल्टर्स या भगोड़े आर्थिक अपराधियों से निपटने के निर्देश जारी किये थे। इसके लिए एक अधिकृत प्रवर्तक के अनुरोध पर भारतीय नागरिकों और विदेशियों के सम्बन्ध में आप्रवासन ब्यूरो द्वारा एक लुक आउट सर्कुलर खोला जा सकता है। इसमें अधिकृत लोगों में भारत सरकार के उप सचिव के पद से नीचे का अधिकारी न हो; या एक अधिकारी, जो राज्य सरकार में संयुक्त सचिव के पद से नीचे का न हो ; या ज़िला अधिकारी; या पुलिस अधीक्षक; या विभिन्न क़ानून लागू करने वाली और सुरक्षा एजेंसियों के नामित अधिकारी; या इंटरपोल के नामित अधिकारी; या सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अध्यक्ष / प्रबन्ध निदेशक / मुख्य कार्यकारी; या भारत में किसी भी आपराधिक न्यायालय के निर्देशों के अनुसार तय लोग शामिल हैं।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि आव्रजन प्राधिकरण किसी भी व्यक्ति, जिसमें जानबूझकर चूककर्ता भी शामिल है; को भारत छोडऩे से रोका जा सकता है। उसके ख़िलाफ़ एलओसी जारी की गयी है। ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन ने अब तक बैंकों के इशारे पर 83 एलओसी खोले हैं। भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 भारतीय अधिकार क्षेत्र से भागने वाले आर्थिक अपराधियों के ख़िलाफ़ प्रभावी कार्रवाई के लिए अधिनियमित किया गया है। यह भगोड़े आर्थिक अपराधियों की सम्पत्ति की कुर्की और ज़ब्ती का प्रावधान करता है और उन्हें किसी भी नागरिक दावे का बचाव करने से वंचित करता है। इसके अलावा सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 50 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण सुविधाओं का लाभ उठाने वाली कम्पनियों के प्रमोटरों और निदेशकों और अन्य अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं के पासपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने की सलाह दी है। आरबीआई के अनुसार, विलफुल डिफॉल्टर्स (जानबूझकर बने दिवालिया) के सम्बन्ध में सीआरआईएलसी डेटा 2018-19 से बनाये रखा जाता है। आँकड़ों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में विलफुल डिफॉल्टर्स की कुल संख्या 10,306 थी। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान रिपोर्ट किये गये सबसे अधिक 2,840 विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या अगले वर्ष 2,700 थी। मार्च, 2019 के अन्त में विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या 2,207 थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 2,469 हो गयी।
मार्च, 2022 के अन्त में शीर्ष 25 विलफुल डिफॉल्टर्स का विवरण साझा करते हुए कराड ने कहा कि गीतांजलि जेम्स लिमिटेड इस (डिफाल्टर्स) सूची में सबसे ऊपर है। ये डिफॉल्टर्स बैंकों के 59,000 करोड़ रुपये दबाये बैठे हैं। इसके बाद एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग, कॉनकास्ट स्टील एंड पॉवर, आरईआई एग्रो लिमिटेड और एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड आते हैं। फरार हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की कम्पनी गीतांजलि जेम्स पर बैंकों का 7,110 करोड़ रुपये बकाया है। वहीं एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग पर 5,879 करोड़ रुपये और कॉनकास्ट स्टील एंड पॉवर लिमिटेड का 4,107 करोड़ रुपये बकाया हैं। इसके अलावा आरईआई एग्रो लिमिटेड और एबीजी शिपयार्ड ने बैंकों से क्रमश: 3,984 करोड़ रुपये और 3,708 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की है।
अन्य विलफुल डिफॉल्टर्स जैसे फ्रॉस्ट इंटरनेशनल लिमिटेड पर 3,108 करोड़ रुपये, विनसम डायमंड्स एंड ज्वेलरी पर 2,671 करोड़ रुपये, रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड पर 2,481 करोड़ रुपये, कोस्टल प्रोजेक्ट्स लिमिटेड पर 2,311 करोड़ रुपये और कुडोस केमी पर 2,082 करोड़ रुपये बकाया हैं। आरबीआई से मिली जानकारी के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों / भारतीय बैंकों (विदेशी बैंकों को छोड़कर) / चुनिंदा वित्तीय संस्थानों द्वारा रिपोर्ट किये गये 500 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी और उससे अधिक की धोखाधड़ी के मामलों में वित्त वर्ष 2019-20 में 79 मामले, वित्त वर्ष 2020-21 में 73 मामले और वित्त वर्ष 2021-22 में (30 जून 2021 तक) 13 मामले दर्ज हैं।
धोखाधड़ी पर आरबीआई मास्टर सर्कुलर-2015 में पाया गया है कि बेईमान उधारकर्ताओं द्वारा धोखाधड़ी विभिन्न तरीकों से की जाती है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ उपकरणों की धोखाधड़ी छूट, गिरवी रखे गये या गिरवी रखे शेयरों का धोखाधड़ी से निपटान, फंड डायवर्जन, आपराधिक उपेक्षा और दुर्भावनापूर्ण प्रबंधकीय विफलता शामिल है। एक क़र्ज़दारों का हिस्सा भी है। मास्टर सर्कुलर कुछ अन्य तरीक़ों को भी संदर्भित करता है, जिसमें जाली लिखित, हेरफेर की गयी खाता बही, फ़र्ज़ी खाते, अनधिकृत क्रेडिट सुविधाएँ, धोखाधड़ी वाले विदेशी मुद्रा लेन-देन, एकाधिक बैंकिंग व्यवस्था का शोषण और भूमिका के साथ तीसरे पक्ष की ओर से ऋण स्वीकृति और संवितरण कमी शामिल है।
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के बड़े मूल्य की बैंक धोखाधड़ी से सम्बन्धित प्रणालीगत और व्यापक छानबीन के लिए एक फ्रेमवर्क जारी किया है, ताकि उनकी ग़ैर-निष्पादित परिसम्पत्तियों (एनपीए) के पुराने स्टॉक की जानकारी समय पर मिल सके और उसकी रिपोर्टिंग और जाँच हो सके। इस व्यवस्था के तहत 50 करोड़ से अधिक मूल्य के खातों, यदि उन्हें एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया गया है; की सम्भावित धोखाधड़ी के कोण से बैंकों द्वारा जाँच की जाएगी। इस जाँच के निष्कर्षों पर एनपीए की समीक्षा के लिए बैंक की समिति के समक्ष एक रिपोर्ट रखी जाएगी। साथ ही किसी खाते के एनपीए होने की स्थिति में केंद्रीय आर्थिक ख़ुफ़िया ब्यूरो से क़र्ज़ लेने वाले की रिपोर्ट माँगी जाएगी। भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय क़ानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिए अधिनियमित किया गया है।
यह अधिनियम एक भगोड़े आर्थिक अपराधी की सम्पत्ति की कुर्की, सम्पत्ति की ज़ब्ती और उसे किसी भी नागरिक दावे का बचाव करने से वंचित करने का प्रावधान करता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सलाह दी गयी है कि वो 50 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण सुविधा प्राप्त करने वाली कम्पनियों के प्रमोटरों / निदेशकों और अन्य अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं के पासपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त करें। उन्हें कहा गया है कि वो भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनुसार और उनकी बोर्ड-अनुमोदित नीति के अनुसार विलफुल डिफॉल्टर्स की तस्वीरें प्रकाशित करने और अधिकारियों / कर्मचारियों के रोटेशनल ट्रांसफर को सख्ती से सुनिश्चित करने का निर्णय लें। पीएसबी के प्रमुखों को लुक आउट सर्कुलर के लिए अनुरोध जारी करने का भी अधिकार दिया गया है। सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आरबीआई के निर्देशों के अनुसार और उनकी बोर्ड-अनुमोदित नीति के अनुसार इरादतन चूककर्ता की तस्वीरें प्रकाशित करने और 50 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण सुविधा प्राप्त करने वाली कम्पनियों के प्रमोटरों / निदेशकों और अन्य अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं के पासपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए निर्देश / सलाह जारी की गयी है।
शीर्ष 10 विलफुल डिफॉल्टर्स (पूरी सूची 25 की है।)
गीतांजलि जेम्स लिमिटेड : 7110 करोड़ रुपये
इरा इंफ्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड : 5879 करोड़ रुपये
कनकास्ट स्टील एंड पॉवर लिमिटेड : 4107 करोड़ रुपये
आरईआई एग्रो लिमिटेड : 3984 करोड़ रुपये
एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड : 3708 करोड़ रुपये
फ्रॉस्ट इंटरनेशनल लिमिटेड : 3108 करोड़ रुपये
विनसम डायमंड्स ऐंड ज्वेवरी लिमिटेड : 2671 करोड़ रुपये
रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड : 2481 करोड़ रुपये
कोस्टल प्रोजेक्ट्स लिमिटेड : 2311 करोड़ रुपये
कुडोस केमी लिमिटेड्स : 2082 करोड़ रुपये