आज 1 मई है , मजदूर दिवस है । कहने को तो संविधान ने मजदूरों वो अधिकार दिये है। जो देश के हर एक नागरिक को मिले है। सही मायने में सुविधायें ओर वे अधिकार दिये है, जिनके वो सही मायने में हकदार है? तहलका संवाददाता ने मजदूरों ओर उनके परिजनों से उनके अधिकारों को जानना चाहा, तो उन्होंने साफ कहा कि हर साल मजदूर दिवस पर कार्यक्रम कर मजदूरों के अधिकारों की बडी – बडी बातें की जाती रही है। पर इस बार कोरोना वायरस के कहर के कारण सोशल डिस्टेंसिंग को मैनटेन करने के लिये वो भी बातें नहीं की गई है।मजदूरों से जब जानना चाहा तो कि वो किस प्रदेश के है ।तो उऩ्होंने साफ कहा कि वो भारत देश के है। जहां पर काम मिल जाये ओर भूखा ना रहना पडे, वहीं के है। मजदूर गोपाल दास ओर उनके साथी धांसू राम ने बताया कि आज भले ही देश में लाँक डाउन है ओर सरकार भोजन की व्यवस्था भी करवा रही है, पर मजदूरों को क्या मानवीय दिक्कत है । उस पर ना तो सरकार का कोई प्रतिनिधि हाल जानने आया ओर ना कोई सरकारी कर्मचारी, ऐसे में खासकर मजदूरों को काफी दिक्कत का सामना करना पड रहा है।मजदूर घनश्याम अपने परिवार के साथ गत 3 साल से दिल्ली में मजदूरी कर अपने परिवार का भरणपोषण करते आ रहे थे। ओर जब भी कोई परिजन बीमार हो जाता था। तो सरकारी अस्पताल में आसानी से ईलाज करवा लेते रहे है।पर अब एक महीने से कोरोना वायरस का कहर ओर लाँक डाउन के कारण ना तो काम मिला ओर ना ही बीमार पडे परिजनों का ईलाज हो सका है।ऐसे हालात में आशा ओर निराशा के बीच में एक बात का इंतजार कर रहे कि कब लाँक डाउन खुले ओर काम मिलें।
मजदूर यूनियन के पदाधिकारी सोहन सिंह ने बताया कि मजदूरों के अधिकारों ओर असंगठित मजदूरों के लिये तामाम यूनियनें काम कर रही है। पर दुर्भाग्य से कुछ यूनियन वाले ही मजदूरों के साथ अन्याय कर जाते है । इसके कारण मजदूर कई बार अपने आप को ठगा सा रह जाता है।सोहन सिंह का कहना है कि पूंजीवांदी सिस्टम में कई बार यूनियन के लोग मजदूरों के विरोध में दलीलें देते है ओर पूंजीपतियों के साथ खडें दिखते है।ऐसे में मजदूरों के साथ में अगर कोई खडा होता है तो उसका पसीना ओर उसकी कमरतोड मेहनत ।
मजदूरों को इस आर्थिक युग में अपनी बात रखने के लिये कई बार सोचना पडता है कि उनके साथ हो रहे अन्याय पर कोई न्याय मिलेगा । ऐसे हालात में मजदूर सिर्फ ठगा सा ओर लाचार सा मजबूरी बस मजदूरी करने को तैयार रहता है।मजदूरों का कहना है कि सरकार ओर अफसर सही मायने में ठान लें कि मजदूरों के साथ किसी प्रकार का कोई अन्याय नहीं हो सकता है। पर सरकार ओर अफसर खुद पूंजीपतियों के साथ मिले होते है। तो ऐसे में मजदूरों को कैसे न्याय मिल सकता है।
ऐसे में मजदूर सिर्फ काम ओर काम के साथ रोजी- रोटी की तलाश में ही रहता है।
मजदूरों का कहना है कि इस बार ये दुखद भी है ओर सुखद भी है। कि कोरोना के कारण हुये लाँक डाउन के कारण कोई दिलासा ओर झूठा आश्वासन नेताओं ने कार्य़क्रम कर नहीं दिये गये है ।जो सालों -साल से देते आ रहे थे।