जैसे –जैसे देश में कोरोना का कहर दिन द दिन बढता जा रहा है । वैसे –वैसे लोगों में कोरोना को लेकर डर बढता ही जा रहा है। पर कुछ लोगों को इस बात को लेकर काफी आक्रोश है। कि केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना को लेकर अब लापरवाह होती जा रही है।तहलका संवाददाता को सामाज के जिम्मेदार लोगों एडवोकेट , डाक्टर, अर्थशास्त्री , सामाजिक कार्यकर्ता व छात्रों ने बताया कि राजनीति से जुडे लोग तो अपने वोट बैंक को देखकर कुछ करते और बोलते है।पर अब सामाज के जिम्मेदार नागरिकों को आगे आना होगा। तब सरकार कोरोना के बचाव के लिये आगे आयेगी अन्यथा काफी क्षति जनमानत की हो सकती है।एडवोकेट पीयूष जैन का कहना है कि एक ओर तो केंद्र सरकार कहती है । कि कोरोना को हराने के लिये हर जरूरी प्रयास किये जा रहे है । वही सरकार जब देश में कोरोना का कहर लोगों की जिन्दगी में काल बनकर खडा है । तब ऐसे हालात में सरकार रेल भर –भर लोगों को गांवों में भेजने में लगी है।ऐसे में देश में कोरोना का फैलाव और होगा । अगर गांवों में कोरोना को फैलाव हो गया तो इसको काबू पाना मुश्किल होगा।क्योंकि इस समय देश में कोरोना को प्रकोप भंयकर रूप धारण करता जा रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मजदूरों की जरूरतों को पूरा करनें में असफल रही है। जितके कारण आज मजदूरों को अपने गांवों में जाना पड रहा है।इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डाँ आर. एन. कालरा का कहना है, कि सरकार जो भी फैसला लें पर सोच समझकर, क्योंकि देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। कोरोना वायरस अन्य वायरस की तुलना में एक कदम आगे है। इसलिये कोरोना से बचाव के तौर पर सरकार को मास्क और सेनेटाइजर को हर नागरिक और स्कूली छात्रों के लिये अनिवार्य कर देना चाहिये। जिससे संक्रमण जैसी महामारी को काबू पाया जा सकें। इस समय जो मजदूर गांवों में जा रहे है कहीं किसी अन्जानें में वे कोरोना संक्रमित होने के कारण दूसरों को संक्रमित ना कर दें।ऐसे हालात में सावधानी और सतर्कता स्वास्थ्य के प्रति जरूरी है।अर्थ शास्त्री अनब सिंह का कहना है, कि सरकार को कोरोना के साथ –साथ अर्थ व्यवस्था पर पूरा ध्यान देना चाहिये । क्योंकि अर्थ बिना सब व्य़र्थ है। उन्होंने कहा कि सरकार मजदूरों को गांव जाने से रोकने में असफल रही है। और छोटी –छोटी जो फैक्टरी है, उनको सरकार कुछ रियायत के साथ सुविधायें मुहैया कराती तो फैक्टरी ना बंद होती और ना ही मजदूरों का पलायन होता ।इस लिये सरकार को कोई ठोस और रोजगार परक फैसले लेने होगे अन्य़था अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाना मुश्किल होगा।गांव जा रहे मजदूरों को गांवों में ही रोजगार और शहर में रह रहे लोगों को रोजगार मुहैया कराना होगा ।जिससे कोरोना के कारण हुये काम को पटरी पर लानें में कोई दिक्कत ना हो और ना ही आर्थिक संकट का सामना करने पडें।सामाजिक कार्यकर्ता मनोहर प्रजापति ने बताया कि हमारे देश का आधार सामाज के मेल-मिलाप पर ही टिका है । अगर सरकार सामाज के कमजोर और गरीबों की उपेक्षा करेंगी। तो देश में अंसमजस की स्थिति पैदा हो जायेगी।जिस प्रकार केंद्र और राज्य सरकार ने कोरोना काल में पूंजी पतियों का साथ दिया है। पर मजदूरों , कमजोर वर्ग और गरीबों की कोई सुनवाई नहीं की है । इन लोगों को पैदल चलनें को मजबूर कर दिया है। जो काफी निन्दनीय और शर्मनाक है।
सी. ए की पढाई करने वाले गौरव सिंह का कहना है कि सरकार ने कोरोना से बचाने के सोशल डिस्टेंसिंग और लाँकडाउन का पालन करने की जो अपील की थी। उसकी जनता ने जमकर धज्जियां उठाई है। जिसके कारण देश में कोरोना का कहर बिल्कुल भी ना थमा है। ऐसे में अगर किसी को कोई दिक्कत हुई है, तो छात्रों को जिसके कारण ना तो उनकी परीक्षायें समय पर हो पा रही है और ना ही राष्ट्रीय स्तर की परीत्क्षायें जिसके कारण छात्रों के सामने अब उनको अब अपने भविष्य को लेकर काफी चिंता हो रही है।